Monday, December 23, 2024
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अद्वितीय व्यक्तित्व के प्रतीकःसमाजसेवी राम कृपाल सिंह शिक्षाविद् राम कृपाल सिंह एक सच्चे समाजसेवी कर्मयोगी थे |

अरौत-नालंदा, 14 मार्च 2022 : समाजसेवी शिक्षाविद् राम कृपाल सिंह की द्वितीय पुण्यतिथि राम कृपाल सिंह टीचर ट्रेनिंग कॉलेज अरौत, हरनौत (नालंदा) में रविवार को प्रख्यात वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार श्री गौरी शंकर प्रसाद ‘मधु’ की अध्यक्षता में मनाई गई। इस अवसर पर एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर स्वर्गीय रामकृपाल सिंह के चित्र पर आगत अतिथियों द्वारा पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रदेश के ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ कवि गौरी शंकर प्रसाद ‘मधु’ द्वारा स्वर्गीय रामकृपाल सिंह के व्यक्तित्व ओर कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के दर्द को जानने की उनमें अनोखी कला थी। स्वर्गीय रामकृपाल बाबू द्बारा रोपा गया ज्ञान वृक्ष आज उनके पुत्र दिनेश कुमार सिंह, अरूण कुमार सिंह, संजीव कुमार दता, आनन्द उर्फ पप्पूजी तथा पुत्री अनीता कुमारी के रूप में पल्लवित-पुष्पित हो रहे हैं। मौके पर कवि व साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि शिक्षाविद् स्व. राम कृपाल सिंह जी का जन्म 03 जून 1939 को अरौत ग्राम में हुआ था। वे एक सहज इन्सान एवं सच्चे समाज सेवी थे। उनके जीवन का लक्ष्य स्वस्थ शिक्षित समाज की स्थापना था। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु वे मनुष्य की सेवा का व्रत धारण किये हुए थे। वे 22 अगस्त 1963 को उच्च विद्यालय हरनौत (नालन्दा) से शिक्षक की नौकरी के रूप मे शुभारंभ किया तथा 03 जून 1999 को उच्च विद्यालय फतुहा (पटना) से सेवानिवृत्त हुए। नालन्दा के इतिहास में उनकी छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले इंसान के रूप में रहा है जो मृत्यु पर्यंत नालन्दा वासियों के आदर्श और पथ प्रदर्शक हैं। वे हमेशा कहा करते थे की लोग मंदिर नहीं विद्यालयों का निर्माण कराएं, क्योंकि मंदिरों से पुजारी का निर्माण होता है और विद्यालय से पदाधिकारियों का निर्माण होता है। वे मानवता के पुजारी थे। एक शिक्षक व समाजसेवक के बाद शिक्षा के क्षेत्र में अपना टीचर ट्रेनिंग कॉलेज खोले और क्षेत्र के विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास के लिए कदम बढाते हुए शैक्षणिक संस्थानों को सफलता के शिखर पर पहुंचा कर ही दम लिया। आज इस अद्भुत शख्सियत की निष्ठा, कर्तव्य परायणता और तत्परता से वे भगवान बुद्ध के ज्ञान भूमि के शिरोमणि साबित हो रहे हैं। स्वर्गीय रामकृपाल बाबू का व्यक्तित्व अनुकरणीय था। वह सदैव हमारी याद में रहेंगे। उनके अद्वितीय व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।इस श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए स्वर्गीय राम कृपाल बाबू के पुत्र एवं संस्थान के सचिव दिनेश कुमार सिंह ने बताया कि मेरे पिताजी गरीब छात्रों के हितैषी तथा सामाजिक न्याय के मजबूत स्तम्भ थे। उन्होंने अपने जीवन के एक-एक क्षण और शरीर का कण-कण गरीबों के कल्याण व जिले के युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए समर्पित किया।
श्रद्धांजलि सभा को सम्बोधित करते हुए प्रो. योगेंद्र सिंह ने कहा कि नालन्दा के इतिहास में स्वर्गीय रामकृपाल बाबू की छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले इंसान के रूप में है जो मृत्यु के बाद हम नालन्दा वासियों के आदर्श और पथ प्रदर्शक हैं।कार्यक्रम के दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी का शुभारंभ शंखनाद के मीडिया प्रभारी एवं संस्थान के पूर्व छात्र नामचीन राष्ट्रीय शायर व गजलकार नवनीत कृष्ण ने सरस्वती वंदना के साथ किया।काव्य गोष्ठी का संचालन करते हुए राष्ट्रीय शायर व गजलकार नवनीत कृष्ण ने ‘तेरी बातो में हम रह गए, ख़ुद से ग़ाफ़िल सनम रह गए। उनको दुनियाँ की सब राहतें, मेरे हिस्से में ग़म रह गए। भीड़ है अब रियाकर की, चाहने वाले कम रह गए। उनको दुनियाँ की सब राहतें, मेरे हिस्से में ग़म रह गए। भीड़ है अब रियाकर की,चाहने वाले कम रह गए’…। सुनाकर पुरजोर तालियाँ बटोरी।शायर कुमार आर्यन गयावी ने ‘गिरें तो गिरकर संभलना चाहिए, ठहरने से बेहतर है चलना चाहिए, दूसरे के कानों पे चलने वाले तुम्हें अपने पैरों पे चलना चाहिए’…। इनकी कविता श्रोताओं में उतेजना भर दिया।कवि जैनेन्द्र प्रसाद रवि’ ने मगही गीत ‘बाबू भैया हो बड़ा नीक लागे मीठी बोली, कड़वी बोल घायल करे जैसे बंदूक गोली’..,को अपने सुमधुर स्वर में सुनाया।नामचीन कथाकार व कवि रामयतन यादव ने ‘आटे की लोई को चकले पर रखकर, बेलन से बेलती हुई माँ गुनगुनाती है कोई गीत… सुनाया।
शंखनाद के सक्रिय कवयित्री कोकिलकंठी अल्पना भारती ने मधुरस्वर में प्रेम गीत गुनगुनाया, ‘सुनो, चलोगे जीवन पथ पर थाम के मेरा हाथ? कहो, क्या दोगे मेरा साथ? शाम सुनहरी बन जाएगी जब अँधियारी रात, कहो तब दोगे मेरा साथ’..,।यह गीत सुनाकर लोगों की भरपूर सराहना व तालियाँ बटोरी।शायर अमन नालन्दवी ने अपनी रचना ‘लोग इस कदर से पेश क्यों आते है, मै गले मिलता हूँ वो हाथ मिलाते है। मौत दे मगर ऐसी ज़िंदगी मत दे खुदा, अब मेरे दुश्मन भी मुझपे तरस खाते है…। सुना कर खूब वाहवाही लुटा।साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी कविता ‘युद्ध नहीं हमें विश्वशांति चाहिए, भारत की एक सनातन चिंतनधारा चाहिए। युद्ध नहीं विश्वशांति संकल्प हमारा है। युद्ध दो देशों के जन या सैन्य के खिलाफ़ नहीं होता, वह सीमा के भीतर और बाहर भी चलता है,सुना कर लोगों को मर्माहत कर दिया।शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अतीत और वर्तमान पर कटाक्ष करते हुए एक व्यंग सुनाया ‘सतयुग में कबीरा मन पाया और द्वापर में दो कर। त्रेता युग में त्रिलोक पाया और कलयुग में फोन रे..कबीरा, और कलयुग में फोन। युग दर युग बित गया, रहा कबीरा गतिहीन। जब आया हाईटेक युग भईया कबीरा बना मशीन रे भईया कबीरा। मोबाईल की दुनिया देख कर दिया कबीरा रोय। इसके मायाजाल से अब साबुत बचा ना कोय..रे भईया.. बाकी बचा ना कोय। कितना लम्बा होता था एक ख़त का इंतजार। अब एक बटन की टेक से सम्मुख होवे दीदार..रे भईया। इसे सुन दर्शक हँसते-हँसते लहालोट हो गए। इस दौरान सभी कवियों एवं शायरों ने अपनी-अपनी रचनाओं व शेरों-शायरी से समां बांध दिया दर्शकों का खूब मनोरंजन किया।कार्यक्रम में उपस्थित कवियों व साहित्यकारों को संस्थान की ओर से अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रो. योगेंद्र सिंह, प्रो. रामराज कुमार, प्रो. नागेंद्र राम, प्रो. संजीव कुमार सुमन, कृष्ण मुरारी ठाकुर, वीरेंद्र कुमार, शिक्षक नेता प्रकाश चन्द्र भारती, प्रो. विनोद शंकर, प्रधान लिपिक- भुवनेश्वर प्रसाद, तकनीकी सहायक सिन्टू कुमार, स्वo राम कृपाल बाबू के पौत्र- दीपक कुमार, अमन, रेयांश, अर्थव एवं आद्रीति के साथ-साथ बी. एड./डी. एल. एड. के सभी छात्र- छात्राएं, अध्यापक, अध्यापिका सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थेI

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