राकेश बिहारी शर्मा – शिक्षा मनुष्य के अंदर अच्छे विचारों को भरती है और अंदर में प्रविष्ठ बुरे विचारों को निकाल बाहर करती है। शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। यह मनुष्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का कार्य करती है। इससे मनुष्य के अंदर मनुष्यता आती है। मनुष्य के जीवन में जितना महत्त्व भोजन, कपड़े, हवा और पानी का है, उससे कहीं अधिक महत्त्व शिक्षा का है इसीलिए हमेशा ये ही कहा जाता है कि शिक्षा का मानव जीवन में बहुत महत्त्व है। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य में ज्ञान का प्रसार होता है। इंसान की बुद्धि का विकास शिक्षा अर्जित करने से ही होता है। शिक्षा मानव जीवन की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है। शिक्षा लोगों के मस्तिष्क को उच्च स्तर पर विकसित करने का कार्य करती है और समाज में लोगों के बीच सभी भेदभावों को हटाने में मदद करती है। यह हमारी अच्छा अध्ययन कर्ता बनने में मदद करती है और जीवन के हर पहलू को समझने के लिए सूझ-बूझ को विकसित करती है। यह सभी मानव अधिकारों, सामाजिक अधिकारों, देश के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों को समझने में भी हमारी सहायता करता है।
शिक्षा हम सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक उपकरण है। हम जीवन में शिक्षा के इस उपकरण का प्रयोग करके कुछ भी अच्छा प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों को सामाजिक और पारिवारिक आदर और एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है। यह एक व्यक्ति को जीवन में एक अलग स्तर और अच्छाई की भावना को विकसित करती है। भारतीय इतिहास में ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय / उदंतपुरी विश्वविद्यालय / उदंडपुरी विश्वविद्यालय भी नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह विख्यात था, परन्तु उदंतपुरी विश्वविद्यालय का उत्खनन कार्य नहीं होने के कारण यह आज भी धरती के गर्भ में दबा है, जिसके कारण बहुत ही कम लोग इस विश्वविद्यालय के इतिहास से परिचित हैं। अरब लेखकों ने इसकी चर्चा ‘अदबंद’ के नाम से की है, वहीं ‘लामा तारानाथ’ ने इस ‘उदंतपुरी महाविहार’ को ‘ओडयंतपुरी महाविद्यालय’ कहा है। ऐसा कहा जाता है कि नालन्दा विश्वविद्यालय जब अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, उसी समय इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। इसकी स्थापना प्रथम पाल नरेश गोपाल ने सातवीं शताब्दी में की थी। उसी विश्वविद्यालय को साकार रूप देने के लिए समाजसेवी तथा शिक्षा अनुरागी ‘बिहार श्री’ शिक्षाविद् रामजी प्रसाद ने बिहारशरीफ के सोहसराय में किसान कॉलेज खोलने की पहल की थी। बिहार की उच्च शिक्षा में अपनी कर्मठता के बूते बिहार में कामगार जातियों के ऐतिहासिक योगदान देने वाले रामजी प्रसाद ने समाजसेवा से शिक्षाविद् तक का सफर तय किया। सामाजिक चेतना के लिए रामजी प्रसाद जीवन भर प्रयासरत रहे। समाज के उत्थान में उन्होंने अपना पूरा जीवन खपा दिया।
किसान कॉलेज के संस्थापक, महान शिक्षाविद् श्रद्धास्पद रामजी प्रसाद जी का जन्म 06 मई 1917 ई. को तत्कालीन पटना जिला के बिहारशरीफ सब डिवीजन के अंतर्गत सलेमपुर गाँव में उन्नत किसान श्रद्धेय चतुर्भुज महतो जी के घर में हुआ था। ये अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बड़े भाई आदरणीय नारायण प्रसाद जी कर्मठ, ईमानदार और उदार प्रकृति के थे। इनका सारा गुण रामजी बाबू में भी मॉजूद था। इनके पिता जी बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे, बिना रामायण की चौपाई-पाठ पढ़े अन्न-जल ग्रहण नहीं करते थे। अपने बेटे का नाम ‘भगवान राम’ के नाम पर रखा श्री रामजी प्रसाद। ये अपने नाम के अनुरूप राम के आदर्श पर आजीवन कायम रहें। इनका व्यक्तित्व आजीवन आदर्श से भरपूर रहा। सच्चे मायने में, गाँधी जी की विचारधारा से बहुत प्रभावित अपने बाल्यकाल से ही थे। अपने जीवन में उन्होंने गाँधी के आदर्श को आत्मसात कर लिया। हमेशा जीवन पर्यन्त गाँधी जी के विचारों पर चलने की चेष्टा की और निरन्तर कामयाब रहें।
इनके जीवन की प्राथमिकता हमेशा समाज सेवा तथा शिक्षा और अपने कर्त्तव्य पर अडिग रहना तथा फल की चिन्ता न करते हुए कर्म करते जाना रहा। अन्तिम समय तक भगवान कृष्ण की ‘गीता’ के हर वाक्य को अपनाते रहे।
उस समय देश आजाद नहीं हुआ था। दूरदराज की खबरें लोगों तक कैसे प्राप्त हो इसलिए अपने गाँव सलेमपुर में ‘सर्व श्री हितैषी हिन्द पुस्तकालय’ की स्थापना की। वहाँ सुलभ रूप में अच्छी-अच्छी हिन्दी की ज्ञानवर्द्धक और प्रेरणादयक पुस्तकें उपलब्ध थी। उस समय तक पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत जारी थी। आजादी की लहर चरम सीमा पर थी। ये भी उससे अप्रभावित न रह सके। सुबह-सुबह प्रभातफेरी में भाग लेना फिर कांग्रेस की बैठक के तहत जो रणनीति बनती थी उसमें ये सक्रिय होकर देश के प्रति अपनी भागीदारी देते रहे। 1942 के ‘अंग्रजों भारत छोड़ो’ आंदोलन की लहर पूरे देश में विद्युत् गति से फैली पूरे देश के लोगों ने सक्रिय हिस्सा लिया। ये भी उसमें पूरे उत्साह के साथ सक्रिय थे। अंततः देश आजाद हुआ। भूदान-आंदोलन के समय में बिनोवाजी जब बिहारशरीफ आये थे तो ये बहत ही सक्रिय रहें। अपने ही गाँव के कितने ही भूमिहीन लोगों को अपनी जमीन दान दी। पूरे जीवन पर्यन्त समाज-सेवा में निःस्वार्थ रूप से लगे रहे। साथ-ही-साथ पारिवारिक जबाबदेही भी निभाते रहे। इनका जीवन कर्म प्रधान रहा हमेशा कर्म को ही प्राथमिकता देते थे। विपरीत परिस्थितियों में भी पूरी निष्ठा और हिम्मत के साथ अपने हरेक कार्य को पूर्ण करते थे। आजीवन गाँधीजी की विचारधाराओं से सम्मोहित होकर अपना जीवन सही मायने में सार्थक किया। किसी भी समाज या देश का विकास उनके आर्थिक पहलू से ही सिर्फ ऑका नहीं जा सकता। उसकी संस्कृति उच्च कोटि की होनी चाहिए तथा साथ ही साथ शिक्षा भी शिक्षा के अभाव में कोई भी सामाजिक जागरूकता नहीं आती न ही सांस्कृति आगे बढ़ती है एक व्यक्ति से परिवार फिर समाज बनता है, समाज से ही पूरा देश बनता है और सही मायने में शिक्षित होने से ही विकास संभव है।
इन्ही विचारधाराओं से इन्होंने अपने गाँव में शिक्षा के लिए पहले लड़को के लिए स्कूल खुलवाये। फिर इन्होनें महसूस किया कि लड़कियों की शिक्षा ज्यादा आवश्यक है। क्योंकि एक शिक्षित माँ पूरे परिवार की दिशा और दशा बदलने में बुत की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फिर इन्होंने लड़की के लिए स्कूल खुलवाये। यह स्त्री-शिक्षा पर बहुत ध्यान देते थे।
प्राथमिक शिक्षा के बाद स्कूली शिक्षा सोगरा हाई स्कूल बिहारशरीफ से किये। स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे आलू के व्यापार तथा किसान कोल्ड स्टोरेज के कार्य में योगदान दिया। वे बिहार राज्य के विभिन्न स्थानों तथा बिहार के बाहर भी आलू का व्यापार और कोल्डस्टोरेज का देखभाल सुचारू रूप से चल रहा था। इसी बीच इनके इलाके के कुछ शिक्षा प्रेमी तथा पढ़े लिखे युवकों ने सोहसराय में एक कॉलेज की स्थापना का प्रस्ताव रखे। उनलोगों ने कहा कि बिहारशरीफ में सिर्फ नालन्दा कॉलेज है जिसमें पढ़ने को मौका सभी को नहीं मिल पाता है। यदि सोहसराय में कॉलेज खुल जाता है तो इलाके के बच्चे और बच्चियों को पढ़ने में सहूलियत होगी। इन लोगों की बातें से प्रेरित होकर रामजी बाबू ने कॉलेज की स्थापना का मन बना लिया। अब कॉलेज खोलने के लिए अर्थ (धन) की आवश्यकता होगी। इसके लिए उन्होंने किसान कोल्ड स्टोरेज की समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को रखा। समिति के सदस्यों ने इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किये। इसके बाद तय हुआ कि प्रथम वर्ष प्रतिमन पचास पैसे एवं बाद के सालों में 25 पैसे भाड़ा अधिक लिया जाएगा और जब कॉलेज अपने पैर पर खड़ा हो जाएगा तो कोल्डस्टोरेज से पैसा मिलना बन्द हो जायेगा। इस प्रकार अर्थ (धन) की व्यवस्था हो जाने के बाद रामजी बाबू ने कोल्ड स्टोरेज की समिति की बैठक बुलाकर कॉलेज के शासी निकाय (गवर्निग वॉडी) को गठन किया। शासी निकाय के निर्णय के अनुसार कॉलेज का नाम “किसान कॉलेज- सोहसराय” रखा गया। शासी निकाय के सेक्रेटरी श्री रामजी चुने गयें। इसके बाद कॉलेज के प्राचार्य एव व्याख्याता की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ की गयी। एक ईमानदार, कर्मठ एवं काबिल प्राचार्य की खोज की जाने लगी। अनुग्रह नारायण कॉलेज, बाढ़ के दर्शनशास्त्र विभागध्यक्ष श्री रामवरण सिंह जी को प्राचार्य नियुक्त किया गया। फिर व्याख्याता की नियुक्ति की गयी और इसमें यह सतर्कता बरती गयी कि योग्य और सक्षम व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाय। साथ ही व्याख्याताओं को पूर्ण वेतन भुगतान किया जाय। रामजी प्रसाद जी त्रिवेणी संघ के एक सक्रिय सदस्य थे। ये संगठन वैसे तो कोयरी, कुर्मी, यादव एवं कामगार जाति का संगठन माना जाता था। रामजी प्रसाद जी इस संगठन की सबसे उदारवादी आवाजों में से एक थे। रामजी प्रसाद जी साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी के भी सक्रिय सदस्य थे। ये किसान कॉलेज के संस्थापक तथा त्रिवेणी संघ के सदस्य होने के साथ-साथ मानवतावादी हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्के समर्थक थे। किसान कॉलेज का नाम देश के उन संस्थानों में लिया जाता है जो राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का प्रतिनिधित्व करते हैं 65 साल पुराने इस कॉलेज में आज भी दाखिला पाने के लिए छात्र लालायित रहते हैं। यह कॉलेज इस तथ्य को संदर्भित करता है कि इसकी स्थापना 31 मई 1957 को गांधीवादी विचार स्वर्गीय रामजी प्रसाद के कट्टर अनुयायी के सक्षम नेतृत्व में इलाके के किसानों द्वारा की गई थी। संपन्न किसानों और छोटे किसानों या सोहसराय नामक इलाके के परिवार बहुत अधिक थे। संस्थापक की दूरदृष्टि और मकसद से प्रभावित रामजी प्रसाद ने इस कॉलेज के गठन के लिए तन-मन-धन से अपना पूरा समर्थन दिया। कॉलेज एक मेहनतकश समुदाय के संस्थानों का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि कॉलेज भारतीय संस्कृति का एक अवतार है क्योंकि भारत गांवों में रहता है। वर्तमान में कॉलेज आदर्श रूप से जिला नालंदा के जिला मुख्यालय के ग्रामीण-शहरी किनारे पर स्थित है। पंचाने नदी इस कॉलेज के पूर्वी किनारे से बहती है जो आगे चलकर कॉलेज परिसर को अनुकूल शैक्षणिक माहौल के लिए उपयुक्त बनाती है। किसान कॉलेज असाधारण है क्योंकि यहां हमेशा शांति, सौहार्द और एकता कायम रही है। कॉलेज में हमेशा सांस्कृतिक गतिविधियों, सह-पाठयक्रम गतिविधियों, कॉलेज परिसर में खेल, एनसीसी और एनएसएस के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में कॉलेज उत्कृष्टता हासिल की है। इन सारी प्रक्रियाओं के बाद कॉलेज की पढ़ाई की शुरूआत सत्र 1957-58 में की गयी किन्तु इसका एफिलियेशन बिहार विश्वविद्यालय, पटना द्वारा सत्र. 1958-59 से मिला। कॉलेज का अपना भवन नहीं होने के कारण किराये के मकान में पढ़ाई प्रारम्भ की गयी। प्रारम्भ के कला एवं वाणिज्य संकाय की पढ़ाई प्रारम्भ की गयी। इसके बाद भवन निर्माण को भी कार्य प्रारम्भ हो गया। रामजी बाबू के अथक प्रयास से दो-तीन सालों में भवन निर्माण का कार्य पूरा हो गया। सन् 1963-64 से विज्ञान संकाय की पढ़ाई प्रारम्भ करने की अनुमति मगध विश्वविद्यालय बोधगया से मिल गया। इस प्रकार कॉलेज का विकास दिन दूनी रात चौगनी होने लगी। फलस्वरूप कॉलेज में विद्यार्थियों की संख्या लगभग पाँच हजार हो गई। संयोगवश कभी कॉलेज स्टाफ को वेतन भुगतान में पैसे की कमी पड़ जाती थी तो रामजी बाबू अपने व्यक्तिगत खाते से कॉलेज खाते में पैसा जमा करा देते थे, ताकि वेतन भुगतान में दिक्कत न हो। इतना सब करने के बाद उन्होंने अपने घर या संबंधियों के एक भी व्यक्ति को कॉलेज में नियुक्त नहीं किया। इस प्रकार रामजी बाबू के कर्मठता एवं ईमानदारी के फलस्वरूप कॉलेज का काफी विकास हुआ और अन्त में सन् 1975 ई. में मगध विश्व विद्यालय, बोधगया का अंगीभूत इकाई बन गया। फिर भी कॉलेज के प्राचार्य एवं व्याख्याताओं की श्रद्धा इनके प्रति कम नहीं हुई। मई 2005 में “भारत विकास परिषद्” ने इनको “बिहार श्री” से सम्मानित किया। जिसमें इनके विगत किये गये कार्य समाजसेवा तथा शिक्षा के प्रति अनुरागी, कर्त्तव्यनिष्ठा, धर्मनिष्ठा, समाजसेवा, राष्ट्रीय भावना तथा अपने कार्यक्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियों के लिए भारत विकास परिषद् द्वारा “बिहार श्री” से सम्मानित किया।
श्री रामजी बाबू का देहावसान (स्वर्गवास) सन 12.07.2006 ई० को हो गया। इस तिथि के पाँच या छः माह पूर्व इन्होंने यू०जी०सी० से प्राप्त ग्रान्ट प्रशासनिक भवन के निर्माण का नींव रखा था। जो कॉलेज के लिए उनकी जिन्दगी को अंतिम शुभ कार्य था। उनकी प्रतिमा किसान कॉलेज के प्रशासनिक भवन में स्थापित किया गया है। समाजसेवी तथा शिक्षा अनुरागी रामजी प्रसाद ने समाज के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया।
किसान कॉलेज के संस्थापक रामजी प्रसाद की 16 वीं पूण्यतिथि पर विशेष
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