Friday, September 20, 2024
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शहीद क्रांतिवीर मातादीन भंगी की 167 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा- भारतीय दलित इतिहास में स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान और भूमिका पर प्रचुर मात्रा में आलेख सामने आए हैं, जो अब तक उपेक्षित रहे हैं। इस प्रकार भारत की आज़ादी के संघर्ष में दलितों द्वारा निभाई गई भूमिका के सामाजिक निर्माण को दलित समुदायों के भीतर विशिष्ट ऐतिहासिक क्षणों में बदलती सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के साथ स्वयं दलितों द्वारा बदल दिया गया है। हालाँकि, जो महत्वपूर्ण है, वह यह है कि औपनिवेशिक काल में दलित राष्ट्र-विरोधी या राष्ट्र-समर्थक रुख के लिए तर्क देते हैं, उनके एजेंडे और अभिव्यक्तियाँ काफी हद तक भिन्न हैं, जो उस काल के पारंपरिक राष्ट्रवादियों और मुख्यधारा के इतिहासकारों से अलग हैं और उन्हें चुनौती दे रहे हैं।
1857 के विद्रोह की उत्पत्ति उस प्रकरण से मान सकता है जहां ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री रेजिमेंट के एक उच्च जाति के सैनिक मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था, लेकिन अंतर्निहित मुद्दा हालाँकि, जाति की, जिसने विद्रोह को जन्म दिया होगा, इस इतिहास में नजरअंदाज कर दिया गया है।

शहीद क्रांतिवीर मातादीन भंगी की 167 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

मंगल पांडे द्वारा ‘प्रदूषित’ कारतूसों का उपयोग करने से इनकार करने की कहानी दलित कथाओं में पांडे द्वारा एक दलित – मातादीन भंगी के साथ पानी साझा करने से इनकार करने से जुड़ी है। पांडे ने अपना विद्रोह तब शुरू किया जब उनके जातीय गौरव को ठेस पहुंची क्योंकि भंगी ने उन्हें एक सैनिक के जीवन के प्रदूषणकारी प्रभावों पर अपर्याप्त ध्यान देने के बारे में ताना मारा। इतिहास के पन्नों में जब भी भारत की आज़ादी की बात होती है तो 1857 का युद्ध सबसे पहले पन्ने पर आता है और आए भी क्यों न आखिर 1857 के युद्ध ने ही तो भारतवासियों में आज़ादी का अलख जगाया था। भारत के इस पहले स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं की सूची में मंगल पाण्डे, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई समेत अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के नाम शामिल हैं। लेकिन मातादीन भंगी एक ऐसा नाम है जिसे इस सूची ; तालिका में शामिल करने में एक लंबा समय लगा। हालांकि मातादीन भंगी को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का सिर्फ सेनानी कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि मातादीन भंगी ही थे जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के असली सूत्रधार थे। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार को इतिहासकारों ने भुला दिया। मातादीन भंगी नहीं होते तो सन् 1857 का महान गदर इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं होता और न ही मंगल पांडेय सिपाही विद्रोह के नायक बनते। इतिहासकारों ने मातादीन के साथ अन्याय किया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शोला मंगल पाण्डेय थे तो शोले में आग पैदा करने की प्रथम चिंगारी मातादीन भंगी थे।जब हम आजादी का इतिहास पढते हैं तब, सन 1857 का सैनिक विद्रोह याद आता है। और जब यह विद्रोह याद आता है तब, मंगल पांडे अनायास अपने ब्रिटिश सार्जेंट की छाती पर बन्दूक ताने आपके जेहन में कूद पड़ता है।इतिहास को लिखने की जिसकी ठेकेदारी थी, चाहे ब्राह्मण हो या ऊँची जात। अब यह तो आपने देख ही लिया है कई धार्मिक ग्रंथों में कि वशिष्ठ हो या विश्वामित्र; गुरु द्रोणाचार्य सभी उच्च वर्ग के हिमायती हैं।सन 1857 के सैनिक विद्रोह इसी तरह जमींदारों के इर्दगिर्द घुमती है। इस सैनिक विद्रोह की कथा पढ्ते और सुनते समय उच्च वर्गों की छाति फूल जाती है। यह विद्रोह हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है। और यह तो आप जानते ही हैं कि आस्था के सामने सारा साइंस और तर्क बौने हो जाते हैं।भारतीय सैनिक विद्रोह की एक प्रचलित कहानी है- एक दिन मंगल पांडे अपने साथी सिपाही क्रांतिकारी मातादीन भंगी को अपने लोटा से पानी देने से इसलिए मना कर देता है क्यों कि वह भंगी जाति का था। बात बढ़ने पर तैश में वह सिपाही कहता है कि गाय और सुअर की चर्बी से बनी बन्दूक की गोली का खोका तो मुंह से तोड़ते तुम्हारा धर्म भ्रष्ट नहीं होता मगर, अपने सह-धर्मी से छुए लोटे का पानी तुम्हें धर्म भ्रष्ट करता है? कड़वी मगर सच्ची बातें थी।

शहीद क्रांतिवीर मातादीन भंगी की 167 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

क्रांतिकारी मातादीन भंगी का जन्म और पारिवारिक जीवन

क्रांतिकारी मातादीन भंगी का जन्म 29 नवंबर 1825,को मेरठ में हुआ था। मातादीन भंगी का जन्म ब्रिटिश हुकूमत वाले मेरठ के एक भंगी परिवार में हुआ था। रोज़ी रोटी के लिए उनका परिवार यूपी के कई हिस्सों की खाक छान चुका था। उस समय की जाति व्यवस्था में भंगियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था इसलिए मातादीन कभी स्कूल नहीं जा पाए। उनका परिवार शुरू से ही अंग्रेज़ों के संपर्क में रहा इसलिए मातादीन को अंग्रेंज़ों की सरकारी नौकरी मिलने में ज्यादा दिक्कत भी नहीं हुई। कलकत्ता से 16 किलोमिटर दूर स्थित बैरकपुर छावनी में उन्हें खलासी की नौकरी मिल गई। इस छावनी में सिपाहियों के लिए कारतूस बनाए जाते थे। अंग्रेज फौज के संपर्क में रहने से मातादीन को वहां की सारी गतिविधियों की जानकारी रहती थी। दलितों को लेकर देश में अक्सर विरोधी माहौल बनते रहते हैं, पर सच यह है कि चाहे सामाजिक व्यवस्था हो, आजादी की लड़ाई हो या देश की रक्षा दलितों ने हर जगह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है। आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में हम सभी मंगल पांडेय को जानते हैं, पर वास्तविकता यह है कि इसकी पटकथा लिखी थी मातादीन भंगी ने। वहीं बैरकपुर छावनी में ही सेना की एक टुकड़ी “34वी बंगाल इंफेंट्री” का मार्गदर्शन मंगल पाण्डे करते थे।

मातादीन भंगी और मंगल पाण्डे ने स्वतंत्रता संग्राम की नीव रखी

सेना में काम करते हुए मातादीन भंगी और मंगल पाण्डे की खासी पहचान हो चुकी थी। मंगल पाण्डे ये भी जानते थे कि मातादीन भंगी जाति का है। एक दिन जब मातादीन को ज़ोरो से प्यास लगी तो उन्होंने मंगल पाडेय से पीने के लिए पानी मांग लिया लेकिन मंगल पाडेय ने इसे मातादीन का दुस्साहस समझा और यह कहकर उन्हें पीने के लिए पानी नहीं दिया कि ‘अरे भंगी, मेरा लोटा छूकर तू इसे अपवित्र करेगा क्या?
इस पर मातादीन भंगी ने मंगल पांडे को उनकी पंडाताई याद दिलाते हुए कहा, “पंडत, तुम्हारी पंडिताई उस समय कहा चली जाती है जब तुम और तुम्हारे जैसे चुटियाधारी गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से काटकर बंदूकों में भरते हो। “ये सुनकर मंगल पांडे का माथा ठिनक गया। क्योंकि बात अब उनकी पंडताई पर आ गई थी। बात मंगल पांडे तक ही नहीं रूकी औऱ एक के बाद एक सेना की सभी टुकड़ियों में इस बात के चर्चे होने लगे कि जिस कारतूस को वो मुंह से छीलते हैं, वो गाय औऱ सूअर की चर्बी से बना हुआ है।

शहीद क्रांतिवीर मातादीन भंगी की 167 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

ब्रिटिश के खिलाफ विद्रोह करने वाले पहले व्यक्ति थे मातादीन भंगी

मातादीन की गाय औऱ सूअर की चर्बी वाली बात सुनकर मंगल पांडे ने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया। 01 मार्च 1857 की सुबह परेड मैदान में मंगल पाण्डे ने लाइन से बाहर निकल कर अंग्रेज़ सैनिकों को कहा कि तुम गोरे लोग हमसे गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों का इस्तेमाल करवाकर हमारे धर्म औऱ इमान के साथ खिलवाड़ कर रहे हो। इसके बाद मंगल पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों को गोलियों से भूनना शूरू कर दिया। जिसके बाद पूरे उत्तर भारत में विद्रोह की ज्वाला भड़क गई। मातादीन भंगी ने सच्चे सिपाही की तरह अंग्रेज़ो के खिलाफ इस युद्ध को लड़ा था। हालांकि 1857 का ये युद्ध अंग्रेज़ी हुकुमत को जड़ से उखाड़ तो नहीं पाया लेकिन इस युद्ध ने अंग्रेज़ी हुकुमत की जड़े ज़रूर हिला दि थीं।
इसके बाद बाद अंग्रेज़ो ने विद्रोह करने वालों की लिस्ट तैयार की जिसमें पहला नाम मातादीन भंगी का था। विद्रोह को चिंगारी देने के लिए अंग्रेज ऑफिसरों ने मातादीन भंगी को गिरफ्तार कर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। उसके बाद मंगल पाण्डे का भी कोर्ट मार्शल कर उन्हें सैनिकों की टुकड़ियों के सामने फांसी पर लटका दिया था। अंग्रेज़ी हुकुमत के खिलाफ़ विद्रोह करने वाले और इस लड़ाई को लड़ने वाले मातादीन भंगी पहले व्यक्ति थे। बैरकपुर छावनी में काम करने वाले भी अधिकतर लोग दलित थे। इस युद्ध में ना जाने कितनी ही दलित महिलाओं ने भाग लिया था। इनमें झलकारीबाई, अवंतीबाई, पन्नाधाई, उदादेवी पासी और महाविरीदेवी के नाम शामिल हैं।

मातादीन भंगी और मंगल पाण्डे की आपनी-अपनी व्यवस्था की लड़ाई

दलितों के लिए ये लड़ाई उनके जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई थी, जब्कि मंगल पाण्डे का विरोध उस व्यवस्था को लेकर था जिससे उनके धर्म पर आंच आ रही थी। ये उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली बात थी। ये ब्राह्मणवादी नियमों को खतरें में डालता था। मंगल पांडे एक ब्राह्मण थे और गाय औऱ सुअर की चर्बी वाले कारतूसों को मुंह से काटने का मतलब था उनका ब्राह्मण से अछूत हो जाना। क्योंकि जब किसी को ये पता चलता कि मंगल पाण्डे ने गाय और सूअर की चर्बी को मुंह लगाया है तो न तो कोई उनके साथ खाना खाता, ना उन्हे छूता औऱ शायद मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी नहीं करता। मंगल को यही डर था जब ये बात सभी में फैल जाएगी तो उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार किया जाएगा। इतिहासकार संजीव नाथ ने अपनी पुस्तक “1857 की क्रांति के जनक नागवंशी मातादीन हेला” में मातादीन भंगी को 1857 की क्रांति का जनक बताया है। साथ ही नाथ ने अपनी पुस्तक में इस बात को भी उद्धृत किया है कि यह उस समय की व्यवस्था की बात है जब ब्राह्मण सैनिक अपने मुंह से चर्बी वाले कारतूस काटते थे लेकिन एक प्यासे व्यक्ति को पानी देने से मना कर देते थे सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उनके लिए अछूत था। मातादीन भंगी वो भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1857 के विद्रोह से पहले की घटनाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उसके बाद 1857 के युद्ध में देश की ख़ातिर फांसी के फंदे पर झूल गए लेकिन इसके बावजूद इतिहास के पन्नों में मातादीन भंगी को वो दर्ज़ा कभी नहीं दिया गया जिसके वह असली हकदार थे। मातादीन भंगी अपने मातृभूमि के लिए 08 अप्रैल 1857 को शहीद हो गए। पहली फांसी मातादीन भंगी को दी गई। उसके बाद मंगल पांडेय और बाकी गिरफ्तार सैनिकों को फांसी दी गई।

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