देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति थे डॉ.जाकिर हुसैन महान शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज़ाकिर हुसैन
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव-साहित्यिक मंडली शंखनाद
भारत को स्वतंत्रता दिलाने एवं स्वतंत्रता उपरांत एक सशक्त भारत की बुनियाद रखने में कई महापुरुषों का योगदान है। इन महापुरुषों में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ज़ाकिर हुसैन अग्रणी पंक्ति में शुमार हैं। उन्होंने ना केवल भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महती भूमिका निभाई बल्कि स्वतंत्र उपरांत भारत के निर्माण में भी बखूबी योगदान दिया।
जाकिर हुसैन का जन्म शिक्षा एवं परिवारिक जीवन
डॉ० जाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद के सभ्रांत परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम नाजनीन बेगम और पिता का नाम फिदा हुसैन खान था, अपने माता-पिता की सात संतानों में से जाकिर हुसैन मेधावी थे।
जाकिर हुसैन के पिता फ़िदा हुसैन खान की मृत्यु तभी हो गयी थी जब वे 10 साल के थे और जब वे 14 साल के हुए तभी 1911 में उनकी माँ की भी मौत हो गयी। जाकिर ने इतावाह की इस्लामिया हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और फिर उन्होंने मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (वर्तमान अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) से आगे की पढाई पूरी की, वहा वे विद्यार्थी सेना के एक प्रसिद्ध लीडर थे। ये प्रतिभावान छात्र के साथ-साथ वे एक कुशल वक्ता भी थे। इसके बाद 1926 में बर्लिन यूनिवर्सिटी से उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। 1915 में 18 साल की उम्र में उन्होंने शाह जहाँ बेगम से निगाह किया और उनकी दो बेटियाँ, सईदा खान और साफिया रहमान भी है। जाकिर हुसैन का जन्म तेलंगना के हैदराबाद में खेश्गी समुदाय के पश्तून परिवार में हुआ, जो धीरे-धीरे बाद में उत्तर प्रदेश के कैमगनी से जुड़ गये, जहाँ वे बड़े हुए।
जाकिर हुसैन द्वारा जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना
असहयोग आंदोलन के दौरान जाकिर हुसैन महात्मा गांधी के साथ हमेशा कदम- से कदम मिलाकर चलते थे। गांधीजी के कहने पर हुसैन ने अंग्रेजी शिक्षा के बहिष्कार के लिए युवाओं को लामबंद करने की शुरुआत ओरियंटल कॉलेज से की। जब इनसे पूछा गया कि बच्चें अंग्रेजों के स्कूलों में नहीं पढेगे तो कहां पढ़ेंगे तब जाकिर हुसैन ने जवाब दिया था। देश के अपने संस्थान होंगे, जिसमें अंग्रेजों का कोई सहयोग नहीं होगा। उन संस्थानों में अपने लोग ही शिक्षा देंगे। इसी घटना से जामिया मिलिया कॉलेज खोलने के विचार ने जन्म लिया और इस निमित्त हुसैन ने डॉ. हकीम अजमल खान, डॉ. अंसारी और मौलाना मोहम्मद अली अन्य जाने माने लोगो से मुलाक़ात की। आखिर कार 29 अक्टूबर, 1920 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया की नींव जाकिर हुसैन के प्रयासों से रखी गई। कॉलेज की स्थापना के बड़ा डॉ जाकिर हुसैन ने दो वर्षों तक अध्यापन का कार्य भी किया। वर्ष 1922 में जब ये जर्मनी में उच्च शिक्षा के लिए उस समय जामिया की आर्थिक हालत बिगड़ गई और इसे बंद करने तक की नौबत आ गई। जर्मनी में रहते हुए हुसैन ने जामिया की स्थिति को सुधारने के प्रयास भी किये परन्तु ज्यादा असरकारक साबित नहीं हुए, जब वे स्वदेश लौटे तो जामिया खस्ता हालात में था। जिस लग्न से उन्होंने यह संस्थान खोला था, उसकी दुदर्शा से गहरा दुःख पंहुचा। आखिर उन्होंने गांधीजी की सलाह पर जामिया का स्थान्तरण करना ही उचित समझा और अलीगढ से दिल्ली ले आए. यहाँ उन्होंने कड़ी मशक्कत की और 29 वर्षः की आयु में ये जामिया के कुलपति बने। और बाद में 1925 में इसे नयी दिल्ली के करोल बाग में स्थानांतरित किया गया और इसके बाद पुनः 1 मार्च 1935 को इसे नयी दिल्ली के जामिया नगर में स्थानांतरित किया गया और इसका नाम भी जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी रखा गया।
जाकिर हुसैन मोहम्मद अली जिन्ना के घोर विरोधी थे
जाकिर हुसैन महात्मा गांधी की राह पर चलते थे। इसी समय में उन्होंने खुद को भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने में व्यस्त किया और भारत में शिक्षा के अधिकारों कि ओर बढ़ाने के लिए वे जगह-जगह कार्यक्रम करने लगे थे। उस समय में हुसैन मुख्य शैक्षणिक विचारको में से एक थे और साथ ही उन्होंने उन्होंने आधुनिक भारत के सपने भी देख रखे थे। इलायांगुदी में उच्च माध्यमिक शिक्षा की सुविधाओ को शुरू करने का श्रेय उन्हें दिया जाता है और इसी वजह से 1970 में वहाँ उन्ही के नाम का एक कॉलेज भी शुरू किया गया। अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेज का नाम भी उन्ही के नाम पर रखा गया है। उन्होंने देश और जामिया मिलिया इस्लामिया की सेवा करने के लिए कई बार अपने सुखो का बलिदान भी दिया। उनके राजनैतिक विचार भी हमेशा महात्मा गाँधी की राह पर चलने वाले ही थे, वे शुरू से ही मोहम्मद अली जिन्ना के विरोधी थे।
भारत की आज़ादी के कुछ समय बाद ही, जाकिर हुसैन उस समय अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर बने, जिस समय में विभाजन के तूफ़ान भारत पर मंडरा रहा था। 1948 से 1956 तक हुसैन ने कई नाजुक मौको पर यूनिवर्सिटी को बड़ी अच्छी तरह से संभाल कर रखा और उनके नेतृत्व में ही इस यूनिवर्सिटी ने देश भर में अपनी पहचान बनाई। वाईस चांसलर के रूप में अपना कार्यकाल ख़त्म करने के कुछ समय बाद ही उनका नामनिर्देशन 1956 में भारतीय संसद के अप्पर हाउस के सदस्य के रूप में किया गया। लेकिन बिहार राज्य का गवर्नर बनने के लिए उन्होंने 1957 में इस पद को छोड़ दिया था। इनके पारिवारिक लोगो में अकादमिक मसूद हुसैन और पाकिस्तान स्टेट टेलीविज़न के भूतपूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर अनवर हुसैन शामिल है। उनके पोते का नाम सलमान खुर्शीद है, जो कांग्रेस पार्टी के राजनेता है और भारत के भूतपूर्व विदेश मंत्री भी थे।
बिहार के लोकप्रिय राज्यपाल और भारत के राष्ट्रपति
जाकिर हुसैन 1957 से 1962 तक बिहार के लोकप्रिय राज्यपाल बने थे और 1962 से 1967 तक भारत का उपराष्ट्रपति रहे थे। 13 मई 1967 को जाकिर हुसैन की नियुक्ती भारत के राष्ट्रपति के रूप में की गयी थी। वे देश के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने थे।
जब जाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति बने तब उन्होंने शपथ लेते समय कहा था। पूरा भारत मेरा घर और सभी नागरिक मेरे परिवार के सदस्य हैं. देश ने कुछ समय के लिए मुझे अपना नेता चुना हैं। मैं अपने घर को अधिक मजबूत और सुंदर बनाने के लिए कोशिश करूंगा। यदि इस कोशिश में मुझे सफलता मिलती हैं तो मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानूंगा। राष्ट्रपति बनने से पहले जाकिर हुसैन उप राष्ट्रपति के पद पर नियुक्त थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती थीं कि उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाए। जबकि, 1967 में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के. कामराज डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दोबारा राष्ट्रपति बनाना चाहते थे और जाकिर हुसैन को लगातार तीसरी बार उपराष्ट्रपति बनाना चाहते थे। हालांकि काफी खींचतान और विवाद के बाद इंदिरा गांधी जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति बनवाने में कामयाब रहीं।
जाकिर हुसैन का निधन
3 मई 1969 को हुसैन की मृत्यु हो गयी, राष्ट्रपति भवन में मरने वाले वे पहले राष्ट्रपति थे। नयी दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया कैंपस में उन्हें उनकी पत्नी के साथ (जिनकी मृत्यु कुछ साल बाद हुई) दफनाया गया था। भारत के तृतीय राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन एक अच्छे राजनेता तथा मानवतावादी विचारधारा के व्यक्ति थे। देश के शैक्षणिक पुनरोत्थान में उनका बहुत बड़ा योगदान था। गांधीवादी विचारधारा के साथ-साथ वे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में भी विश्वास रखते थे। वे एक योग्य शिक्षक, कुशल प्रशासक व महान शिक्षाशास्त्री थे। उन्हें ”खान” की उपाधि से भी विभूषित किया जाता है।
डॉ० जाकिर हुसैन को 1963 में मिला भारत रत्न
वर्ष 1948 के बाद डॉ० हुसैन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहते हुए वहां की शिक्षा को नई ऊंचाइयां भी दीं। शिक्षा में उनकी सेवाओं के लिए 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नावाजा और 1952 से 1957 तक वे शिक्षा में विशेषज्ञता रखने के नाते संसद में नामित भी किए गए। इसके बाद अगले साल उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।
भारत से बेहद लगाव रखने वाले जाकिर हुसैन ने अपना पूरा जीवन शिक्षा के क्षेत्र में अर्पित कर दी। वे देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के बाद भी स्वयं को शिक्षक कहलवाने में गौरवान्वित महसूस करते थे। महान शिक्षाविद, बिहार के राज्यपाल व राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्र के प्रति इनकी सेवा सदैव स्मरणीय व सराहनीय रहेगी।