Friday, September 20, 2024
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गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की 112 वीं जयंती पर विशेष

“ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
चर्खा चलता है हाथों से शासन चलता है तलवार से”… : गीतकार गोपाल सिंह

राकेश बिहारी शर्मा- कलम की स्वाधीनता के लिए आजीवन संघर्षरत रहे, गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह नेपाली। धारा के विपरीत चलकर हिन्दी साहित्य, पत्रकारिता और सिनेमा में ऊंचा दर्जा हासिल करने वाले विशिष्ट कवि और भारत के लोकप्रिय गीतकार थे। गोपाल सिंह नेपाली के गीत और कविताओं में मानवीय संवेदना, संदेश और सामाजिक बेड़ियों के प्रति विद्रोह साफ दिखलाई देता है। “गीतों का राजकुमार” कहे जाने वाले गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की आज जयंती है। वे गीतकार थे तो प्रखर पत्रकार भी थे। प्रकृति के सौंदर्य को अपने गीतों में व्यक्त करने वाले गीतकार ने जब राजनीतिक परिदृश्य और चीन हमले पर काव्य रचा, तो वह एक पत्रकार मन की अभिव्यक्ति साबित हुई। मध्यप्रदेश के रतलाम से ‘रतलाम टाइम्स’ का संपादन करने वाले गोपाल सिंह नेपाली को रचनाओं का प्रभाव ऐसा है कि कवि को भुलाते हुए उनके गीतों को याद रखा गया है लोकगीत की तरह। जैसे, उनका लिखा हुआ गीत “दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी‌ अंखियाँ प्यासी रे..” उत्तर भारत में भजन की तरह गाया जाता है। कई लोग इसे कृष्ण भक्त कवि सूरदास की रचना मानते हैं। यहां तक कि बहुचर्चित फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में इस गीत के उपयोग के दौरान इसके सही रचनाकार का उल्लेख नहीं हुआ। यह अज्ञानता एक संवेदनशील रचनाकार के लिए पीड़ादायक हो सकती है मगर सुखद अनुभव भी है कि उनकी रचनाएं कालजयी हैं।

गोपाल बहादुर सिंह का जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन

गोपाल बहादुर सिंह यानि महान कवि, लेखक, प्रखर पत्रकार गोपाल सिंह नेपाली का जन्म 11 अगस्त 1911 को बिहार के पश्चिमी चम्पारन के बेतिया में एक नेपाली परिवार में हुआ था। इनका मूल नाम गोपाल बहादुर सिंह था। तथा पिता का नाम रेल बहादुर सिंह था। और माता का नाम वीणा रानी नेपाली था। गोपाल सिंह नेपाली ने प्रवेशिका तक ही शिक्षा ग्रहण की। मैट्रिक तक कि शिक्षा प्राप्त नही कर पाने के कारण इन्होंने बेतिया राज के पुस्तकालय में बैठकर अपना साहित्य अध्ययन किया था। गोपाल सिंह नेपाली के पिता देहरादून में गोरखा राइफल में सैनिक थे‌। गोपाल सिंह नेपाली को बचपन से ही कविताएं पढ़ने लिखने का शौक था। मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही आपने कविताएं तथा पत्र-पत्रिकाओं व कवि सम्मेलन में भाग लेना शुरू कर दिया था। गोपाल सिंह नेपाली को कवि सम्मेलन में गायन प्रस्तुति से बहुत ही अच्छी ख्याति प्राप्त हुई।

गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की 112 वीं जयंती पर विशेष

गोपाल सिंह नेपाली का काव्य और गीत प्रकाशित

1933 में उनका पहला काव्य संग्रह ‘उमंग’ प्रकाशित हुआ था। ‘पंछी’ ‘रागिनी’ ‘पंचमी’ ‘नवीन’ और ‘हिमालय ने पुकारा’ इनके काव्य और गीत संग्रह हैं। उन्होंने “रतलाम टाइम्स”, चित्रपट, सुधा, एवं योगी पत्रिकाओं का सम्पादन किया। पत्रिका ‘सुधा’ में वे महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ सम्पादक थे। निराला ने ही उनके काव्य संग्रह ‘पंछी’ की भूमिका लिखी थी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार उन्होंने चार दर्जन फिल्मों के लिए गीत रचे तथा ‘हिमालय फिल्म्स’ और ‘नेपाली पिक्चर्स’ की स्थापना की थी। निर्माता-निर्देशक के तौर पर नेपाली ने तीन फीचर फिल्मों-नजराना, सनसनी और खुशबू का निर्माण भी किया था।

नेपाली जी की कृतियों में प्रकृति चित्रण बखूबी मिलता है

गोपाल सिंह नेपाली के गीत और कविताओं में मानवीय संवेदना, संदेश और सामाजिक बेड़ियों के प्रति विद्रोह साफ दिखलाई देता है। उत्तर-छायावाद के यशस्वी कवियों में से एक गोपाल सिंह नेपाली प्रकृति अनुरागी थे। यही कारण है कि उनके काव्य की मुख्य विषय वस्तु प्रकृति और प्रेम रहा। फिर भी विभिन्न अध्येताओं ने स्थापित किया है कि नेपाली जी की प्रत्येक रचना के केंद्र में मनुष्य की चिन्ता निहित होती थी फिर वह चाहे वह राष्ट्रीयता से जुड़ी रचना हो या प्रकृति पर रचा गया कोई गीत। प्रकृति अनुरागी होने के कारण ही नेपाली जी की प्रारंभिक कृतियों में प्रकृति चित्रण बखूबी मिलता है। काव्य संग्रह ‘पंछी’ खण्ड-काव्य है जिसमें एक चिड़िया दम्पत्ति के संयोग एवं वियोग का मनोहारी एवं मार्मिक वर्णन है। इस काव्य में प्रकृति का अत्यन्त सजीव एवं मोहक वर्णन हुआ है। वनराज और वनरानी के मिलन और वियोग का चित्रण करते हुए नेपाली जी ने मानवीय मनोभावों को उकेरा है। प्रकृति आराधक कवि एवं गीतकार गोपाल सिंह नेपाली जी का अंतिम काव्य संग्रह “हिमालय ने पुकारा” कोमल सम्वेदनाओं का दस्तावेज कम और राष्ट्रभक्ति का उदघोष अधिक है। यह कृति उन रचनाओं का संग्रह है जो उन्होंने चीन से युद्ध में हुई देश की पराजय से क्षुब्ध होकर लिखी थी। “हिमालय ने पुकारा में कवि ने भारत के सुभुप्त गौरव को जगाया है, सोई हुई चेतना को ललकारा है।
भारतीय स्वतंत्रता से जुड़ी अन्य रचनाओं में ‘मेरा देश बड़ा गर्वीला’, ‘युगांतर’, ‘ नवीन कल्पना करो’, ‘स्वतंत्रता का दीपक’, ‘भाई बहन’ का जिक्र किया जाता है।
जहां एक और उनकी रचना में देशभक्ति का जज्बा दिखाई देता है तो बेलगाम राजनीति पर निगाह भी रखते महसूस होते हैं। जब गहराई से हम इनकी रचनाओं को देखते हैं तो पाते हैं कि नेपाली जी के काव्य में ग़रीब-वंचितों की उपेक्षित आवाज़ है।

गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की 112 वीं जयंती पर विशेष

नेपाली जी को देश में उचित स्थान व सम्मान नहीं मिला

प्रभावी एवं लोकप्रिय गीतकार होने के बाद भी नेपाली जी को अपेक्षित स्थान नहीं मिला। अपनी तरह के अन्य रचनाकारों की तरह वे भी योग्य सम्मान न पा सके। आजादी के बाद देश के निर्माण में जुटने वाली पीढ़ी ने इस कार्य में अपना सर्वस्व होम किया है। जीवन के तमाम संघर्षों से दो दो हाथ किए मगर कभी अपने लेखनी से समझौता नहीं किया। उस दौर के सभी रचनाकारों ने आज़ादी का संघर्ष में ही जिया था। स्वतंत्रता मिली तो राष्ट्र के नवनिर्माण की चिंता सताने लगी। भारत विभाजन की विभीषिका के बीच पहले राष्ट्र का एकीकरण फिर पड़ोसी देशों के हमलों से आहत कवि मन ने भविष्य को चेताया भी। कोई भी रचनाकार अपनी रचनाओं में ही जीवित रहता है। भारतीय समाज और पाठक वर्ग की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे कवियों व स्वतंत्रता सेनानियों को सदैव याद रखे।

स्वतंत्रता संग्राम में नेपाली जी ने क्रांतिकारी कविताओं का शंखनाद किया

गोपाल सिंह नेपालीजी हिंदी और नेपाली भाषा के प्रसिद्ध कवि व गीतकार थे। लोकप्रिय गीत लिखने के बाद भी गोपाल सिंह नेपाली लम्बे समय तक आर्थिक तंगी से घिरे रहे। आखिर में उनकी मुलाक़ात फिल्मिस्तान के तुलाराम जालान से हुई और उन्होंने नेपालीजी से अनुबंध कर लिया। उसके बाद नेपाली ने सर्वप्रथम फिल्म ‘मजदूर’ के लिए गीत लिखे। उन्होंने करीब 60 फिल्मों के लिए 400 गीत लिखे। नेपाली जी को जीते जी वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वह हकदार थे। अपनी इस भावना को उन्होंने कविता में इस तरह उतारा था…
अफसोस नहीं हमको जीवन में कुछ कर न सके
झोलियां किसी की भर न सके, संताप किसी का हर न सके
अपने प्रति सच्चा रहने का जीवन भर हमने यत्न किया
देखा देखी हम जी न सके, देखा देखी हम मर न सके।
भारत की स्वतंत्रता का समय और नेपाली की कविताओं का शंखनाद, मुर्दे में भी प्राण फूँकने की क्षमता दर्शाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु कवि फाख्ता है-
जंजीर टूटती न कभी अश्रुधार से,
दुख दर्द दूर भागने नहीं दुलार से।
कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए देशवासियों का आह्वान करते लिखते हैं-
‘बहन तू बन जा क्रांतिकराली, मैं भाई विकराल बनूँ
तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ ।
उपरोक्त पंक्तियाँ नेपाली जी की काव्य शक्ति का एहसास कराने वाली वे पंक्तियाँ हैं, जो उन्हें राष्ट्रकवि कहने के लिए बाध्य कर देती हैं। कवि नेपाली की दष्टि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के नवनिर्माण की ओर जाती है तब वह बोल उठता है-गीतकार गोपाल सिंह नेपाली की 112 वीं जयंती पर विशेष
तुम कल्पना करो नवीन कल्पना करो,
तुम कामना करो, किशोर कामना करो।
गीतकार नेपाली ने हिन्दी गीतों को न केवल नयी अर्थवत्ता दी बल्कि आम आदमी की अनुभूतियों से भी जोड़ा। जनता के कवि के रूप में नेपाली ने अपनी अलग पहचान बनाई। एक इतिहास बनाने वाले कवि की पहचान –
‘हम धरती क्या आकाश बदलने वाले हैं,
हम तो कवि हैं, इतिहास बदलने वाले हैं।
स्वतंत्रता के बाद देश में अनुशासनहीनता का एक लंबा दौर चला बल्कि अनुशासनहीनता ने क्या राजनीति, क्या शिक्षा या क्या शासन प्रत्येक जगह अपनी जड़ें जमा ली तब कविवर नेपाली ने लिखा-
ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से
चर्खा चलता है हाथों से शासन चलता है तलवार से।
इस भाँति कविवर गोपाल सिंह नेपाली बहुमुखी प्रतिभा के महान गीतकार हैं । उनकी रचनाओं का एक विशाल संसार है। कुछ मान्यताओं के अनुसार कविवर नेपाली केवल राग या प्रकति का गीतकार नहीं बल्कि आग और झंझा का भी कवि है। स्वाभिमान के साथ जीने वाले कवि ने समय से लड़ना सीखा था, हाथ पसारना नहीं।

गोपाल सिंह नेपालीजी का निधन

गुमनामी में जीने वाले गीतकार गोपाल सिंह नेपाली ने गुमनामी में ही अपना दम तोड़ दिया। अपने जीवन के अंतिम कवि सम्मेलन से कविता पाठ करके लौटते समय बिहार के भागलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर दो पर गोपाल सिंह नेपाली की मृत्यु 17 अप्रैल 1963 को बिहार के भागलपुर स्टेशन पर हुई। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दो दिन तक उनके शव को पहचाना नहीं गया था। हिंदी साहित्य उनकी कविताओं एवं लोकप्रिय गीतों से सदैव सुसज्जित रहेगा।

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