Friday, September 20, 2024
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हिंद कोकिला ओजस्वी वक्ता तारकेश्वरी सिन्हा की पुण्यतिथि पर विशेष : तारकेश्वरी सिन्हा ने वाकचातुर्य और सौंदर्य से लोगों के ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ा

 

प्रस्तुति :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा – प्राचीन काल में लोग कहते थे कि औरत का सुशील स्वभाव और सौम्यता ही उसकी पहचान होती है। यह पितृसत्ता समाज एक औरत को हमेशा उसके सौंदर्यता या सहनशीलता के पैमाने पर तौलता है। ऐसे ही खूबसूरत औरत थी- तारकेश्वरी सिन्हा। वह कोई राजकुमारी या अभिनेत्री नहीं बल्कि एक राजनेत्री थी, जो अपने नेतृत्व क्षमता के लिए बेहद मशहूर थी। नालंदा जिले के चंडी प्रखंड में तुलसीगढ़ गाँव के एक साधारण परिवार में हुआ था। बिहार में भूमिहार ब्राह्मण महिला ने भी भारत की राजनीति में अमिट छाप छोड़ी है। श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा का जन्म 26 दिसंबर 1926 को नालंदा जिला के चंडी प्रखंड में तुलसीगढ़ गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ. श्री नंदन प्रसाद सिन्हा तथा इनकी माता का नाम राधा देवी था। ये दो बहन और एक भाई थे। उनके पिता पेशे से एक सिविल सर्जन थे। खुद शिक्षित होने के साथ-साथ उस समय में भी उनके पिता लड़कियों की शिक्षा को बहुत महत्व देते थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बड़ौदा में हुई थी। जिसकी गिनती पूरे हिंदुस्तान में लड़कियों के लिए सबसे अच्छे विद्यालयों में होती थी। तारकेश्वरी ने वहीं से अपना मैट्रिकुलेशन किया, फिर इनका नामांकन पटना के बांकिपुर कॉलेज में हुआ। वहां तारकेश्वरी जी कॉलेज के राजनीति में खा़सी दिलचस्पी लेने लगी और पहली ही दफा में इन्हें बिहार के छात्र कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया। कॉलेज में पढाई के दौरान ही वह पटना में छात्र राजनीति में बहुत सक्रिय हो गईं। महज 19-20 साल की उम्र में वे बिहार की ओजस्वी छात्र नेता के रूप में उभरीं। इसके बाद 1942 के ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हिंद कोकिला ओजस्वी वक्ता तारकेश्वरी सिन्हा की पुण्यतिथि पर विशेष : तारकेश्वरी सिन्हा ने वाकचातुर्य और सौंदर्य से लोगों के ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ा
वो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एम.एससी डिग्री हासिल की थी। तारकेश्वरी सिन्हा का राजनीतिक जीवन बड़ा खुशनुमा रहा था। तारकेश्वरी की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी को देख इनके पिता और घर वाले घबरा गए। उन्होंने जल्द ही उनकी शादी सिवान में स्थित चैनपुर गांव के जाने-माने भूमिहार जमींदार परिवार के श्री निधिदेव नारायण सिंह से कर दिया। वह कोलकात्ता में पति के साथ उनकी पैतृक हवेली में रहने लगी। उनके पति पेशे से अधिवक्ता थे। निधिदेव सिंह तब बड़े वकील थे और राज्य सरकार के मुकदमों को लड़ते थे। लेकिन बाद में उन्होंने इंडियन ऑयल में बतौर मैनेजर भी काम किया। तारकेश्वरी जी खुले विचारों वाली महिला थी। इनकी दो बेटे और दो बेटियां थी। उनके पिता ने तो तारकेश्वरी की शादी यह सोचकर कराई थी कि अब शायद वह गृहस्थी में मन लगाएंगी। लेकिन तारकेश्वरी चाह कर भी खुद को राजनीति से दूर नहीं रख पाईं। उन्होंने अपने जीवन में बिहार के बारह निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा, जबकि भारत के आजादी के बाद वर्ष 1952 में बिहार की राजधानी पटना के पूर्वी क्षेत्र से उन्हें कांग्रेस ने टिकट देकर उम्मीदवार बनाया। बख्तियारपुर ग्राम में जन्मे पंडित शीलभद्र याजी प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, प्रथम बिहार विधान (धारा) सभा के सदस्य एवं राज्यसभा के पूर्व सांसद थे। शीलभद्र याजी ने 1939 से 1941 तक नेता सुभाष चंद्र बोस के निकटतम सहयोगी के तौर पर भी कार्य किया था। राजनीती के क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानी पंडित शीलभद्र याजी का खूब वर्चस्व था लेकिन तारकेश्वरी सिन्हा ने उन्हें भारी मतों से हराया और कांग्रेस पार्टी की ओर से वह संसद पहुंची। मात्र 26 साल की उम्र में ही संसद में पहुंचने वाली वह देश की पहली महिला थी। हिंद कोकिला ओजस्वी वक्ता तारकेश्वरी सिन्हा की पुण्यतिथि पर विशेष : तारकेश्वरी सिन्हा ने वाकचातुर्य और सौंदर्य से लोगों के ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ा
कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर वे 1957 और 1962 में लोकसभा का चुनाव बाढ़ से जीता। 1952 से 1957 तक संसद की लोक लेखा समिति की सदस्य रहीं। सन 1969 में कांग्रेस में विभाजन होने पर वे मोरारजी देसाई के खेमे में चली गईं। 1971 में उन्होंने कांग्रेस ओ के टिकट पर बाढ से चुनाव लडी पर हार गईं। बाद में वे कांग्रेस में वापस आ गईं। वे नेहरू मंत्रिमंडल में कैबिनेट मिनिस्टर थी।1958 से 1964 तक नेहरु जी के कैबिनेट में वे वित्त राज्य मंत्री रहीं। वित्तममंत्रालय में काम करने वाली वे पहली महिला मंत्री थीं। ये चार बार लोकसभा में चुनकर गयी और अपने ओजपूर्ण भाषणों के लिए जानी जाती रही हैं। 1971 के लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के उम्मीदवार धरमवीर सिन्हा के हाथो लोक सभा इलेक्शन में हार गयी थी। वे 1977 में बेगुसराय से कांग्रेस के टिकट पर लड़ी पर जनता लहर में पराजित हो गईं। तारकेश्वरी सिन्हा हिन्दी और अंग्रेजी में धारा प्रवाह बोल सकती थीं। सैकड़ों शेर-ओ-शायरी उनकी जुबान पर रहती थीं। उन्हें बहस में शायद ही कोई हरा पाता था।
तारकेश्वरी सिन्हा जीवन पर्यंत पत्र पत्रिकाओं के लिए लेखन में सक्रिय रहीं। सार्वजनिक मंच पर भाषणों के दौरान वे शेरो-शायरी की झड़ी लगा देती थीं। उन्हे हजारों शेर जुबानी याद थे। उन्हें टेनिस बैडमिंटन और कैरम खेलना पसंद था। तारकेश्वरी सिन्हा ने 1980 के बाद राजनीति से संन्यास ले लिया पर समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन में पूरी ऊर्जा से वे सक्रिय रहीं।तारकेश्वरी सिन्हा के भाई कैप्टेन गिरीश नंदन सिंह जी एयर इंडिया के पायलट थे। जिनकी शादी कुर्था थाना के ग्राम मानिकपुर के ललिता सिन्हा से हुई थी, उन्हें कोइ औलाद नहीं हुआ था। और युवावस्था में ही एक हवाई दुर्घटना में जिनकी मौत हो गयी। तारकेश्वरी सिन्हा ने अपने भाई कैप्टेन गिरीश नंदन सिंह एवं पिता डॉ. शिवनंदन प्रसाद सिंह के स्मृति में तुलसीगढ़ में 23 दिसम्बर 1981 को पांच सदस्य एक ट्रष्ट के द्वारा एक हॉस्पिटल का निर्माण 63 डी. में करवाया। इस अस्पताल से लगभग 30 गांव लाभान्वित होता था। गांव में उन्होंने एक डाकघर भी खुलवाए। ट्रष्ट के सदस्यों में माता राधा देवी, श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा, बहन बिन्देश्वरी शर्मा, सिधेश्वर प्रसाद अधिवक्ता और पटना के मशहूर डॉ. यू. एन. शाही ट्रष्ट में शामिल थे।हिंद कोकिला ओजस्वी वक्ता तारकेश्वरी सिन्हा की पुण्यतिथि पर विशेष : तारकेश्वरी सिन्हा ने वाकचातुर्य और सौंदर्य से लोगों के ह्रदय पर गहरी छाप छोड़ा
इस दो मंजिला हॉस्पिटल के लिए उन्होंने करीब 25 लाख रुपये जुटाए जो उस वक़्त की काफी बड़ी कीमत थी। हॉस्पिटल का उद्घाटन 1984 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ललितेश्वर शाही ने किया था। दुर्भाग्य वस यह हॉस्पिटल 1991 से बंद हो गया। इस हॉस्पिटल में पहले लोगों को लगभग मुफ्त में इलाज हुआ करता था। इसके अलावा तारकेश्वरी सिन्हा ने नालंदा के चंडी और हरनौत से अपने गाँव तुलसीगढ़ को आवागमन से जोड़ने के लिए सड़क बनवाई। आज आजादी के इतने वर्षों बाद भी भारतीय राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है, इसका क्या कारण है ? ये सोचने का विषय है आज देश में चारों ओर विकास की बयार बह रही है। विकास की इस बहती बयार ने भी महिलाओं को विशेष प्रभावित नहीं किया है। भारत में ‘महिलाओं की राजनीति’ में भागीदारी का प्रतिशत विश्व में 98 नम्बर पर है। क्या ये आश्चर्य की बात नहीं कि युगांडा जैसा देश नम्बर एक पर है ? यह बात अलग है कि इंदिरा गाँधी, सोनिया गाँधी, जयललिता, मायावती, ममता बनर्जी और महबूबा मुफ्ती आज के दौर की वे महिलाएं थीं या हैं, जो अपनी अपनी पार्टी की प्रधान तक बनी। बहुत सी महिलाएं हैं ऐसी जो राजनीति में अपनी छाप छोड़ गई पर आधी आबादी की हिस्सेदारी पर बात की जाए तो लगता है अब समय आ गया है कि जिस तरह से संविधान संशोधन द्वारा पंचायतों में हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई उसी प्रकार हरेक दल को अब इस दिशा में विचार करना चाहिए कि देवगौड़ा सरकार द्वारा लाया गया। महिला आरक्षण बिल लोक सभा में भी पारित किया जाए। क्यों कि पुरुषों ने राजनीती को अपना ऐसा अखाड़ा बना डाला है जहां या तो स्त्रियाँ ऊँचे पदों तक आ नहीं पातीं या उनके खानदान की स्त्रियों के सिवाय ऊँचे पद पर किसी सामान्य स्त्री को टिकने ही नहीं दिया जाता अथवा उनके द्वारा ‘नियुक्त’ स्त्री मात्र स्टार प्रचारक मार्का या कठपुतली बना कर रख दी जाती है। अजब विरासत छाप राजनीति का दौर यह। राजनीति के लंबे इतिहास में महिला नेत्री उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं। इंदिरा गाँधी से लेकर सुचेता कृपलानी, भंडारनायक से लेकर मार्गरेट अल्वा तक अधिकांश ने सत्ता में जाकर भी महिलाओं की बेहतरी के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। महिलाओं के हक़ में किसी भी बड़े फैसले को पारित होने में दशकों लग गए। कारण यह भी है कि उनकी आवाज़ सुनी ही नहीं गई, चाहे वह सुभाषिनी अली हों या वृंदा करात। परिवार के तहत आईं नेत्रियों ने सत्ता में ओहदा तो लिया पर पर्याप्त हस्तक्षेप नहीं किया। 1952 से लेकर पिछले चुनाव तक हर आम चुनाव मुद्दों पर लड़े गए। याद कीजिए ‘जय जवान, जय किसान’, ‘गरीबी हटाओ’, ‘इंदिरा हटाओ-देश बचाओ’, ‘बारी-बारी सबकी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’, ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’, ‘जात पर ना पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’, ‘मां, माटी, मानुस’ जैसे पार्टियों के अपने-अपने जुमले होते थे। लच्छेदार नारों का तो युग बीत गया। गैरजिम्मेदराना बयान भड़काऊ होते-होते देशविरोधी बन गए। आदर्श और विचारधारा तो गधे के सिर से सींग जैसे नदारद। नालंदा की बेटी तारकेश्वरी सिन्हा को पढ़ने-लिखने का बड़ा शौक था। वह हमेशा लेख लिखती रहती थी। बड़े समाचार पत्रों में इनके लेख छपते थे। श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा एक महान नेता और सांसद थीं। उन्हें हिंद कोकिला के नाम से जाना जाता था। वह एक शानदार लेखिका और वक्ता और एक बहुत ही महान आयोजक व संयोजक थीं। नालंदा की महान विदुषी तारकेश्वरी सिन्हा का निधन लम्बी बीमारी के बाद 13 अगस्त 2007 को 80 साल की उम्र में हो गया और 14 अगस्त 2007 को दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार किया गया। वह अपने ओजपूर्ण भाषणों के लिए हमेशा जानी जाएगीं।

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