राकेश बिहारी शर्मा:- भाषा किसी देश की सभ्यता, संस्कृति और साहित्य की पहचान होती है। हिंदी भारत के बहुसंख्यक लोगों की भाषा है, हिन्दी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से जुड़ी हुई है। राष्ट्रीय एकता का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हिन्दी है। भारत के संविधान ने देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी को 1950 के अनुच्छेद 343 के तहत देश की आधिकारिक भाषा के रूप में 1950 में अपनाया। इसके साथ ही भारत सरकार के स्तर पर अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाएं औपचारिक रूप से इस्तेमाल हुईं। 1949 में भारत की संविधान सभा ने देश की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया। वर्ष 1949 से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।हिंदी मात्र एक भाषा ही नहीं है बल्कि हिंदी भारत की पहचान भी है। ये सच है कि हिंदी भाषा अभी भी अन्य दूसरी भाषाओं से बहुत पीछे है लेकिन इसके बावजूद हिंदी भाषा ने पूरी दुनिया में हिंदुस्तान को एक अलग पहचान दिलाई है। आज विदेशी नागरिक भी हिंदी सीखना, पढ़ना, लिखना और बोलना पसंद करते हैं। भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर के लोगों में भी हिंदी के प्रति एक नई रुचि जागृत हुई है।
14 सितंबर को पूरा भारत राष्ट्रीय हिंदी दिवस मना रहा है। इसी दिन देश के संविधान ने देवनागरी लिपि यानी हिंदी को तरजीह देते हुए आधिकारिक राजभाषा का दर्जा देकर उसका उत्थान किया। हिंदी को एक सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए यह एक क्रांतिकारी कदम था, फिर भी देश में अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ता गया। 15 अगस्त, 1947 के दिन जब देश गुलामी की जंजीरों से आजाद हुआ, तब इस देश में कई भाषाएं बोलीं जाती थीं। इनमें हिंदी सबसे प्रमुख और ज्यादा बोली जाने वाली भाषा थी।
आज के दौर में विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी एक है और अपनेआप में एक समर्थ भाषा है। इंटरनेट सर्च से लेकर विभिन्न सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर हिंदी का दबदबा बढ़ा है। 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय अपनी मातृभाषा के रूप में हिंदी का उपयोग करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक का उपयोग करते हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमाऊंनी, मगधी और मारवाड़ी भाषाएं शामिल हैं।
1949 में मिला था हिंदी को राजभाषा का दर्जा
जब संविधान बनने की प्रक्रिया शुरू हुई तो भारत की भाषा के सवाल पर लंबी चर्चाओं और विमर्श का दौर चला। किसी भी देश की आधिकारिक भाषा वह हो सकती है, जो राष्ट्र को जोड़ने का काम करे। उस समय अधिकांश रियासतों में हिंदी बोली और पढ़ी-लिखी जाती थी। उस दौरान हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की मांग लगातार उठ रही थी। ऐसे में 14 सितंबर 1949 को हिंदी को हमारी राजभाषा का दर्जा दिया गया था। भारतकोश के अनुसार, हिंदी को राजभाषा बनाने को लेकर संसद में 12 सितंबर से 14 सितंबर तक यानी तीन दिन बहस हुई।
पंडित नेहरू ने दिए थे ये तर्क
13 सितंबर, 1949 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद में चर्चा के दौरान तीन प्रमुख बातें कही थीं। किसी विदेशी भाषा से कोई राष्ट्र महान नहीं हो सकता। कोई भी विदेशी भाषा आम लोगों की भाषा नहीं हो सकती। भारत के हित में, भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाने के हित में, ऐसा राष्ट्र बनाने के हित में, जो अपनी आत्मा को पहचाने, जिसमें आत्मविश्वास हो, जो संसार के साथ सहयोग कर सके, हमें हिंदी को अपनाना चाहिए।
देवनागरी लिपि की बहस 278 पृष्ठों में छपी थी
भारतकोश पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, संविधान सभा की भाषा विषयक बहस लगभग 278 पृष्ठों में मुद्रित हुई। इसमें डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और गोपाल स्वामी अयंगर की अहम भूमिका रही। आखिरकार, अधिकतर सदस्यों ने देवनागरी लिपि को ही स्वीकार किया। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में इस प्रकार वर्णित है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतरराष्ट्रीय रूप होगा। वहीं, अंग्रेजी भाषा को आधिकारिक तौर पर 15 वर्ष बाद यानी 1965 तक प्रचलन से बाहर करना था।
संविधान में 14 भाषाओं के संग स्वीकारी गई हिंदी
26 जनवरी, 1950 को जब हमारा संविधान लागू हुआ, तब देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी सहित 14 भाषाओं को आधिकारिक भाषाओं के रूप में आठवीं सूची में रखा गया। संविधान के अनुसार, 26 जनवरी 1965 को अंग्रेजी की जगह हिंदी को पूरी तरह से देश की राजभाषा बनाना था। उसके बाद विभिन्न राज्यों और केंद्र को आपस में हिंदी में ही संवाद करना था। इसे आसान बनाने के लिए संविधान ने 1955 और 1960 में राजभाषा आयोगों के गठन का भी आह्वान किया। इन आयोगों को हिंदी के विकास पर रिपोर्ट देनी थी और इन रिपोर्टों के आधार पर संसद की संयुक्त समिति द्वारा राष्ट्रपति को इस संबंध में कुछ सिफारिशें करनी थीं।
फिर शुरू हुआ बवाल और 1963 में हो गया बदलाव
इस बीच दक्षिण भारत के राज्यों में रहने वाले लोगों को डर था कि हिंदी के आने से वे उत्तर भारतीयों की तुलना में विभिन्न क्षेत्रों में कमजोर स्थिति में होंगे। हिंदी विरोधी आंदोलन के बीच वर्ष 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित किया गया, जिसने 1965 के बाद अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में प्रचलन से बाहर करने का फैसला पलट दिया। हालांकि, हिंदी का विरोध करने वाले इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू या उनके बाद इस कानून में मौजूद कुछ अस्पष्टताएं फिर से उनके खिलाफ जा सकती हैं।
हिंसात्मक आंदोलन के कारण 1967 में पुन: लौटी अंग्रेजी
26 जनवरी, 1965 के दिन हिंदी देश की आधिकारिक राजभाषा बन गई। इसके बाद दक्षिण भारत के राज्यों, विशेष रूप से तमिलनाडु (तब मद्रास) में आंदोलन और हिंसा का जबरदस्त दौर चला। कई छात्रों ने आत्मदाह तक किया। इसके बाद तत्कालीन लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहीं इंदिरा गांधी के प्रयासों से इस समस्या का समाधान निकाला गया, जिसके परिणामस्वरूप 1967 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन किया गया। इस संशोधन में तय हुआ कि गैर-हिंदी भाषी राज्य जब तक चाहे, तब तक अंग्रेजी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में आवश्यक माना जाए। इस संशोधन के माध्यम से आज तक यह व्यवस्था जारी है।
भारत में अब अंग्रेजी हावी हो गई, हिंदी 14 सितंबर तक सीमित
तब से हिंदी कागजी तौर पर तो राजभाषा बनी रही, लेकिन अंग्रेजी भाषा फली-फूली और समृद्ध होती गई। धीरे-धीरे देश की सरकारी मशीनरी ने हिंदी पर अंग्रेजी को तरजीह देते हुए उसी का चोला ओढ़ लिया। इसके बाद सरकारी व्यवस्था पर अंग्रेजी भाषा की पकड़ आधिकारिक तौर पर और मजबूत होती गई। 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को जब राजभाषा का दर्जा दिया गया और इससे संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान संविधान के भाग-17 में किए गए। इस ऐतिहासिक महत्व के कारण राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा 1953 से प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को ‘हिंदी दिवस’ का आयोजन किया जाता है। इस दिन हिंदी के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए आयोजन किए जाते हैं।