आम्रपाली की सुंदरता और मगध सम्राट बिंबिसार का प्रेम,इतिहास की खूबसूरत महिला ‘आम्रपाली’ को क्यों मिली प्रेम करने सजा! साहित्य और संगीत एक ऐसी औषधि है जो बुढ़ापा नहीं आने देती
राकेश बिहारी शर्मा-साहित्य और संगीत एक ऐसी औषधि है जो लोगों को बुढ़ापा नहीं आने देती है। वैशाली की नगरवधू ‘आम्रपाली’ की खूबसूरती ही उसके लिए काल बन गई थी। बला की खूबसूरत होने के कारण ही उसे मात्र ग्यारह साल की उम्र में ही उसे गणिका बना दिया गया क्योंकि लिच्छवियों की परंपरा के अनुसार उसके पिता को उसे सर्वभोग्या बनाना पड़ा और उसने ग्यारह वर्ष की इतनी कम आयु में ही गणिका के रूप में अपने जीवन की शुरूआत की।
वैशाली की नगरवधू के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने वाली एक गणिका से भिक्षुणी बनी आम्रपाली का जीवन काफी रोचक है। अपने सौंदर्य की ताकत से कई साम्राज्य को मिटा देने वाली आम्रपाली का जन्म आज से करीब 25 सौ वर्ष पूर्व वैशाली के आम्रकुंज में हुआ था। वह वैशाली गणतंत्र के महनामन नामक एक सामंत को यूं ही बाग में पड़ी मिली थी और बाद में वह सामंत राजसेवा से त्याग पत्र देकर आम्रपाली को लेकर अंबारा गाँव चला आया। जब आम्रपाली की उम्र करीब 11 वर्ष हुई तो सामंत उसे लेकर फिर वैशाली लौट आया। बुद्ध के समय में इस देश में यह परंपरा थी कि किसी भी नगर की सबसे सुंदर स्त्री का विवाह किसी एक व्यक्ति से नहीं किया जाएगा, क्योंकि इससे अनावश्यक ईर्ष्या, कलह, लड़ाई पैदा होगी। इसलिए सबसे खूबसूरत महिला को ‘नगर वधू’ बनना पड़ा-पूरे शहर की पत्नी। यह बिल्कुल भी अपमानजनक नहीं था; इसके विपरीत, जिस तरह समकालीन दुनिया में हम खूबसूरत महिलाओं को “वर्ष की महिला” घोषित करते हैं, उनका बहुत सम्मान किया जाता था। वे कोई साधारण वेश्याएँ नहीं थीं। उनका कार्य एक वेश्या का था, लेकिन उनसे केवल बहुत अमीर, या राजा, या राजकुमार, सेनापति-समाज का उच्चतम वर्ग-ही मिलने आते थे।
आम्रपाली बहुत ही रूपवान और गुणवान थी। जब आम्रपाली किशोरावस्थाव में पहुंची तो, पूरे नगर में उसके सौंदर्य की चर्चा होने लगी। इतना ही नहीं नगर का हर पुरुष उससे विवाह करना चाहता था। आम लोग से लेकर व्यापारी और राजा सभी उसे पाना चाहते थे। ऐसे में आम्रपाली के माता-पिता उसे लेकर काफी चिंतिंत रहते थे। क्योंकि आम्रपाली इनमें से किसी एक साथ भी विवाह कर लेती तो पूरे राज्य में अशांति फैल जाती। नगर में शांति स्थापित करने के लिए वैशाली राज्य के प्रशासन ने आम्रपाली को क्रमानुसार अंत में नगरवधू बना दिया। आम्रपाली को साम्राज्य की सबसे खूबसूरत और प्रतिभाशाली महिला के रूप में “जनपथ कल्याणी” की उपाधि 7 साल के लिए दे दी गई। आम्रपाली को धन-आभूषण से लेकर अपना महल भी मिला। उसके इर्द-गिर्द सेविकाएं रहती थी। आम्रपाली को शारीरिक संबंध बनाने के लिए चयन का अधिकार भी प्राप्त थी। फिर वह राजा के दरबार की नर्तकी भी बन गई। आम्रपाली की सुंदरता की कहानियाँ मगध के शत्रुतापूर्ण पड़ोसी राज्य के राजा बिंबिसार के कानों तक पहुँच गईं। उसने वैशाली पर आक्रमण किया और आम्रपाली के घर में शरण ली। बिंबिसार एक अच्छे सुरम्य सुरमयी संगीतकार थे। मगध सम्राट बिंबिसार ने आम्रपाली को पाने के लिए वैशाली पर जब आक्रमण किया तब संयोगवश उसकी पहली मुलाकात आम्रपाली से ही हुई। आम्रपाली के रूप-सौंदर्य पर मुग्ध होकर बिंबिसार पहली ही नजर में अपना दिल दे बैठा। माना जाता है कि आम्रपाली से प्रेरित होकर बिंबिसार ने अपने राजदरबार में राजनर्तकी के प्रथा की शुरुआत की थी। आम्रपाली भारतीय इतिहास का एक स्मरणीय पात्र है। वह एक मशहूर नृत्यांगना और दार्शनिक विचारों वाली खूबसूरत महिला थीं।
इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला को क्यों मिली ऐसी सजा!
आम्रपाली को इतिहास की सबसे खूबसूरत महिला कहा जाता है। आम्रपाली की खूबसूरती की तुलना किसी भी चीज से नहीं की जा सकती है। लेकिन आम्रपाली की खूबसूरती ही उसके दुर्भाग्य की सबसे बड़ी वजह बनी। आम्रपाली को बहुत ही कम उम्र में राज्य के आदेश से ‘वेश्या’ बनना पड़ा। वह शायद इतिहास की इकलौती ऐसी महिला थी जिसे ऐसी बदनसीबी झेलनी पड़ी। एक खूबसूरत लड़की से नगरवधु बनने और उसके बाद भिक्षुणी बन जाने की यात्रा में उस युग के कई प्रसिद्ध लोगों के नाम आते हैं।
आम्रपाली की दु:खद और दुख भरी कहानी
वैशाली राज्य की एकता और शांति के लिए सभी की खुशी को जरूरी है इसलिए आम्रपाली को नगरवधू बना दिया गया। आम्रपाली पूरे नगर की दुल्हन बन गई जिसे अब हर किसी से प्यार करना था। आम्रपाली को नगरवधु बनाने से वैशाली के लोग तो खुश हो गए लेकिन इस तरह से आम्रपाली अपनी ही खूबसूरती का शिकार बन गई। आम्रपाली को अपना खुसुरत राजशाही महल मिला। उसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए अपना पार्टनर चुनने का अधिकार भी मिला। इसके साथ ही वह दरबार की राज नर्तकी भी बन गई।
नृत्यांगना आम्रपाली और संगीतकार बिंबिसार का प्रेम
मगध के राजा बिंबिसार के वैशाली के साथ हमेशा ही शत्रुतापूर्ण रिश्ते रहे थे। ऐसे में आम्रपाली से मिलने जाने के लिए उन्हें दूसरा भेष धारण करना पड़ा ताकि कोई उन्हें पहचान नहीं सके। बिंबिसार खुद एक संगीतकार था। जब वह आम्रपाली से मिले तो दोनों एक-दूसरे के साथ प्यार में पड़ गए। आम्रपाली बिंबिसार के बच्चे की मां भी बनीं। उसका बेटा आगे चलकर एक बौद्ध भिक्षु बन गया। एक बार जब बिंबिसार ने वैशाली पर आक्रमण किया तो उसने आम्रपाली के महल में शरण ली। उसी दौरान आम्रपाली को बिंबिसार की असली पहचान पता चल गई। आम्रपाली ने बिंबिसार से युद्ध रोकने के लिए कहा और बिंबिसार ने आम्रपाली की बात मान ली। बिंबिसार ने आम्रपाली को मगध की महारानी बनने का प्रस्ताव भी दिया लेकिन आम्रपाली ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वैशाली और मगध शत्रु थे। अगर आम्रपाली ने बिंबिसार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया होता तो शायद भयंकर युद्ध छिड़ जाता और हजारों लोग मारे जाते।
बौद्ध भिक्षुणी आम्रपाली और अजातशत्रु की प्रेम कहानी
बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु भी आम्रपाली पर मोहित हो गया था। आम्रपाली भी उससे प्रेम करने लगी थी। लेकिन जब वैशाली के लोगों को पता चला तो उन्होंने आम्रपाली को जेल में डाल दिया गया। अजातशत्रु इस बात से इतना क्रोधित हो गया कि उसने वैशाली पर कहर बरपा दिया। कई लोगों की जानें चली गईं। इस विभीषिका से आम्रपाली दुखी हो गई। वह अपने राज्य से बहुत प्यार करती थी, उसकी कीमत पर वह अपने प्रेम को नहीं पाना चाहती थी।
जहां बड़े-बड़े व्यापारी, राजकुमार आम्रपाली पर मोहित हो गए थे वहीं आम्रपाली एक बौद्ध भिक्षु पर मोहित हो गईं। आम्रपाली ने बौद्ध भिक्षु को ना केवल खाने पर आमंत्रित किया बल्कि 4 महीने के प्रवास के लिए भी अनुरोध किया। बौद्ध भिक्षु ने उत्तर दिया कि वह अपने गुरू बुद्ध की आज्ञा के बाद ही ऐसा कर सकते हैं। बुद्ध ने सबको हैरानी में डालते हुए बौद्ध भिक्षु को इसकी अनुमति दे दी। 4 महीने बाद आम्रपाली बौद्ध भिक्षु के साथ आई और बुद्ध के चरणों में गिर गई। आम्रपाली ने जो कहा, उसे सुनकर सब हैरान रह गए। आम्रपाली ने कहा, मैं आपके बौद्ध भिक्षु को मोहित नहीं कर पाई लेकिन उनकी आध्यात्मिकता ने मुझे उन्हीं की राह पर चलने को विवश कर दिया है।बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु और आम्रपाली दोनों एक दूसरे से काफी प्रेम करने लगे थे। जब वैशाली गणराज्य को यह पता चला तो उन्होंने आम्रपाली को जेल में डाल दिया गया। अजातशत्रु को यह पता चला तो उसने वैशाली पर आक्रमण कर कई लोगों की जान ले ली। लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हुआ।आम्रपाली देशभक्ति की परीक्षा में भी खरी उतरी थी। अजातशत्रु से प्रेम होने के बावजूद देशप्रेम की ख़ातिर अजातशत्रु के अनुग्रह को अस्वीकार कर उसने अपने प्रेम की आहूति देना स्वीकार किया, परन्तु अपने देश और राजा से विश्वासघात करने से इनकार कर दिया।आम्रपाली के रूप की चर्चा जगत प्रसिद्ध थी और उस समय उसकी एक झलक पाने के लिए सुदूर देशों के अनेक राजकुमार उसके महल के चारों ओर अपनी छावनी डाले रहते थे। वैशाली में गौतम बुद्ध के प्रथम पदार्पण पर उनकी कीर्ति सुनकर उनके स्वागत के लिए आम्रपाली सोलह श्रृंगार कर अपनी परिचारिकाओं सहित गंडक नदी के तीर पर पहुँची।आम्रपाली को देखकर बुद्ध को अपने शिष्यों से कहना पड़ा कि तुम लोग अपनी-अपनी आँखें बंद कर लो। क्योंकि भगवान बुद्ध जानते थे कि आम्रपाली के सौंदर्य को देखकर उनके शिष्यों के लिए संतुलन रखना कठिन हो जाएगा।उस युग में राज नर्तकी का पद बड़ा गौरवपूर्ण और सम्मानित माना जाता था। साधारण जन तो उस तक पहुँच भी नहीं सकते थे। समाज के उच्च वर्ग के लोग भी उसके कृपाकटाक्ष के लिए लालायित रहते थे। कहते हैं, भगवान तथागत ने भी उसे “आर्या अंबा” कहकर संबोधित किया था।
आम्रपाली ने आम्रकानन में भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों को निमंत्रित कर भोजन कराया था और दक्षिणा के रूप में उसने संघ को आमों का अपना बगीचा भी दान कर दिया था और वहां ‘विहार’ का निर्माण करने का आग्रह किया।
एक गणिका का जीवन बिताते हुए बुद्ध के उपदेश से प्रभावित हो आम्रपाली बुद्ध और उनके संघ की अनन्य उपासिका हो गई थी और उसने अपने पाप के जीवन से मुख मोड़कर अर्हत् का जीवन बिताना स्वीकार किया। गणिका जीवन से धम्मसंघ में पहले भिक्षुणियाँ नहीं ली जाती थीं, यशोधरा को भी बुद्ध ने भिक्षुणी बनाने से इन्कार कर दिया था, किंतु आम्रपाली की श्रद्धा, भक्ति और मन की विरक्ति से प्रभावित होकर नारियों को भी उन्होंने संघ में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया। इस घटना के बाद ही बुद्ध ने स्त्रियों को बौद्ध संघ में प्रवेश की अनुमति दी थी। आम्रपाली इसके बाद सामान्य बौद्ध भिक्षुणी बन गई और वैशाली के हित के लिए उसने अनेक कार्य किए। उसने केश कटा कर भिक्षा पात्र लेकर सामान्य भिक्षुणी का जीवन व्यतीत किया। माना जाता है कि आम्रपाली के मानवीय तत्व से ही प्रभावित होकर भगवान बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की थी। इस संघ के जरिए भिक्षुणी आम्रपाली ने नारियों की महत्ता को जो प्रतिष्ठा दी वह उस समय में एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।