राकेश बिहारी शर्मा- रामचंद्र प्रसाद “अदीप” हिंदी-मगही साहित्य के अमर, विलक्षण, असाधारण प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे, इनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं और मर्म को उद्वेलित करने की क्षमता है। उनकी रचनाएं मानवीय व्यथा-कथा का जीवन्त चित्रण हैं। उनकी रचनाएं देशी है, मगही भाषाओं में अनुदित होकर चर्चित हुईं। उन्होंने हिंदी-मगही साहित्य के माध्यम से हिंदी प्रेमी पाठकों की सेवा की। जितने पाठक उनके हिंदी के हैं, उतने ही मगही भाषा के हैं। “अदीप” जी कालजयी रचनाकार हैं।
रामचंद्र प्रसाद “अदीप” का बिहार के ग्रामीण व शहरी कथाकारों में सर्वश्रेष्ठ स्थान है। साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने उनकी प्रतिभा से चकित होकर लिखा था कि “इतना प्रभावशाली लेखक बहुत दिनों बाद पैदा हुआ।” रामचंद्र “अदीप” हिंदी-मगही कहानी में सर्वथा एक नयी शैली बेवाक का सूत्रपात किया है। “अदीप” जी ने ग्रामीण संस्कृति, भाषा, रहन-सहन, आचार-विचार, पर्व, त्योहार, परम्पराएं, रीति-रिवाज कहानी के विषयवस्तु रखे। “अदीप” जी का ग्रामीण परिवेश स्थानीय न होकर सार्वदेशीय है। इसमें ग्रामीण संस्कृति की समस्त धड़कनें कैद हैं।
रामचंद्र ‘अदीप’ का जन्म, पारिवारिक जीवन एवं शिक्षा
रामचंद्र ‘अदीप’ जी उदारता के धनी थे। इनका जन्म 2 जनवरी 1940 ई० में बिहारशरीफ के कमरूद्दीनगंज मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता का नाम वैद्यनाथ प्रसाद तथा इनकी माता स्व० मुन्ना देवी तथा धर्म पत्नी चंद्रकांता देवी थी। इन्हें दो पुत्र- दीपक कुमार और संजय कुमार एवं दो पुत्री- बिभा सिंह, प्रतिभा सिंह हुए। इनके चारों पुत्र एवं पुत्रियाँ बिल्कुल साक्षर सम्भ्रांत और समाज के आदर्श हैं।
अदीप जी की प्रारंम्भिक शिक्षा आदर्श मध्य विद्यालय भैंसासुर, बिहारशरीफ तथा उच्च शिक्षा नालंदा कॉलेजिएट तथा उच्चतर शिक्षा नालंदा महाविद्यालय, बिहारशरीफ से स्नातक कला (बी० ए०) की परीक्षा में उत्तीर्णता हासिल की। ये अपने छात्र जीवन से ही शिक्षा के प्रचार हेतु कई संस्थानों से जुड़े तथा इन संस्थाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में अत्यधिक योगदान दिए थे।
‘अदीप’ जी का सरकारी सेवा में नियुक्ति व साहित्यसेवा
सरकारी सेवा में ‘अदीप’ जी की सर्वप्रथम नियुक्ति विकास पदाधिकारी जीवन बीमा निगम बिहारशरीफ शाखा में हुई थी। कुछ दिनों के बाद ये नवादा जिले में विकास पदाधिकारी के रूप में भी कार्य किए। ये विद्यार्थी जीवन से ही कविता कहानी लिखा करते थे। बिहारशरीफ के जीवन बीमा निगम में कार्यरत रहने की वजह से हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, डॉ० आर० इसरी ‘अरशद’, डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह, छंदकार सुभाषचंद्र पासवान आदि जैसे मुर्धन्य, उद्भट साहित्यकारों से सम्पर्क हुआ, इनसबों से अत्यधिक लगाव के कारण मगही साहित्य एवं हिंदी साहित्य विकास मंच से जुड़े। श्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी द्वारा सम्पादित पुस्तक- ‘मागधी विद्या विविधा’ में ‘अदीप’ जी की जीवनी के बारे में लिखा है कि-‘मगही और हिन्दी के समस्य मूलक नये बोध के कथाकार, कवि, पत्रकार। नालंदा के कलमजीवी, कवि, सफल कलाकार’अदीप’ जी मगध संघ के साहित्य मंत्री, नालन्दा जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संस्थापक कलामंत्री (1972-84), व उपाध्यक्ष, लायंस क्लब, बिहारशरीफ के अध्यक्ष (1982-83), बिहार क्लब, बिहारशरीफ संगठन मंत्री, पुराना पत्रकार, अब तिमाही मगही के सम्पादक मंडल के सदस्य रहे।
‘अदीप’ जी के लिखे गये साहित्य
रामचंद्र प्रसाद “अदीप” के ‘तीसरी नजर’ हिंदी कहानी संग्रह, ‘विखरइत गुलमासा (मगही कहानी संग्रह) ‘कथा धउद’ (मगही कथा संग्रह) रचना (वाराणसी) प्रगतिशील समाज, मगध सुमन, मार्जर, सारथी, गमला में गाछ, मगही-हिंदी आदि में कहानी प्रकाशित हुए। तिमाही मगही के प्रवेशांक में संकलित कहानी ‘सिलसिला’ में सामंती जीवन से संबन्धित कथा जो मगही साहित्य में मगध विश्वविद्यालय के स्नातक कोर्स में संचालित है। ‘अदीप’ जी में सादगी, सरलता, त्याग, स्वावलंन, सदृढता, विनम्रता एवं उदारता कूट-कूट कर भरी हुई थी।
‘अदीप’ जी खेल के बड़े शौकीन थे
रामचंद्र प्रसाद “अदीप” खेल के बड़े शौकीन थे। नालन्दा महाविद्यालय की क्रीड़ा मैदान ने इन्हें खेलने का सुनहला मौका प्रदान किया। क्योंकि वहाँ सदा जिला स्तरीय फुटबॉल, विश्वविद्यालयीय स्तर के फुटबॉल सदा आयोजन होते रहते जिसमें ये खुलकर भाग लेते। अदीपजी नाटे कद के अवश्य थे परन्तु दौड़ते तीव्रगति से लगता ये अपने पैरों में पंख बाँध लिए हों। ये अपने जमाने के अच्छे खिलाड़ियों में नंबर वन के थे। नालंदा महाविद्यालय के क्रीड़ा मैदान में प्रतिदिन खेलों का आयोजन होते रहते और अदीप जी इन खेलों में खुलकर भाग लिया करते थे। अपने विद्यार्थी जीवन में अदीप जी बड़े हँसोड़ थे। लोगों को चुटकुले सुनाया करते थे, हँसी के फव्वारे छुटते लेकिन ये नहीं हँसते, मौन साध लेते थे। अदीप जी के नेतृत्व में युवकों, किशोरों एवं बालकों के लिए तीन-तीन टीम चलाते थे, जिनके परिणाम स्वरूप शहर के कई खिलाड़ी विश्वविद्यालय स्तर के खिलाड़ी बने थे। अदीप जी के सफल प्रयास से और प्रभाव से पास-पड़ोस के युवकों में भी उत्साह जगा और मुहल्ले में पुस्तकालय, कन्दुक क्रीड़ा एवं नाटक का आयोजन किया जाने लगा। अदीप जी के जीवन का निजी सुख-दुःख उस बड़ी दुनिया का हिस्सा था। उनके वैयक्तिक प्रसंगों को सामाजिक सरोकारों से जोड़कर देखें तो पता चलता है कि सामान्य कद-काठी के भीतर मानवीयता की कितनी गहरी चिंता थी।
रामचंद अदीप जी का साहित्य एवं शिक्षा से लगाव
साहित्य एवं शिक्षा से इनका लगाव बचपन से ही रहा था। छात्र जीवन से ही इनकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही। साहित्य चेतना के साथ-साथ सामाजिक चेतना एवं जागृति का अभूतपूर्व समिश्रण है इनमें बीच के कुछ वर्षों में इन्होंने अपनी साहित्यिक भावना को दबा कर समाज के लिए कुछ करने की तमन्ना से आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े एवं अशिक्षित क्षेत्र में शिक्षा के ज्ञान-दीप जलने का संकल्प लिया और इसी कड़ी में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जिससे शिक्षा को सर्व सुलभ बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किए। ये अर्न्तमुखी व्यक्तित्व के स्वामी थे। अदीप जी पान चबाने के बड़े शौकिन थे। ये मधुरभाषी, हँसमुख चेहरा, बदन गठीला आँख पर गोगल्स चश्मा ही इनकी पहचान थी। ये पैंट-शर्ट पहनते थे। इनके व्यक्तित्व में गाँधी साहित्य-विनोबा के सर्वोदय साहित्य का प्रभाव परिलक्षित होता था। खुशी हो या गम, सुख हो या दुःख इनके चेहरे के भाव में कोई परिवर्तन नहीं होता था। इनमें गम्भीरता से सुनने एवं सहने की अद्भुत क्षमता थी। इनका व्यक्तित्व अद्भुत था। इनके साहित्य में इतना आकर्षण था की जब किसी भी मंच से बोलने लगते हैं तो श्रोतागण मुग्ध ही नहीं वरन् सम्मोहित हो जाते थे।
रामचंद्र प्रसाद अदीप गजलकार एवं कथाकार के रूप में
रामचंद्र अदीप जी ने कई कविता एवं गजलें लिखे थे। उनमें सबसे चर्चित् कविता ‘जब थकजाही,सुस्तावही’, एवं ‘शहरनामा’ कविता में कवि ह्रदय अदीप जी ने वर्तमान काल में शहरों की चमक-दमक से तथा उसकी दयनीय स्थिति पर उत्तम प्रकाश डाला है। वर्तमान में प्रायः देखा जा रहा है कि किसी न किसी पर्व-त्योहारों के शुभ अवसर पर लोगों में प्रेम की जगह घृणा, सत्य की जगह असत्य की गंदी भावना पनप रही है। कहीं से न कहीं से घृणा, असत्य, द्वेष की बदबू आ रही है। इस कारण हर जश्न में तकरार हो जाना स्वभाविक है। भूमण्डलीकरण के इस दौर में जहाँ समाज विघटित हो रहा है दलित शोषण भय और आतंक के माहौल पर खौलते जन आक्रोश को अपनी कविताओं में उकेर कर कवि अदीप जी ने सहज शब्द का रूप प्राप्तकर गीत के रूप में प्रस्फुटित होती है जो मानवीय हृदय को सहज संवेदनशीलता की ओर दौड़ती है, यही भाव ‘शहरनामा’ की कविताओं में समाहित है। अदीप जी एक सफल गज़लकार तो थे ही एक सफल कथाकार भी थे। गज़लें अदीप जी की बेहद सरल और सुबोध है। मन्दिर-मस्जिद तो पूजा स्थल है जहाँ भगवान और खुदा की पूजा-अर्चना की जाती रही है लेकिन वर्तमान परिवेश में ये आपसी लड़ाई के अखाड़े पंडित और मौलवियों ने बना रखा है। लोग बेगुनाह मारे जा रहे हैं। आस्था की जगह अनास्था का स्थल बना चुके है इन्हीं लोगों ने। अमृत की जगह विष घोल घोल कर पिलाये जा रहे है। ये दोनों अपने-अपने स्वार्थ के लिए उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। गज़ल देखें अदीप जी के-
“मंदिर-मस्जिद के झगड़े हैं तुम्हारे लिए बेगुनाहों को खून से न नहलाइये।”
उल्टा-पुल्टा अपना तकरीर पेशकर समाज में आग फैलाने वाले पंडित-मौलवी से समाज को संभल कर रखने की बात कवि अदीप जी ने कहा है। देखें- ‘तेरी तकरीरों से हम तो उकता गए झूठी तस्वीरें हमको न दिखलाइये।”
इसमें कोरे संदेह की गुंजाईश नहीं कि कवि अदीप ने प्रकृति में प्रेम और प्रेम में प्रकृति को अत्यंत ही सूक्ष्म दृष्टि से देखा है। प्रेम एक महान गौरवपूर्ण, अर्थगर्भित व्यापक और संवेदनशील सात्विक भाव है जिसकी व्याख्या समग्रता के साथ करना असंभव है। देखें इनके गज़ल में- “मुहब्बत और खुलूस का जो मंजर था आस-पास अब तो तेजी से बिखर कर वे अंगारे हो गए।” इस दुनिया में पीड़ा है। हाहाकार है। कवि इसलिए एक नये संसार बसाने का अभिलाषी है।
साहित्यसेवी रामचंद्र प्रसाद ‘अदीप’ जी का निधन अपने घर बिहारशरीफ के कमरूद्दीनगंज मोहल्ले में लम्बी बीमारी एवं स्मरण शक्ति के छीन हो जाने के कारण 4 फरवरी 2014 को हो गया। ऐसे महान गजलकार एवं कथाकार को मैं सादर नमन करता हूँ।