Sunday, December 22, 2024
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रामनवमी पर विशेष – शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

राकेश बिहारी शर्मा – श्रीराम का शील, शक्ति और सौन्दर्य से भरा हुआ चरित्र भारतवासियों के लिए हमेशा एक आदर्श एवं श्रद्धा का स्त्रोत बना हुआ है। राम एवं कृष्ण ये दोनों ही ईश्वर होते हुए भी संसार के परित्राण हेतु इस धरती पर अवतरित हुए थे। अमानुषिक कार्य के नाश के लिए, मानवीय धर्म की स्थापना के लिए मानव अवतार में इन्होंने अपनी लीला से सभी को न केवल विमोहित, चमत्कृत किया, वरन अपने आदर्शों के कारण वे युगों-युगों तक श्रद्धा के पात्र बने रहेंगे। राम का अवतरण समस्त जगत् के लिए ही हुआ था। वे सनातनी के आदर्श हैं। रामायण के अनुसार यही तिथि भगवान् राम का जन्मदिन होता है। श्री रामचंद्रजी का जन्म दोपहर बारह बजे माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को रामजन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। राम जी के जन्म पर्व के कारण ही इस तिथि को रामनवमी कहा जाता है। राम नवमी का त्यौहार हर साल मार्च और अप्रैल महीने में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है राम नवमी का इतिहास क्या है? राम नवमी का त्यौहार पिछले कई हजारो सालो से मनाया जा रहा है। राम नवमी का त्यौहार भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियाँ थी लेकिन बहुत समय तक कोई भी राजा दशरथ को संतान का सुख नहीं दे पायी थी। जिससे राजा दशरथ बहुत परेशान रहते थे। रामनवमी पर विशेष - शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ को ऋषि वशिष्ठ ने श्रृंगि ऋषि द्वारा पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने का सलाह दिया गया जिसके बाद राजा दशरथ ने इनसे पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया। यज्ञ समाप्ति के बाद महर्षि ने दशरथ की तीनों पत्नियों को एक-एक कटोरी खीर खाने को दी। खीर खाने के कुछ महीने बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गयी। ठीक 9 महीने बाद राजा दसरथ की सबसे बड़ी रानी कोशल्या ने राम को जो भगवान विष्णु के 7 अवतार थे। कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने जुड़वाँ बच्चे लक्ष्मण और शत्रुधन को जन्म दिया। श्रीराम का जन्म धरती पर दुष्ट प्राणियों को खत्म करने के लिए हुआ था। अगर आप श्रीराम के जीवन पर गौर करें, तो पाएंगे कि वह मुसीबतों का एक अंतहीन सिलसिला था। सबसे पहले उन्हें अपने जीवन में उस राजपाट को छोड़ना पड़ा, जिस पर उस समय की परम्पराओं के मुताबिक उनका अधिकार था। साथ ही, उन्हें चौदह साल वनवास भी झेलना पड़ा। जंगल में उनकी पत्नी का अपहरण कर लिया गया। पत्नी को छुड़ाने के लिए उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध एक भयानक युद्ध में उतरना पड़ा। उसके बाद जब वह पत्नी को ले कर अपने राज्य में वापस लौटे, तो उन्हें आलोचना सुनने को मिली। इस पर उन्हें अपनी पत्नी को जंगल में ले जाकर छोड़ना पड़ा, जो उनके जुड़वां बच्चों की मां बनने वाली थी। फिर उन्हें जाने-अनजाने अपने ही बच्चों के खिलाफ जंग लड़नी पड़ी। और अंत में उन्हें हमेशा के लिए अपनी पत्नी से वियोग का दुख झेलना पड़ा। राम का पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग राम की पूजा करते हैं, उन्हें एक आदर्श मानते हैं। भारतीय जनमानस में राम का महत्त्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं, बल्कि उनका महत्त्व इसलिए है, क्योंकि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही सहजता से किया। रामनवमी पर विशेष - शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम इसलिए कहते हैं, क्योंकि अपने सबसे मुश्किल क्षणों में भी उन्होंने खुद को बेहद गरिमापूर्ण बनाए रखा। उस दौरान वे एक बार भी न तो विचलित हुए, न क्रोधित हुए, न उन्होंने किसी को कोसा, न ही घबराए और न ही उत्तेजित हुए। हर स्थिति को उन्होंने बहुत ही संतुलित और मर्यादित तरीके से संभाला। इसलिए जो लोग गरिमापूर्ण जीवन जीना चाहते हैं, और मुक्ति के मार्ग पर चलना चाहते हैं, उन्हें राम की शरण लेनी चाहिए। राम में यह देख पाने की क्षमता थी कि जीवन में बाहरी हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं। यहां तक कि अपने जीवन में तमाम इंतजाम करने के बावजूद बाहरी हालात विरोधी हो सकते हैं। जैसे घर में सब कुछ ठीक-ठाक हो, पर अगर तूफान आ जाए, तो वह आपसे आपका सब कुछ छीन कर ले जा सकता है। अगर आप सोचते हैं कि ‘मेरे साथ ये सब नहीं होगा’ तो यह मूर्खता है। जीने का विवेकपूर्ण तरीका तो यही होगा कि आप सोचें, ‘अगर मेरे साथ ऐसा होता है, तो मैं इससे विवेक से ही निपटूंगा, मैं संतुलन नहीं खोऊंगा।’ लोगों ने राम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि उन्होंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले अनेक लोगों के बीच जीवन में किसी त्रासदी की कामना करने का रिवाज अकसर देखा गया है। वे चाहते हैं कि उनके जीवन में कोई ऐसी दुर्घटना हो, ताकि मृत्यु आने से पहले वे अपनी सहने की क्षमताको तौल सकें। जीवन में अभी सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है और आपको पता चले कि जिसे आप हकीकत मान रहे हैं, वो आपके हाथों से छूट रहा है, तो आपका अपने ऊपर से नियंत्रण हटने लगता है। इसलिए लोग त्रासदी की कामना करते हैं। दरअसल, राम की पूजा इसलिए नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं, रामनवमी पर विशेष - शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

मकान बन जाए, प्रमोशन हो जाए, सौदे में लाभ मिल जाए, बल्कि राम की पूजा हम उनसे यह प्रेरणा लेने के लिए करते हैं कि मुश्किल क्षणों का सामना कैसे धैर्यपूर्वक, बिना विचलित हुए, सहजता से किया जाए। राम की भक्ति में सवाल यह नहीं है कि आपके पास कितना है, आपने क्या किया, आपके साथ क्या हुआ और क्या नहीं। असली चीज यह है कि जो भी हुआ, उसके साथ आपने खुद को कैसे संचालित किया। राम ने अपने जीवन की परिस्थितियों को सहेजने की काफी कोशिश की, लेकिन वे हमेशा ऐसा कर नहीं सके। उन्होंने कठिन परिस्थतियों में ही अपना जीवन बिताया, जिसमें चीजें लगातार उनके नियंत्रण से बाहर निकलती रहीं, लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्त्वपूर्ण यह था कि उन्होंने हमेशा खुद को संयमित और मर्यादित रखा। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का भी यही सार है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भारत के सनातन जीवन मूल्यों के सर्वोत्तम प्रतीक हैं। राष्ट्र व राष्ट्रीयता उनके व्यक्तित्व के कण-कण से प्रतिबिम्बित होती है। यदि ईमानदारी से उनके चारित्रिक गुणों का विश्लेषण किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि श्रीराम न केवल इस देश की बहुसंख्यक आबादी के इष्ट और आराध्य हैं, बल्कि सही मायने में इस देश के संस्कृति पुरुष हैं। उनकी जीवनगाथा मानव जीवन की सर्वोत्कृष्ट आचार संहिता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति आस्था रखने वाले लोगों की संख्या इतने युग बीत जाने के बाद भी कम नहीं हुई है और न ही उनकी मान्यता में कोई कमी आई है। यदि इसके कारणों पर विचार करें तो यह पता चलता है कि श्रीराम का जीवन कुछ इस तरह भारत के जन-जन के हृदय पटल पर अंकित हो गया है कि उसे काल की कोई अवधि मिटा नहीं सकती। इसलिए देश के लोग श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहते हैं। अर्थात वह मनुष्य, जो मर्यादा बना सकता है, भगवान राम उसकी अंतिम सीमा थे। वह पुरुष भी उत्तम थे और उनकी मर्यादाएं भी उत्तम थीं। उन्होंने मानव मात्र के लिए मर्यादा पालन का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह संसार के इतिहास में कहीं और नहीं मिल सकता। भगवान श्रीराम जन-जन के नायक हैं। उन्होंने पापियों के भय से त्रस्त जन समूह को एकत्रित कर ही बुराई का अंत किया और राम राज्य स्थापित किया। श्रीराम सर्वहारा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। रामनवमी पर विशेष - शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

केवट से लेकर शबरी, जामवंत, सुग्रीव, ऋषि-मुनि सभी के बीच रहे। सबके बीच रहकर मानव मूल्यों का निर्माण किया। जनमानस में कोई भेदभाव नहीं किया। सर्वप्रथम राज्य की प्रजा का ध्यान रखा। श्रीराम के लोकनायक चरित्र ने जाति, और संप्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया। यही वजह है कि केवल भारत में ही नहीं, वे पूरी दुनिया में आदर्श पुरुष के रूप में पूजनीय हैं। थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल, बर्मा आदि कई देशों में भी श्रीराम आदर्श राजा के रूप में पूजे जाते हैं। श्रीराम मानवीय आत्मा की विजय के प्रतीक महापुरुष हैं, जिन्होंने धर्म एवं सत्य की स्थापना करने के लिए अधर्म एवं अत्याचार को ललकारा और अंधेरों पर उजालों, असत्य पर सत्य, बुराई पर अच्छाई के प्रतीक बने। भारतीय मनीषा राम तत्त्व आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए कहती है कि राम का अर्थ है स्वयं के अंतस का प्रकाश; स्वयं के भीतर की ज्योति। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के अनुसार, ‘राम’ शब्द का एक पर्यायवाची है ‘रवि’। इस रवि शब्द में ‘र’ का अर्थ है- प्रकाश और ‘वि’ का अर्थ है विशेष। इसका अर्थ है हमारे भीतर का शाश्वत प्रकाश। हमारे हृदय का प्रकाश राम हैं। इस प्रकार हमारी आत्मा का प्रकाश राम हैं। भगवान श्रीराम के जन्मदिन का पावन पर्व रामनवमी के हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने का उद्देश्य है, हमारे भीतर ‘ज्ञान के प्रकाश का उदय’ । यदि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को भगवान श्रीराम की सकारात्मकता, सद्गुण और आध्यात्मिकता से भर दें तो विश्व का कोई भी झंझावात हमें हिला नहीं पाएगा।

रामनवमी पर विशेष - शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

श्री राम भारत के लिए पूजनीय हैं – श्रीराम के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप की स्थापना जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है। वे आदर्श शिष्य, आदर्श पुत्र, आदर्श भ्राता, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श सेनाध्यक्ष और आदर्श राजा थे। गौतम पत्नी अहिल्या, शबरी, निषाद राज गुह, गृप्रराज जटायु, वानरराज सुग्रीव, ऋक्षराज, कपीश हनुमान् और अंगद अपने निजी जीवन में अपावन होकर भी उनकी इसी अमर धर्मनीति की दुहाई फेरने के लिए ही धार्मिक इतिहास में पन्नों में अमिट रूप से जुड़ गए हैं। अजामिल या गणिका की कल्पना भी उनकी इसी धर्मनीति की पृष्ठभूमि पर आधारित है। रावण जैसे निन्दित शत्रु के सगे भाई का भी परम हितैषी, बाली जैसे अपकर्मी के सगे पुत्र का भी शुभचिन्तक, परशुराम जैसे घोर अपमान करने वाले का भी प्रशंसक तथा कैकेयी जैसी कुमाता का भी पूजक थे। वह परम शक्ति, शील, सौन्दर्य और करुणानिधि शासक श्रीराम भारत के लिए पूजनीय हैं।

रामनवमी पर विशेष - शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था

श्रीराम के जीवन का अलौकिक रूप–एक पत्नी व्रत का आजीवन पालन, गुरुओं का आदेश पालन, धर्म रक्षार्थ पत्नी का त्याग, राज्य और सम्पत्ति के लिए विवाद नहीं, बल्कि भाई के लिए राज्य तक छोड़ने को तैयार, उच्च कुल के चरित्रवान् लोग, पतित स्त्रियों के उद्धार में अपना गौरव समझना, राजपुत्रों का गुहों, भीलों और वनचरों के साथ मैत्री स्थापन, राजन्य होने पर भी अभिमान की ऐंठन से ऊपर उठकर शूद्रादि का आलिंगन, ब्रह्मचर्य का पुनीत तेज, सत्य और धर्म की सेवा स्वीकार करना, प्रजा वर्ग में धर्म और परोपकार के प्रति श्रद्धा उत्पन करना, उच्चवंश में उत्पन राजकुमार होकर भी जीवन के सुख-ऐश्वर्य को ठोकर मारकर सुख-शांति का सच्चा संदेश देने निकल पड़ना, उस राम की अलौकिक रूप को शतशत प्रणाम करते है। देखा जाए तो, श्रीराम का पूरा जीवन ही सीख के बराबर है। यह केवल एक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि किस तरह से अच्छे गुण होने पर हम अच्छे व्यक्ति अच्छे इंसान बनते हैं और अपनी जिंदगी में सफल होते हैं। हमारे सामने चाहे कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो हमें उनका डटकर सामना करना चाहिए और उनका हल निकालना चाहिए। यह त्यौहार हमें खुशियां और मंगल कामना देता है।

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