पृथ्वी दिवस पर विशेष: पर्यावरण प्रदूषण मनुष्य ही ज़िम्मेदार
● प्रदूषण से जीव−जंतुओं व वनस्पति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा
लेखक :- राकेश बिहारी शर्मा हमारी भारतीय संस्कृति में पृथ्वी अर्थात धरती को माता का दर्जा दिया गया है। ऐसे में हम सभी भारतीयों के लिए पृथ्वी दिवस का महत्व और भी बढ़ जाता है। ब्रह्मांड में कई ग्रह हैं लेकिन जीवन की संभावना सिर्फ हमारी धरती पर ही संभव है। प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी विश्वभर में 22 अप्रैल को पर्यावरण चेतना जाग्रत करने के लिये पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा है। लेकिन अब हमे ऐसा लगता है कि यह महज औपचारिकता से ज़्यादा कुछ नहीं है। पृथ्वी के पर्यावरण के बारे में लोगों को जागरूक और प्रेरित करने के लिये पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जो परिदृश्य आज हमारे सामने है, ऐसा लगातार बना रहा तो एक दिन ऐसा आएगा जब पृथ्वी से जीव−जंतुओं व वनस्पति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
पृथ्वी दिवस मनाये जाने के कारण एवं आयोजन
विश्व पृथ्वी दिवस (डब्ल्यूईडी) पिछले 53 वर्षों के लिए पिछले लक्ष्यों पर विभिन्न नीति निर्माताओं, कार्यकर्ताओं और विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों की उपलब्धियों का सम्मान करते हुए हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला एक वैश्विक कार्यक्रम है। पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जाति के साथ इसके संबंधों की रक्षा के लिए कई जागरूकता अभियान और गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। पृथ्वी एक बहुत व्यापक शब्द है जिसमें जल, हरियाली, वन्य-प्राणी, प्रदूषण और इससे जुड़े अन्य कारक शामिल हैं। पृथ्वी को बचाने का आशय है इसकी रक्षा के लिये पहल करना।
विश्व पृथ्वी दिवस मनाने का इतिहास
लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से पूरे विश्व में पहला पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल, 1970 को मनाया गया था, जोकि एक युवा कार्यकर्ता डेनिस हेस के साथ, विस्कॉन्सिन के एक सीनेटर, गेलॉर्ड नेल्सन द्वारा किया गया था। जब उन्होंने 1969 में तेल रिसाव की घटना के नुकसान को देखा और पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए जागरूकता दिवस की आवश्यकता महसूस की, तो उन्हें इस कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया गया।
पृथ्वी पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव
वर्तमान समय में पृथ्वी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती जनसंख्या है। पृथ्वी की कुल आबादी आज साढ़े सात अरब से अधिक हो चुकी है। यह प्रकृति का सिद्धांत है की आबादी का विस्फोट उपलब्ध संसाधनों पर नकारात्मक दबाव डालता है, जिससे पृथ्वी की नैसर्गिकता प्रभावित होती है। बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पृथ्वी के दोहन (शोषण) की सीमा आज चरम पर पहुँच चुकी है। जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम-से-कम करना दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेज़ी से वृद्धि के साथ−साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या विकराल होती जा रही है।
प्रदूषण से पर्यावरण की सर्वाधिक क्षति
वर्तमान युग में पर्यावरण को सर्वाधिक क्षति पहुँची है। आज दुनिया अपनी निर्धारित सीमाओं के भीतर रहने की क्षमता तेज़ी से खोती जा रही है। स्वास्थ्य से जुड़े स्थानीय संकट की खबरें भी अब लगातार सामने आती रहती हैं। ऐसा पर्यावरण के हमारे कुप्रबंधन और जलवायु परिवर्तन के असर के वैश्विक अस्तित्ववादी संकट के कारण हो रहा है।
हम सभी हालात बदलना चाहते हैं। पर्यावरण की साफ-सफाई और संरक्षण में योगदान देना चाहते हैं। हम जिस हवा में साँस लेते हैं वह इतनी दूषित हो चुकी है कि प्रतिवर्ष लाखों लोग इसकी वज़ह से काल के गाल में समा जाते हैं। हमारी नदियाँ कूड़े-कचरे और गंदे पानी से खत्म हो रही हैं। हमारे वनों पर भी खतरा मंडरा रहा है। हम जानते हैं कि अपना पर्यावरण बचाने के लिये काफी कुछ करना होगा, अन्यथा पृथ्वी का अस्तित्व ही दाँव पर लगा रहेगा। हम सभी इन बेहद महत्त्वपूर्ण बदलावों का हिस्सा बनना चाहते हैं।
पृथ्वी दिवस मनाने का उद्देश्य
पर्यावरण ही पृथ्वी पर जीवन का कारण है। वर्तमान समय में पर्यावरण का संतुलन तेजी से बिगड़ रहा है। औद्योगिक क्रांति के बाद से पृथ्वी पर प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है, जिससे पर्यावरण संरक्षण का यह कार्य और भी आवश्यक हो गया है। हमें पृथ्वी की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए सभी को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना जरूरी है। अपने स्तर पर पर्यावरण को सुरक्षित रखने की दिशा में आवश्यक कदम उठाना प्रत्येक पृथ्वीवासी का कर्तव्य है। पृथ्वी दिवस मनाने का एकमात्र उद्देश्य पर्यावरण का संरक्षण करना है। पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हम अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगा सकते हैं, बाइक, कार या अन्य वाहनों के कम से कम उपयोग पर जोर दे सकते हैं।
पर्यावरण प्रदूषण मनुष्य ही ज़िम्मेदार है
पृथ्वी हमारे अस्तित्व का आधार है, जीवन का केंद्र है। यह आज जिस स्थिति में पहुँच गई है, उसे वहाँ पहुँचाने के लिये मनुष्य ही ज़िम्मेदार हैं। आज सबसे बड़ी समस्या मानव का बढ़ता उपभोग है, लेकिन पृथ्वी केवल उपभोग की वस्तु नहीं है। वह मानव जीवन के साथ-साथ असंख्य वनस्पतियों-जीव-जंतुओं की आश्रयस्थली भी है। हम इन सब के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं, लेकिन सवाल यह है कि किया क्या जा सकता है? क्या कुछ ऐसा है जो हम मनुष्य, स्कूल, कॉलेज, कॉलोनी एवं समाज के तौर पर सामूहिक रूप से कर सकते हैं? हम कैसे अपना योगदान दे सकते हैं?
इसमें मुश्किल कुछ भी नहीं और हम सभी बड़ी आसानी से ऐसा कर सकते हैं। महात्मा गांधी का एक प्रसिद्ध कथन है… “हम दुनिया में जो भी बदलाव लाना चाहते हैं, उसे पहले हमें खुद पर लागू करना चाहिये।” हमें आज यही करने की ज़रूरत है। हम मनुष्यों की जीवनशैली ने पर्यावरण को लगभग बर्बाद कर दिया है। हमारी गतिविधियों और उन्हें कार्यरूप देने के तरीकों का अंतर बेहद महत्त्वपूर्ण होता है। इसीलिये बदलाव की दिशा में सबसे पहला कदम यह होना चाहिये कि हम अपने कार्यों के प्रति सचेत और जागरूक हों। हमें बदलावों को आत्मसात करना होगा।
संपूर्ण विश्व की चेतना है मनुष्य
पृथ्वी दिवस के अवसर पर हम सभी को पृथ्वी के प्रहरी बनकर उसे बचाने और आवश्यकतानुरूप उपभोग का संकल्प लेना होगा, तभी हम उसकी लंबी आयु की कामना कर सकते हैं। मनुष्य इस सम्पूर्ण विश्व का चेतना है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद हमारी पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी स्पष्ट नहीं है। मनुष्य ने न केवल जलवायु चक्रों को बदल दिया है, बल्कि संपूर्ण विश्व के जीवित स्वरूप को नष्ट कर इसकी जैविक लय को अवरुद्ध कर दिया है। संपूर्ण विश्व में और किसी अन्य जीव के पास मनुष्य जैसे विशेषाधिकार नहीं हैं तथा सिर्फ मनुष्य ही पृथ्वी को जीवंत रखने में सबसे प्रभावी योगदान कर सकते हैं।
वर्ष 2023 की थीम ‘प्रजातियों को संरक्षित करें’
हमने डायनासोर, बड़े दांत वाले हाथी, गिद्ध जैसी कई प्रजातियों के बारे में किताबों में ही पढ़ा है, उन्हें कभी देखा नहीं। इस बात को लेकर विशेषज्ञ चिंतित हैं कि प्रकृति में हो रहे बदलाव के चलते मनुष्य की आने वाली पीढ़ियाँ तेज़ी से विलुप्ति के कगार पर खड़ी कई प्रजातियों के बारे में किताबों में पढ़कर न जाने। इसी को ध्यान में रखते हुए इस बार विश्व पृथ्वी दिवस की थीम “प्रजातियों को संरक्षित करें” रखी गई। आज दुनियाभर में हज़ारों किस्म के पक्षी, स्तनधारी और कीट-पतंगे या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर विलुप्त होने की कगार पर हैं।
पृथ्वी पर कीट-पतंगे संकट में हैं
वैज्ञानिकों का मानना है कि छठा विलोपन या एन्थ्रोपोसीन विलोपन (Sixth Extinction or Anthropocene Extinction) से प्रजातियों के लुप्त होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, मधुमक्खियाँ, चींटियाँ, गुबरैले (बीटल), मकड़ी, जुगनू जैसे कीट जो हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं, अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेज़ी से विलुप्त हो रहे हैं। इस रिपोर्ट में पिछले 13 वर्षों में विश्व के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित 73 शोधों की समीक्षा की गई है। इसमें शोधकर्त्ताओं ने पाया कि सभी जगहों पर इनकी संख्या में कमी आने के कारण अगले कुछ दशकों में 40 प्रतिशत कीट विलुप्त हो जाएंगे। कीटों की संख्या हर साल ढाई प्रतिशत की दर से कम हो रही है। कीट-पतंगों का कम होना पारिस्थितिकी तंत्र के लिये घातक है, क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य श्रृंखला के संतुलन के लिये कीट-पतंगों का होना बहुत ज़रूरी है।
जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और बढ़ते कंक्रीट के जंगल
जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई, बढ़ते कंक्रीट के जंगल, शहरीकरण, अवैध शिकार और खेती-बाड़ी में कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल, समुद्र में व्याप्त प्लास्टिक प्रदूषण इन प्रजातियों के लुप्त होने के लिये ज़िम्मेदार हैं। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने विलुप्त होने की कगार पर खड़े जीव-जंतुओं की जो सूची जारी की है, उसके अनुसार, 26,500 से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जिनमें 40% उभयचर, 34% शंकुधारी, 33% कोरल रीफ, 25% स्तनधारी और 14% पक्षी हैं।
आज विश्व में हर जगह प्रकृति का दोहन जारी है तथा इसके दोहन और प्रदूषण की वज़ह से विश्व स्तर पर लोगों की चिंता सामने आना शुरू हुई है। आज जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के लिये सबसे बड़ा संकट का कारण बन गया है। यदि पृथ्वी के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लग जाएगा तो इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इस विश्व पृथ्वी दिवस पर संकल्प लेना चाहिये कि हम पृथ्वी और उसके वातावरण को बचाने का प्रयास करेंगे।