भारतीय भूमि के सच्चे साधु स्वामी विवेकानन्द की 162 वीं जयंती पर विशेष
● विवेकानन्द राष्ट्रभक्त एवं सनातन धर्म के सनातनी नेता थे
●स्वामी विवेकानन्द देशी शिक्षा के हिमायती थे
● विवेकानन्द ने विश्व में भारतीय धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या की
● विवेकानन्द पराधीनता को मानव का सबसे बड़ा शत्रु मानते थे
राकेश बिहारी शर्मा—भारतीय भूमि सच्चे साधु-महात्माओं की गौरवभूमि भी रही है, जिन्होंने धर्म-साधना एवं अपनी योग और साधना से न केवल आत्मसिद्धि प्राप्त की, बल्कि धार्मिक नवचेतना से समाज को नयी दिशा दी। मानवतावादी धर्म का शंखनाद करने वाले धर्मगुरुओं में स्वामी विवेकानन्द ऐसे ही योगी एवं साधक रहे हैं, जिन्होंने विश्वधर्म सम्मेलन में भारतीय धर्म की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या की। युवा शक्ति के प्रेरक स्वामी विवेकानन्द भारत के लिए ही नहीं, अपितु विश्व के लिए एक अनुकरणीय आदर्श थे। अपनी अद्वितीय प्रतिभा, ज्ञान, आदर्श, विवेक, संयम जैसे चारित्रिक गुणों के साथ-साथ धर्म तथा दर्शन की व्याख्या करने वाले वे ऐसे भारतीय थे, जिन पर समस्त भारतवर्ष को हमेशा गर्व रहेगा। शिकागो धर्मसम्मेलन 1893 में मानवतावादी धर्म के रूप में भारतीय धर्म-दर्शन की व्याख्या करने वाले इस महान् व्यक्तित्व ने अपने ज्ञान से विश्व को चमत्कृत कर दिया। स्वामी विवेकानंद का नाम विश्व भर की धार्मिक जनता के लिए भली-भाँति जाना-पहचाना है। वे दुनिया भर में युवा हिंदू संन्यासी के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके जन्मदिवस को युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
विवेकानन्द का जन्म, पारिवारिक जीवन और शिक्षा
विवेकानन्दजी का जन्म कलकत्ता के एक सम्पन्न परिवार में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता विश्वदत्त तथा माता भुवनेश्वरी देवी से धार्मिक संस्कार उन्हें विरासत में ही मिले। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। विवेकानन्दजी की प्रारम्भिक शिक्षा बहुत कुशल ढंग से सम्पन्न हुई। तैराकी, घुड़सवारी, कुश्ती, संगीत, साहित्य तथा खेलकूद आदि में वे प्रवीण थे। प्रारम्भिक शिक्षा कलकत्ता के मेट्रोपोलिटन कॉलेज में प्रवेश लेकर पूर्ण की। 16 वर्ष की अवस्था में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च शिक्षा हेतु प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रविष्ट हुए। इसके पश्चात् साहित्य, धर्म-दर्शन के साथ भारतीय तथा पाश्चात्य दर्शन का गहन अध्ययन किया। नरेन्द्रनाथ उन दिनों ईश्वर के सत्य स्वरूप तथा जीवन के सत्य की खोज में व्याकुल थे। इस जिज्ञासा का समाधान उन्हें किसी गुरु प्राप्त नहीं हुआ।
विवेकानन्द ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस को गुरु बनाया
सत्य की खोज में भटकते-भटकते विवेकानन्द की भेंट स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुई। उनके चेहरे के अलौकिक प्रभामण्डल तथा सौम्य व्यक्तित्व से विवेकानन्द प्रथम दृष्टि में ही प्रभावित हो गये। उन्होंने रामकृष्ण से वही प्रश्न किया- “क्या आपने ईश्वर को देखा है?” रामकृष्ण ने उत्तर दिया- “जिस तरह तुम मुझे देख रहे हो। उसी तरह मैंने ईश्वर को देखा है।” बस फिर क्या था, विवेकानन्द ने उन्हें ही अपना गुरु मान लिया। गुरु के साहचर्य में विवेकानन्द ने जीवन के सत्य के साथ-साथ जीव-जगत् और ब्रह्म के स्वरूप को भी पहचान लिया। विवेकानन्द के भीतर की ज्ञान-ज्योति को पहचानकर परमहंस ने उन्हें विवेकानन्द नाम दे दिया। स्वामी रामकृष्ण ने विवेकानन्द से कहा था- “तू कोई साधारण मनुष्य नहीं है। ईश्वर ने तुझे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए भेजा है। मनुष्य की तरह अपनी मुक्ति की इच्छा छोड़कर तुझे लाखों मनुष्यों के दुःख दूर करने हैं। संन्यासियों की तरह एकान्त में अपने मूल्यवान जीवन को नष्ट करने की बजाय मनुष्यमात्र की सेवा करो।” गुरु की इस गम्भीर वाणी को अपना जीवनादर्श बनाकर विवेकानन्द ने अपना सम्पूर्ण जीवन इसी में समर्पित कर दिया।
अमेरिका के शिकागो शहर में धर्मसभा सम्मेलन में शामिल
विवेकानन्द ने 31 मई सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में धर्मसभा सम्मेलन में जाकर अद्भुत प्रतिभा से सम्मोहित कर डाला। सभी धर्माचायों और धर्माध्यक्षों के सामने स्वामीजी ने “भाइयो और बहनो!” का सम्बोधन देकर अपनी बात प्रारम्भ की, तो समस्त सभा मण्डप तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। भारतीय धर्म-दर्शन की तात्विक व्याख्या करते हुए उन्होंने मानव धर्म की स्थापना का सन्देश दिया। उसे सुनकर समस्त पश्चिमी जगत् प्रभावित हो उठा। उनको विश्व के अन्य स्थानों में भी व्याख्यान के लिए आमन्त्रित किया जाने लगा। गुरु की आज्ञा मानकर वे भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े। इस यात्रा के दौरान उन्होंने दीन-दुखियों की जी-तोड़ सेवा की। रामकृष्ण मठ, मिशन तथा सोसाइटियों की स्थापना कर चिकित्सालय, विद्यालय, पुस्तकालय आदि के माध्यम से मानवमात्र की सेवा में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। ऐसे महान् योगी का प्राणान्त 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की अल्पायु में हो गया। उनका दिव्य संकल्प था-“उठो जागो और अपने लक्ष्य प्राप्ति से पहले मत रुको।”
स्वामी विवेकानन्द का जीवन दर्शन-
स्वामी विवेकानन्द के सम्पूर्ण दर्शन का आधार धर्म रहा है। उन्होंने ईश्वर को असीम तथा सत्-चित् आनन्द कहा है। ईश्वर निराकार और साकार, अर्थात् सर्वेश्वरवादी है। सम्पूर्ण प्रकृति में उसी की व्यापकता है। उनके अनुसार मानव की वास्तविक सत्ता आध्यात्मिक शक्ति है। मनुष्य में ईश्वरीय अंश विद्यमान है। उन्होंने मानव को श्रेष्ठ गुणों से विभूषित होने पर ईश्वर का प्रतिरूप माना। उनका समाजवादी दर्शन वर्गविहीन, जातिविहीन, समाजवादी समाज की स्थापना पर आधारित है। उनके राष्ट्रवादी दर्शन के अनुसार- “प्रत्येक व्यक्ति को अपने राष्ट्र के प्रति भक्ति, समर्पण के साथ-साथ कर्तव्यपालन का भाव रखना चाहिए। वे पराधीनता को मानव का सबसे बड़ा शत्रु मानते थे।” अपने दर्शन में उन्होंने वैज्ञानिक चिन्तन को भी महत्त्व देते हुए विज्ञान को मानव के लिए हितकारी बताया है। गीता के कर्मवादी दर्शन पर उनकी अटूट आस्था थी।
विवेकानन्द के अनुसार- “शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है।” शिक्षा द्वारा सर्वांगीण विकास के साथ-साथ वे नैतिक, चारित्रिक, आध्यात्मिक मूल्यों के विकास पर बल देते थे। आत्मानुभूति, मोक्ष को शिक्षा का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य मानते थे। स्वामी विवेकानन्द ने स्त्रियों को व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ भारतीय गौरव व स्वाभिमान की शिक्षा देने की वकालत की। वे कहते थे- “जिस घर या राष्ट्र की स्त्रियां शिक्षित नहीं, उसकी उन्नति की कल्पना करना भी बेकार है।” उन्होंने जन शिक्षा को भी विशेष महत्त्व दिया।
स्वामी विवेकानंद बहुत बड़े राष्ट्रभक्त एवं सनातन धर्म के सनातनी नेता थे। वे देशी शिक्षा के हिमायती थे। वे देश में ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। यदि आप भारत को जानना चाहते हैं, तो विवेकानंद को पढ़िए। स्वामी विवेकानंद मानव चरित्र बनाने वाली शिक्षा के पक्षधर थे। देश की समस्याओं के लिहाज से विवेकानंद के विचार उनके जाने के एक सदी बाद भी प्रासंगिक बने हुए हैं। आज के दौर में स्वामी विवेकानंद पुनः इस धरा पर अवतरित हों तो उन्हें नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, तब घर के संस्कारों को बाहर दूर तक फैलाना था और आज पहले घर में बस चुके बाहर के कुसंस्कारों को हटाना होगा। स्वामीजी का जीवन अनुकरणीय है। युवाओं को उनके जीवन से सीख लेनी चाहिए। उन्होंने लोगों को समाजसेवा का संदेश दिया है।
स्वामी जी के विचार आज न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि उपादेय भी हैं। भारतवर्ष का स्वर्णिम भविष्य इन्हीं मार्गों से होकर गुजरता है, इसलिए विवेकानंद के पथ का हमें अनुसरण करना पड़ेगा। स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ मानवता के लिए कल्याणकारी हैं। हमें इनको विस्तार से समझना चाहिए।