Friday, December 20, 2024
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लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 74 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 74 वीं पूण्यतिथि पर विशेष :● भारतीय एकता के शिखर पुरुष थे सरदार वल्लभभाई पटेल ● भारत के लौहपुरुष तथा राष्ट्र की एकता के प्रतीक सरदार पटेल

लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 74 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

 राकेश बिहारी शर्मा- भारत के लौह पुरुष के रूप में पहचाने जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल को देश की आजादी के समय देश के एकीकरण जैसे भागीरथ कार्य को अंजाम देने के लिए जाना जाता है। वे देश के पहले गृहमंत्री थे। आजादी के समय भारत पाकिस्तान के बंटवारे की प्रक्रिया को सुचारू रूप से करने के अलावा उस समय देश भर में चल रहे हिंदू मुसलमान दंगों से निपटने के लिए उनका अविस्मरणीय योगदान था। उनके जीवन के आखिरी दो साल उनकी सेहत के लिहाज से अच्छे नहीं थे। लेकिन उससे पहले वे अपने उस कार्य को अंजाम दे चुके थे जिसका बीड़ा उन्होंने उठाया था। 15 दिसंबर को उनकी पुण्यतिथि है।
भारत रत्न से सम्मानित सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म क्रांतिकारी परिवार में हुआ था। स्वतंत्र भारत को एक सूत्र में बाँधने का श्रेय भी सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही जाता है। सरदार पटेल एक सच्चे राष्ट्रभक्त ही नहीं थे, अपितु वे भारतीय संस्कृति के महान् समर्थक थे। सादा जीवन उच्च विचार, स्वाभिमान, देश के प्रति अनुराग, यही उनके आदर्श थे। सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत शिल्पी थे, जिनके ह्रदय में भारत बसता था। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे।

लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 74 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

वल्लभ भाई पटेल का जन्म और शिक्षा-दीक्षा :

महान स्वतंत्रता सेनानी लौहपुरूष सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम करमसद में हुआ था। इनके पिता झबेरभाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में रानी झांसी के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी मां का नाम लाडोबाई था। इनके पिता बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। ये गुजरात में एक लेवा पटेल (पाटीदार) जाति अर्थात कुर्मी जाति में हुआ था। वल्लभ भाई पटेल की प्रारंभिक पढ़ाई गांव के ही एक स्कूल में हुई थी। आगे की पढ़ाई के लिए वह पेटलाद गांव के स्कूल में भर्ती हुए। यह उनके मूल गांव से छह से सात किलोमीटर की दूरी पर था। वल्लभ भाई पटेल को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। वल्लभ भाई की हाईस्कूल की शिक्षा उनके ननिहाल में हुई। उनके जीवन का वास्तविक विकास ननिहाल से ही प्रारम्भ हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल तथा माता लाडबा देवी की चौथी संतान थे। भाइयों में सोम भाई, बिट्ठल भाई, नरसी भाई एवं एक बहन दहिबा थी। वल्लभ भाई का विवाह 16 साल की उम्र में झावेरबा पटेल से हुआ। उन्हें एक बेटा दह्याभाई और एक बेटी मणिबेन हुई थी। वल्लभ भाई ने नडियाद, बड़ौदा व अहमदाबाद से प्रारंभिक शिक्षा लेने के उपरांत इंग्लैंड मिडल टैंपल से लॉ की पढ़ाई पूरी की व 22 साल की उम्र में जिला अधिवक्ता की परीक्षा उत्तीर्ण कर बैरिस्टर बने, और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। उसी समय महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का राजनैतिक सफर :

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वल्लभ भाई ने सबसे पहले अपने स्थानीय क्षेत्रो में शराब, छुआछूत एवं नारियों के अत्याचार के खिलाफ लड़ाई की। इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता को बनाये रखने की पुरजोर कोशिश की। सरदार पटेल का राजनैतिक सफर 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह से हुआ था। 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह और बारदोली सत्याग्रह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान माह जून 1928 गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने ही किया था। उस समय सरकार ने किसानों के लगान में 22 प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया और इसको लेकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की।इसी बारदोली सत्याग्रह में उनके सफल नेतृत्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और वहां के किसानों ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी। वहीं 1922, 1924 तथा 1927 में सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गये। 1930 के गांधी के नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तैयारी के प्रमुख शिल्पकार सरदार पटेल ही थे। 1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में सरदार पटेल को अध्यक्ष चुना गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन में सरदार पटेल को जब 1932 में गिरफ्तार किया गया तो उन्हें गांधी के साथ 16 माह जेल में रहने का सौभाग्य हासिल हुआ। 1939 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जब देशी रियासतों को भारत का अभिन्न अंग मानने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया तभी से सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा अनेक देशी रियासतों में प्रजा मण्डल और अखिल भारतीय प्रजा मण्डल की स्थापना करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सरदार पटेल ने 565 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवाया :

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विश्व के इतिहास में एक भी व्यक्ति ऐसा न हुआ जिसने इतनी बड़ी संख्या में राज्यों का एकीकरण करने का साहस किया हो। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी। लौह पुरुष सरदार पटेल ने बुद्धिमानी और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए वी.पी. मेनन और लार्ड माउंट बेटन की सलाह व सहयोग से अंग्रेजों की सारी कुटिल चालों पर पानी फेरकर नवंबर 1947 तक 565 देशी रियासतों में से 562 देशी रियासतों का भारत में शांतिपूर्ण विलय करवा लिया। भारत की आजादी के बाद भी 18 सितंबर 1948 तक हैदराबाद अलग ही था लेकिन लौह पुरुष सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को पाठ पढ़ा दिया और भारतीय सेना ने हैदराबाद को भारत के साथ रहने का रास्ता खोल दिया।

नेहरू से ज्यादा लोकप्रिय थे सरदार वल्लभ भाई पटेल :

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भारत की आजादी के बाद वे प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। आजादी के पहले कांग्रेस कार्य समिति ने प्रधानमंत्री चुनने के लिए प्रक्रिया बनाई थी, जिसके तहत आंतरिक चुनावों में जिसे सबसे अधिक मत मिलेंगे वही कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा और वही प्रथम प्रधानमंत्री भी होगा। कांग्रेस के 15 प्रदेश स्तर के अध्यक्षों में से 13 वोट पटेल को मिले थे और केवल एक वोट जवाहरलाल नेहरू को मिला था। लेकिन गांधी का पुरजोर पक्ष जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष व प्रधानमंत्री बनाने को लेकर था। चूंकि गांधी को आधुनिक विचार बहुत पसंद थे, इन विचारों की झलक उन्हें पटेल की जगह विदेश में पढ़े-लिखे नेहरू में अधिक दिखती थी। वहीं गांधी विदेश नीति को लेकर पटेल से असहमत थे। इस कारण उन्होंने पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से इंकार कर दिया व अपने वीटो पॉवर का इस्तेमाल नेहरू के पक्ष में किया।

भारत के आदर्श सरदार वल्लभ भाई पटेल का निधन :

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वल्लभ भाई पटेल अपने जीवन के माध्यम से ताकत के प्रतीक थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल जी महात्मा गांधी जी को बहुत मानते थे उनकी इज्जत करते थे, महात्मा गांधी जी की कही हुई बातों को सर्वोपरि मानते थे। लेकिन 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी गयी। इस बात का वल्लभ भाई पटेल पर बहुत गहरा असर पड़ा और कुछ समय के बाद करीब 19-20 महीनों के बाद उन्हें हृदयाघात (हार्ट अटैक) या दिल का दौरा आ गया और 15 दिसंबर 1950 को सुबह तीन बजे उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद 9.57 बजे उनका निधन हो गया था। भारत का इतिहास हमेशा इस महान्, साहसी, निर्भयी, दबंग, अनुशासित, अटल, शक्ति सम्पन्न महान् पुरुष को याद करेगा। 565 रियासतों का विलय कराने वाले लौह पुरुष को भारतवर्ष हमेशा याद रखेगा। भारत की आज़ादी की लड़ाई और स्वतंत्रता के बाद समूचे देश को एकजुट करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है। वर्ष 1991 में भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था। सरदार वल्लभभाई पटेल ने पूरा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया था। सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे, उनका योगदान भारत के विभाजन के बाद देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण था, वे एक दृढ़ नायक थे, जिन्होंने न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता के लिए भी संघर्ष किया। महान देशभक्त ”भारत रत्न” लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन। भारत की एकता, अखंडता एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान के लिए सरदार पटेल का योगदान, हम सभी के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा। कृतज्ञ राष्ट्र उनका वंदन करता है। उनकी महान सेवा, उनके प्रशासनिक कौशल और हमारे राष्ट्र को एकजुट करने के अथक प्रयासों के लिए भारत हमेशा उनका आभारी रहेगा। ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत-अखण्ड भारत’ के निर्माण हेतु समर्पित पटेल का सम्पूर्ण जीवन सभी भारतवासियों के लिए एक महान प्रेरणा है।

● “हम एकता और अखंडता के माध्यम से ही अपने राष्ट्र को सशक्त बना सकते हैं”
● “हमारा सर्वोत्तम मित्र एकता है, और हमारा सबसे बड़ा शत्रु विभाजन है”

वक्त जब गुलशन पे पड़ा था, तो हमने खून दिया,
अब बहार आई हैं तो कहते हैं तेरा काम नहीं।

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