ऐतिहासिक गांधी मैदान पटना कई घटनाओं और आंदोलनों का गवाह :
राकेश बिहारी शर्मा—-गांधी मैदान भारत के बिहार राज्य में गंगा नदी के किनारे पटना में एक ऐतिहासिक मैदान है। गोलघर इसके पश्चिम में स्थित है। 1824-1833 की अवधि के दौरान, ब्रिटिश शासन के दौरान, इसका उपयोग गोल्फ कोर्स और घुड़दौड़ ट्रैक के रूप में किया जाता था और इसे पटना लॉन कहा जाता था। ऐतिहासिक गांधी मैदान का नाम कालांतर में बांकीपुर लॉन ही था।
पटना के गांधी मैदान का इतिहास :
गांधी मैदान पटना, जिसे पहले पटना लॉन या पटना ग्राउंड्स के नाम से जाना जाता था, पटना के बीचों-बीच 62 एकड़ में फैला एक बड़ा खुला मैदान है। यह शहर की कुछ सबसे महत्वपूर्ण इमारतों और स्थलों से घिरा हुआ है, जैसे कि पटना उच्च न्यायालय, पटना सचिवालय, पटना कॉलेज और गोलघर। गांधी मैदान पटना का इतिहास 18 वीं शताब्दी का है, जब इसे ब्रिटिश सेना द्वारा परेड ग्राउंड के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। बाद में, यह सार्वजनिक समारोहों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, राजनीतिक रैलियों और खेल गतिविधियों का स्थल बन गया। हालाँकि, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही गांधी मैदान पटना को अपनी प्रसिद्धि और महत्व मिला। गांधी मैदान पटना का नाम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम पर रखा गया था, जो कई बार पटना आए थे और इस मैदान पर अपनी प्रार्थना सभाएँ की थीं। सबसे यादगार घटना 15 अगस्त, 1942 की थी, जब गांधी जी ने गांधी मैदान पटना से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। उन्होंने अपना प्रसिद्ध भाषण “करो या मरो” दिया और भारत के लोगों से ब्रिटिश शासन के खिलाफ उठ खड़े होने और अपनी आज़ादी के लिए लड़ने का आग्रह किया। उनके शब्दों ने लाखों भारतीयों के दिलों में एक चिंगारी जलाई, जो उनके अहिंसक प्रतिरोध में उनके साथ शामिल हो गए। 27 अक्टूबर 1945 को पटना के गांधी मैदान में एक और ऐतिहासिक घटना घटी, जब भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) के नेता सुभाष चंद्र बोस ने तीन लाख से ज़्यादा लोगों की विशाल भीड़ को संबोधित किया। उन्होंने लोगों से अंग्रेजों के खिलाफ़ अपने सशस्त्र संघर्ष का समर्थन करने की अपील की और घोषणा की कि जब तक भारत आज़ाद नहीं हो जाता, वे चैन से नहीं बैठेंगे। गांधी मैदान पटना ने स्वतंत्रता के बाद कुछ सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं को भी देखा, जैसे 1950 में पहला गणतंत्र दिवस समारोह, 1974 में पहला बिहार आंदोलन और 2017 में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक इस मैदान का नाम बदलने का अनुरोध मुजफ्फरपुर जिले के एक शिक्षक विश्वनाथ प्रसाद चौधरी ने अधिकारियों को पत्र भेजकर महात्मा गांधी के नाम पर रखने का सुझाव दिया था। इसमें अनुरोध किया कि जहां बापू ने महीनों बैठकर प्रार्थना की, उस पवित्र भूमि का नाम बांकीपुर मैदान से बदला जाना चाहिए। शिक्षक विश्वनाथ प्रसाद चौधरी ने सुझाव दिया कि यह महात्मा गांधी मैदान, गांधी मैदान, गांधी उद्यान, गांधी पार्क, गांधी प्रार्थना सभा या कुछ और जिसमें बापू के नाम का संबंध हो। सरकार ने उनके अनुरोध को स्वीकार किया और 1948 में बांकीपुर मैदान का नाम बदलकर गांधी मैदान कर दिया।
पटना का पहला सिनेमा हॉल :
दस्तावेज के अनुसार, सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1918 में आने के बाद एलिफिंस्टन बाइसकोप कंपनी को 500 रुपये सालाना पर सिनेमा हॉल के लिए 625 एकड़ जमीन उपलब्ध कराई गई। उसपर पहला सिनेमा हॉल एलिफिंस्टन खुला।
कोलकाता की तरह पटना में थी ट्राम और फेरी सेवा :
दस्तावेजों के अनुसार, 1886-87 में एक कंपनी बनाई गई। बताया गया कि बांकीपुर मैदान से अशोक राजपथ के रास्ते पटना सिटी तक ट्राम सेवा की शुरुआत की गई। घोड़े से चलने वाले ये ट्राम 16 साल तक यातायात के अहम साधन थे। फिर 1903 में इसे बंद कर दिया गया।
साथ ही गंगा में फेरी सेवा (नाव) थी। यह पहलेजा से दीघा, मारुफगंज और हरदी छपरा तक चलती थी। पहले में पटना की जलनिकासी, जलापूर्ति की व्यवस्था से जुड़े दस्तावेज पटना के विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को दिखाते हैं।
पटना में सैनिक छावनी और महात्मा गांधी की प्रार्थना सभा :
1765 में बांकीपुर लॉन सपाट जमीन थी, जगह-जगह पानी जमा रहता था, तब अंग्रेजों ने इसे विकसित कर यहां सैनिक छावनी बनाई थी। पटना का ह्रदय स्थली कहे जाने वाले गांधी मैदान को एक समय लॉन कहा जाता था। महात्मा गांधी की प्रार्थना सभाओं के बाद इस मैदान का नाम गांधी मैदान पड़ा। इस मैदान का विकास तब हुआ, जब अंग्रेजों ने अपनी सैनिक छावनी को विकसित किया। बक्सर की लड़ाई के बाद 1765 के आसपास जब सैनिकों की छावनी मुंगेर में थी, तब कुछ सैनिक उपद्रव हो गए थे। तब अंग्रेजों ने विद्रोहियों का तबादला कर उन्हें पटना लाया। 1767-68 में यह छावनी दानापुर स्थापित हो गया। इस मैदान से लेकर वर्तमान बस स्टैंड और मगध महिला कॉलेज तक अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी। उस समय सैनिक छावनी की चर्च बस स्टेंड के पास थी जिसे आज क्राइस्ट चर्च कहा जाता है। गांधी मैदान कहा जाने वाला ये मैदान पूरी तरह कच्ची जमीन थी। पानी का जमाव रहता था और कुछ एरिया में घास-फूस भी रहते थे। अंग्रेजों ने इस मैदान को विकसित किया। उस समय ये लॉन कहा जाता था। लोग वहां टहलने आया करते थे। कुछ समय तक यहां घोड़े की रेस भी हुआ करती थी। आजादी की लड़ाई के जमाने में यहां कई बार सभाएं हुए। कई बड़ी बैठकें भी हुईं। वहीं 19 वीं सदी में वहाबी आंदोलन हुआ था। जब मुसलमानों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। इसके लीडर थे सैयद अहमद शहीद। ये लोग गंगा के रास्ते से पटना आए थे और मैदान के आस-पास ठहरे थे। उस दौरान उन्होंने वहां पर जुमे की नमाज भी पढ़ी थी।
आजादी के कुछ पहले ही गांधी जी ने कई बार यहां सभा की थी। एएन सिन्हा का गांधी कुटीर आउट हाउस था, जहां गांधी जी आजादी के समय रुका करते थे। गांधी मैदान का इलाका उस समय और बड़ा था। 1947 के पहले जब बिहार में कम्युनल राइट का समय था तब गांधी ने लॉन में कई प्रार्थना सभाएं आयोजित कीं। आजादी के बाद लॉन का नाम गांधी मैदान पड़ा और तब से लोग इसे गांधी मैदान के नाम से जानते हैं। 1960 तक उसे लॉन ही कहा जाता था।
बांकीपुर लॉन में महात्मा गांधी और जिन्ना ने की थी विशाल जनसभा :
महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह शुरु करने के बाद इसी मैदान में विशाल जनसभा को संबोधित किया था। वहीं साल 1938 में तत्कालीन मुस्लिम लीग के प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस के खिलाफ इसी मैदान में भाषण दिया था। साल 1939 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी नई पार्टी ऑरवरड ब्लॉक की पहली ऐतिहासिक रैली यहीं की थी। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु, जेबी कृपलानी, राम मनोहर लोहिया, अटल विहार वाजपेयी समेत कई नेताओं ने गांधी मैदान में भाषण दिया है। जयप्रकाश नारायण 5 जून साल 1974 को इसी मैदान से संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था।
ब्रिटिश हुकूमत में बांकीपुर मैदान और जेपी का स्वागत :
चंपारण सत्याग्रह में मिले समर्थन से उत्साहित महात्मा गांधी ने इसी मैदान मं जनसभा को संबोधित किया था। इसके बाद के वर्षों में पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, सुभाष चंद्र बोस, राम मनोहर लोहिया, अटल विहारी वाजपेयी, लालू यादव, नीतीश कुमार, नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं ने गांधी मैदान में भाषण दिया। महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में इसका नाम बदलकर गांधी मैदान कर दिया गया। पटना के गांधी मैदान से निकली आवाज से दिल्ली की सत्ता हिलती रही। जयप्रकाश नारायण ने भी 5 जून 1974 को इसी गांधी मैदान से संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। जिसके बाद 25 जून 1975 इमरजेंसी लगा दी गई। करीब पांच साल पहले इस मैदान में बड़ा राजनीतिक जलसा हुआ था। 1946 में इसी मैदान में श्रीकृष्ण सिंह की मौजूदगी में दिनकर ने जेपी के स्वागत में भावी इतिहास तुम्हारा है..कविता पढ़ी। 5 जून 1974 को जेपी ने इसी गांधी मैदान में ऐतिहासिक ‘इंदिरा हटाओ’ अभियान का आगाज किया था। बुजुर्ग जेपी जनता को संबोधित करने के लिए कुर्सी पर बैठे थे। कुछ लोगों का कहना था कि इससे पहले 1942 के आंदोलन के दौरान गांधी मैदान में भीड़ जुटी थी। उस वक्त हजारीबाग जेल ब्रेक के बाद जेपी एक नेशनल हीरो बन गए थे। पटना के गांधी मैदान में दो सबसे अच्छे राजनीतिक कार्यक्रम आयोजित करने श्रेय जेपी को दिया जाता है। ‘संपूर्ण क्रांति के आह्वान से तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार तिलमिला गई। 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा कर दी गई। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में पहली कांग्रेस विरोधी सरकार बनी। गांधी मैदान के चारों ओर सरकारी इमारतें, प्रशासनिक केंद्र और चर्च है। साल 2013 मे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा यहां महात्मा गांधी की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित करवाई गई।
गांधी मैदान पटना का मुख्य आकर्षण महात्मा गांधी की प्रतिमा और जीवंत इतिहास :
गांधी मैदान पटना में सबसे लोकप्रिय आयोजनों में से एक वार्षिक पटना पुस्तक मेला है, जो नवंबर या दिसंबर में आयोजित किया जाता है । यह भारत के सबसे बड़े पुस्तक मेलों में से एक है, जहाँ सैकड़ों प्रकाशक और पुस्तक विक्रेता अपनी पुस्तकें और अन्य साहित्यिक उत्पाद प्रदर्शित करते हैं। पुस्तक मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम, साहित्यिक संगोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ और प्रतियोगिताएँ भी होती हैं। गांधी मैदान पटना का एक और प्रमुख आकर्षण महात्मा गांधी की प्रतिमा है जो मैदान के दक्षिणी छोर पर स्थित है। इस मैदान में लगी महात्मा गांधी की मूर्ति सिर्फ बिहार या पटना ही नहीं दुनिया भर में विख्यात है। मैदान में लगी दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति पहले महात्मा गांधी की दुनिया में सबसे ऊंची मूर्ति दिल्ली के संसद भवन में लगी थी। इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 16 फुट है। लेकिन फरवरी 2013 में मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने पटना के गांधी मैदान में महात्मा गांधी की मूर्ति का अनावरण किया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस मूर्ति को तैयार करने में करीब 35 करोड़ रुपयों की लागत आयी थी। 72 फीट ऊंची यह प्रतिमा कांस्य यानी ब्रॉन्ज की बनी हुई है। इस मूर्ति को सेंट जेवियर्स हाई स्कूल, पटना के ठीक सामने लगाया गया है। मूर्ति के आधार की ऊंचाई 24 फीट और मूर्ति 48 फीट ऊंची बतायी जाती है। गांधी मैदान के पश्चिम कोने पर लगी इस मूर्ति में महात्मा गांधी दो बच्चों के साथ मुस्कुराते हुए खड़ी मुद्रा में है। इस मूर्ति में महात्मा गांधी से संबंधित कुछ वर्षों जैसे मार्च 1930 का दांडी मार्च, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, 1917 का चम्पारण आंदोलन और चरखा को बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा गया है। इस मूर्ति को रामसुतर आर्ट प्रा. लि. का संचालन करने वाले अनील ने तैयार किया है। उनका कहना है कि मूर्ति में बापू का मुस्कुराता हुआ चेहरा अमीरी और गरीबी के बीच की खाई को पाटने और विश्व शांति का प्रतिक है।
इस मैदान में एक और गांधी की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसकी ऊंचाई 70 फीट है। इसका अनावरण तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 2 अक्टूबर, 2008 को गांधी की जयंती के अवसर पर किया था। यह उनकी सादगी, विनम्रता और साहस का प्रतीक है। गांधी मैदान पटना में होने वाले अन्य कार्यक्रमों और आकर्षणों में प्रदर्शनियां, मेले, त्यौहार, संगीत कार्यक्रम, खेल प्रतियोगिताएं, योग शिविर और सामाजिक जागरूकता अभियान शामिल हैं। गांधी मैदान पटना एक ऐसी जगह है जहाँ इतिहास जीवंत हो उठता है। यह एक ऐसी जगह है जहाँ आप भारत और बिहार के गौरवशाली अतीत के बारे में जान सकते हैं और शहर और राज्य के जीवंत वर्तमान और भविष्य को देख सकते हैं। यह एक ऐसी जगह है जहाँ आप बिहार की संस्कृति और भावना का अनुभव कर सकते हैं और इसके कार्यक्रमों और आकर्षणों का आनंद ले सकते हैं। यह एक ऐसी जगह है जहाँ आप एक भारतीय और एक बिहारी होने पर गर्व महसूस कर सकते हैं।