बिहार शरीफ प्रखंड के दीप नगर स्थित भीम आर्मी (भारत एकता मिशन)तथा आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के कार्यालय में सबित्रिबाई फुले की जन्मतिथि धूमधाम के साथ मनाई गई। इस मौके पर सावित्रीबाई फुले की जीवनी की चर्चा की गई। इस अवसर पर भीम आर्मी (भारत एकता मिशन) सह आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) जिला महासचिव व भारतीय बौद्ध महासभा के जिला कार्यकारिणी अध्यक्ष तथा फुटपाथ विक्रेता संघ के अध्यक्ष रामदेव चौधरी भीम आर्मी (भारत एकता मिशन )और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के जिला प्रभारी तथा भारतीय बौद्ध महासभा के जिला महासचिव रंजीत कुमार चौधरी भारतीय अनार्य पार्टी के कोषाध्यक्ष आशुतोष कुमार ने संयुक्त रुप से कहा कि सावित्रीबाई फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका समाज सुधारिका एवं मराठी कवित्री थी। ये माली समाज की थी। इनकी जन्म 3 जनवरी 1831 में हुई थी। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकार एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है केवल 9 साल की उम्र में सबित्री बाई फुले का विवाह हुआ जब उनका विवाह हुआ था तब बे अनपढ़ थी ज्योतिबा फुले भी तीसरी कक्षा तक ही पढ़ें थे। जिस दौर में सबित्री बाई फुले पढ़ने का सपना देख रही थी उस दौर में अस्पृश्यता छुआछूत भेदभाव जैसी कुरीतियां चरम पर थी।एक दिन सबित्री अंग्रेजी की किताब के पन्ने पलट रही थी तभी उसके पिताजी ने देख लिया वे दौड़कर आए और उनके हाथ से किताब छीन कर घर से बाहर फेंक दिया क्योंकि उस समय शिक्षा ग्रहण का हक केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था शूद्र (एससी एसटी ओबीसी)और महिलाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करने पर रोक था।बस उस दिन से वह किताब वापस लाकर प्रण कर बैठी की कुछ भी हो जाए वह एक ना एक दिन पढ़ना जरूर सिखेगी
इसी लगन से उन्होंने खुद पढ़ कर अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़के व लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोलें जब भी सावित्रीबाई फुले स्कूल जाती थी तो लोग उन पर पत्थर और गोबर फेंक दिया करते थे ऐसा हर रोज होना था लेकिन वे पीछे नहीं हटी उन्होंने इसका हल भी ढूंढ लिया वे अपने साथ एक अतिरिक्त साड़ी लेकर जाने लगी आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत सावित्रीबाई फुले ने अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना लाने का प्रयास किया सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ समाज के वंचित तबके खासकर स्त्रियां और शुद्र (एससी एसटी ओबीसी) के अधिकार के लिए संघर्ष करने के लिए हमेशा याद की जाएगी आधी आबादी को अपने अधिकारों के बारे में पता ही ना होता तो स्वतंत्र स्वतंत्रता संग्राम की सफलता असफलता तो दूर की बात है इसकी शुरुआत करने में ही बड़ी दिक्कत आती महिला शिक्षा में सावित्रीबाई फुले के प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाएं अपना योगदान दे पाई। इनकी मृत्यु 10मार्च 1८९७ ई में हो गई। इस मौके पर उपस्थित लोगों ने शपथ लिए की आधी रोटी खाएंगे बच्चों को पढ़ाएंगे। इस मौके पर