राकेश बिहारी शर्मा – छत्रपति संभाजी महाराज मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति थे। इनका शासन 1681 से 1689 तक रहा। संभाजी मराठा साम्राज्य की नींव रखने रखने वाले महान योद्धा और कुशल शासक छत्रपति शिवाजी महाराज के बड़े बेटे थे। शिवाजी के पुत्र के रूप में विख्यात संभाजी महाराज का जीवन भी अपने पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के समान ही देश और हिंदुत्व को समर्पित रहा था. संस्कृत के प्रकांड ज्ञाता,कला प्रेमी और वीर योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज एक अदभुत व्यक्ति थे। इन्होंने सिर्फ 13 वर्ष की उम्र में ही 13 भाषाओ को सिख लिया था। जैसे की संस्कृत, पुर्तगाली, अंग्रेजी, मुगलो की भाषा, डेकन ऐसी बहुत सारी भाषाओ का ज्ञान था। छत्रपति संभाजी महाराज सस्त्र और शास्त्र दोनो में बहुत निपुण थे। 16 साल की उम्र में पहला युद्ध रामनगर का जीता था।
संभाजी महाराज का जन्म और शिक्षा – छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को तत्कालीन महाराष्ट्र स्थित पुरंदर किले में हुआ था। यह किला पुणे से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। संभाजी जब 2 वर्ष के थे तो उनकी माता साईंबाई का देहांत हो गया था, संभाजी का पालन-पोषण शिवाजी की माँ जीजाबाई ने किया था। संभाजी महाराज को छवा कहकर भी बुलाया जाता था, जिसका मराठी में मतलब होता हैं शावक अर्थात शेर का बच्चा। संभाजी महाराज संस्कृत के साथ-साथ 13 अन्य भाषाओ के ज्ञाता थे। ये बचपन से ही अपने पिता शिवाजी के जैसे वीर योद्धा थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन देश को समर्पित कर दिया था। आज भी इनकी वीरता की कहानियां पढ़ी और सुनी जाती हैं। संभा जी बचपन से ही राजनीति के ज्ञाता रहे और कई अवसरों पर उन्होंने अपनी कुशलता का परिचय भी दिया।
संभाजी का परिवारिक जीवन – संभाजी राजा वीर छत्रपति शिवाजी के पुत्र थे, संभाजी की माता का नाम साईंबाई था। ये छत्रपति शिवाजी की दूसरी पत्नी थी। संभाजी राजे के परिवार में पिता शिवाजी और माता साईंबाई के अलावा दादा शाहजी राजे, दादी जीजाबाई और भाई-बहन थे। शिवाजी के 3 पत्नियां थी – साईंबाई,सोयरा बाई और पुतलाबाई। साईबाई के पुत्र संभाजी राजे थे। संभाजी के एक भाई राजाराम छत्रपति भी थे, जो कि सोयराबाई के पुत्र थे। इसके अलावा संभाजी के शकुबाई, अम्बिकाबाई, रणुबाई जाधव, दीपा बाई, कमलाबाई पलकर, राज्कुंवार्बाई शिरके नाम की बहनें थी। संभाजी का विवाह येसूबाई से हुआ था और इनके पुत्र का नाम छत्रपति साहू था।संभाजी का बचपन बहुत कठिनाईयों और विषम परिस्थितियों से गुजरा था। संभाजी की सौतेली माता सोयराबाई की मंशा अपने पुत्र राजाराम को शिवाजी का उत्तराधिकारी बनाने की थी। सोयराबाई के कारण संभाजी और छत्रपति शिवाजी के मध्य सम्बन्ध ख़राब होने लगे थे। संभाजी ने कई मौकों पर अपनी बहादुरी भी दिखाई, लेकिन शिवाजी और उनके परिवार को संभाजी पर विश्वास नहीं हो पा रहा था। ऐसे में एक बार शिवाजी ने संभाजी को सजा भी दी, लेकिन संभाजी भाग निकले और जाकर मुगलों से मिल गए। यह समय शिवाजी के लिए सबसे मुश्किल समय था। संभाजी ने बाद में जब मुगलो की हिन्दुओ के प्रति नृशंसता देखी, तो उन्होंने मुगलों का साथ छोड़ दिया, उन्हे अपनी गलती का अहसास हुआ और शिवाजी के पास वापिस माफ़ी मांगने लौट आये।
1680 में हुई संभाजी की ताजपोशी, फिर मुगलों को चटाई धूल – अप्रैल 1680 में शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई थी। इस दौरान उनके दूसरे बेटे राजाराम को सिंहासन पर बैठाया गया था। इसके बाद संभाजी राजे ने कुछ शुभचिंतकों के साथ मिल कर पन्हाला के किलेदार की हत्या कर दी और किले पर कब्जा कर लिया। उसके बाद 18 जून 1680 को रायगढ़ का किला भी उन्होंने कब्जा लिया। राजाराम, उनकी पत्नी जानकी और उनकी मां सोयराबाई को गिरफ्तार किया गया। 20 जुलाई 1680 को संभाजी की ताजपोशी हुई। सत्ता में आने के बाद संभाजी राजे ने बुरहानपुर शहर पर हमला किया और मुग़ल सेना के परखच्चे उड़ा दिए। शहर को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद से मुगलों से उनकी खुली दुश्मनी रही।
एक कुशल नेतृत्वकर्ता और प्रशासक के रूप में संभाजी – 11 जून 1665 को पुरन्दर की संधि में शिवाजी ने यह सहमती दी थी, कि उनका पुत्र मुगल सेना को अपनी सेवाए देगा, जिस कारण मात्र 8 साल के संभाजी ने अपने पिता के साथ बीजापुर सरकार के खिलाफ औरंगजेब का साथ दिया था। शिवाजी और संभाजी ने खुद को औरंगजेब के दरबार में प्रस्तुत किया, जहाँ उन्हें नजरबंद करने का आदेश दे दिया गया, लेकिन वो वहां से किसी तरह बचकर भाग निकलने में सफल हुए। 30 जुलाई 1680 को संभाजी और उनके अन्य सहयोगियों को सत्ता सौपी गयी। संभाजी को अपने पिता के सहयोगियों पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने मित्र कवि कलश को अपना सलाहकार नियुक्त किया। जो कि हिन्दी और संस्कृत के विद्वान थे और गैर-मराठी होने के कारण भी उन्हें मराठा अधिकारियों ने पसंद नहीं किया, इस तरह संभाजी के खिलाफ माहौल बनता चला गया और उनके शासन काल में कोई बड़ी उपलब्धि भी हासिल नहीं की जा सकी।
संभाजी महाराज की राजनैतिक उपलब्धियां – संभाजी महाराज ने अपने छोटे से जीवन काल में हिंदू समाज के हित में बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी। जिसके प्रत्येक हिंदू आभारी हैं। उन्होंने औरंगजेब की 8 लाख की सेना का सामना किया और कई युद्धों में मुगलों को पराजित भी किया। औरंगजेब जब महाराष्ट्र में युद्धों में व्यस्त था, तब उत्तर भारत में हिंदू शासकों को अपना राज्य पुन: प्राप्त करने और शांति स्थापित करने के लिए काफी समय मिल गया। इस कारण ही वीर मराठाओ के लिए सिर्फ दक्षिण ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के हिंदू उनके ऋणी है। क्यूंकि उस समय यदि संभाजी औरंगजेब के सामने समर्पण कर लेते या कोई संधि कर लेते, तो औरगंजेब अगले 2-3 वर्षों में उत्तर भारत के राज्यों को वापिस हासिल कर लेता,और वहां की आम प्रजा और राजाओं की समस्या बढ़ जाती है,यह संभाजी के सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जा सकता है। हालांकि सिर्फ संभाजी ही नहीं अन्य राजाओं के कारण भी औरगंजेब दक्षिण में 27 सालों तक विभिन्न लड़ाईयों में उलझा रहा, जिसके कारण उत्तर में बुंदेलखंड,पंजाब और राजस्थान में हिंदू राज्यों में हिंदुत्व को सुरक्षित रखा जा सका। संभाजी ने कई वर्षों तक मुगलों को महाराष्ट्र में उलझाए रखा। देश के पश्चिमी घाट पर मराठा सैनिक और मुगल कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। संभाजी वास्तव में सिर्फ बाहरी आक्रामको से हीं नहीं बल्कि अपने राज्य के भीतर भी अपने दुश्मनों से गिरे हुए थे। इन दोनों मोर्चों पर मिलने वाली छोटी छोटी सफलताओं के कारण ही संभाजी प्रजा के एक बड़े वर्ग के दिलों में अपनी जगह बना पा रहे थे।
संभाजी महाराज भगवान शिव के परम भक्त थे – संभाजी भगवान शिव के परम भक्त थे, जो अपने अंतिम समय तक मुगलों के सामने भी हिंदू देव भगवान शिव का अनुसरण करते रहे। संभाजी का एक नाम शम्भूजी था, जो कि महा देव का ही एक नाम है। संभाजी को जब शिवाजी के साथ औरगंजेब की शरण में जाना पड़ा था, तब उन्होंने महाराष्ट्र से लेकर काशी विश्वनाथ से होते हुए दिल्ली तक की कठोर यात्रा की थी, जिसमे उनके जीवन के कई प्राम्भिक वर्ष निकल गए। इसी दौरान बाल शम्भु को महादेव में अपने इष्ट दिखने लगे और शम्भु राजे ने शिव-शम्भू की आरधना शुरू कर दी।
शिवाजी राजे की मृत्यु और हिंदुत्व रक्षा की घड़ी – वास्तव में महान शिवाजी के देहांत के बाद 1680 में मराठो को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। औरंगजेब को लगा था कि शिवाजी के बाद उनका पुत्र संभाजी ज्यादा समय तक टिक नहीं सकेगा, इसलिए शिवाजी की मृत्यु के बाद 1680 में औरगंजेब दक्षिण की पठार की तरफ आया, उसके साथ 400,000 जानवर और 50 लाख की सेना थी। औरंगजेब ने बीजापुर की सल्तनत के आदिलशाह और गोलकोंडा की सल्तनत के कुतुबशाही को परस्त किया और वहां अपने सेनापति क्रमश: मुबारक खान और शार्जखन को नियुक्त किया। इसके बाद औरंगजेब ने मराठा राज्य का रुख किया और वहां संभाजी की सेना का सामना किया। 1682 में मुगलों ने मराठो के रामसेई दुर्ग को घेरने की कोशिश की लेकिन 5 महीने के प्रयासों के बाद भी वो सफल ना हो सके। फिर 1687 में वाई के युद्ध में मराठा सैनिक मुगलों के सामने कमजोर पड़ने लगे। वीर मराठाओं के सेनापति हम्बिराव मोहिते शहिद हो गए और सैनिक सेना छोडकर भागने लगे। संभाजी इसी दौरान संघमेश्वर में 1689 फरवरी को मुगलों के हाथ लग गए।
महाराजा संभाजी पर औरंगजेब का अत्याचार – 1689 तक स्थितियां बदल चुकी थी। मराठा राज संगमेश्वर में शत्रुओं के आगमन से अनभिज्ञ था। ऐसे में मुक़र्राब खान के अचानक आक्रमण से मुग़ल सेना महल तक पहुँच गयी और संभाजी के साथ कवि कलश को बंदी बना लिया। उन दोनों को कारागार में डाला गया और उन्हें वेद-विरुद्ध इस्लमा अपनाने को विवश किया गया। कठोर यातनाओ के बाद भी ना झुकने पर संभाजी और कलश को कैद से निकालकर घंटी वाली टोपी पहना दी। उनके हाथ में झुनझुना बाँध कर उन्हें ऊँटो से बांध दिया गया और तुलापुर के बाज़ार में घसीटा जाने लगा, मुगल लगातार उनका अपमान कर रहे थे और उन पर थूक रहे थे। उन्हें जबरदस्ती घसीटा जा रहा था, जिसके कारण झुनझुने की आवाज़ को साफ़ सुना जा सकता था। मुगल अपनी असलियत का परिचय देते हुए, ये सब देखकर क्रूरता से हंस रहे थे और उपहास कर रहे थे। मंत्री कलश भी ऐसे में हार मानाने वालो में से नहीं थे, वो लगातार भगवान का जाप कर रहे थे, जब उनके बाल खीच कर उन्हें इस्लाम कबूलने के लिए कहा जा रहा था, तब भी उन्होंने साफ़ तौर पर इससे ना कह दिया और कहा, कि हिंदुत्व सभी धर्मो से ऊपर सच्चा और शान्ति प्रिय धर्म है। मराठाओ के लिए अपने राजा के अपमान को देखना बहुत बड़ी बाध्यता थी।
संभाजी की मृत्यु और हिंदुत्व की रक्षा –
औरंगजेब ने कई बार कहा कि वो संभाजी को क्षमा कर देगा, लेकिन वो यदि अब भी इस्लाम कबूल ले। संभाजी ने मुगलों का उपहास उड़ाते हुए कहा, कि वह मुस्लिमों के समान मुर्ख नहीं है, जो ऐसे मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति (मोहम्मद) के सामने घुटने टेके। फिर संभाजी ने अपने हिंदू आराध्य महादेव को याद किया और कहा कि धर्म-अधर्म के भेद को देखने और समझने के बाद वो अपना जीवन हज़ारो बार हिंदुत्व और राष्ट्र को समर्पित करने को तैयार हैं। और इस तरह संभाजी म्लेच्छ औरंगजेब के आगे नहीं झुके, इससे पहले तक किसी ने भी अल्लाह, मोहम्मद, इस्लाम के खिलाफ खुलकर इतना कुछ नहीं बोला था। औरंगजेब ने इससे क्रोधित होकर आदेश दिया, की संभाजी के घावों पर नमक छिड़का जाए। और उन्हें घसीटकर औरंगजेब के सिंहासन के नीचे लाया जाए। फिर भी संभाजी लगातार भगवान् शिव का नाम जपे चले जा रहे थे। फिर उनकी जीभ काट दी गई और आलमगीर के पैरो में राखी गयी, जिसने इसे कुत्तो को खिलाने का आदेश दे दिया। लेकिन औरंगजेब भूल गया था, कि वो जीभ काटकर भी संभाजी के दिल और दिमाग से कभी देशभक्ति और भगवद भक्ति को अलग नहीं कर सकता। संभाजी अब भी मुस्कुराते हुए भगवान् शिव की आरधना कर रहे थे और मुगलों की तरफ गर्व भरी दृष्टि से देख रहे थे। इस पर उनकी आँखे निकाल दी गयी और फिर उनके दोनों हाथ भी एक-एक कर काट दिए गए। और ये सब धीरे-धीरे हर दिन संभाजी को प्रताड़ित करने के लिए किया जाने लगा। संभाजी के दिमाग में तब भी अपने पिताजी वीर शिवाजी की यादें ही थी, जो उन्हें प्रतिक्षण इन विपरीत परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रेरित कर रही थी। हाथ काटने के भी लगभग 2 सप्ताह के बाद 11 मार्च 1689 को उनका सर भी धड से अलग किया गया। उनका कटा हुआ सर महाराष्ट्र के कस्बों में जनता के सामने चौराहों पर रखा गया, जिससे की मराठाओं में मुगलों का भी व्याप्त हो सके। जबकि उनके शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर तुलापुर के कुत्तों को खिलाया गया। लेकिन ये सब वीर मराठा पर अपना प्रभाव नहीं जमा सके। अंतिम क्षणों तक भगवान शिव का जाप करने वाले बहादुर राजा के इस बलिदान से हिंदू मराठाओ में अपने राजा के प्रति सम्मान मुगलों के प्रति आक्रोश और बढ़ गया। एक अन्य किवंदती के अनुसार संभाजी का वध “वाघ नाखले” मतलब चीते के नाखुनो से किया गया था,उन्हें दो हिस्सों में चीरकर फाड़ा गया था और कुल्हाड़ी से सर काटकर पुणे के पास तुलापुर में भीमा नदी के किनारे पर फैका गया था। जिस खुली हवा में हम सांस ले रहे हैं, ये न जाने कितने वीर सपूतों के बलिदानों की देन है। सोच के ही कांप जाते हैं कि अगर आज भी हम किसी विदेशी के ग़ुलाम होते तो? अपना इतिहास भूलते जा रहे हैं हम। वीर सपूतों के बलिदान की कहानी को भूल कर हम अपनी ही ज़िन्दगियों में मशगूल रहते हैं। ये भूल जाते हैं कि किसी ने अपना आज दिया था, हमारे आज को बनाने के लिए। गर्व है मुझे की मैं ऐसे देश मे पैदा हुआ, जहा वीर मराठा सम्भाजी महाराज जैसे महान राजा हुए, लेकिन मुझे दुख भी होता है कि लोग वर्तमान में इस वीर मराठा को भूलते जा रहे हैं।