Saturday, September 21, 2024
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भारत की प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख की 192 वीं जयंती पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा – तत्कालीन भारतीय समाज में महिलाओं से सम्बंधित अनेक सामाजिक कुरीतियाँ विद्यमान थीं, जैसे– बाल-विवाह, शिशु-हत्या, सती-प्रथा, विधवाओं की दयनीय दशा तथा निम्न-स्तरीय नारी शिक्षा आदि. आरम्भ में ब्रिटिश सरकार ने इनमें से कुछ बुराइयों को समाप्त करने के लिए कुछ कदम उठाये।

अब महिलाएँ प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी भूमिका का निर्वहन कर रही हैं और वर्तमान में महिलाओं ने एक सशक्त नारी की छवि स्थापित की है। समाज में महिलाओं की स्थिति का विश्लेषण वर्तमान परिस्थिति के आधार पर पूर्णरूपेण नहीं किया जा सकता। भारत में महिलाओं की स्थिति का विहंगावलोकन करने के लिए विभिन्न कालों, जैसे- वैदिक, मुस्लिम, ब्रिटिश एवं आधुनिक काल में उनकी स्थिति का अध्ययन करने के उपरान्त ही समाज में महिलाओं की स्थिति का ज्ञान किया जा सकता है। विभिन्न ऐतिहासिक काल क्रमों में महिलाओं की स्थिति भी अलग-अलग प्रकार की रही है। महिलाओं की स्थिति जानने का आधार मुख्य रूप से उनका सामाजिक आदर, शिक्षा व्यवस्था, परिवार में स्थान, लैंगिक भेदभाव का न होना, रुठियों एवं कुप्रथाओं का न होना, आर्थिक संसाधनों पर नियन्त्रण, निर्णय लेने की क्षमता का प्रयोग एवं स्वतन्त्रता आदि में निहित होता है।

उत्तर- वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति में हास के चिह्न दृष्टिगत होते हैं। मनुस्मृति में मनु ने कुछ नियमों का वर्णन किया है, जिसके अनुसार स्त्रियों को वेदाध्ययन का अधिकार प्रदान नहीं किया गया और मन्त्रोच्चारण की कसौटी पर उन्हें आयोग्य बना दिया गया। मनु के अनुसार, स्त्रियों को केवल घर के कार्य करने चाहिए तथा पति की सेवा करना उनका धर्म माना गया, जिसे उसके लिए आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के समकक्ष ठहराया गया। मनु ने अन्य कई नियम बनाये जिनका पालन करना स्त्रियों के लिए अनिवार्य था। विवाह की आयु भी कम की गयी।

वास्तव में इस काल में जो विचारधाराएँ थी, वे ही काफी बदले हुए स्वरूप में आज भी कायम है। इस काल की महिलाएँ कम आयु में विवाह के कारण वे शिक्षा से वंचित हो जाती थी। उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता भी उत्पन्न नहीं हो पाती थी। वे धन और सुरक्षा के लिए पुरुषों पर आश्रित थी।

जैन तथा बौद्ध धर्मो ने स्त्रियों की शिक्षा का पूर्णरूपेण समर्थन किया और स्त्री-पुरुष की समानता पर बल दिया। स्त्रियों को भी पुरुषों के समान शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था। वे भिक्षुणी कहलाती थी तथा मठ तथा विहारों में रहती थी। महावीर तथा बुद्ध ने संघ में नारियों के प्रवेश की अनुमति दे दी थी। ये धर्म और दर्शन के मनन के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करती थीं। जैन और बौद्ध साहित्य से जात होता है कि कुछ भिक्षुणियों ने साहित्य तथा शिक्षा के प्रसार में व्यापक योगदान दिया। उनमे सम्राट अशोक की पुत्री संघमित्रा का नाम उल्लेखनीय है। जो धर्म के प्रचारार्थ सिंघल जैसे दूर देश भी गयी। बौद्ध आगमों की महान शिक्षिका के रूप में भी इनकी ख्याति थीं। जैन साहित्य से जयंती का पता चलता है, जिसने धर्म और दर्शन की ज्ञान-पिपासा की तृप्ति हेतु आजन्म अविवाहित रहने का व्रत लिया और भिक्षुणी हो गयी।

उन्नीसवीं सदी के दौर में भारतीय महिलाओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय थी। जहां एक ओर महिलाएं पुरुषवादी वर्चस्व की मार झेल रही थीं, तो दूसरी ओर समाज की रूढ़िवादी सोच तथा पर्दाप्रथा के कारण तरह-तरह की यातनाएं व अत्याचार सहने को विवश थीं। हालात इतने बदतर थे कि घर की देहरी लांघकर सभी धर्मो में महिलाओं के लिए सिर से घूंघट उठाकर बात करना भी आसान नहीं था। लंबे समय तक दोहरी मार से घायल हो चुकी महिलाओं का आत्मगौरव और स्वाभिमान पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका था। समाज के द्वारा उनके साथ किए जा रहे गलत बर्ताव को वे अपनी किस्मत मान चुकी थीं। इन विषम हालातों में दलित महिलाएं तो अस्पृश्यता के कारण नरक का जीवन भुगत रही थीं।

आज से लगभग 171 साल पहले शिक्षा बहुसंख्य लोगों तक नहीं पहुँच पाई थी। जब विश्व आधुनिक शिक्षा में काफी आगे निकल चूका था लेकिन भारत में बहुसंख्य लोग शिक्षा से वंचित थे। लडकियों की शिक्षा का तो पूछो मत क्या हाल था। ऐसे विकट समय में फातिमा शेख ने समाज सुधारक बनकर महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त करने व उनके समान शिक्षा व अवसरों के लिए पुरजोर प्रयास किया। वंचितों की आवाज बुलंद करने वाली फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था।

आज फ़ातिमा की 192 वीं जयंती है। फातिमा शेख भारत की प्रमुख महिला समाज सुधारकों में से एक रहीं और इसलिए उन्हें गूगल ने यह खास सम्मान दिया है। फ़ातिमा का ज्योतिबाराव फूले और सावित्रीबाई फूले से गहरा संबंध रहा है। उस जमाने में स्त्री शिक्षा का कोई महत्व नहीं था। महिलाओं को घरों की चारदीवारी में रखा जाता था और उन्हें पढ़ने की अनुमति नहीं थी। लेकिन ज्योतिबाराव फूले ने देश में शिक्षा की अलख जगाई। उन्होंने दलित समुदायों और महिलाओं की शिक्षा के लिए बहुत से काम किए और इन सभी कामों में उनकी पत्नी सावित्रीबाई फूले ने उनका भरपूर सहयोग किया. लेकिन लोगों को यह मंजूर नहीं था और इसलिए फूले दंपति को घर से बेघर होना पड़ा।

ऐसे में फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान ने फूले दंपति का साथ दिया। उन्होंने न सिर्फ उन्हें अपने घर में रहने की जगह दी बल्कि बच्चियों के लिए स्कूल चलाने की इजाज़त भी दी। यहीं से फ़ातिमा भी फूले दंपति के अभियान से जुड़ गईं और फ़ातिमा ने सावित्रीबाई के साथ मिलकर अपने ही घर में स्वदेशी पुस्तकालय की शुरू की। उन्होंने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के उन समुदायों को पढ़ाना शुरू किया, जिन्हें वर्ग, धर्म या लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित रखा जाता था। इस काम के बदले में फ़ातिमा शेख को भी समाज में काफी विरोध सहना पड़ा लेकिन वह पीछे नहीं हटीं। उन्होंने घर-घर जाकर अपने समुदाय के दलितों को स्वदेशी पुस्तकालय में आकर पढ़ने और भारतीय जाति व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए जागरूक किया। हालांकि, उन्हें प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ा था।

इसके बावजूद फातिमा शेख और उनके सहयोगियों ने सत्यशोधक आंदोलन जारी रखा। और वह सत्यशोधक आंदोलन का भी हिस्सा बन कर रही। भारत सरकार ने 2014 में फातिमा को पहचान दी और उनकी कहानी उर्दू पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया। और 2022 में उनकी 191 वीं जयंती पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया था। उन्होंने बहुजनों की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था। उन्हें पता था कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी है, इसीलिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना चाहिए। विशेषतः वे लड़कियों की शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया। फातिमा शेख के ज़माने में लडकियों की शिक्षा में अनेकों रुकावटें थीं। ऐसे ज़माने में उन्होंने स्वयं शिक्षा प्राप्त की। दूसरों को लिखना पढना सिखाया।

वो शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला थीं जिन के पास शिक्षा की सनद थी। उन्होंने बहुजनों की दुर्गति को बहुत ही निकट से देखा था। उन्हें पता था कि बहुजनों के इस पतन का कारण शिक्षा की कमी है, इसीलिए वे चाहते थे कि बहुसंख्य लोगों के घरों तक शिक्षा का प्रचार प्रसार होना चाहिए। विशेषतः वे लड़कियों की शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे इसका आरंभ उन्होंने अपने घर से ही किया। फातिमा शेख ने लड़कियों की शिक्षा के लिए जो सेवाएँ दीं, उसे भुलाया नहीं जा सकता। घर घर जाना, लोगों को शिक्षा की आवश्यकता समझाना, लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए उनके अभिभावकों की खुशामद करना, फातिमा शेख की आदत बन गयी थी। आखिर उनकी मेहनत रंग आने लगी। लोगों के विचारों में परिवर्तन आया, वो लड़कियों को स्कूल भेजने लगे। लडकियों में भी शिक्षा के प्रति रूचि निर्माण होने लगी।

स्कूल में उनकी संख्या बढती गयी। मुस्लिम लड़कियां भी ख़ुशी ख़ुशी स्कूल जाने लगीं। विपरीत परिस्थितियों में प्रस्थापित व्यवस्था के विरोध में जाकर शिक्षा के महान कार्य में ज्योतिराव फुले एवं सावित्रीबाई फुले को भरपूर सहयोग दिया। फातिमा शेख ने निम्न वर्ग के लोगों को शिक्षित करने के लिए बहुत सक्रियता और लगन से काम किया। सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने उन्हें पढ़ाया, जिन्हेँ धर्म, लिंग के आधार पर शिक्षा से वंचित रखने की कोशिश की गई थी। फातिमा ने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को तन-मन-धन से कुशलतापूर्वक पढ़ाया।

ज्ञानमाता फातिमा शेख और भाई मियां उस्मान शेख का नाम और काम सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले क्रांतीज्योती सावित्रीबाई फूले के त्याग और समर्पण की भावना देश के लोगों के बीच पहुंचना चाहिए। ज्ञानमाता फातिमा शेख के त्याग को कुछ इतिहासकारों ने भूला दिया गया। इस लिए नारी शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर सरोकार रखने वाले लोगों के लिए ये बहुत बड़ी चुनौती है, कि वे फ़ातिमा शेख़ के माता-पिटा और उनके भाई उस्मान शेख़ के समाज में किये गये योगदानों की खोजबीन ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए। वर्तमान समय में स्त्रीमुक्ति आंदोलन की अहम किरदार निभाने वाली फ़ातिमा पर शोध करने की जरूरत है।

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