Tuesday, September 17, 2024
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स्वामी विवेकानंद की 122 वीं पुण्यतिथि पर विशेष

स्वामी विवेकानंद महान समाज सुधारक और वेदांत दर्शन के प्रणेता थे विवेकानंद ने शारीरिक शक्ति, समाज सेवा और बौद्धिक संधान पर बल दिया विवेकानंद ने कहा शक्ति ही जीवन है, कमजोरी ही मृत्यु है विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर कुरीतियों का विरोध किया

राकेश बिहारी शर्मा-भारत और दुनिया के युवाओं को प्रभावित करने वाले महापुरुषों में स्वामी विवेकानंद एक बड़ा नाम है। युग पुरुष स्वामी विवेकानंद जी का जन्म जिस समय हुआ, उस समय भारत की सामाजिकएराजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियां विषमताओं व उथल-पुथल से भरी थी। सन 1857 की क्रांति असफल हो चुकी थी और हिंदू एवं मुसलमान दोनों अंग्रेजों के आगे घुटने टेक चुके थे। अंग्रेजों ने संपूर्ण भारत पर अपना कब्जा जमा लिया था। कोलकाता महानगर के उत्तरी भाग में सिमुलिया नामक मोहल्ले में गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में दत्त परिवार के यहां 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के पुण्य पर्व पर प्रसिद्ध वकील श्री विश्वनाथ दत्त की पत्नी श्रीमती भुवनेश्वरी देवी ने जिस बच्चे को जन्म दिया। वह आगे चलकर विश्व प्रसिद्ध स्वामी विवेकानंद हुआ। इस बच्चे का नाम माता-पिता ने नरेंद्र दत्त रखा। स्वामी विवेकानंद ने 18 वर्ष की आयु में श्री श्री रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर ब्रह्म समाज को छोड़कर उनके शिष्य बन गए थे। स्वामी जी ने उनमें परमात्मा की लगन देखी थी। युग पुरुष वेदांत दर्शन के प्रणेता स्वामी विवेकानंद एक महान समाज सुधारक थे। जिन्होंने अपनी तेजस्वी वाणी से पूरी दुनिया में भारतीय सभ्यता व संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। सन 1891 में अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित किए गए विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने दुनिया के समक्ष भारतीय सभ्यता व संस्कृति को लेकर अपने विचार प्रकट किए। स्वामी विवेकानंद ने इस सभा में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए अपने भाषण की शुरुआत “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों जैसे संबोधन के साथ की। जैसे ही स्वामी जी ने यह वाक्य बोला, पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा और उनके शब्द वहां उपस्थित हर व्यक्ति के दिल को झंकृत कर गया। दरअसल, पश्चिम में परिवार और कुंटुंब जैसा परिवेश नहीं है।

स्वामीजी ने युवाओं से निर्भय बनने की अपील की

स्वामी विवेकानंद जी वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अधिकतर युवा सफल और अर्थपूर्ण जीवन तो जीना चाहते हैं, लेकिन अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वे शारीरिक रूप से तैयार नहीं होते। इसलिए स्वामीजी ने युवाओं से अपील की कि वे निर्भय बनें और अपने आपको शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाएं। वे कहते थे कि किसी भी तरीके का भय न करो। निर्भय बनो। सारी शक्ति तुम्हारे अंदर ही है। कभी भी यह मत सोचो कि तुम कमजोर हो। उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए। वह हमेशा मानसिक रूप से सशक्त होने के साथ-साथ शारीरिक रूप से मजबूत होने की बात भी कहते थे। गीता पाठ के साथ-साथ फुटबॉल खेलने को भी वह उतना ही महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने साफ कहा कि शक्ति ही जीवन है, कमजोरी ही मृत्यु है और कोई भी व्यक्ति तब तक भौतिक जीवन का सुख नहीं ले सकता, यदि वह ताकतवर नहीं है।

युवा अधिक से अधिक संख्या में सामाजिक गतिविधियों में शामिल हों

स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि युवा अधिक से अधिक संख्या में सामाजिक गतिविधियों में शामिल हों, जिससे न केवल समाज बेहतर बनेगा, बल्कि इससे व्यक्तिगत विकास भी होगा। उन्होंने सामाजिक सेवा के साथ आध्यात्मिकता को भी जोड़ा और मनुष्य में मौजूद ईश्वर की सेवा करने की बात कही। उनके अनुसार समाज सेवा से चित्तशुद्धि भी होती है। उन्होंने समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों की सेवा करके एक नए समाज के निर्माण की बात कही। युवाओं से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि बाकी हर चीज की व्यवस्था हो जाएगी, लेकिन सशक्त, मेहनती, आस्थावान युवा खड़े करना बहुत जरूरी है। ऐसे 100 युवा दुनिया में एक नई क्रांति कर सकते हैं।

शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो आम जनता की मदद करे

स्वामी विवेकानंद ने युवाओं में शारीरिक शक्ति और समाज सेवा का भाव होने के साथ-साथ बौद्धिक संधान पर भी बल दिया ताकि युवा दोनों प्रकार की दुनिया को भलीभांति समझ सके। उन्होंने सभी के लिए शिक्षा की बात करते हुए कहा, शिक्षा कोई जानकारियों का बंडल नहीं जो दिमाग में रख दिया जाए और जिंदगी भर परेशान करते रहे। हमें तो ऐसे विचारों को संजोना है जो समाज निर्माण, व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण करे। उन्होंने एक राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था की बात कही जिसमें भौतिक और आध्यात्मिक शिक्षा देश के लोगों के हाथों में हो और राष्ट्रीय चिंतन के आधार पर हो। उन्होंने भारत के पुनर्निर्माण में शिक्षा के महत्व पर बल देते हुए कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो आम जनता की मदद करे और वह जीवन में संकटों से निपटने में मददगार बने, चरित्र निर्माण करे, परोपकार का भाव जगाए और सिंह की भांति साहस प्रदान करे।

युवाओं को अपने जीवन में आध्यात्मिकता का भाव अवश्य रखना चाहिए

स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी सभ्यता की सराहना तो की, परंतु भारतीय दर्शन और अध्यात्म के प्रेम में वे वशीभूत थे। उन्होंने भारतीय युवाओं से कहा कि पश्चिमी सभ्यता में बहुत कुछ सीखने को है, परंतु भारत की आध्यात्मिक थाती का कोई सानी नहीं है। इसलिए युवाओं को अपने जीवन में आध्यात्मिकता का भाव अवश्य रखना चाहिए। कहा कि पश्चिम का विचारवान युवा, भारतीय आध्यात्म में एक नई उमंग प्राप्त कर रहा है और जिस आध्यात्मिक भूख व प्यास की तलाश में वे हैं, वो उन्हें यहां मिल रही है।

जीवन बहुत छोटा है, लेकिन आत्मा अजर-अमर

विवेकानंद ने युवाओं को आध्यात्मिक संधान पर जाने की बात कही, जिससे न केवल उन्हें अपना लक्ष्य पाने में आसानी होगी, बल्कि वे जीवन में महानतम लक्ष्य बना सकें। उन्होंने साफ कहा कि जीवन बहुत छोटा है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है, इसलिए अपने जीवन को एक बड़े लक्ष्य की प्राप्ति में लगा दो। एक बार जीवन की कठिनाइयों पर भाषण करते हुए उन्होंने कहा कि त्याग और सेवा के आदर्शो को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना चाहिए, जिससे ये युवाओं के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन सकें।

चार क्षेत्रों में युवाओं से संधान करने के लिए कहा

स्वामी विवेकानंद ने चार क्षेत्रों में युवाओं से संधान करने के लिए कहा। इसके माध्यम से वे व्यक्ति और राष्ट्र की सामूहिक चेतना को जगाना चाहते थे। उन्होंने इस भारत के सभ्यतागत मूल्यों पर पूरी आस्था बनाए रखी और युवाओं से राष्ट्र पुनर्निर्माण की अपील की। उनके सपनों का भारत एक ऐसी भूमि और समाज था, जहां मानव मात्र का सम्मान और स्वतंत्रता होने के साथ-साथ प्रेम, सेवा और शक्ति का भाव भी हो।

समाज के सबसे कमजोर तबके की सेवा करते रहे

स्वामी विवेकानंद एक कर्मयोगी थे। उन्होंने सिर्फ शिक्षा और उपदेश नहीं दिए, बल्कि उन्हें अपने जीवन में सबसे पहले उतारा। योगी होने के साथ-साथ उन्होंने समाज के सबसे कमजोर तबके को अपना भगवान माना और उनकी सेवा करते रहे। अपनी आध्यात्मिक चेतना के साथ-साथ अपनी सामाजिक चेतना को भी जाग्रत रखा और समाज का काम करते रहे। स्वामी विवेकानंद अपने विचारों, आदर्शो और लक्ष्यों की वजह से आज भी बहुत प्रासंगिक हैं। उन्होंने युवाओं को शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक संधान के माध्यम से इन्हें प्राप्त करने का तरीका बताया। आज का युवा इनमें से किसी एक भी मार्ग पर चलकर शांति, समृद्धि और आनंद की प्राप्ति कर सकता है। मात्र 39 साल की अल्पायु में 4 जुलाई 1902 को दुनिया से विदा होने वाले युवा सन्यासी आज भी हमारी प्रेरणा हैं। उनके जन्मदिवस 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इतनी कम आयु में स्वामी जी विदेशों में देश का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया। उन्होंने श्री रामकृष्ण मिशन की स्थापना और समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध प्रमुखता से किया। विवेकानंद का मानना था कि एक युवा का जीवन सफल होने के साथ-साथ सार्थक भी होना चाहिए, जिससे उसके मस्तिष्क, हृदय और आत्मा का संपोषण भी होता रहे। सार्थक जीवन के विषय में उनके विचारों को चार बिंदुओं में समझा जा सकता है- शारीरिक, सामाजिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक संधान।
हमें आज आवश्यकता है स्वामी जी के आदर्शो पर चलने हेतु दृढ़ प्रतिज्ञ होने, उनके शिक्षा, विचार संदेश तथा दर्शन को साकार रूप में अपना लेने की। स्वामी जी के जीवन शैली को आत्मसात करके जन-जन में एकता प्रेम,और दया की नंदियाॅ बहाकर नए युग की शुरूआत करने की। उनकी शिक्षाओं का अनुशरण कर समाज में भाईचारा कायम करने के लिए आगे आना चाहिए। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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