राकेश बिहारी शर्मा-स्वतंत्रता की लड़ाई में बिहार का बहुत बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है। बिहार की धरती ने ऐसे-ऐसे महान शौर्य और पराक्रमी पुत्रों को जन्म दिया है, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में इस धरती को अपने लहू से सींचा है। देश की स्वतंत्रता के लिए हुए सभी आंदोलनों में बिहार की अहम भूमिका रही है। बिहार हमेशा से शौर्यपुरुषों की धरती रही है जिसने देश के लिए अपना सब कुछ दिया है। आजादी की लड़ाई में बिहार के नालंदा के लोगों की अहम भूमिका रही है। यहां के कई क्रांतिकारी व स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है। 1947 में पटना में हुए ब्रिटिश-विरोधी आन्दोलन में बोलने वाले वे अंतिम वक्ता थे। जब वे बोलने लगे तो पुलिस ने गोली चलानी शुरू कर दी जिसमें सात नवयुवक मारे गए थे। इसी स्थान पर पटना का शहीद स्मार्क बनाया गया है।
स्वतंत्रता सेनानी श्याम नारायण सिंह का जन्म, पारिवारिक जीवन
भूतपूर्व सदस्य, विहार विधान सभा प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी श्याम नारायण सिंह का जन्म 25 जनवरी 1901 ई० को ग्राम- बिन्द, डाकघर- विन्द, तत्कालीन थाना- अस्थावां, जिला- पटना- वर्तमान नालन्दा में हुआ था। इनके पितामह स्व० भिखारी सिंह, पिता स्व० राय प्रसाद सिंह एवं माताजी चमेली कुंअर था। ये कुर्मी कुल में उत्पन्न जमींदार थे, फिर भी ये बचपन से ही राष्ट्रीय विचार के पोषक थे। इसी कारण से कभी-कभी पिताजी के कार्यों का विरोध भी करते थे। जमींदारी के बाद इनका मुख्य पेशा कृषि ही रहा था। इनके पुत्र व्यापार तथा सरकारी सेवा में गये।
स्वतंत्रता सेनानी श्याम नारायण सिंह का शिक्षा-दीक्षा एवं शादी
श्याम नारायण सिंह की प्राथमिक शिक्षा पटना एंग्लो उच्च विद्यालय से 1917 ई० में मैट्रीकुलेशन के बाद पटना कॉलेज में आई० ए० में दाखिल हुए थे। दूसरे वर्ष में पढ़ रहे थे। बाद में स्वाध्याय से हिन्दी, संस्कृत एवं फारसी का गहन अध्ययन किये थे।
श्याम नारायण बाबू का विवाह श्रीमती विद्या देवी के साथ सम्पन्न हुआ था। उनसे दो पुत्र कुंज बिहारी प्रसाद सिंह अध्यापक उच्च विद्यालय विन्द तथा साकेत विहारी सिंह अभियन्ता एच० ई० सी० रांची में कार्य किये थे। दो पुत्रियाँ विवाहित होने के बाद अपने -अपने घर में रहती है। उनकी धर्मपत्नी का स्वर्गवास 1966 ई० में तथा श्री सिंह का स्वर्गवास 20 जून 1967 ई० को पटना अस्पताल में हुआ था।
महात्मा गाँधी के आन्दोलन में सहयोग
1921-22 ई० में छात्र जीवन छोड़कर इन्होंने महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। गिरफ्तारी के बाद सज़ायाफ़्ता होने पर अपनी पूरी सजा गया सेन्ट्रल जेल में काटे थे।
1930 एवं 1932 ई० में नमक कानून भगं, विदेशी वस्त्रों की होली वहिष्कार, गाँजा भांग शराब की दूकानों पर पिकेटिंग तथा रचनात्मक कार्य चर्खा चलाने तथा खादी का प्रचार करने के कारण गिरफ्तार और हुए जेल में 6 महिना की सजा काटे थे।
श्याम नारायण सिंह अगस्त क्रांति 1942 ई० में शामिल –
श्याम नारायण श्री जी श्री जगत नारायण लाल नेता पटना तथा श्री लाल सिंह त्यागी के साथ पटना सचिवालय पर गोली कांड के बाद फतेहपुर से नाव पर ग्रामीण क्षेत्र में आन्दोलन के प्रचार में निकलें। इनके साथ फतेहपुर के नाविक के साथ आचार्य जगदीश तथा सूर्य कुमार शास्त्रीजी हो गये थे। राजेन्द्र साहित्य महाविद्यालय सेवदह के प्रधानाध्याक श्री मथुरा प्रसाद सिंह को गुप्तचर से कल्याण विगहा में गोपनीय बैठक की सूचना मिली थी। अतः प्रधानजी के साथ मुनीश्वर प्रसाद सिंह जी लोगोंको को आंदोलित करने के लिए कल्याण विगहा गये थे। वहां से बैठक समाप्त कर वे लोग पुनः नाव से सफर में निकल गये। विरजू मिलकी गांव के उत्तर टाल में नाव को बख्तियारपुर के दारोगा मो. अनबर उट्टी ने चौकीदार दफादार एवं सिपाहियों से नाव को घेर कर तीनों नेताओं को नाव सहित गिरफ्तार कर बख्तियारपुर ले गये। नाव पर से कूद कर आचार्य जगदीश तथा सूर्य कुमार शास्त्री तैरते हुए राजेन्द्र साहित्य महाविद्यालय सेवदह 8 बजे रात्रि में पहुँचे थे। सेवदह से गांव-गांव लोगों को आन्दोलन से जोड़ते हुए सरमेरा के केनार, गौसनगर, गोपालबाद के गरभू महतो, गेनौरी ठाकुर, रामस्वरूप शर्मा से मिलतेजुलते तथा सरमेरा क्षेत्र के कई क्रांतिकारी जैसे- बच्चन सिंह, नवलकिशोर सिंह, श्रीमती विद्यावती देवी, राम भजु सिंह, राम गति सिंह, दिनेशर प्र. सिंह, राम नगीना शर्मा, कमलेश्वरी प्र. सिंह, श्याम बिहारी सिंह, बाबुलाल कहार, लक्ष्मण महतो, सीता देवी, द्वारिका महतो, कमलेश्वरी देवी, वासुदेव सिंह अध्यापक जी, बजरंगी साव, दानी प्र. सिंह, कपिलदेव सिंह, सोना देवी, वेरादर सिंह, तनिक प्र. सिंह, सूर्य नारायण तिवारी को गोलबंद किया था और अंग्रेज सिपाहीयों से लुकते-छिपते महात्मा गाँधी के हाथ को मजबूत कर आन्दोलन को धारदार बनाते थे। दिन भर क्षेत्र में घूमते थे और रात को लोग अपने घर या जहाँ पर सुरक्षित जगह मिलता वहां पर रुक जाते थे। श्याम नारायण सिंह तथा कई नेताओं को पटना कोर्ट से 2-2 वर्ष की सजा सुनाकर हजारीबाग केन्द्रीय कारा के०जी० श्रेणी में रखा था। पूरी सजा भुगतने के बाद ही कारा से रिहा होने पर अपने-अपने घर वापस आये थे।
बिहार विधान सभा के सदस्य व पटना जिला बोर्ड के उपाध्यक्ष बने थे
श्याम नारायण सिंह जी जहाँ स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अंग्रेज़ों के दांत खट्टे किये थे वहीँ बतौर विधायक भी 15 वर्ष (1937-52) तक उन्होंने अपने क्षेत्र की जनता की सेवा की।
देश सबसे युवा विधायक जो स्वतंत्रता आंदोलन में जेल गए थे
सर्व प्रथम कांग्रेस के नियमानुसार श्याम नारायण सिंह जी बिहार विधान सभा की सदस्यता के लिए कांग्रेस टिकट पर 1937 ई० में विहार शरीक क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में खड़े किये गये थे। इनका जबर्दस्त मुकावला पटना के मशहूर वकील गुरु सहाय लाल जी से हुआ था। ये ग्राम- वादी थाना गिरियक (पटना) के निवासी थे। चुनाव में श्याम नारायण सिंह जी भारी बहुमत से विजयी घोषित हुए थे।
तथा 1939 ई० में काँग्रेस टिकट पर पटना जिला बोर्ड का सर्व सम्मति से श्री श्याम नारायण सिंह उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचित किये गये थे। ये जिला बोर्ड का कार्य भलिभांति सम्पादन किये थे। ये पटना जिला काँग्रेस कमिटी के अध्यक्ष 5 वर्ष तक रहे थे। 1940-41 ई० में विश्व युद्ध छिड़ने पर व्यक्तिगत सत्याग्रह विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार ने सैनिकों सहित अपार धन से मदद की घोषणा की थी। इसके विरुद्ध माहात्मा गाँधी जी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह छेड़कर एलान किया था। कि “यह लड़ाई साम्राज्यशाही, न देगें एक भाई, न देंगे एक भी पाई”। इसी प्रपंग में अखिल भारतीय काँग्रेस कमिटी के नियमानुसार श्याम नारायण सिंह ने विहार विधान सभा को सदस्यता तथा पटना जिला वोर्ड के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर व्यक्तिगत सत्याग्रह में योगदान करने पर गिरफ्तार के बाद हजारीबाग केन्द्रीय कारा में भेजे गये थे। 1946 के दंगे में 6000 मुस्लिम परिवारों की जान बचाने के लिए “सांप्रदायिक सौहार्य के मसीहा” कहलाए थे। श्याम नारायण बाबू ऐतिहासिक व्यक्तित्व के स्वामी थे, भारतीय इतिहास के स्वर्णिम इतिहास हैं। पटना सचिवालय के 7 शहीद स्मारक के तिरंगा फहराने वालों में मुख्य वक्ता रहे थे।
1946 के निर्वाचन में विजयी घोषित –
1946 ई० में पुनः काँग्रेस टिकट पर श्याम नारायण सिंह बिहार शरीफ क्षेत्र से बिहार विधान सभा की सदस्यता के लिए निर्वाचन में खड़े हुए थे। श्याम नारायण जी भारी बहुमत से विजयी घोषित किये गये। श्री वोधनारायन प्रसाद उम्मीदवार के द्वारा चुनाव याचिका दायर करने पर यह चुनाव अदालत से अवैध घोषित हो गया था पुनः चुनाव होने पर श्री श्याम नारायण बाबू भारी बहुमत से विजयी घोषित किये गये।
1962 ई० के आम चुनाव में श्याम नारायण सिंह –
1962 ई० में अस्थावां विधान सभा क्षेत्र से पुनः श्याम नारायण बाबू कांग्रेस के टिकट पर उम्मीदवार बनाये गये थे, इनके विरुद्ध कुमार शैलेन्द्र जी अमावां समाजवादी दल के उम्मीदवार विजयी घोषित किये गये थे। यद्यपि श्याम नारायण बाबू की शिक्षा आई० ए० तक हुई थी। किन्तु स्वध्याय से इनको संस्कृत, हिन्दी एवं फारसी का गहन अध्ययन था।
वे अव्वल दर्ज़े के प्रखर वक्ता थे। डॉ० श्री कृष्ण सिंह जी हमेशा उनके विशुद्ध हिन्दी भाषण की प्रशंशा करते नहीं अघाते थे। वे उनके घर बिन्द भी जाया करते थे। इस प्रकार श्याम नारायण बाबू का कार्य क्षेत्र जिला-राज्य ही नहीं अपितु समूचे भारत वर्ष में राष्ट्रीयता एवं हिन्दी भाषा साहित्य की उन्नति के लिए अग्रसर रहे।
श्याम नारायण बाबू का निधन
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के प्रणेता, महान स्वतंत्रता सेनानी, पूर्व विधायक, समाजसेवी, शिक्षाविद एवं सांप्रदायिक सौहार्द के मसीहा श्याम नारायण सिंह का निधन 20 जून 1967 ई० को पटना के पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पीएमसीएच) में हुआ था। ये समाज में हर वर्ग के विकास के लिए कार्य किया है इसी को आज के युवाओं को जानने की जरूरत है।
पूरे नालंदा जिले में जिस प्रकार से उन्होंने शिक्षा की बयार बहाई वह अद्भूत है। जिसके कारण ही आज नालंदा जिला शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी जिला है। श्याम नारायण सिंह एकता के प्रतीक थे।
श्याम नारायण सिंह जी स्वतंत्रता सेनानी व नेता होने के साथ-साथ एक नेक दिल इंसान और समाज सेवी भी थे, जो हर वक़्त अपने क्षेत्र की जनता की सहायता के लिए हमेशा खड़े रहते थे। उनके द्वारा क्षेत्र के कल्याण के लिए किये गए कार्यों को जनता आज भी नहीं भूली है और आज भी जनता उन्हें प्यार और सम्मान देती है और हमेशा देती रहेगी, वो अपने क्षेय्र के कण-कण में रचे बसे हैं। 24 जनवरी, 2012 को भारत सरकार द्वारा श्याम नारायण सिंह जी के सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया।
वर्तमान समय में श्याम नारायण बाबू जी के पुण्य स्मृति में श्री श्याम नारायण सिंह महाविद्यालय, बिन्द में संचालित है। श्याम बाबू ने जो कार्य कर दिए हैं वह मील का पत्थर है।