Monday, December 23, 2024
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तुलसीदास भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की शिक्षा के प्रवर्तक थे

●तुलसीदास ने रामकथा को आदर्श जीवन का माध्यम बनाया ●तुलसीदास का रामचरित मानस दुनिया का सबसे बेहतर ग्रंथ |

बिहारशरीफ,बबुरबन्ना-नालंदा 15 अगस्त 2021 : स्थानीय बबुरबन्ना मोहल्ले में देर-संध्या साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के अध्यक्षता में भक्ति रस के कवि, कवि सम्राट गोस्वामी तुलसीदास की 524 वीं जयंती मनाई गई। जिसका संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने किया। कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, सचिव राकेश बिहारी शर्मा, डॉ. आनंद वर्द्धन एवं साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर तथा मंगलदीप प्रज्वलित कर किया।
मौके पर शंखनाद के सचिव साहित्यसेवी साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि तुलसीदास लोकजीवन के व्याख्याता और साहित्य शिल्पी थे। उनकी रचनाओं में सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक चेतना का सत्यतः विनियोग हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास भक्ति रस तथा हिन्दी और अवधि भाषा के अप्रतिम कवि थे। कवि सम्राट कहे जाने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने सनातन धर्म को न सिर्फ अनमोल ग्रंथों का खजाना दिया बल्कि सनातन धर्म के प्रति विश्वास जगाने का काम भी किया। रामायण महाकाव्य नहीं बल्कि साहित्य, समाज एवं संस्कृति की आचार-संहिता है। भारत वर्ष की संस्कृति ऋषि और कृषि प्रधान रही है। भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। अपने उदात्त जीवन मूल्यों और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसे आदर्शों के चलते समूचा विश्व इसकी महानता के सम्मुख नतमस्तक है। साहित्य के विविध रूपों में यह संस्कृतिक वैभव विद्यमान है। श्री राम के जीवन से हम सभी को सीख लेकर मर्यादा रक्षक बनना चाहिए। माता-पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए। तुलसीदास भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की शिक्षा के प्रवर्तक थे
इस अवसर पर चंद्रमा सदृष्य लोककवि तुलसी को नमन करते हुए अभियन्ता डा. आनन्दवर्द्धन ने कहा कि आज के ही दिन गोरे से मिली स्वतंत्रता मना रहे हैं और तुलसी जयंती भी। यही तुलसी जी ने अकबर के प्रभाव से बेचैन ज़नमानस के लिए घर-घर महावीर जयंती मनाने और उंचा पताका फहराने की नीव रखी तथा स्वयं संग सर्वस्व सुखाय हित रामचरित मानस एवं कई अन्य ग्रंथ रचे जो भारतीयों को आदर्शोन्मूख जीवन आधार दिया। बहुत हर्ष की बात है कि ज्ञानश्रोत धरा नालन्दा में शंखनाद टीम तुलसी जयंती मना रहा। इस मौके पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि गोस्वामी तुलसीदास भक्ति रस तथा हिन्दी और अवधि भाषा के अप्रतिम कवि थे। कवि सम्राट कहे जाने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने सनातन धर्म को न सिर्फ अनमोल ग्रंथों का खजाना दिया बल्कि सनातन धर्म के प्रति विश्वास जगाने का काम भी किया। भारत वर्ष की संस्कृति ऋषि और कृषि प्रधान रही है। समग्र प्राणियों में ईश्वर के दर्शन करने तथा भाव से संबंध बनाए रखने के कारण ही हमारा विश्व बंधुत्व का संदेश भी रहा है। तुलसीदास भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की शिक्षा के प्रवर्तक थे
साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा कि रामायण महाकाव्य नहीं बल्कि साहित्य, समाज एवं संस्कृति की आचार-संहिता है। तुलसीदास को साहित्य एवं संस्कृति ऐसा सूरज बताया गया जिसके आलोक में मानवता, राष्ट्रवाद, साहित्य, एवं संस्कृति लंबे समय तक अपना रास्ता ढुंढ़ती रहेगी। गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के आकाश के एक चमकीले नक्षत्र के रूप में हमेशा याद किये जायेंगे। तुलसीदास भक्तिकाल की सगुण भक्तिधारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। शिक्षाविद् जितेन्द्र कुमार ने कहा कि महान कवि तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस के माध्यम से पूरे भारत को भक्ति से सराबोर कर दिया। उनकी भक्त की लहर आज भी जन-जन में कायम है। आज उन्ही महान कवि की तुलसीदास जी की जयंती है। शंखनाद के मीडिया प्रभारी चर्चित् शायर नवनीत कृष्ण ने संचालन करते हुए कहा कि तुलसीदास जी बहुत प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने श्रीरामचरित मानस में रामचन्द्र जी और सीता जी का मनोरम चित्रण प्रस्तुत किया। इसके अलावा उन्होंने रामलला नहछू, विनय पत्रिका, जानकी मंगल और हनुमान बाहुक की रचना की। श्रीरामचरित मानस के अलावा हनुमान चालीसा तुलसीदास जी लोकप्रिय रचनाओं में से एक है। तुलसीदास भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की शिक्षा के प्रवर्तक थे
समाजसेवी धीरज कुमार ने कहा कि गोस्वामी जी विश्व के महान साहित्यकार थे। उनकी शब्द संपदा विश्व के किसी भी साहित्यकार से अधिक है। गोस्वामी तुलसीदास ने राम भक्ति के द्वारा न केवल अपना जीवन कृतार्थ किया अपितु समूची मानव जाति को राम के आदर्शों से जोड़ दिया। शिक्षाविद् घनश्याम कुमार ने कहा कि महान कवि तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया। अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने विधर्मी बातों, पंथवाद और सामाज में उत्पन्न बुराइयों की आलोचना की उन्होंने साकार उपासना, गो-ब्राह्मण रक्षा, सगुणवाद एवं प्राचीन संस्कृति के सम्मान को उपर उठाने का प्रयास किया वह रामराज्य की परिकल्पना करते थे। इस मौके पर साहित्यप्रेमी राजदेव पासवान, सुरेन्द्र कुमार, अमित कुमार, निरंजन कुमार, सुरेश प्रसाद, अशोक कुमार, अरविन्द कुमार सहित कई लोग मौजूद थे।

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