Monday, December 23, 2024
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क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 57 वीं पुण्यतिथि पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा – भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं महान कर्मयोगी क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी सिपाही थे। क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का जन्म बर्धमान (बंगाल) से 22 किलोमीटर दूर औरी नामक एक गांव में 18 नवम्बर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। बटुकेश्वर का जन्म भले ही बंगाल में हुआ, मगर उनका अपना मकान पटना में ही है। उनके पिता कानपुर रेलवे में काम करते थे, तो उनकी पढ़ाई लिखाई कानपुर में हुई। इसी लिए इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। वर्ष 1924 में कानपुर में ही इनकी भगत सिंह से भेंट हुई। इसके बाद इन्होंने “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में उन्होंने बम बनाना भी सीखा। बटुकेश्वर जी 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही रबैये का पुजोर विरोध किया। इस घटना के बाद दत्त जी और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। उसी समय “साइमन कमीशन” के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था। इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए। यह हमारी विडंबना है कि हम आजादी के मतवालों में सिर्फ उन्हें याद रखते हैं, जो या तो शहीद हो गया या आजादी के बात किसी कुरसी पर बैठ गया। यह वजह है कि इस देश में फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह और अंगरेजों की गोली का शिकार होने वाले चंद्रशेखर आजाद की जयंतियां व पूण्यतिथियां तो मनाई जाती है। मगर भगत सिंह के साथ एसेंबली में बम फोड़ने, इंकलाब-जिंदाबाद कहते हुए गिरफ्तारी देने वाले बटुकेश्वर दत्त की जंयती या पुण्यतिथि हमारी याददास्त से फिसल जाती है। देश की आजादी के लिए तमाम पीड़ा झेलने वाले क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त का जीवन स्वतंत्र भारत में भी दंश, पीड़ाओं, और संघर्षों की गाथा बना रहा और उन्हें वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे। बटुकेश्वर दत्त महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी सक्रीय भूमिकाओं में रहे थे। इसलिए दत्त को दोबारा गिरफ्तार किया गया। चार साल बाद 1945 में वे रिहा हुए। 1947 में जब देश आजाद हुआ उस वक्त वो पटना में रह रहे थे। पटना से उनका गहरा नाता इस वजह से था, क्योंकि उनके बड़े भाई विश्वेश्वर दत्त यहां सेंट्रेल बैंक ऑफ इंडिया में काम करते थे और जक्कनपुर के इलाके में उनका अपना मकान था। उन्होंने कहा- बटुकेश्वंर दत्त अपने परममित्र भगत सिंह के साथ फांसी न होने से काफी निराश हुए थे। वह भारत माँ के लिए शहीद होना चाहते थे। उन्होंने भगत सिंह तक यह बात पहुंचाई। तब भगत सिंह ने उनको पत्र लिखा कि “वे दुनिया को ये दिखाएं कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर जेलों की अंधेरी कोठरियों में हर तरह का अत्याचार भी सह सकते हैं।” भगत सिंह की माँ विद्यावती का भी बटुकेश्वर पर बहुत प्रभाव था, जो भगत सिंह के जाने के बाद उन्हें बेटा मानती थीं। बटुकेश्वपर लगातार उनसे मिलते रहते थे। आजादी की खातिर लगातार 15 साल तक जेल की सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में रोजगार भी मिला तो एक सिगरेट कंपनी में एजेंट का, जिससे वह पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश हो गये। कुछ दिनों के बाद उन्होंने अपना बिस्कुट और डबलरोटी का एक छोटा सा कारखाना खोला, लेकिन उसमें काफी घाटा हो गया और जल्द ही बंद हो गया। कुछ समय तक टूरिस्ट एजेंट एवं बस परिवहन का काम भी किया, परंतु इमानदारी के कारण एक के बाद एक कामों में असफलता ही उनके हाथ लगी। श्रीशर्मा ने कहा- आजादी के बाद बटुकेश्वर ने माह नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से विवाह किया और वे पटना में ही रहने लगे। उनकी पत्नी अंजली दत्त मिडिल स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करती थीं जिससे उनका घर चलता था। अक्तूबर 1963 में जब केबी सहाय बिहार के मुख्यमंत्री बने तो न जाने क्या सोच कर बटुकेश्वर दत्त को बिहार विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर दिया। वह भी इतने छोटे कार्यकाल के लिए जो मई 1964 को पूरा हो गया। 1964 में बटुकेश्वर दत्त गम्भीर बीमार पड़े तो पटना के सरकारी अस्पताल में उन्हें कोई पूछने वाला नहीं था। जीवन के अंतिम पड़ाव पर जब वे कैंसर के शिकार हुए तो उनके पास इलाज के पैसे नहीं थे। उस वक्त भगत सिंह की मां विद्यावती उनके लिए उठ खड़ी हुई, जिन्हें उनके बेटे भगत सिंह ने फांसी पर चढ़ते वक्त कहा था, कि भले ही मैं आज मरने जा रहा हूं, मगर मेरे बाद बटुकेश्वर में मेरी आत्मा रहेगी, वही तुम्हारा बेटा होगा। और उस मां को जब पता चला कि बटुकेश्वर बीमार है तो पंजाब से वह भागी आयी थी। 22 नवंबर 1964 को बेहतर इलाज़ के लिए उन्हें लेकर एम्स गयी, वहां भरती कराया। देश भर में घूम-घूम कर उनके इलाज के लिए चंदा जमा किया, छह महीने तक अस्पताल में उनके बेड के नीचे चटाई बिछा कर सोती रही। 17 जुलाई 1965 को बटुकेश्वर कोमा में चले गये और 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त बाबू इस दुनिया से विदा हो गये। उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया। जब बटुकेश्वर दत्त नहीं बचे तो उनकी इकलौती संतान भारती बागची का धूम-धूम से ब्याह कराया और सारे फर्ज पूरे किये। आज पटना के जक्कनपुर मोहल्ला में उनके पैतृक आवास की जगह पर अपार्टमेंट बन गया है, जिसका नाम बटुकेश्वर दत्त मेंशन रखा गया है। वहीं उनकी इकलौती संतान भारती बागची और नाती अभिक बागची अपने परिवार के साथ रहती हैं। भारती जी मगध महिला कॉलेज पटना के अर्थशास्त्र विभाग में व्याख्याता के रूप में कार्यकाल पूरा किया। बटुकेश्वर दत्त का सबकुछ पटना में है। मगर वे पटना वालों के दिल में नहीं लगतें हैं। आज से तीन-चार साल पहले ही सचिवालय के शहीद स्मारक के पास बटुकेश्वर दत्त की प्रतिमा लगाई गई थी, मगर पुल निर्माण के कारण पिछले साल उसे हटा दिया गया था। वर्तमान में अब बिहार विधानमंडल के मुख्य द्वार के सामने उनकी आदमकद प्रतिमा स्थित है। बटुकेश्वर जी को भले ही बिहार के लोग कम याद करें, मगर पंजाब और दिल्ली में उनका नाम दत्त-भगत की जोड़ी के रूप में आज भी खूब याद किया जाता है। बटुकेश्वर दत्त राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित्त एवं देश की खुशहाली के लिए हमेशा चिंतित रहने वाले क्रांतिकारी थे। अपने मातृभूमि के लिए इस तरह का जज्बा रखने वाले नौजवानों का इतिहास भारतवर्ष के अलावा किसी अन्य देश के इतिहास में उपलब्ध नहीं है। ऐसे महानुभावों को कृतज्ञ राष्ट्र हमेशा याद करता है और प्रेरणा प्राप्त करता है। ऐसे ही स्मरणीय व्यक्तित्व में शहीद भगत सिंह के साथी स्व. बटुकेश्वर दत्त का नाम सर्वोपरि है। बटुकेश्वर दत्त का त्याग और बलिदान हमेशा इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। महान क्रांतिकारियों का राष्ट्र ऋणी है।

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