Monday, December 23, 2024
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डॉ. भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष: वंचित और शोषित तबकों की भलाई के पक्षधर थे अंबेडकर

प्रस्तुति :-  राकेश बिहारी शर्मा – विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के ‘संविधान’ रचयिता, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर जी के पूण्यतिथि 6 दिसम्बर को ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। परिनिर्वाण ’शब्द का बौद्ध परंपराओं में गहरा अर्थ है और यह उस व्यक्ति को संदर्भित करता है जिसने अपने जीवनकाल में और मृत्यु के बाद निर्वाण प्राप्त किया है। 6 दिसम्बर को समाज और उनकी उपलब्धियों के लिए उनके अथाह योगदान की स्मृति में मनाया जाता है। 20 वीं शताब्दी के श्रेष्ठ चिन्तक, ओजस्वी लेखक, तथा यशस्वी वक्ता एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माणकर्ता हैं। विधि विशेषज्ञ, अथक परिश्रमी एवं उत्कृष्ट कौशल के धनी व उदारवादी, व्यक्ति के रूप में डॉ. अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। बाबा साहब एक अछूत और मजदूर का जीवन जी कर देख चुके थे, वे कुली का भी काम किए तथा कुलियों के साथ रहे भी थे। उन्होंने भारतीय गांव को वर्णव्यवस्था का प्रयोगशाला कहा था। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का मूल नाम भीमराव था। उनके पिताश्री रामजी वल्द मालोजी सकपाल महू में ही मेजर सूबेदार के पद पर एक सैनिक अधिकारी थे। अपनी सेवा के अंतिम वर्ष उन्होंने और उनकी धर्मपत्नी भीमाबाई ने काली पलटन स्थित जन्मस्थली स्मारक की जगह पर विद्यमान एक बैरेक में गुजारे। सन् 1891 में 14 अप्रैल के दिन जब रामजी सूबेदार अपनी ड्यूटी पर थे, 12 बजे यहीं भीमराव का जन्म महू स्थित ब्रिटिश छावनी में हुआ। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। कबीर पंथी पिता और धर्मर्मपरायण माता की गोद में बालक का आरंभिक काल अनुशासित रहा। अंबेडकर जैसे-जैसे बड़े होते गए उनके मन में समाज में व्याप्त जात-पात और इसके नाम पर शोषण के खिलाफ धारणा बनती गई। भेदभाव का अनुभव उन्होंने स्कूल से लेकर नौकरी तक में किया। बाबा साहेब अंबेडकर को 15 अगस्त, 1947 को देश की आजादी के बाद देश के पहले संविधान के निर्माण के लिए 29 अगस्त, 1947 को संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। फिर 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन के बाद संविधान बनकर तैयार हुआ। 26 नवंबर, 1949 को इसे अपनाया गया और 26 जनवरी, 1950 को लागू कर दिया गया। दरअसल, अंबेडकर की गिनती दुनिया के सबसे मेधावी व्यक्तियों में होती थी।डॉ. भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष: वंचित और शोषित तबकों की भलाई के पक्षधर थे अंबेडकर

वे नौ भाषाओं के जानकार थे। इन्हें देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों से पीएचडी की कई मानद उपाधियां मिली थीं। इनके पास कुल 32 डिग्रियां थीं। यही वजह है कि कानूनविद् अंबेडकर को प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत का पहला कानून मंत्री बनाया था। डॉ. अंबेडकर ने समाज में व्याप्त बुराइयों के लिए सबसे ज्यादा अशिक्षा को जिम्मेदार माना। इन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया। बाबा साहेब ने सिर्फ अछूतों के अधिकार के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण के लिए प्रयासरत रहे। उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया। पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था। इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ। बालक भीमराव का प्राथमिक शिक्षा दापोली और सतारा में हुआ। मुम्बई के एलफिन्स्टोन स्कूल से वह 1907 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इस अवसर पर एक अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया था और उसमें भेंट स्वरुप उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने स्वलिखित पुस्तक ‘बुद्ध चरित्र’ उन्हें प्रदान की थी। बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड की फेलोशिप पाकर भीमराव ने 1912 में मुम्बई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी लेकर उत्तीर्ण हुये। अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय बी.ए. के बाद एम.ए. के अध्ययन हेतु बड़ौदा नरेश सयाजी गायकवाड़ की पुनः फेलोशिप पाकर वह अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिल हुये। सन 1915 में उन्होंने स्नातकोत्तर उपाधि की परीक्षा पास की। इस हेतु उन्होंने अपना शोध ‘प्राचीन भारत का वाणिज्य’ लिखा था। उसके बाद 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय अमेरिका से ही उन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की, उनके पीएच.डी. शोध का विषय था ‘ब्रिटिश भारत में प्रातीय वित्त का विकेन्द्रीकरण’। लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस फेलोशिप समाप्त होने पर उन्हें भारत लौटना था अतः वे ब्रिटेन होते हुये लौट रहे थे। उन्होंने वहां लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एण्ड पोलिटिकल सांइस में एम.एससी. और डी. एस सी. और विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि हेतु स्वयं को पंजीकृत किया और भारत लौटे। सब से पहले छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार बडौदा नरेश के दरबार मंक सैनिक अधिकारी तथा वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया। पूरे शहर में उनको किराये पर रखने को कोई तैयार नही होने की गंभीर समस्या से वह कुछ समय के बाद ही मुंबई वापस आये।डॉ. भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष: वंचित और शोषित तबकों की भलाई के पक्षधर थे अंबेडकर

दलित प्रतिनिधित्व वहां परेल में डबक चाल और श्रमिक कॉलोनी में रहकर अपनी अधूरी पढाई को पूरी करने हेतु पार्ट टाईम अध्यापकी और वकालत कर अपनी धर्मपत्नी रमाबाई के साथ जीवन निर्वाह किया। सन 1919 में डॉ. अम्बेडकर ने राजनीतिक सुधार हेतु गठित साउथबरो आयोग के समक्ष राजनीति में दलित प्रतिनिधित्व के पक्ष में साक्ष्य दी। अशिक्षित और निर्धन लोगों को जागरुक बनाने के लिया काम उन्होंषने मूक और अशिक्षित और निर्धन लोगों को जागरुक बनाने के लिये मूकनायक और बहिष्कृत भारत साप्ताहिक पत्रिकायें संपादित कीं और अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिये वह लंदन और जर्मनी जाकर वहां से एम. एस सी., डी. एस सी., और बैरिस्टर की उपाधियाँ प्राप्त की। उनके एम. एस सी. का शोध विषय साम्राज्यीय वित्त के प्राप्तीय विकेन्द्रीकरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन और उनके डी.एससी उपाधि का विषय रूपये की समस्या उसका उद्भव और उपाय और भारतीय चलन और बैकिंग का इतिहास था। डी. लिट्. की मानद उपाधियों से सम्मानित बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एल.एलडी और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट्. की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था। इस प्रकार डॉ. अंबेडकर वैश्विक युवाओं के लिये प्रेरणा बन गये क्योंकि उनके नाम के साथ बीए, एमए, एमएससी, पीएचडी, बैरिस्टर, डीएससी, डी.लिट्. आदि कई उपाधियां जुडी है। योगदान: भारत रत्न डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया, उनमें से मुख्य निम्न्लिखित हैं :- सामाजिक एवं धार्मिक योगदान: मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन, महाड सत्याग्रह, नासिक सत्याग्रह जैसे कई आंदोलन चलाये। बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया। कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों तथा शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज के जरिये अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम बनाया। सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्सक एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की। बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्था पित कर अपने अंतिम ग्रंथ ”द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा” के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया। जात-पात तोडक मंडल लाहौर, के अधिवेशन के लिये तैयार अपने अभिभाषण को जातिभेद निर्मूलन नामक उनके ग्रंथ ने भारतीय समाज को धर्मग्रंथों में व्याप्त मिथ्या, अंधविश्वास एवं अंधश्रद्धा से मुक्ति दिलाने का कार्य किया। हिन्दू विधेयक संहिता के जरिए महिलाओं को तलाक, संपत्ति में उत्तराधिकार आदि का प्रावधान कर उसके कार्यान्वयन के लिए वह जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया था। इस समारोह में उन्हों ने श्रीलंका के महान बौद्ध भिक्षु महत्थवीर चंद्रमणी से पारंपरिक तरीके से त्रिरत्न और पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म को अपना लिया। अंबेडकर ने 1956 में अपनी आखिरी किताब बौद्ध धर्म पर लिखी जिसका नाम था ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्म’। यह किताब उनकी मृत्यु् के बाद 1957 में प्रकाशित हुई। डॉ. अंबेडकर जी डायबिटीज रोग से पीड़ित थे। वे अपनी आखिरी किताब ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्मु’ को पूरा करने के तीन दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में अंतिम सांस ली थी। उनका अंतिम संस्कार मुंबई में बौद्ध रीति-रिवाज के साथ हुआ। उनके अंतिम संस्कार के समय उन्हें साक्षी मानकर करीब 10 लाख समर्थकों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी। एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी, अंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू और गांधी के साथ मोर्चे का नेतृत्व किया था और समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अंबेडकर ने दलित बौद्ध अभियान को आगे बढ़ाया और उनके समान मानव अधिकारों और बेहतरी के लिए अथक प्रयास किया। बाबा साहेब ने जीवन भर तिरस्कार सहने के बाद जब संविधान लिखा तो समाज के सभी वर्ग के लोगों का ध्यान रखने का काम किया। उन्होंने स्वयं विषपान कर समाज के लोगों को अमृतपान कराने का काम किया। संविधान की रचना करने के दौरान उन्होंने अपनी कुंठित भावना को उजागर नहीं होने दिया। इसी का परिणाम है कि जब हिन्दुस्तान में सर्वे कराया गया तो महात्मा गांधी के पश्चात उन्हें दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था।

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