Friday, September 20, 2024
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श्रद्धा पूर्वक मनाई गई संत शिरोमणि प्रभु राम जी महाराज की पुण्यतिथि

बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित रामसागर राम के आवास पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी व लोकप्रिय आयुर्वेदाचार्य प्रकांड रामायणी संत शिरोमणि प्रभु राम जी की तृतीय पुण्यतिथि हर्सोल्लास के साथ शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में साहित्यकारों, कवियों एवं समाजसेवियों ने स्व. प्रभु राम जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर श्रद्धा भाव से मनाई गई। कार्यक्रम का संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।

कार्यक्रम में संगीतकार रामसागर राम, लक्ष्मीचंद्र आर्य एवं सुभाषचंद्र पासवान ने दिल को छू लेने वाले भजन- सब दिन होत न एक समाना एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह कंचन भरे खजाना एक दिन भरे डोम घर पानी मरघट गहे निशाना सब दिन होत न एक समाना…,क्या तू लेकर जायेगा…, करीं हम कवन बहाना…, हर बात को तुम भूलो भले मगर माँ बाप को मत भूलना… सहित कई सुमधुर भजन-निर्गुण सुनाया।

मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि श्री संत शिरोमणि प्रभु राम जी बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी के शिक्षाविद् नाटककार रामसागर राम जी के पिता थे। ये पटना जिला के महाने नदी के तट पर स्थित बराह फतेहपुर में तपस्वी बाबा मठ के महंथ थे। स्वर्गीय प्रभु राम जी संत परम्परा के महान तपस्वी संत थे और ऋषि-कृषि व गौ सेवा तथा संत सेवा को ही अपना धर्म मानते थे।

हमेशा मानव सेवा एवं संतों की सेवा में लगे रहते तथा आश्रम में जो भी व्यक्ति श्री प्रभु राम जी के सम्मुख आया वह खाली हाथ नहीं लौटा उसकी इच्छाओं की पूर्ति श्री प्रभु महाराज जी ने की। उन्होंने बताया कि श्री प्रभु जी हमेशा यही कहते थे कि मानव सेवा में ही परमात्मा का वास होता है और यह परम्परा हमेशा चलती रहनी चाहिए। और इस तपस्वी बाबा मठ में सदियों से सेवा चल रही थी और आज भी उनके शिष्यों द्वारा गौ सेवा एवं संत सेवा, मानव सेवा निरंतर चल रही है।

मौके पर अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रभु राम जी ग्राम-खिरौना, पोस्ट-रहुई, जिला-नालन्दा के निवासी थे। ये स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय भागीदारी दिए थे। आजादी के बाद वैष्णव संप्रदाय के फतेहपुर पटना मठ में रहते हुए प्रवचन दिया करते थे। आयुर्वेदाचार्य, जड़ी बूटियों के महान ज्ञाता संत प्रभु राम जी दूर-दूर से आये हुए रोगियों को फ्री में इलाज करते थे।

ये अपने जीवन में हजारों भजन व गीत गाये व लिखे। उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि प्रभु राम जी भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित कोसी नदी पर सन 1958 से 1962 के बीच एक बाँध बनाया गया था, जिसमें ये श्रमदान किये थे। कोशी बांध बांधने में इनके कार्य कुशलता को देख कर इन्हें पुरस्कृत भी किया गया था। ये जीवनपर्यंत सरकारी लाभ लेने से इंकार किया। संत प्रभु राम जी वृद्धा पेंशन तक नहीं लिया। इनके दो पुत्र शिक्षक रामसागर राम एवं राम वृक्ष राम हैं, इनके पौत्र मशहूर गजलकार व कवि नवनीत कृष्ण एवं पुनीत हरे हैं।

शंखनाद के वरीय सदस्य सरदार वीर सिंह ने कहा कि स्वर्गीय श्री प्रभु राम जी संत समाज व जीव सेवा को सदैव अपने कार्यों से प्रेरणा देने का कार्य करते रहे हैं। संतों के ही मार्गदर्शन में समाज आगे बढ़ रहा है। गुरु और शिष्य की परंपरा को सदैव संतों ने ही आगे बढ़ाया है। संतों के दर्शन मात्र से ही इस कलयुग में भवसागर पार किया जा सकता है।

इस दौरान साहित्यकार इंजीनियर डॉ. आनंद वर्द्धन, शिक्षाविद् राज हंस जी, राजदेव पासवान, घनश्याम कुमार, जितेंद्र कुमार, तंग अय्यूबी, राजीव कुमार, समर वारिस, पुनीत हरे, गोल्डेन कुमार, संजीव कुमार, राधिका कुमारी, माला देवी सहित जिले के कई साहित्यकारों, कवियों व समाजसेवियों ने भाग लिया।

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