Tuesday, September 17, 2024
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प्रगतिवादी कवि रामधारी सिंह दिनकर की 114 वीं जयंती पर विशेष

 राकेश बिहारी शर्मा – रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एक प्रसिद्ध कवि, निबंधकार तथा देशभक्त थे। उनके द्वारा रचित कविताएं वीर रस से भरी हुई होती हैं। अपनी देशभक्ति को उन्होंने अपनी रचनाओं में दिखा कर के राष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए लोगों को प्रेरित किया। “दिनकर” उनका उपनाम था और उनका वास्तविक नाम रामधारी सिंह था। वे हिंदी भाषा के महान कवियों में से एक थे। उनकी रचनाएं एनसीईआरटी व अन्य स्टेट शिक्षा बोर्ड की पाठ्य पुस्तकों में सम्मिलित की जाती है।

रामधारी सिंह दिनकर का जन्म और परिवारिक जीवन

हिंदी और मैथिली भाषा के सुविख्यात राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगुसराय जिला सिमरिया गांव में एक सामान्य किसान परिवार पिता रवि सिंह तथा माता मनरूप देवी के घर में हुआ। दिनकर जब वो दो साल के थे तभी उनके पिता रवि सिंह का निधन हो गया था। इसके बाद उनकी माता ने पूरे परिवार की जिम्मेदारी संभाली। परिवार में रामधारी के दो भाई और थे, जिनका नाम केदारनाथ सिंह और रामसेवक सिंह था। दिनकर और उनके भाई-बहनों का पालान-पोषण उनकी विधवा माता ने ही किया। दिनकर का बचपन और कैशोर्य देहात में बीता, जहाँ दूर तक फैले खेतों की हरियाली, बांसों के झुरमुट, आमों के बगीचे और कांस के विस्तार थे। प्रकृति की इस सुषमा का प्रभाव दिनकर के मन में बस गया, पर शायद इसीलिए वास्तविक जीवन की कठोरताओं का भी अधिक गहरा प्रभाव पड़ा।

दिनकर का शिक्षा,शादी और बरबीघा के संस्थापक प्रधानाध्यापक

दिनकर जी का प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत के एक पंडित के पास प्रारंभ हुई। दिनकर जी ने अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम में राष्ट्रीय मिडल स्कूल जो सरकारी शिक्षा व्यवस्था के विरोध में खोला गया था, में प्रवेश प्राप्त किया। यहीं से इनके मनो मस्तिष्क में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होने लगा था। हाई स्कूल की शिक्षा इन्होंने मोकामाघाट हाई स्कूल से प्राप्त की। इसी बीच इनका विवाह श्यामावती के साथ हुआ तथा ये एक पुत्र के पिता भी बन गये थे। 1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया। पटना विश्वविद्यालय से बी. ए. ऑनर्स करने के बाद अगले ही वर्ष दिनकर जी 03 जनवरी 1933 को उच्च विद्यालय बरबीघा के संस्थापक प्रधानाध्यापक बने थे तथा ये 21 जुलाई 1934 तक रहे। रामधारी सिंह दिनकर उच्च विद्यालय में प्रधानाध्यापक पद पर रहते हुए 60 रुपये महीने की नौकरी की थी तथा अन्य तरह के कटौती करते हुए 41 रुपैया 10 आना और तीन पैसा उनको महीने का दिया जाता था। यहां से फिर वे शेखपुरा जिला मुख्यालय के कटरा चौक स्थित कार्यालय में रजिस्ट्रार की नौकरी की। इस कार्यलय में 8 सालों तक अपनी सेवा दी थी।

उच्च विद्यालय बरबीघा में मध्यान भोजन की रखी थी नींव

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने बरबीघा उच्च विद्यालय में नौकरी करते हुए मध्यान भोजन की आधारशिला रख दी थी जो आज भी लागू है। प्रसंग यह था कि एक छात्र टिफिन के दौरान खाने के लिए घर चला गया और लेट से लौटकर आया तो शिक्षक ने उसकी पिटाई कर दी। इससे मर्माहत होकर रामधारी सिंह दिनकर ने टिफिन के समय स्कूल में ही हल्के नाश्ते की व्यवस्था कर दी। जिसमें चना, चूड़ा, भूंजा इत्यादि शामिल था जो आज तक चल रहा है। रामधारी सिंह दिनकर की याद में बरबीघा उच्च विद्यालय के प्रांगण में दिनकर जी की आदमकद प्रतिमा का उद्घाटन बिहार के मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार के द्वारा सेवा यात्रा के दौरान किया गया था।

दिनकर जी ने बरबीघा से संसद भवन तक की सफर तय की

दिनकर जी ने उच्च विद्यालय बरबीघा से संसद भवन दिल्ली तक की यात्रा की। बावजूद वे बिहार की धरती बरबीघा को नहीं भूले। दिनकर गरीब किसानों, मजदूरों और देश के लिए लड़ने वाले जवानों के लिए लिखे हैं। जो कवि जनता को प्यार नहीं करता, जनता भी उसे भुला देती है। रामधारी सिंह दिनकर भारतीय संस्कृति, समाज और राष्ट्रीयता के महाकवि थे। उनकी रचनाओं की प्रासांगिक आज भी है। दिनकर जी एक साधारण शिक्षक से लेकर पद्म विभूषण की उपाधि तक का सफर किया। हिंदी साहित्य के साहित्य-चूड़ामणि रामधारी सिंह दिनकर जी एक सफल आदर्श शिक्षक, प्रखर लेखक, सुविख्यात कवि और प्रकांड निबंधकार थे।

दिनकर जी प्राध्यापक से राज्यसभा का सदस्य तक बने

1947 में देश स्वाधीन हुआ और वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुंचे। वर्ष 1950 से 1952 तक लंगट सिंह कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर भी काम किया था। वर्ष 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया और वह फिर दिल्ली लौट आए।

दिनकर ने अपने कविताओं में ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को पिरोया

’दिनकर’ की कविता को एक नये शिखर पर पहुँचा दिया है। भले ही सर्वोच्च शिखर न हो, दिनकर के कृतित्त्व की गिरिश्रेणी का एक सर्वथा नवीन शिखर तो है ही। हिन्दी साहित्य संसार में एक ओर उसकी कटु आलोचना और दूसरी ओर मुक्तकंठ से प्रशंसा हुई। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हुई इस काव्य-नाटक को दिनकर की ‘कवि-प्रतिभा का चमत्कार’ माना गया। दिनकर जी ने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की। एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया। कवि रामाधारी सिंह दिनकर ने इस वैदिक मिथक के माध्यम से देवता व मनुष्य, स्वर्ग व पृथ्वी, अप्सरा व लक्ष्मी और अध्यात्म के संबंधों का अद्भुत विश्लेषण किया है।

रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख कालजयी रचनाएं

दिनकर की महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है। उर्वशी को छोड़कर दिनकर की ज्यादातर रचनाएं वीर रस से ओतप्रोत मिलेंगी। उनकी रचनाओं में विद्रोह और क्रांति के सात मानवीय भावनाओं का अनोखा संगम मिलता है।
दिनकर की काव्य रचनाओं में – बारदोली-विजय संदेश, प्रणभंग, रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, द्वंद्वगीत, कुरूक्षेत्र, धूप-छाँह, सामधेनी, बापू, इतिहास के आँसू, धूप और धुआँ, मिर्च का मज़ा, रश्मिरथी, दिल्ली, नीम के पत्ते, नील कुसुम, सूरज का ब्याह, चक्रवाल, कवि-श्री, सीपी और शंख, नये सुभाषित, लोकप्रिय कवि दिनकर, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, आत्मा की आँखें, कोयला और कवित्व, मृत्ति-तिलक और दिनकर की सूक्तियाँ, हारे को हरिनाम, संचियता, दिनकर के गीत, रश्मिलोक, उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ
दिनकर की गद्य रचनाओं में – मिट्टी की ओर, चित्तौड़ का साका, अर्धनारीश्वर, रेती के फूल, हमारी सांस्कृतिक एकता, भारत की सांस्कृतिक कहानी, संस्कृति के चार अध्याय, उजली आग, देश-विदेश, राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता, काव्य की भूमिका, पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण, वेणुवन, धर्म, नैतिकता और विज्ञान, वट-पीपल, लोकदेव नेहरू, शुद्ध कविता की खोज, साहित्य-मुखी, राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी, हे राम!, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ, भारतीय एकता, मेरी यात्राएँ, दिनकर की डायरी, चेतना की शिला, विवाह की मुसीबतें, आधुनिकता बोध इसके अलावा भी रामधारी सिंह दिनकर की कई महान रचानाएं है। उनकी भावनाओं से भरे शब्दों का ही कमाल था कि उन्हें कई पुरस्कारों से अलंकृति किया गया। पद्म भूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारतीय ज्ञानपीठ और साहित्य चूड़ामण जैसे पुरस्कार अपने नाम करने वाले ऐसे कालजयी राष्ट्रकवि को उनकी जयंती पर पूरा देश सलाम करता है।
रामधारी सिंह दिनकर शब्दों के सूरज थे, अपने वक्त की सबसे प्रखर आवाज़ थे, हिंदी मंचों के सिकंदर थे, हिंदी कविता जगत के अगाध सिंह थे। देश पर चीनी आक्रमण से आहत होकर दिनकर जी ने ने साल 1962 में ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ लिखी थी जो उनकी लेखनी का एक बेनमून उदाहरण है। उनकी कालजयी कविताएं साहित्यप्रेमियों को ही नहीं, बल्कि समस्त देशवासियों को निरंतर प्रेरित करती रही है और रहेंगी।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का निधन

जनकवि होने के नाते दिनकर जी को अपने कर्तव्य का भी ज्ञान सदा ही रहा। ता-उम्र मां हिंदी की सेवा करने के लिए उन्हें भारत सरकार ने साहित्य अकादमी और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया था। और ऐसी महान विभूति और राष्ट्रकवि का निधन 24 अप्रैल 1974 को चेन्नई में हुआ था।

रामधारी सिंह दिनकर स्वभाव से सौम्य और मृदुभाषी थे

रामधारी सिंह दिनकर के लिखे कई काव्य, ग्रंथ और रचनाएं इतनी प्रसिद्ध हुई की देशभर में बच्चे से लेकर बूढ़े तक अपनी बोलचाल की भाषा में भी दिनकर की कविताएं और दोहे दोहराया करते हैं। हिंदी की कविताएं और ग्रंथों को लिखकर रामधारी सिंह दिनकर ने बिहार के छोटे से गांव सिमरिया से राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रकवि तक की उपाधि अर्जित की।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के बारे में साहित्यकारों का कथन :-

साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह का राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के बारे में कथन है- राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा के अग्रदूत रामधारी सिंह दिनकर बहुमुखी प्रतिभाके समृद्ध लेखक श्रेष्ठ आलोचक, तटस्थ इतिहासकार, कुशल निबंधकार एवं चिंतनशील लोकप्रिय कवि के रूप में समादृत हैं। दिनकर जी मूलतः राष्ट्रीय चेतना के कवि हैं। उनमें एक ओर तुलसी, इकबाल, मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की विशुद्ध राष्ट्रीयता का दर्शन होता है, तो दूसरी ओर महाकवि कालिदास, घनानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और जयशंकर प्रसाद के काव्य की रुमानियत, सूक्ष्म सौंदर्य-भावना और प्रेम व्यंजना के भी सहज दर्शन हो जाते हैं। अपने वर्तमान की समस्याओं, कुरीतियों ओर चुनौतियों से दिनकर अपराजित योद्धा की तरह लड़ते हैं।
भगवतीचरण वर्मा ने लिखा है, ‘दिनकर हमारे युग के यदि एकमात्र नहीं, तो सब से अधिक प्रतिनिधि कवि हैं। लक्ष्मी नारायण सुधांशु का कथन है- ‘राष्ट्रीयता उनकी आत्मा का प्रधान स्वर बन गया। रामदरश मिश्र लिखते हैं- ‘दिनकर की परंपरा, राष्ट्रीयता, अंतरराष्ट्रीयता, मानवता, भावनाशीलता, वैचारिकता का अद्भुत समन्वय है। दिनकर ने स्वयं लिखा है- ‘राष्ट्रीयता मेरे व्यक्तित्व के भीतर से नहीं जन्मी, उसने बाहर से आकर मुझे आक्रांत किया है’।

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