राकेश बिहारी शर्मा- आज हम इक्कीसवीं सदी के वैश्वीकरण एवं उत्तर आधुनिकता के युग में प्रवेश कर चुके हैं और एक ऐसे वातावरण में जीवन बिता रहे हैं जिसमें भौतिकवादिता, आधुनिकता, व्यक्तिगत ईर्ष्या, जातिगत द्वेष और क्षेत्रीयता आदि की भावना चारों ओर दिखलाई पड़ रही है। भारतीय समाज में परम्पराओं एवं रूढ़िवादिताओं का आधिपत्य रहने से, अंदर से यह व्यवस्था अनेक जटिलताओं से घिर चुकी है।
एक तरफ आर्थिक सामाजिक विकास की चाह व दूसरी तरफ परम्परागत रूढ़िवादी मूल्य। अतः अब समय आ गया है कि बुद्धिजीवी इस तरह के कार्यों को न करें और शोषित वर्ग अपनी भूमिका को इस ओर ईमानदारी से निर्वाह करने की कोशिश करें। भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया में मानव, मानव होगा न कि शोषित व सवर्ण के रूप में पहचाना जायेगा।
आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है, आज पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन समय की मांग है। जिसमें वर्ग भेद खत्म होगा और कोई भी दीन-हीन नहीं होगा। निश्चय ही अच्छे कार्यों को अपनाकर, सामाजिक मूल्यों को मानकर, एक स्वच्छ परम्परा की नींव डालकर भारतीय समाज सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर करने के लिए भोला पासवान शास्त्री का प्रादुर्भाव हुआ।
19वीं-20 वीं सदी में ओबीसी और दलित जातियों के अनेक नेता उभरे, जिन्होंने विशेषकर उत्तरप्रदेश व बिहार में सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों में निर्णायक भूमिकाएं अदा कीं। इनमें से कुछ राज्य सरकारों के मुखिया भी बने। दक्षिण भारत-उदाहरणार्थ तमिलनाडू-में शोषित नेताओं के उदय के काफी समय बाद, भारत में इन नेताओं को राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान मिल सका। शोषित नेता कुछ ऐसी सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रियाओं की उपज थे, जिनकी शुरूआत सन 1950 के दशक से मानी जा सकती है।
उनके उदय के पीछे थी तीन राजनीतिक विचारकों- बी.आर. आंबेडकर, राम मनोहर लोहिया की विरासत। ये नेता इन राजनीतिक विचारकों के जीवन, सोच और राजनीतिक रणनीतियों से प्रेरणा ग्रहण करते थे। भारत के उन उपेक्षित और शोषित नेताओं, जिन्होंने राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला, में उत्तरप्रदेश के चरण सिंह, मुलायम सिंह यादव और मायावती और बिहार के भोला पासवान शास्त्री, कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान शामिल है।
बिहार के हो ची मिन्ह कहे जाने वाले आदर्श व्यक्तित्व भोला पासवान शास्त्री एक ऐसा राजनेता जो राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे, केन्द्र में मंत्री और चार बार विधानसभा में विपक्ष के नेता व पहली बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग बना तो वो उसके पहले चेयरमैन भी रहे थे।
भोला पासवान शास्त्री जी एक बेहद ईमानदार और देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी थे। वह महात्मा गांधी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सक्रिय हुए थे। बहुत ही गरीब परिवार से आने के बावजूद वह बौद्धिक रूप से काफी सशक्त थे। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें तीन बार अपना नेता चुना और वह तीन बार अखंड बिहार के मुख्यमंत्री बनाये गये थे।
भोला पासवान शास्त्री का जन्म और शिक्षा
भोला पासवान शास्त्री का जन्म 21 सितंबर 1914 को बिहार के पूर्णिया जिले के केनगर प्रखंड में पंचायत गणेशपुर के बैरगाछी गांव में एक साधारण दलित दुसाध जाति के परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम धुसर पासवान था ये दरभंगा महाराज के यहाँ सिपाही की नौकरी करते थे। भोला पासवान अपने गांव बैरगाछी में संस्कृत पाठशाला में पढ़े और आगे बढ़े थे। दरभंगा संस्कृत विवि से शास्त्री की डिग्री लेने के कारण उनकी टाइटिल में शास्त्री लगा था। शास्त्री जी नेहरू जी के निकटतम नेता थे और वे बाबा साहब अम्बेडकर के नेहरू जी से मतान्तर होने के बाजजूद नेहरू जी के साथ रहे। बिहार में उनका तीन मुख्यमंत्रीत्व काल रहा। एक गरीब दुसाध परिवार में जन्मे भोला पासवान शास्त्री, प्रतिबद्ध समाजवादी थे।
भोला पासवान शास्त्री का राजनैतिक जीवन
भोला पासवान शास्त्री सभी वर्गों के रहनुमा थे। वे केवल दलितों के नहीं बल्कि अकलियतों और पिछड़ों सहित सभी वर्गों के नेता थे। उन्होंने सभी के लिए बगैर भेदभाव के काम किया। शास्त्री जी की ईमानदारी अतुलनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। बिहार में भोला पासवान शास्त्री आठवें सीएम थे और उनका तीन मुख्यमंत्रीत्व काल रहा है। फरवरी 1968 से जून 1968 और जून 1969 से जुलाई 1969 फिर जून 1971 से जनवरी 1972 तक। बिहार में व्यक्तित्वों की विविधता रही है और उसी कड़ी के एक विशेष व्यक्तित्व रहे हैं स्वर्गीय भोला पासवान शास्त्री जी। भोला पासवान शास्त्री को बिहार की राजनीति का विदेह कहा जाता है। भोला पासवान शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार एवं व्यक्तित्व के धनी थे और जीवनपर्यंत हमेशा सादगी से जीते रहे। उन्होंने कभी भी निजी तौर पर धन नहीं बनाया और इसी कारण से बिहार की राजनीति के वे विदेह कहे गए। वे 1972 में राज्यसभा सांसद भी मनोनीत हुए और केन्द्र सरकार में मंत्री भी बने थे।
भोला पासवान शास्त्री ने अपने लिए नहीं जमा की कोई संपत्ति
भोला पासवान शास्त्री ने मिसाल पेश करते हुए पूर्णिया अथवा अपने गांव बैरगाछी में कोई संपत्ति जमा नहीं की और आम आदमी की तरह सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत किया। यहां तक लाभ के पद से परिजनों को भी दूर रखा। उनका गांव घर और उनके परिजन आज भी सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। वे मंत्री और मुख्यमंत्री रहते हुए भी पेड़ के नीचे जमीन पर बैठने में भी संकोच नहीं करते थे और वहीं जमीन पर बैठकर अधिकारियों से मीटिंग कर शासकीय संचिकाओं का निपटारा भी कर दिया करते थे। अब बिहार की राजनीति में ऐसे ‘विदेह’ की मौजूदगी, सिर्फ शब्दों, भावों, फूलों और आयोजनों और उनके विचारों को याद करने तक ही सिमट कर रह गई है।
भोला पासवान शास्त्री का परिवारिक जीवन
भोला पासवान शास्त्री की कोई संतान नहीं थी। तीन भतीजे थे, जो अब जीवित नहीं हैं। उन्हीं का वंश चला आ रहा है, जिसमें उनके एक परपोते बिट्टू पासवान ने साल 2020 में मैट्रिक (10वीं) की परीक्षा पास की है। अन्यो बच्चे गांव के ही स्कूल में पढ़ने जाते हैं। परिवार में आज तक कोई सदस्य सरकारी नौकरी नहीं पा सका।
भोला पासवान शास्त्री का निधन
भोला पासवान शास्त्री का निधन 4 सितंबर 1984 को पटना में हुआ था। कोई संतान न होने के कारण उनका अंतिम संस्कार दूर के रिश्ते में भतीजे बिरंची पासवान ने मुखाग्नि देकर अंत्येष्टि किया था। आज के समय मे स्वर्गीय भोला बाबू जैसे नेता व राजनीतिज्ञ प्रासंगिक हो गए हैं, आज नेता मुखिया या सरपंच बनकर ही इतना कमा लेते हैं जिनसे उनकी सात पुस्त आसानी से चल सके।