राकेश बिहारी शर्मा, -विवादों के बावजूद एक लोकप्रिय राजनेता थे संजय गांधी। पिछली शताब्दी का सातवां दशक भारतीय राजनीति का एक यादगार दशक माना जाता है। इस दशक के दौरान भारत के राजनीतिक पटल पर एक ऐसे नेता का उदय हुआ था जो अपने अल्पायु में ही वह कारनामा कर गया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। इस नेता का नाम था संजय गांधी। कांग्रेस पार्टी के अति-मह्त्वाकांक्षी नेता होने के साथ-साथ नेहरु-गांधी परिवार के राजनीतिक विरासत के अघोषित वारिस भी थे संजय गांधी। माना जाता था कि वो अगर जिन्दा होते तो इंदिरा गांधी के बाद वही कांग्रेस कि बागडोर संभालते और कांग्रेस के सत्ता में होने पर प्रधानमंत्री बनते।
आपातकाल के दौर के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति रहे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी कभी देश में किसी संवैधानिक पद पर नहीं रहे लेकिन इंदिरा के सिपहसालार के तौर पर भारत की राजनीतिक व्यवस्थाओं में बड़ा हस्तक्षेप रखते थे।
कुछ लोग ज़मीन पर राज करते हैं और कु्छ लोग दिलों पर। मरहूम संजय गांधी एक ऐसी शख़्सियत थे, जिन्होंने ज़मीन पर ही नहीं, बल्कि दिलों पर भी हुकूमत की। वे भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन हमारे दिलों में आज भी ज़िंदा हैं।
देश की आजादी के बाद भारतीय राजनीति हमेशा कांग्रेस परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने पीएम पद संभाला। वहीं इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े बेटे राजीव गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री बने थे। भले ही देश की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी पीएम नहीं बन सके। लेकिन संजय गांधी का भारतीय राजनीति में अहम कद था।
संजय गांधी का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा – इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी का जन्म 14 दिसम्बर 1946 को दिल्ली में हुआ था। बचपन से ही जिद्दी स्वभाव के रहे, संजय को पढाई-लिखाई में मन नहीं लगता था। पहले वेल्हम बॉयज स्कूल और फिर ख्यातिप्राप्त देहरादून के दून स्कूल में उनका दाखिला कराया गया। परन्तु इंदिरा और फ़िरोज़ गांधी के तमाम प्रयासों के बावजूद वह स्कूल की पढाई पूरी नहीं कर पाए। अकादमिक योग्यता न होने के बावजूद वह ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनना चाहते थे। इसके पीछे उनकी कारों के प्रति दीवानगी थी। ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में अपना करियर बनाने की चाहत में संजय ने इंग्लैंड का रुख किया और वहां प्रसिद्ध कार निर्माता कंपनी रोल्स-रोयस के साथ तीन वर्षों तक इंटर्नशिप किया। फिर वह भारत वापस लौटे और हवाई जहाज का पायलट बनने की ट्रेनिंग लेकर कमर्शियल पायलट का लाइसेंस हासिल किया। परन्तु हवाई जहाज उड़ाना संजय गाँधी का अंतिम मुकाम नहीं था, उनकी महत्वाकांक्षा तो किसी और उड़ान को लेकर थी और वह थी राजनीति।
संजय गांधी का राजनीतिक सफर – युवा दिलों की धड़कन, आधुनिक विचारों वाले महान नेता संजय गांधी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे सुपुत्र संजय गांधी राजनीति में काफी एक्टिव थे। 1970 में वो भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बने और 1980 तक देश की राजनीति में उन्होंने छाप छोड़ी। देश में आपातकाल की समाप्ति होने के बाद साल 1977 में संजय गांधी अपने पहले चुनाव में खड़े हुए थे। लेकिन इस दौरान संजय गांधी को अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से हार का सामना करना पड़ा था। इस हार का सबसे बड़ा कारण आपातकाल था। कांग्रेस के इस फैसले से जनता खफा थी। हालांकि साल 1980 को हुए आम चुनावों में संजय गांधी को जीत मिली थी।
संजय गांधी का देश में पुरुष नसबंदी आदेश – इंदिरा गांधी का उत्ताराधिकारी के तौर पर सबसे पहले संजय गांधी का नाम आता था। माना जाता है कि 25 जून को जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई। तो इसके कई सालों तक संजय गांधी ने ही देश की बागडोर संभाल रखी थी। संजय गांधी ने साल 1976 के सिंतबर माह में एक ऐसा फैसला लिया, जिसे देश के बुजुर्गों द्वारा आज भी याद रखा जाता है। संजय ने देशभर में पुरुष नसबंदी करवाने का फैसला लिया था। जिसके कारण कांग्रेस को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालांकि इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था। इस दौरान देशभर के पुरुषों की जबरन नसबंदी करवाए जाने का आदेश दिया गया था। एक रिपोर्ट के अनुसार, उस दौरान एक साल के अंदर 60 लाख से अधिक लोगों की नसबंदी करवाई गई थी। उस दौरान 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्गों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी।
संजय गांधी को भारत में मारुति 800 लाने का श्रेय – मारुति 800 को भारत में लाने का श्रेय भी संजय गांधी को दिया जाता है। 4 जून 1971 को मारुति मोटर्स लिमिटेड कंपनी का गठन किया गया। इस कंपनी के पहले एमडी संजय गांधी ही थे। यदि भारत देश में पुरुष नसबंदी जैसी दमनकारी निर्णय के लिए संजय गांधी को जिम्मेदार माना जाता है। तो वहीं देश में मारुती 800 को लाने का श्रेय भी उनको ही दिया जाता है। उनका सपना था कि देश में आम लोगों के पास अपनी कार था। इसके लिए संजय गांधी ने दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप तैयार करवाया था।
संजय गांधी और मेनका गांधी की 1974 में शादी – संजय गांधी की शादी 23 दिसंबर 1974 को लेफ्टिनेंट कर्नल तरलोचन सिंह की बेटी मेनका से हुई। संजय गांधी अपने उम्र से दस साल छोटी 17 वर्षीय सिख परिवार की लड़की थी। कहा जाता है कि संजय ने यह विवाह मेनका के परिवार वालों के न चाहते हुए भी किया था। मेनका एक मॉडल बनना चाहती थीं। उन्हें मॉडलिंग का ब्रेक भी मिला था और वह भी उस समय के प्रसिद्ध ब्रांड बॉम्बे डाईंग के विज्ञापन का। इस विज्ञापन में ही संजय ने मेनका को देखा था और उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। बाद में संजय की मुलाक़ात मेनका से वीनू कपूर ने करवायी जो मेनका की रिश्तेदार थीं। वर्ष 1973 में दोनों की मुलाक़ात विनू की शादी की पार्टी में हुई थी। इसके बाद दोनों में प्रेम का परवान चढ़ा और अगले ही वर्ष दोनों की सगाई हो गई। फिर 23 सितम्बर 1974 को दोनों ने शादी रचा ली। इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि शादी के बाद मेनका गांधी के अंश को बॉम्बे डाईंग के विज्ञापन से हटा दिया गया था जिसकी वजह संजय गाँधी की आपत्ति थी। शादी के बाद संजय और मेनका गाँधी देश के राजनीतिक पटल पर एक पावरफुल कपल के तौर पर उभरे थे। मेनका संजय के साथ हर दौरे में जाती थीं, चाहे वह राजनीतिक हो या गैर राजनीतिक। आगे जाकर मेनका ने राजनीति में भी रूचि लेना शुरू कर दिया और संजय के साथ कांग्रेस पार्टी को मजबूती देने के लिए उन्होंने ‘सूर्या’ नाम से एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया था। आम लोगों की तरह की संजय गांधी और मेनका गांधी की जिंदगी में भी खटपट चलती थी। बताया जाता है कि दोनों के बीच एक बार हुए विवाद में मेनका इतना गुस्सा हो गई थीं कि उन्होंने अपनी शादी की अंगूठी निकालकर फेंक दी थी। मेनका गांधी की इस हरकत से इंदिरा गांधी बेहद नाराज हो गई थीं। क्योंकि वह अंगूठी उन्हें मां कमला नेहरू से मिली थी। उस दौरान सोनिया भी मौके पर मौजूद थीं। उन्होंने वह अंगूठी यह कहकर अपने पास रख ली थी कि वह इसे प्रियंका गांधी के लिए संभाल कर रखेंगी।
विमान हादसे में संजय गांधी ने गवांई जान – शादी के 6 साल बाद संजय गांधी की विमान हादसे में मौत हो गई थी। 23 जून 1980 की सुबह संजय गांधी और दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना ने सफदरगंज के दिल्ली फ्लाइिंग क्लब से उड़ान भरी। विमान हवा में कलाबाजियां दिखा रहा था। हवा में कलाबाजियां दिखाते समय अचानक से विमान के पिछले इंजन ने काम करना बंद कर दिया था। संजय और सुभाष का विमान सीधे अशोक होटल के पीछे खाली पड़ी जमीन में जाकर टकरा गया। इस हादसे में दोनों ने अपनी जान गंवा दी। 23 जून 1980 का दिन, समय सुबह के 7 बजकर 58 मिनट पर दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट से विमान ने टेकऑफ किया लेकिन उड़ान भरने के 12 मिनट बाद हादसा का शिकार हुआ था। बिना किसी पद पर रहते हुए उनपर विपक्ष को कुचलने और फैमिली प्लानिंग कार्यक्रम को जबरन लागू कराने का आरोप लगा। 23 जून 1980 को दिल्ली के सफदरजंग एयरपोर्ट पर एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई। दिल्ली फ्लाइंग क्लब के मेंबर 33 साल के संजय गांधी एक नया एयरक्राफ्ट उड़ा रहे थे, इसी दौरान विमान से उनका कंट्रोल खत्म हो गया और हादसे में उनकी मौत हो गई। इस दौरान उनके साथ एक मात्र पैसेंजर रहे कैप्टन सुभाष सक्सेना भी इस हादसे में मारे गये। लिहाजा अंदर क्या हुआ था ये राज बनकर ही रह गया। उन्होंने देश की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ने का काम किया था।
संजय गांधी के कारण ही आज देश मे हर हाथ मे फोर व्हीलर है। संजय गांधी ने कई कम्पनियों से हाथ मिलाया और भारत मे सस्ती कार बनाने की नींव रखी। संजय गांधी ने एक मजबूत और स्वस्थ समाज बनाने की दिशा में पांच सूत्रीय कार्यक्रम लाया जिसमे नशा मुक्ति, परिवार नियोजन, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण,और दहेज उन्मूलन थे किंतु विपक्ष ने समाज मे अफवाह फैलाकर लोगो मे दहशत पैदा कर दिया और कार्यक्रम को असफल बनाने में अहम भूमिका निभाई ।