Friday, September 20, 2024
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बलिदान दिवस पर विशेष : गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए कटवा दिया था अपना शीशधर्म के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले महान सिख गुरु तेग बहादुर

प्रस्तुति :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, सचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद भारतीय इतिहास में ऐसे कई जांबाज हुए हैं, जिनके त्याग और बलिदान के लिए देश हमेशा ऋणी रहेगा। इन्हीं में से एक नाम है गुरु तेग बहादुर जी का। गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के नौवें गुरु थे। आततायी औरंगजेब के आगे हार न मानते हुए इन्होंने सिख और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए 24 नवंबर 1675 को अपना सिर कलम करवा दिया। भारत के लोग इन्हें श्रद्धा और गर्व के साथ याद करते हैं। इतिहास में धर्म, सिद्धांत और मानवता की रक्षा के लिए निस्वार्थ बलिदान के कारण उनकी पुण्यतिथि को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है। ‘हिंद दी चादर’ श्री गुरु तेग बहादुर का जन्म वैसाख कृष्ण पंचमी (1 अप्रैल 1621) को पंजाब के अमृतसर मुगल सल्तनत में हुआ वह सिक्खों के छठे गुरु गुरु हरगोविंद की 6 संतानों में से एक थे, उनका असली नाम ‘त्याग मल’ था और उनकी माता का नाम नानकी था। श्री गुरू तेग बहादुर का विवाह 3 फरवरी 1633 को ‘माता गुजरी’ के साथ हुआ। जिनसे उन्हें एक पुत्र श्री गुरु गोविंद राय (सिंह जी) की प्राप्ति हुई जो बाद में सिक्खों के 10 वें गुरु बने। गुरू तेग बहादुर द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ “करतारपुर की जंग” में मुगल सेना के खिलाफ अतुलनीय पराक्रम दिखाने के बाद उन्हें तेग बहादुर (तलवार के धनी) नाम मिला। सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु के बाद 16 अप्रैल 1664 को श्री गुरु तेगबहादुर सिखों को नौवें गुरु बने। अपनी शहादत से पहले गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई 1975 को गुरु गोविंद सिंह जी को सिखों का दसवां गुरु नियुक्त कर दिया था। जब बात देश और धर्म की रक्षा की आई तो गुरु तेग बहादुर अपना सर्वस्व बलिदान करने से भी पीछे नहीं हटे। सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर ऐसे ही साहसी योद्धा थे, जिन्होंने न सिर्फ सिख धर्म का परचम ऊंचा किया बल्कि भारतीय परंपरा की रक्षा के लिए कम लोग और सीमित संसाधन होने के बाद भी मुगल बादशाह औरंगजेब के आगे घुटने नहीं टेके। उन्होंने औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया और तरह-तरह के जुल्मों का पूरी दृढ़ता से सामना किया। गुरु तेग बहादुर की मुगल बादशाह औरंगजेब से सांघातिक विरोध की शुरुआत कश्मीरी पंडितों को लेकर हुई। कश्मीरी पंडित मुगलों द्वारा जबरदस्ती धर्मपरिवर्तन (हिन्दू से मुस्लिम बनाए जाने) के जुल्म सह रहे थे। सैकड़ों कश्मीरी पंडितों का जत्था पंडित कृपा राम के साथ आनंदपुर साहिब पहुँचा और गुरु तेग बहादुर से अपनी रक्षा की गुहार लगाई। गुरु तेग बहादुर जी ने कहा कि धर्म की रक्षा के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को बलिदान देना होगा जिसके बलिदान से लोगों की आत्मा जाग जाएं, क्योंकि तभी गुलामी और भय से ग्रस्त ये लोग जाग सकेंगे और अपनी कायरता और डर को भुलाकर अपने धर्म की रक्षा के लिए हँसते-हँसते मौत को गले लगा सकेंगे। औरंगजेब के हिन्दूओं पर किए जा रहे अत्याचारों और अपने पिता की बात सुन गुरु जी के नौ वर्षीय पुत्र (गुरु गोविंदसिंह) ने कहा कि उनकी नज़र में इस काम के लिए आपसे बेहतर कोई और नहीं हो सकता। गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों पर धर्म परिवर्तन के लिए हो रहे औरंगजेब के जुल्मों और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देने का निर्णय लिया। और औरंगजेब तक यह संदेशा पहुंचाने हो कहा कि यदि गुरु तेगबहादुर जी इस्लाम कबूल लेंगे तो वे सब भी इस्लाम स्वीकार लेंगे। जुलाई 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने तीन अन्य शिष्यों के साथ अपने हत्यारे के पास स्वंय चलकर पहुंचे। इतिहासकारों की माने तो गुरु तेग बहादुर को औरंगजेब की फौज ने गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद उन्हें करीब तीन-चार महीने तक कैद कर रखा गया और बाद में पिंजड़े में बंद कर 04 नवंबर 1675 को मुगल सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया। औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर से इस्लाम स्वीकार करने को कहा, तो गुरु साहब ने जवाब दिया : सीस कटा सकते है केश नहीं। उन्हें डराने के लिए उनके साथ गिरफ्तार किए गए भाई मति दास के शरीर को आरे से जिन्दा चीर दिया गया, भाई दयाल दास को खौलते हुए पानी में उबाल दिया गया और भाई सति दास को कपास में लपेटकर जिंदा जलवा दिया गया। इसके बावजूद उन्होंने जब इस्लाम स्वीकार नहीं किया तो आठ दिनों तक यातनाएं देने के बाद मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर भीड़ के सामने गुरु तेग बहादुर जी का सर कटवा दिया था। माना जाता है कि गुरु तेग बहादुर साहिब ने बल पूर्वक कश्मीरी हिंदुओं को मुसलमान बनाने का कड़ा विरोध किया था। जब औरंगजेब ने गुरु साहिब के सामने जीवित रहने के लिए इस्लाम स्वीकार करने की शर्त रखी तो उन्होंने कहा- हम अपना शीश कटवा सकते हैं केश नहीं। इस बात का जिक्र गुरु गोबिंद सिंह द्वारा किया गया है। दिल्ली स्थित शीश गंज साहिब गुरु द्वारा, गुरु तेग बहादुर साहिब के बलिदान की गाथा गाता है। मान्यता है कि जिस जगह पर औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया था, उसी जगह शीश गंज गुरुद्वारे का निर्माण उनके अनुयाइयों ने कराया। कहा जाता है कि गुरु रकाब गंज साहिब गुरु द्वारा वह स्थान है, जहां गुरु तेग बहादुरजी का अंतिम संस्कार किया गया। गुरु गुरुतेग बहादुर जी ने हिंद धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए, इसलिए उन्हें ‘हिंद की चादर’ (भारत की ढाल) कहा जाता है। गुरु तेग बहादुर जी ने न केवल धर्म की रक्षा में प्राणों का बलिदान दिया बल्कि अपने जीवनकाल में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने तथा समाज सेवा के लिए लगातार कार्य किए। गुरुतेग बहादुर जैसे महापुरुष का जीवनवृत्त हमारे अंदर राष्ट्र प्रेम और देशभक्ति की भावना को जागृत करता है। हमें उनके जीवन से प्रेरित होकर देश सेवा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों का उत्सर्ग करने वालों में गुरु तेग़ बहादुर का स्थान अद्वितीय है।

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