Saturday, September 21, 2024
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एम करुणानिधि के तीसरी पूण्यतिथि पर विशेष : करुणानिधि एक नास्तिक नेता, जिसे समर्थकों ने “भगवान” बना दिया. करुणानिधि ने अपनी लेखनी से लिखी तमिलनाडु की तकदीर, करुणानिधि एक पत्रकार से मुख्यमंत्री तक का सफर किया

प्रस्तुति :- राकेश बिहारी शर्मा – तमिल राजनीति के पुरोधा, भारतीय राजनीति के कीर्ति स्तम्भ, औपनिवेशिक कालीन भारत में भारतीय क्रांतिकारी ओजस्वी वक्ता, कुशल राजनेता और प्रखर लेखक मुथूवेल करुणानिधि का जन्म मुत्तुवेल और अंजुगम के घर 3 जून 1924 को ब्रिटिश भारत में नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में दक्षिणमूर्ति के रूप में पिता मुथूवेल तथा माता अंजुगम के घर हुआ था। वे हिन्दू समुदाय से संबंध रखते थे। बाद में ये लोग ईसाई वेलार समुदाय से जुड़ गये थे। जातियों के वर्तमान वर्गीकरण के मुताबिक ईसाई वेल्लालर को पिछड़ी जाति के रूप में माना जाता है। ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार ईसाई वेल्लालर का संबंध शैव मत के एक रूप से हैं और जनेऊ पहनने वालों से भी, जो बताता है कि इस जाति का पुराना ब्राह्मणवादी नाता भी रहा है। जो भी हो करुणानिधि का परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर था, लेकिन वे उत्साही बालक थे। पढ़ने और आगे बढ़ने की हमेशा ललक थी उनमें। वे जिस समुदाय से वे आते हैं, वो पारंपरिक रूप से मंदिरों में संगीत के साथ-साथ इनके पूर्वज नाईगिरी (बाल काटने का काम) पेशा और लोगों को सेवा करने में रहते थे। जो दक्षिण भारत में नाई (नायी) जाति का कार्य है। करुणानिधि ने जातिगत अपमान से त्रस्त होकर ब्राहम्णी व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन किया तथा पेरियार ई वी रामास्वामी से प्रभावित होकर नास्तिक बन गये थे। उनके पूर्वज तिरुवरूर निवासी थे जो काफी गरीब और पिछड़े समाज से थे। एम. करुणानिधि भारत के वरिष्ठतम नेताओं में से एक थे, और 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रह चुके थे।
अपने ओजस्वी भाषण और लेखन के लिए मशहूर करूणानिधि ने द्रविड़ आंदोलन से अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत की थी। मात्र 14 की आयु में करुणानिधि ने राजनीति में प्रवेश किया और हिन्दी विरोधी आंदोलनों में भाग लिया। द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक पेरियार बहुत बड़े नास्तिक थे। उन्होंने घोषणा कर दी थी कि कोई भगवान नहीं है। करुणानिधि पेरियार के फॉलोवर के तौर पर मशहूर थे। उन्होंने द्रविड़ राजनीति का एक छात्र संगठन भी बनाया। अपने सहयोगियों के लिए उन्होंने ‘मुरासोली’ नाम के एक समाचार पत्र का प्रकाशन किया था। करूणानिधि तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा से 1957 में चुनाव जीत कर तमिलनाडु विधानसभा के लिए पहली बार सदस्य चुने गये थे। बाद में 1967 में वे सत्ता में आए और उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया।एम करुणानिधि के तीसरी पूण्यतिथि पर विशेष : करुणानिधि एक नास्तिक नेता, जिसे समर्थकों ने “भगवान” बना दिया. करुणानिधि ने अपनी लेखनी से लिखी तमिलनाडु की तकदीर, करुणानिधि एक पत्रकार से मुख्यमंत्री तक का सफर किया
वर्ष 1960 के दशक के अंत में, जब करुणानिधि एक दुर्घटना में घायल हो गये थे, जिसमें उनकी बाईं आँख क्षतिग्रस्त हो गई थी। तब से, उन्होंने चिकित्सक की सलाह पर काले रंग का चश्मा पहनना शुरू किया। वर्ष 1969 में अन्ना दुराई के निधन के बाद वे राज्य के मुख्यमंत्री बने। ये अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में वे 13 बार विधायक बने जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। अपने राजनीतिक जीवन में करुणानिधि ने कभी भी हार का मुंह नहीं देखा। करूणानिधि जी एक सफल राजनेता, मुख्यमंत्री, फिल्म लेखक, साहित्यकार होने के साथ ही करुणानिधि एक पत्रकार, प्रकाशक और कार्टूनिस्ट भी रहे। वर्ष 2008 में, उन्हें पीठ दर्द की परेशानी से गुजरना पड़ा। जिसके चलते वर्ष 2009 में उन्होंने एक शल्य चिकित्सा के माध्यम से पीठ दर्द का इलाज करवाया, जो सफल नहीं हो सका और जिसके कारण जीवन के बाकी दिन वह व्हीलचेयर पर रहे। उन्होंने अपने बेटे एम. के. स्टालिन को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में घोषित किया, जिसका नाम उन्होंने जोसेफ स्टालिन (एक सोवियत क्रांतिकारी) के नाम पर रखा था, जिसकी एम. के. स्टालिन के जन्म के 4 दिन बाद मृत्यु हो गई थी। सेतुसमुद्रम विवाद के जवाब में करूणानिधि ने सितंबर 2007 में हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के वजूद पर ही सवाल उठा दिए थे। उन्होंने कहा था कि ‘लोग कहते हैं कि 17 लाख साल पहले कोई शख्स था, जिसका नाम राम था। कौन हैं वो राम? वो किस इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक थे? क्या इस बात का कोई सबूत है?’ उनके इस सवाल और फिर टिप्पणी पर खासा बवाल हुआ था। करुणानिधि द्वारा लिखित पुस्तकों में रोमपुरी पांडियन, तेनपांडि सिंगम, वेल्लीकिलमई, नेंजुकू नीदि, इनियावई इरुपद, संग तमिल, कुरालोवियम, पोन्नर शंकर, तिरुक्कुरल उरई आदि शामिल हैं। गद्य और पद्य में लिखी उनकी पुस्तकों की संख्या 100 से भी अधिक है। उन्होंने कविताएं, पत्र, पटकथाएं, उपन्यास, मंचीय नाटक, संवाद और गीत आदि भी लिखे। उन्होंने तमिल भाषा और कला को अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनके फिल्मों में विधवा-विवाह, पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय शामिल थे। करुणानिधि 14 साल की उम्र में ही राजनीतिक प्रतिरोध की दुनिया में प्रवेश कर गए थे। शुरुआत हुई ‘हिंदी-हटाओ आंदोलन’ से। जब 1937 में हिन्दी भाषा को स्कूलों में अनिवार्य भाषा की तरह लाया गया। ई.वी. रामासामी पेरियार की विचारधारा से प्रभावित तरुण युवा विरोध में सड़कों पर उतर आए। करुणानिधि जी भी इन्ही में से एक थे। उन्होंने अपने जीवन में कलम को अपना हथियार बनाया। वे तमिलनाडु में हिंदी भाषा के खिलाफ विभिन्न विरोध प्रदर्शनों के पीछे थे। स्कूल में पढ़ाई करने के बजाय करुणानिधि संगीत लेखन और सक्रियता में अधिक रुचि रखते थे और सक्रिय थे। वे अपनी स्कूली शिक्षा के अंतिम वर्ष में तीन बार विफल होने के बाद पढ़ाई छोड़ दी। करुणानिधि ने तीन बार शादी की। तीनों पत्नी से उनके 4 बेटे और 2 बेटियां हैं। बेटों के नाम एमके मुथू, जिन्हें पद्मावती ने जन्म दिया था, जबकि एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और बेटी सेल्वी दयालु अम्मल की संतानें हैं। दूसरी बेटी कनिमोझी तीसरी पत्नी राजात्तीयम्माल से हैं। तमिलनाडु के सबसे बड़े मीडिया हाउसों में से एक उनके द्वारा संचालित सन टीवी और कलिगनर टीवी भी है।
करूणानिधि इन कालखंडों में रहे थे मुख्यमंत्री :
(1)चौथी विधानसभा 10 फरवरी 1969 से 5 जनवरी 1971, (2) पाँचवीं विधानसभा 15 मार्च 1971 से 31 जनवरी 1976, (3) नवी विधानसभा 27 जनवरी 1989 से 30 जनवरी 1991, (4) ग्यारहवी विधानसभा 13 मई 1996 से 14 मई 2001, (5) तेरहवी विधानसभा 13 मई 2006 से 14 मई 2011 तक रहे थे।
करुणानिधि ने प्रथम मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल (1969-71) में ही सभी के लिए मुफ्त शिक्षा, सभी गांवों के लिए बिजली की पहुंच सुनिश्चित करना, प्रत्येक 1500 आबादी वाले गांव के लिए पक्की सड़क, मुफ्त नेत्र जाँच शिविर, भिखारियों का पुनर्वास, खेतीहर मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारण, हाथ रिक्शा उन्मूलन, एससी/एसटी वर्ग के लिए पक्का आवास, ओबीसी, एससी, एसटी के कल्याण के लिए अलग मंत्रालय, पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन, पिछड़ा वर्ग की आरक्षण सीमा में वृद्धि (25% से 31%), अनुसूचित जाति की आरक्षण सीमा में वृद्धि (16% से 18%), जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल (1971-76) में जमींदारी उन्मूलन के तहत 15 एकड़ जमीन की हदबंदी तय कर दी गई। कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना, लघु उद्योग विकास निगम की स्थापना, हरित क्रांति के लिए आवश्यक उपाय, मछुआरों के लिए हाऊसिंग स्कीम तथा उर्दू भाषी मुसलमानों को पिछड़े वर्ग में शामिल करने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
तीसरे मुख्यमंत्रित्व काल(1989-91) में लिए गए निर्णयों में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए अलग से 20% आरक्षण कोटा का निर्धारण, वंचित वर्ग के बच्चों के लिए डिग्री स्तर तक की मुफ्त शिक्षा, भारत में पहली बार किसानों के लिए मुफ्त बिजली, सरकारी सेवाओं में सभी वर्गों की महिलाओं के लिए 30% आरक्षण, विधवा विवाह और अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन राशि का प्रावधान उल्लेखनीय है।
चौथे मुख्यमंत्रित्व काल (1996-2001) के लोकप्रिय निर्णयों में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर 24 घंटे देखभाल की सुविधा, भारत में पहली बार विधायक क्षेत्र विकास निधि का प्रावधान, व्यावसायिक कोर्सेज में ग्रामीण छात्रों के लिए 15% आरक्षण इत्यादि प्रमुख रहे।
उनके पांचवें मुख्यमंत्रित्व काल (2006-11) की उपलब्धियों की सूची में जिन निर्णयों को क्रांति का संवाहक माना जा सकता है, उनमें पहला है, कानून बनाकर लिंग और जाति से परे सभी के लिए पुजारी बनने का रास्ता प्रशस्त करना और दूसरा है, ‘समाथुवापुरम’ नामक हाऊसिंग स्कीम। इस स्कीम के तहत दलितों और ऊंची जाति के गरीबों को एक ही कालोनी में इस शर्त पर घर दिए गए कि वे जाति बंधन से मुक्त होकर साथ-साथ रहेंगे। पारिवारिक संपत्तियों में बेटियों की बराबर की हिस्सेदारी लैगिक असमानता दूर करने की दिशा में उनके द्वारा लिया गया क्रांतिकारी फैसला माना जाएगा।
मुथुवेल करुणानिधि जब पहली बार विधायक बने तो जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे। जब वो पहली बार मुख्यमंत्री बने तो भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। जब वो तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। जब वो चौथी बार मुख्यमंत्री बने तो भारत के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव थे। जब वो पांचवी बार मुख्यमंत्री बने तो भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। करुणानिधि का देहांत 94 साल की उम्र में चेन्नई के कावेरी हॉस्पिटल में 7 अगस्त 2018 की शाम 6 बजकर 10 मिनट पर हुआ। चेन्नई के मरीना बीच पर करुणानिधि के पार्थिव शरीर को दफनाया गया। करुणानिधि जहां पैदा हुए थे, अपने जीते जी उस मकान को दान कर दिए थे। जो अब उसे म्यूज़ियम में बदल दिया गया है। म्यूज़ियम में उनकी पोप से लेकर इंदिरा गांधी तक के साथ तस्वीरें लगी हैं। याद रखें, तमिलनाडु में ‘तस्वीर की राजनीति’ बहुत चलती है। करुणानिधि को अन्नामलई विश्वविद्यालय ने 1971 में उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया। तथा “थेनपंदी सिंगम” नामक किताब के लिए उन्हें तमिल विश्वविद्यालय, तंजावुर द्वारा “राजा राजन पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

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