Saturday, September 21, 2024
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भारत के 6वें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 38 वीं पूण्यतिथि पर विशेष

राकेश बिहारी शर्मा – भारत के 6वें प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, भारतीय राजनीति के इतिहास में एक प्रमुख व्यक्ति, आयरन लेडी, भारत की तीसरी प्रधान मंत्री थीं। जवाहरलाल नेहरू उनके पिता थे, जो भारत के पहले प्रधान मंत्री और स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के सहयोगी थे।इंदिरा गाँधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक प्रतिष्ठित शख्सियत थीं और देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधान मंत्री थीं।

इंदिरा गाँधी का प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा-दीक्षा

इंदिरा गांधी जी 19 नवंबर, 1917 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी और कमला नेहरू जी के यहां प्रियदर्शनी के रुप में जन्मीं थी। इंदिरा गांधी जी आर्थिक रुप से संपन्न, देश के जाने-माने राजनैतिक परिवार एवं देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत परिवार से संबंध रखती थी, उनके दादा मोतीलाल नेहरू और उनके पिता जवाहरलाल नेहरू जी दोनों ने ही देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वहीं अपने परिवार को देख इंदिरा गांधी जी के अंदर देशभक्ति की भावना बचपन से ही आ गई थी। इंदिरा गांधी का स्वतंत्रता संग्राम से गहरा नाता था। इंदिरा गांधी ने बचपन में ‘मंकी ब्रिगेड’ के नाम से जाने जाने वाले बच्चों का एक समूह बनाया था, जो भारतीय झंडे बांटते थे और पुलिस की जासूसी करते थे। वहीं जब इंदिरा गांधी 18 साल की थी, तब उनकी मां कमला नेहरू जी की तपेदिक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई। इंदिरा गाँधी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं और इलाहाबाद में अपनी पारिवारिक संपत्ति आनंद भवन में पली-बढ़ीं। उनके बचपन के दिन काफी अकेले थे, उनके पिता राजनीतिक गतिविधियों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं के कारण दूर रहते थे या जेल में बंद रहते थे। उनकी माँ हमेशा बीमार रहती थी। वह अंततः तपेदिक से पीड़ित कम उम्र में ही मर गई। उस समय पत्र ही उसके पिता के साथ संपर्क का एकमात्र साधन थे।

इंदिरा प्रियदर्शनी 1934 में मैट्रिक तक रुक-रुक कर स्कूल जाती थी, और उसे अक्सर घर पर पढ़ाया जाता था। उन्होंने शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया। हालाँकि, उसने विश्वविद्यालय छोड़ दिया और अपनी बीमार माँ की देखभाल के लिए यूरोप चली गई। अपनी माँ के निधन के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए बैडमिंटन स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद 1937 में उन्होंने आगे की शिक्षा के लिए सोमरविले कॉलेज में दाखिला लिया। वह अस्वस्थता के कारण और लगातार डॉक्टरों के पास जाने के चलते उसकी पढ़ाई बाधित हो गई क्योंकि उसे ठीक होने के लिए स्विट्जरलैंड की बार-बार यात्रा करनी पड़ी। अपने खराब स्वास्थ्य और अन्य व्यवधानों के कारण, उन्हें ऑक्सफोर्ड में अपनी पढ़ाई पूरी किए बिना भारत लौटना पड़ा था। हालांकि बाद में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद उपाधि से सम्मानित किया था।

इंदिरा एवं फिरोज गांधी से शादी और परिवार

फिरोज गांधी भारतीय संसद के एक अहम सदस्य थे, बल्कि उन्होंने भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म करने का बीड़ा उठाया था। लोकतंत्र में ऐसे बहुत कम शख़्स होंगे जो खुद एक सांसद हों, जिनके ससुर देश के प्रधानमंत्री बने, जिनकी पत्नी देश की प्रधानमत्री बनीं और उनका बेटा भी प्रधानमंत्री बना। इसके अलावा उनके परिवार से जुड़ी हुई मेनका गांधी केंद्रीय मंत्री हैं, वरुण गांधी सांसद हैं और राहुल गाँधी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। इन सबने लोकतंत्र में इतनी बड़ी लोकप्रियता पाई। तानाशाही और बादशाहत में तो ऐसा होता है लेकिन लोकतंत्र में जहाँ जनता लोगों को चुनती हो, ऐसा बहुत कम होता है। जिस नेहरू गांधी वंश परंपरा (डायनेस्टी) की बात की जाती है, उसमें फिरोज का बहुत बड़ा योगदान था, जिसका कोई ज़िक्र नहीं होता और जिस पर कोई किताबें या लेख नहीं लिखे जाते।

इंदिरा ने फिरोज गांधी से 26 मार्च 1942 को शादी की, जो गुजरात के एक पारसी परिवारके थे। उनके पिता का नाम जहांगीर एवं माता का नाम रतिमाई था, और वे बम्बई के खेतवाड़ी मोहल्ले के नौरोजी नाटकवाला भवन में रहते थे। फिरोज के पिता जहांगीर किलिक निक्सन में एक इंजीनियर थे, जिन्हें बाद में वारंट इंजीनियर के रूप में पदोन्नत किया गया था। फिरोज उनके पांच बच्चों में सबसे छोटे थे, उनके दो भाई दोराब और फरीदुन जहांगीर, और दो बहनें, तेहमिना करशश और आलू दस्तुर थी। फ़िरोज़ का परिवार मूल रूप से दक्षिण गुजरात के भरूच का निवासी है, जहां उनका पैतृक गृह अभी भी कोटपारीवाड़ में उपस्थित है।1920 के दशक की शुरुआत में अपने पिता की मृत्यु के बाद, फिरोज अपनी मां के साथ इलाहाबाद में उनकी अविवाहित मौसी, शिरिन कमिसारीट के पास रहने चले गए, जो शहर के लेडी डफरीन अस्पताल में एक सर्जन थी। इलाहबाद में ही फ़िरोज़ ने विद्या मंदिर हाई स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, और फिर ईविंग क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इंदिरा और फिरोज गांधी इलाहाबाद से एक-दूसरे को जानते थे और बाद में ब्रिटेन में मिले जब वह लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ रहे थे। दोनों में जान-पहचान व प्रेम के कारण ही इंदिरा गाँधी की शादी फिरोज के साथ हुई थी। इंदिरा गाँधी ने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को राजनीति में अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना लेकिन 23 जून 1980 को एक जहाज दुर्घटना में उनकी आकस्मिक मृत्यु के बाद, इंदिरा गाँधी ने अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को राजनीति में शामिल होने के लिए राजी कर लिया। उस समय राजीव गांधी एक पायलट थे जिन्होंने फरवरी 1981 में राजनीति में शामिल होने के लिए अनिच्छा से अपनी नौकरी छोड़ दी।

इंदिरा गाँधी की राजनितिक यात्रा

इंदिरा गांधी को राजनीति विरासत में मिली थी। इंदिरा 1947 से 1964 तक वह जवाहरलाल नेहरू के प्रशासन की चीफ ऑफ स्टाफ रहीं जो अत्यधिक केंद्रीकृत थी। 1964 में वह पहली बार राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं। उन्होंने श्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व वाली सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में कार्य किया। 19 जनवरी 1966 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने वह कुर्सी संभाली जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने संभाली थी। वह 1967 से 1977 और फिर 1980 से 1984 में उनकी मृत्यु तक इस पद पर रहीं। इंदिरा गांधी देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं। दृढ़ निश्चयी और अपने इरादों की पक्की इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी को उनके कुछ कठोर और विवादास्पद फैसलों के कारण याद किया जाता है। उन्होंने 1977 तक इस पद पर कार्य किया। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने असाधारण राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन किया। इस शब्द ने पार्टी में आंतरिक असंतोष का भी अनुभव किया, जिससे 1969 में विभाजन हो गया। एक प्रधान मंत्री के रूप में, उन्होंने देश की राजनीतिक, आर्थिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन लागू किए। 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण उस अवधि में लिए गए महत्वपूर्ण आर्थिक निर्णयों में से एक था। यह कदम अत्यंत फलदायी साबित हुआ, जिसमें बैंकों की भौगोलिक कवरेज 8,200 से बढ़कर 62,000 हो गई, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू क्षेत्र से बचत में वृद्धि हुई और कृषि क्षेत्र और छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों में निवेश हुआ। उनका अगला कदम स्टील, तांबा, कोयला, सूती वस्त्र, रिफाइनिंग और बीमा उद्योगों जैसे कई उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना था, जिसका उद्देश्य संगठित श्रमिकों के रोजगार और हितों की रक्षा करना था। निजी क्षेत्र के उद्योगों को सख्त नियामक नियंत्रण में लाया गया। पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के बाद 1971 के तेल संकट के दौरान, इंदिरा गाँधी ने तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया, जिसमें हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (HPCL), इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (BPCL) जैसी तेल कंपनियों का गठन हुआ। उनके नेतृत्व में हरित क्रांति ने देश की कृषि उपज में उल्लेखनीय प्रगति की। नतीजतन, आत्मनिर्भरता की डिग्री में वृद्धि हुई।

एक बार उड़ीसा में एक जनसभा के समय में श्रीमती गांधी पर भीड़ ने पथराव किया। एक पत्थर उनकी नाक पर लगा और खून बहने लगा। इस घटना के बावजूद इंदिरा गांधी का हौसला कम नहीं हुआ। वह वापस दिल्ली आई। नाक का उपचार करवाया और तीन चार दिन बाद वह अपनी चोटिल नाक के साथ फिर चुनाव प्रचार के लिए उड़ीसा पहुंची गईं। उनके इस हौसले के कारण कांग्रेस को उड़ीसा के चुनाव में काफी लाभ मिला था।

इंदिरा गाँधी ने भारत के लिए कई साहसिक कार्य किये

इंदिरा गाँधी ने 1971 में पाकिस्तान गृहयुद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान का पुरजोर समर्थन किया, जिसके कारण बांग्लादेश का गठन हुआ। उनकी प्रशासनिक नीति के तहत मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब को राज्य घोषित किया गया। इंदिरा गाँधी ने पाकिस्तान के साथ संबंधों को सामान्य करने और राजनयिक प्रतिष्ठानों को फिर से खोलने की कोशिश की, जिसे पाकिस्तान के जुल्फिकार अली भुट्टो ने सराहा, लेकिन 1978 में जनरल जिया-उल-हक के सत्ता में आने से बेहतर संबंध के लिए सभी प्रयास विफल हो गए। उन्होंने भारतीय संविधान में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए किए गए काम के लिए समान वेतन की धारा लाकर सामाजिक सुधार किए। विपक्षी दलों ने उन पर 1971 के चुनावों के बाद अनुचित साधनों का उपयोग करने का आरोप लगाया। उनके खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक मामला दायर किया गया था, जिसमें उन्हें चुनाव प्रचार के लिए राज्य मशीनरी को नियोजित करने का दोषी पाया गया था। जून 1975 को अदालत ने चुनावों को शून्य और शून्य घोषित कर दिया और उन्हें लोकसभा से हटा दिया गया और अगले छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इस समय के दौरान देश उथल-पुथल में था, पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध से उबर रहा था, हमलों, राजनीतिक विरोध और अव्यवस्था का सामना कर रहा था। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, उन्होंने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को जून 1975 से मार्च 1977 तक 21 महीने तक चलने वाले आपातकाल की स्थिति घोषित करने की सलाह दी। इसने उन्हें डिक्री या डिग्री, डिगरी’ या ‘आज्ञप्ति’ द्वारा शासन करने की शक्ति दी, चुनावों को निलंबित कर दिया और सभी अन्य नागरिक अधिकार। पूरा देश केंद्र सरकार के अधीन आ गया। इस कदम का परिणाम अगले चुनावों में परिलक्षित हुआ जब कांग्रेस पार्टी को पर्याप्त अंतर से हार का सामना करना पड़ा, जिसमें इंदिरा गाँधी और संजय गांधी दोनों अपनी सीटों से हार गए।
1980 से प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल का अगला कार्यकाल ज्यादातर पंजाब के राजनीतिक मुद्दों को हल करने में व्यतीत हुआ। जरनैल सिंह बिंद्रावाले और उनके सैनिकों ने 1983 में एक अलगाववादी आंदोलन शुरू किया और खुद को स्वर्ण मंदिर, अमृतसर में स्थापित किया, जो सिखों के लिए सबसे पवित्र माना जाता है।
इंदिरा गाँधी ने आतंकवादी स्थिति को नियंत्रित करने और रोकने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया था। ऑपरेशन, हालांकि जरनैल सिंह भिंडरवाले और अन्य आतंकवादियों को सफलतापूर्वक वश में कर लिया, लेकिन कई नागरिकों की जान चली गई और धर्मस्थल को नुकसान हुआ। इसके परिणामस्वरूप सिख समुदाय में आक्रोश फैल गया, जिन्होंने उसकी निंदा की और जरनैल सिंह बिंद्रावाले को 21वीं सदी का शहीद घोषित कर दिया।

इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार संभाली थी देश की बागडोर

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक निडर नेता थीं जिन्होंने परिणामों की परवाह किए बिना कई बार ऐसे साहसी फैसले लिए, जिनका पूरे देश को लाभ मिला और उनके कुछ ऐसे भी निर्णय रहे जिनका उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ा लेकिन उनके प्रशंसक और विरोधी, सभी यह मानते हैं कि वह कभी फैसले लेने में पीछे नहीं रहती थीं। जनता की नब्ज समझने की उनमें विलक्षण क्षमता थी। इंदिरा गांधी ने 1966 से 1977 के बीच लगातार तीन बार देश की बागडोर संभाली। 1980 में दोबारा वह इस पद पर पहुंचीं और 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी गई। चौथी बार में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। इससे पहले 1980 में भी इंदिरा गांधी को जान से मारने की कोशिश की गई थी, हालांकि वह बाल-बाल बच गईं थी। उनके ऑपरेशन ब्लू स्टार के प्रतिशोध में 31 अक्टूबर, 1984 को उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दी गई थी।

इंदिरा गांधी का निधन

31 अक्टूबर, 1984 को अकबर रोड पर उनके आधिकारिक आवास पर इंदिरा गांधी के ही दो अंगरक्षकों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी। अंगरक्षक बेअंत सिंह ने इंदिरा गांधी को तीन बार गोली मारी, जबकि सतवंत सिंह ने लगभग 31 राउंड फायर किए, जिसके बाद उन्होंने अपने हथियार गिरा दिए और आत्मसमर्पण कर दिया था। अंगरक्षकों ने इंदिरा गांधी पर 31 गोलियां चलाईं थी, जिनमें से सात उनके शरीर के अंदर रह गईं जबकि 23 उनके शरीर से होकर निकल गईं थी।

सोनिया नगे पैर गउन में मम्मी-मम्मी चिल्लाते भागते इंदिरा के पास आईं। उसी हालत में वो इंदिरा के सिर को अपनी गोद में रखकर एम्स पहुंची थी। सोनिया का गाउन इंदिरा के खून से भीग गया था। अस्पताल के ऑपरेशन रूम में उनको ओ निगेटिव के 80 बोतल खून चढ़ चुके थे। हालांकि डॉक्टरों के अनुसार उन्हें गोली मारे जाने के बाद ही उनकी जान जा चुकी थी। गोलियों से उनकी बड़ी आंत में दर्जनों छेद हो चुके थे। छोटी आंत भी क्षत विक्षत हो गई थीं। बहरहाल उनकी मौत की पुष्टि के लिए डॉक्टर गुलेरिया ने ईसीजी किया। उनकी आत्मा उनका शरीर छोड़ चुकी थीं। इसके बाद भी उनकी मौत की पुष्टि कुछ देर के लिए रोकी गई। फिर उन पर हुए हमले के लगभग 4 घंटे बाद 2 बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया। हालांकि सरकारी प्रचार माध्यमों से शाम 6 बजे उनकी मौत की घोषणा की गई। जिसके कारण देश के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे भी हुए थे। इस हत्या के बाद दिल्ली में हुए दंगों में आधिकारिक आंकड़ो के अनुसार करीब 2000 लोग मारे गए थे, जबकि हजारों लोगों ने शहर छोड़ दिया था।

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