राकेश बिहारी शर्मा – मातृ दिवस, मातृ और दिवस शब्दों से मिलकर बना है जिसमें मातृ का अर्थ है मां और दिवस यानि दिन। मां मात्र एक शब्द नहीं है। यह एक ऐसा मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से सभी पीड़ाओं का नाश हो जाता है। मातृ दिवस हम में से हर एक के लिए विशेष है और पूरे विश्व में इसे हर जगह मनाया जाता है। मां एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर प्रत्येक माँ की ममता जग उठती है। ईश्वर ने बहुत सोच समझ कर माँ को इस धरती पर भेजा है। बच्चपन में जब बच्चे चलना और बोलना नहीं जानते तब से ही मां उनकी हर बातें समझ जाती है। चाहे बच्चें बड़े हो या छोटे बाहर से घुम फिर कर आने के बाद सबसे पहले अपनी मां को ही पुकारते है। मां होती ही है इतनी अच्छी।
कब से शुरु हुई ये परंपरा – ऐसा माना जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय “मातृ दिवस” मदर्स डे मनाने की शुरुआत अमेरिका से हुई थी। साल 1912 में जब एना जार्विस नाम की अमेरिकी महिला एना ने अपनी मां एन रीव्स जार्विस के निधन के बाद इस दिन को मनाने की शुरुआत की। जब एना की मां की निधन हुआ तो उन्होंने कभी शादी न करने का फैसला करते हुए अपनी मां के नाम अपना जीवन समर्पित कर दिया। एना अपनी मां को आदर्श मानती थीं और उनसे बहुत प्यार करती थीं। हालांकि, 1905 में एन रीव्स जार्विस की मौत हो गई और उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी उनकी बेटी एना जार्विस ने उठा ली। हालांकि, एना ने इस दिन की थीम में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने कहा कि इस दिन लोग अपनी मां के त्याग को याद करें और उसकी सराहना करें। लोगों को उनका यह विचार इतना पसंद आया कि इसे हाथोंहाथ ले लिया गया और एन रीव्स के निधन के तीन साल बाद यानी 1908 में पहली बार मदर्स डे मनाया गया। उन्होंने मां को सम्मान देने के लिए यह दिवस मनाने की शुरुआत की थी। उन दिनों यूरोप में इस खास दिन को मदरिंग संडे कहा जाता था। भारत में इसे मई के दूसरे रविवार के दिन मनाया जाता है जो इस बार 8 मई को है। इस दिन को मनाने की शुरुआत औपचारिक तौर पर 1914 में हुई थी।
मां और बच्चे का रिश्ता दुनिया में सबसे अहम और अनमोल होता है। मां से रिश्ता होने के बाद ही एक बच्चा बड़ा होने तक अपने जीवन में कई और रिश्तों को अपना सकता है। मां की ममता और प्यार हर इंसान के लिए बहुत जरूरी होती है। मां बच्चे की इस जरूरत को बिना किसी स्वार्थ के पूरा करती है। वैसे तो मां अपने बच्चे पर अपना पूरा जीवन कुर्बान कर देतीं हैं। बच्चे की खुशी में खुश और तकलीफों में दर्द बांटती है। ऐसे में बच्चे अपनी मां के लिए कुछ खास करना चाहते हैं। मां की इसी ममता और प्यार को सम्मान देने के लिए एक खास दिन होता है। लोग इस दिन अपनी मां को खास महसूस कराकर उन्हें यह बताने की कोशिश करते हैं कि उनके जीवन में मां की क्या भूमिका है और वह भी मां से प्यार करते हैं। “मातृ दिवस” भारत में ही नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि मदर्स डे मई माह के दूसरे रविवार को ही क्यों मनाया जाता है? “मातृ दिवस” मनाने की शुरुआत कब से और क्यों हुई?
मई में रविवार को ही क्यों मनाते हैं “मातृ दिवस” ? – एना के इस कदम के बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने औपचारिक तौर पर 9 मई 1914 में “मातृ दिवस” मनाने की शुरुआत की। इस खास दिन के लिए अमेरिकी संसद में कानून पास किया गया। जिसके बाद मई महीने के दूसरे रविवार को “मातृ दिवस” मनाने का फैसला लिया गया। बाद में “मातृ दिवस” को मई के दूसरे रविवार के दिन मनाने की स्वीकृति अमेरिका समेत यूरोप, भारत और कई अन्य देशों ने भी दी।
मातृ दिवस मनाने की वजह? – अपनी मां को खास महसूस कराने, उनके मातृत्व और प्यार को सम्मानित करने के उद्देश्य से बच्चे ता युवा मदर्स डे मनाते हैं। पिछले कुछ दशकों में मां को समर्पित इस दिन को बहुत खास तरीके से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपनी मां के साथ समय बिताते हैं। उनके लिए गिफ्ट या कुछ सरप्राइज प्लान करते हैं। पार्टी का आयोजन करते हैं और मां को बधाई देते हैं उनके प्रति अपने प्यार और लगाव को जाहिर करते हैं।
मातृ दिवस एक मनाने के रूप अनेक !
अमेरिका व भारत सहित कई अन्य देशों में मई के दूसरे रविवार को “मातृ दिवस” मनाया जाता है। नेपाल में वैशाख कृष्ण पक्ष में “माता तीर्थ उत्सव” के रूप में मनाया जाता है। यूरोपीय देशों में “मद्रिंग सन्डे” के रूप में मनाया जाता है। इंडोनेशिया में 22 दिसंबर को मातृ दिवस मनाया जाता है। यह दिन उस सच को स्मरण करने का है कि यदि आपके जीवन में सबसे अधिक कोई आपसे प्रेम करता है तो वो आपकी मां है। भाषाई दृष्टि से भले ही मां के विभिन्न रूप हैं। लेकिन वात्सल्य की दृष्टि से सभी एक समान होती हैं। वह वास्तव में हमारे लिए भगवान का दिया सबसे बढ़िया उपहार है और उसकी सबसे अच्छी बात यह है कि वह हमें बिना शर्त प्यार और स्नेह करती है। हमारे लिए उसका प्यार अतुलनीय है और वह हमेशा हमारे लिए सुरक्षात्मक बनी रहती है। यहां तक कि जब हम गलती कर देते हैं तब भी वह हमारा हाथ पकड़कर हमें सही रास्ते दिखाती है। वह हमें धार्मिकता और नैतिक संकट के समय हमारे सिद्धांतों को कैसे कायम रखना चाहिए यह सिखाती है। हम उसके बिना अपने जीवन की एक पल की भी कल्पना नहीं कर सकते। एक शिशु का जब जन्म होता है, तो उसका पहला रिश्ता मां से होता है। एक मां शिशु को पूरे 9 माह अपनी कोख में रखने के बाद असहनीय पीड़ा सहते हुए उसे जन्म देती है और इस दुनिया में लाती है। इन नौ महीनों में शिशु और मां के बीच एक अदृश्य प्यार भरा गहरा रिश्ता बन जाता है। यह रिश्ता शिशु के जन्म के बाद साकार होता है और जीवन पर्यन्त बना रहता है। मां की ममता और उनके आंचल की महिमा को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। कोई भी धर्म हो या संस्कृति हो उसमें मां के अलौकिक गुणों का उल्लेखनीय वर्णन मिलता है। हमारे हिन्दू धर्म में देवियों को मां कहकर संबोधित किया जाता है। हमारे वेद, पुराण, महाकाव्य आदि सब मां की अपार महिमा के गुणगान करते हैं। विद्वानों, ऋषियों, साहित्यकारों आदि सभी ने मां के प्रति अपनी अनुभूतियों को कलमबद्ध करने का सुंदर प्रयास किया है और करते आ रहे हैं। मां के रहते जीवन में कोई गम नहीं होता, दुनिया साथ दे ना दे पर मां का प्यार कभी कम नहीं होता।