लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद
नालंदा भारत के बिहार प्रान्त का एक जिला है जिसका मुख्यालय बिहार शरीफ है। नालंदा में बडगांव सूर्य मंदिर अपने प्राचीन इतिहास के लिये विश्व प्रसिद्ध है। देश भर में भगवान सूर्य के कई प्रसिद्ध मंदिर है और सभी का अपना अलग-अलग महत्व है। नालंदा जिला का सूर्य पीठ बड़गांव वैदिक काल से सूर्योपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां की महत्ता किसे से छिपी नहीं है। बड़गांव सूर्योपासना के लिए सदियों से आस्था का प्रमुख केंद्र है। धार्मिक दृष्टिकोण से इसका बहुत महत्व है। नालंदा प्रागैतिहासिक काल से ही भगवान सूर्य की उपासना और अर्घ के लिए महत्वपूर्ण रहा है। बड़गांव सूर्य मंदिर दुनिया में सूर्योपासना के 12 प्रमुख केन्द्रों में शामिल है। जो की जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से लगभग 10 किमी दूर है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह सूर्य पीठ द्वापर युग से जाना जाता है। यहां के ऐतिहासिक सूर्य तालाब में स्नान करने से मन को शांति और सुकून प्रदान करता है। यही कारण है कि बिहार के अलावे कई राज्यों से सूर्य उपासक और छठ व्रती यहां लोक आस्था का महापर्व छठ मनाने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। यह पर्व मनाने के लिए उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के सूर्य उपासक आते हैं और श्री सूर्यनारायण देव की पूजा, अर्चना, आराधना और अर्घ्य दान कर मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। पहले यहां केवल महिलाएं छठ व्रत करती थी। लेकिन बदलते हुए समय में पुरुष के अलावे युवा पीढ़ी भी छठ व्रत करने लगे हैं। वर्तमान में बड़गांव छठ मेला के ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को समझते हुए बिहार सरकार ने इसे राजकीय मेला का दर्जा प्रदान किया है। इस मेले में सभी जाति, वर्ण और वर्ग के लोग एक साथ भगवान भास्कर को पूजा, आराधना करते हैं। यहां एक ही जगह पर दलित, महादलित, अति पिछड़ा, पिछड़ा और सवर्ण जाति के लोग खड़े होकर सूर्य तालाब में उगते और डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। हिंदू धर्म में केवल सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं, जिन्हें मूर्त रूप से देखा जाता है। छठ पर्व के मौके पर भगवान श्री सूर्य नारायण के साथ उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा की भी आराधना की यहां परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि बड़गांव के ऐतिहासिक सूर्य तालाब में स्नान करने से चर्म रोग और कुष्ठ रोग जैसी व्याधियां भी दूर होती है। इसी मान्यता को साकार करने के उद्देश्य से यहां कार्तिक और चैत महीने में विशाल छठ मेला लगता है, जिसमें कई राज्यों और जिलों के श्रद्धालु लाखों की संख्या में यहां जुटते हैं। धर्मिक ग्रंथ सूर्य पुराण और वाचस्पति संहिता के अनुसार कुष्ठ व्याधि से पीड़ित भगवान श्री कृष्ण और जामवंती पुत्र राजा साम्ब को 49 दिनों तक बड़गांव में सूर्य उपासना, आराधना और अर्घ्य दान उपरांत व्याधि से मुक्ति मिली थी। दूसरी मान्यता के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब काफी रूपवान थे। उन्हें देखकर रानियां भी मोहित हो जाती थीं। एक बार की बात है कि वे सरोवर में रानियों के साथ रास रचा रहे थे, तभी उधर से नारद मुनि गुजरे। रास रचाने में व्यस्त साम्ब ने उनका अभिवादन नहीं किया, जिससे वे कुपित हो गए और उन्होंने जाकर श्री कृष्ण से इसकी शिकायत की। नारद मुनि के बहुत कहने पर जब वे सरोवर की ओर गये तो उन्हें भी यह दृश्य दिखा। कुपित होकर उन्होंने अपने पुत्र को कुष्ठ का शिकार होने का श्राप दे दिया। राजा साम्ब द्वारा पिता कृष्ण से काफी क्षमा याचना के बाद श्री कृष्ण ने कहा कि तुम्हें दिया गया श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसका उपाय नारद मुनि ही बता सकते हैं। नारद अपने साथ साम्ब को लेकर श्री कृष्ण के दरबार में पहुंचे, तो श्री कृष्ण ने कहा कि इसके लिये सूर्य देव की उपासना करनी होगी। नारद और श्री कृष्ण ने सूर्य देव की उपासना की तब जाकर सूर्य देव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि 12 जगहों पर सूर्य धाम की स्थापना कर वहां हमारी प्रतिमा स्थापित कर पूजा करने से पुन: कंचन काया प्राप्त होगी। सूर्य देव द्वारा श्राप मुक्ति के लिए बताए गये रास्ते पर चल कर 12 वर्षों में देश के 12 स्थानों पर सूर्य धाम की स्थापना की गई, जिसमें बड़गांव सूर्य धाम भी शामिल हैं। 12 जगहों पर है सूर्य धाम : लोगों की मानें तो देश भर में 12 जगहों में सूर्य धाम की स्थापना की गई थी। जिसमें लोलार्क, चोलार्क, उलार्क, अंगारक वर्तमान में औंगारी, पुण्यार्क, बरारक वर्तमान में बड़गांव, देवार्क, कोणार्क, ललितार्क, यामार्क, खखोलार्क और उत्तार्क शामिल है। तालाब खुदाई में मिली मूर्तियां: स्थानीय लोगों ने बताया कि तालाब की खुदाई के दौरान भगवान सूर्य, कल्प विष्णु, सरस्वती, लक्ष्मी, आदित्य माता, जिन्हें छठी मैया भी कहते हैं, सहित नवग्रह देवता की प्रतिमाएं निकलीं। 1934 ई. के भूकंप में वह मंदिर ध्वस्त हो गया था। दूसरे स्थान पर इस सूर्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। इसी मंदिर में पुरानी मंदिर की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। यहां स्थापित सभी प्रतिमाएं पाल कालीन बताई जाती है। शायद छठ ही एक ऐसी पूजा और व्रत है, जिसमें ब्राह्मण की कोई जरूरत नहीं होती है। इस व्रत में जजमान ही स्वयं ब्राह्मण होते हैं। यह पूजन कोई पंडित द्वारा नहीं कराया जाता है। बल्कि सूर्य उपासक स्वयं करते हैं। ईश्वर और आस्था के बीच सीधे संवाद का यह व्रत माना जाता है। ऐतिहासिक खोजों के आधार पर द्वापर काल में बड़गांव सूर्य तालाब के मध्य दो कुंड होने के प्रमाण मिले हैं। एक कुंड दूध से भरा होता था, दूसरा जल से। इसी सरोवर में भगवान भास्कर को अर्घ्य दान करने की परंपरा है। इसी कुंड से दूध और जल सूप पर डाल कर भगवान सूर्य को अर्ध्य अर्पित किया जाता था। पौराणिक सूर्य तालाब जमींदोज हो गया है, ऐसी मान्यता है कि उसी तालाब के ऊपर एक विशाल तालाब वर्तमान में निर्मित है। चीनी यात्री ह्वेनसांग की डायरी में इस सूर्यपीठ का वर्णन मिलता है। डायरी के अनुसार यहां सूर्य उपासक इस तालाब में स्नान और अर्घ्यदान करते थे। इस तालाब के उत्तर-पूर्व होने पर पत्थर की एक मंदिर हुआ करती थी। मंदिर में भगवान सूर्य की भव्य प्रतिमा थी। इस मंदिर का निर्माण पाल राजा नारायण पाल ने 10 वीं सदी में कराया था। वर्तमान में वह मंदिर अस्तित्व में नहीं है।