● जगदेव प्रसाद ने नारा दिया था “सौ में नब्बे शोषित हैं और नब्बे भाग हमारा है”
● जगदेव बाबू समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के पक्षधर थे
● जगदेव बाबू एक सामान तथा अनिवार्य शिक्षा के पैरोकार थे
● जगदेव बाबू क्रांतिकारी तथा ओजस्वी विचारों के प्रखर पत्रकार थे
● भारत में ‘सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति के जनक थे जगदेव प्रसाद
राकेश बिहारी शर्मा – बिहार लेनिन श्री जगदेव बाबू कुशवाहा वंचित और शोषित समाज के मनुवादी व सामंती रवैये के इस दौर मे उनका यह नारा और भी प्रासंगिक हो गया है। “सौ में नब्बे शोषित है नब्बे भाग हमारा है, 10 का शासन नब्बे पर नहीं चलेगा, नहीं चलेगा”। उन्होंने कहा था, “पहली पीढ़ी गोली खायेगी, दूसरी पीढ़ी जेल जायेगी और तीसरी पीढ़ी राज करेगी”। शोषित समाज के अधिकारों , सामाजिक समता की लड़ाई लड़ने व वंचित वर्गों में उनके आंदोलन के गति पकड़ने के कारण सामंतवादी ताक़तों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
“राष्ट्रपति का बेटा हो या हो मजदूर की संतान, सबकी शिक्षा एक समान” नारा देने वाले तथा शोषितों, वंचितों, पिछड़ों, दलितों और उपेक्षितों के उत्थान के लिए संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बिहार लेनिन “अमर शहीद बाबू जगदेवप्रसाद जी” देश के खातिर अपने आप को बलिदान कर दिया। महात्मा ज्योतिबा फूले, पेरियार रामासामी नायकर, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर और मानवतावादी महामना अजर्क संघ के रामस्वरूप वर्मा के विचारों को कार्यरूप देने वाले अमर शहीद जगदेव प्रसाद कुशवाहा जी का जन्म 2 फरवरी 1922 को महात्मा बुद्ध की ज्ञान-स्थली बोध गया के समीप कुर्था प्रखंड के कुरहारी ग्राम में अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था।
इनके पिता प्रयाग नारायण कुशवाहा पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली अनपढ़ एवं धार्मिक विचारों से ओतप्रोत थी। जब वे शिक्षा हेतु घर से जगदेव बाबू बाहर रह रहे थे, उनके पिता काफी अस्वस्थ रहने लगे। जगदेव बाबू की माँ रासकली देवी धार्मिक स्वाभाव की थी, अपने पति की सेहत के लिए उन्होंने देवी-देवताओं की खूब पूजा, अर्चना की तथा मन्नते मांगी, इन सबके बावजूद उनके पिता का देहावसान हो गया। यहीं से जगदेव बाबू के मन में हिन्दू धर्म के प्रति विद्रोही भावना पैदा हो गयी, उन्होंने घर के सारे देवी-देवताओं की मूर्तियों, तस्वीरों को उठाकर पिता की अर्थी पर डाल दिया। उसके बाद उन्होंने देवी-देवताओ और भगवानो से सम्बंधित सभी डकोसलों को जिंदगीभर के लिए नकार दिया। उस दौर में देश में जातिवाद का नशा चरम पर था देश में समांतिवाद व्यवस्था का विरोध करने का दुस्ससाहस मुश्किल हो कोई करता था।
इस ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म से जो विक्षोभ उत्पन्न हुआ वो अंत समय तक रहा, उन्होंने ब्राह्मणवाद का प्रतिकार मानववाद के सिद्धांत के जरिये किया। अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की! उनकी इच्छा उच्च शिक्षा ग्रहण करने की थी, वे हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए, निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण बाबू जगदेव प्रसाद की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील तथा जुझारू छवि की रही, वे बचपन से ही ‘विद्रोही स्वाभाव’ के थे। अमर शहीद जगदेव प्रसाद कुशवाहा जी जब किशोरावस्था में अच्छे कपड़ें पहनकर स्कूल जाते तो उच्च वर्ण के छात्र उनका उपहास उड़ाते थे, एक दिन गुस्से में आकर उन्होंने उनकी पिटाई कर दी और उनकी आँखों में धूल डाल दी, इसके लिए उनके पिता को जुर्माना भरना पड़ा और माफ़ी भी मांगनी पडी उनके साथ स्कूल में बदसूलकी भी हुई।
एक दिन बिना किसी गलती के एक शिक्षक ने जगदेव बाबू को चांटा जड़ दिया, कुछ दिनों बाद वही शिक्षक कक्षा में पढ़ाते-पढाते खर्राटे भरने लगे, जगदेव जी ने उसके गाल पर एक जोरदार चांटा मारा था, शिक्षक ने प्रधानाचार्य से शिकायत की। जगदेव बाबू ने निडर भाव से कहा, ‘गलती के लिए सबको बराबर सजा मिलनी चाहिए, चाहे वो छात्र हो या शिक्षक’! पटना विश्वविद्यालय में पढ़ने के दौरान उनका परिचय चंद्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ, चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढ़ने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया, अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हुए। इसी बीच वे ‘सोशलिस्ट पार्टी’ से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र ‘जनता’ का संपादन भी किया। एक प्रखर संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी।
1955 में हैदराबाद जाकर इंगलिश सप्ताहिक ‘तथा हिन्दी सप्ताहिक ‘उदय’ का संपादन आरभ किया। उनके क्रांतिकारी तथा ओजस्वी विचारों से पत्र-पत्रिकाओं का सर्कुलेशन लाखों की संख्या में पहुँच गया। अमर शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा जी को धमकियों का भी सामना करना पड़ा, प्रकाशक से भी मन-मुटाव हुआ! लेकिन जगदेव बाबू ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, आखिरकार संपादक पद से त्यागपत्र देकर पटना वापस लौट आये और समाजवादियों के साथ आन्दोलन शुरू किया। अमर शहीद जगदेव बाबू कुशवाहा जी ने 1967 के विधानसभा चुनाव में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी,1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था, तो उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की। उनके अथक प्रयासों से स्वतंत्र बिहार के इतिहास में पहली बार संविद सरकार बनी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया।
जगदेव बाबू तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझ-बूझ से पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ, लेकिन पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले पर लोहिया से अनबन हुई और ‘कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला’ की स्थिति देखकर संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी) छोड़कर 25,अगस्त 1967 को ‘शोषित दल’ नाम से नयी पार्टी बनाई। बिहार में राजनीति को जनवादी बनाने के लिए उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक क्रांति की आवश्यकता महसूस की। वे मानववादी रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित (स्थापना 1 जून, 1968) ‘अर्जक संघ’ में शामिल हो गये। अमर शहीद जगदेव बाब कुशवाहा जी ने कहा था कि अर्जक संघ के सिद्धांतो के द्वारा ही ब्राह्मणवाद को ख़त्म किया जा सकता है और सांस्कृतिक परिवर्तन कर मानववाद स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने आचार, विचार, व्यवहार और संस्कार को अर्जक विधि से मनाने पर बल दिया। जगदेव बाबू कुशवाहा जी एक महान राजनीतिक दूरदर्शी नेता थे, वे हमेशा शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा किसी को महत्त्व नहीं दिया। मार्च 1970 में जब जगदेव बाबू के दल के समर्थन से दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने।
7 अगस्त 1972 को शोषित दल तथा रामस्वरूप वर्मा की पार्टी ‘समाज दल’ का एकीकरण हुआ और ‘शोषित समाज दल’ नामक नयी पार्टी का गठन किया गया,एक दार्शनिक तथा एक क्रांतिकारी के संगम से पार्टी में नयी उर्जा का संचार हुआ। जगदेव बाबू ने पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में जगह-जगह तूफानी दौरा आरम्भ किया। वे नए-नए तथा जनवादी नारे गढ़ने में निपुण थे ही। जन सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे, उत्तर भारत में ‘शोषितों की क्रान्ति’ के जनक, अर्जक संस्कृति और साहित्य के पैरोकार, शोषित समाज दल तथा बाद में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना और मंडल कमीशन के प्रेरणास्रोत, सर्वहारा के महान नायक भारतीय, क्रांतिकारी, बहुजन नायक बिहार लेनिन के नाम से विख्यात बाबू कुशवाहा के जगदेव बाबू को बिहार लेनिन उपाधि हजारीबाग जिला में पेटरवार (तेनुघाट) में एक महती सभी में वहीं के लखन लाल महतो, मुखिया एवं किसान नेता ने अभिनन्दन करते हुए दी थी। शिक्षा को लेकर बाबू जी के विचार समतामूलक शिक्षा व्यवस्था के पक्ष में थे।
जगदेव बाबू एक सामान तथा अनिवार्य शिक्षा के पैरोकार थे तथा शिक्षा को केन्द्रीय सूची का विषय बनाने के पक्षधर थे। वे कहते थे चपरासी हो या राष्ट्रपति की संतान, सबको शिक्षा एक सामान। 5 सितम्बर 1974 का वो दिन जगदेव बाबू जी हजारों की संख्या में शोषित समाज का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे। कुर्था में तैनात डी. एस. पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए। पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी गोली सीधे उनके गर्दन में जा लगी, वे गिर पड़े, सत्याग्रहियों ने उनका बचाव किया, किन्तु पुलिस घायलावस्था में उन्हें पुलिस स्टेशन ले गयी। पुलिस प्रशासन ने उनके मृत शरीर को गायब करना चाहा, लेकिन भारी जन-दबाव के चलते उनके शव को 6,सितम्बर को पटना लाया गया, उनकी अंतिम शवयात्रा में देश के कोने-कोने से लाखों लोग पहुंचे थे। अमर शहीद बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे,जहानाबाद की सभा में उन्होंने कहा था “दस का शासन नब्बे पर,नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। सौ में नब्बे शोषित है ,नब्बे भाग हमारा है,धन-धरती और राजपाट में,नब्बे भाग हमारा है” जगदेव बाबू जी ने पंचकठिया प्रथा का अंत करवाया उस समय किसानों की जमीन की फसल का पांच कट्ठा जमींदारों के हाथियों को चारा देने की एक प्रथा सी बन गयी थी। गरीबों, शोषितो वर्गों का किसान जमीदार की इस जबरदस्ती का विरोध नहीं कर पाता था। जगदेव बाबू कुशवाहा ने इसका विरोध करने को ठाना। जगदेव बाबू ने अपने हम-जोली साथियों से मिलकर रणनीति बनायी।
जब महावत हाथी को लेकर फसल चराने आया तो पहले उसे मना किया गया, जब महावत नहीं माना तब जगदेव बाबू ने अपने साथियों के साथ महावत की पिटाई कर दी और आगे से न आने की चेतावनी भी दी। इस घटना के बाद पंचकठिया प्रथा बंद हो गयी। बाबू जगदेव कुशवाहा जी को बिहार की जनता अब इन्हें ‘बिहार के लेनिन’ के नाम से पुकारती है। “बाबू जगदेव कुशवाहा जी के दिए नारे :- गोरी गोरी हाथ कादो में, अगला, दो बातें हैं मोटी-मोटी, हमें चाहिए इज्जत और रोटी। जगदेव बाबू कुशवाहा जी के योगदान को झुठला नहीं सकता है। बहुजन समाज आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते है जो शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम साँस तक लड़े।
शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा, सामाजिक क्रांति के महानायक शोषित पिछड़ों के सच्चे मशीहा बाबू जगदेव सिंह कुशवाहा जी अमर रहें। बाबू जगदेव सिंह कुशवाहा ऐसे योद्धा का नाम है, जिसने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की और उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया। वे पहले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने सामाजिक न्याय को धर्मनिरपेक्षवाद के साथ मिश्रित किया जब ‘मंडल कमीशन कमंडल की भेंट चढ़ गया तब उनके सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण को भारी चोट पहुँची।
आज सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के लोग पूजा-पाठ करते है, मंदिर खुद बनवाते है लेकिन पुजारी उच्च वर्ग से होता है, पुजारी पद का कोई सामाजिक तथा लैंगिक प्रजातंत्रीकरण नहीं है इसमें शोषण तो शोषित समाज का ही होता है। अर्थात धर्म का व्यापार कई करोड़ों का है और ये खास वर्ण के लोगों की दीर्घकालिक आरक्षित राजनीति है। इसलिए जगदेव बाबू ने लोगों को राजनीतिक संघर्ष के साथ-साथ सांस्कृतिक संघर्ष की आवश्यकता का अहसास दिलाया था। उन्होंने अर्जक संघ को अंगीकार किया जो ब्राह्मणवाद का खात्मा करके मानववाद को स्थापित करने की बात करता है। उन्होंने 1960-70 के दशक में सामाजिक क्रांति का बिगुल फूंका था उन्होंने कहा था कि “यदि आपके घर में आपके ही बच्चे या सगे-संबंधी की मौत हो गयी हो किन्तु यदि पड़ोस में ब्राह्मणवाद विरोधी कोई सभा चल रही हो तो पहले उसमें शामिल हो”, ये क्रांतिकारी जज्बा था जगदेव बाबू का आज फिर से जगदेव बाबू की उस विरासत को आगे बढ़ाना है जिसमें 90% लोगों के हित, हक-हकूक की बात की गयी है।
जगदेव बाबू के संघर्षों के आलोक में अगर वर्तमान भारतीय समाज की कोढ़ बन चुकी समस्याओं का अवलोकन करें तो पाते हैं कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से किसान एवं आदिवासी सर्वाधिक शोषित हैं। भारत में महिलाओं की स्थिति स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी संतोषजनक नहीं हो पायी है। मध्यवर्गीय ग्रामीण और शहरी समाज में स्त्रियों को एक हद तक आर्थिक आजादी तो हासिल हुई है किन्तु सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में हालात अभी ठीक नहीं हैं। स्वतंत्र भारत में ऐसे राजनेता बहुत कम हुए हैं जिनकी समझ जगदेव प्रसाद की तरह स्पष्टवादी हों। जगदेव बाबू का मानना था कि भारत का समाज साफ़तौर पर दो तबकों मे बंटा है : शोषक एवं शोषित। शोषक हैं पूंजीपति, सामंती दबंग और ऊँची जाति के लोग और शोषितों में किसान, असंगठित एवं संगठित क्षेत्र के मजदूर और दलित आदि शामिल हैं।
जगदेव प्रसाद ने सामाजिक न्याय को परिभाषित करते हुए कहा था कि “दस प्रतिशत शोषकों के जुल्म से छुटकारा दिलाकर नब्बे प्रतिशत शोषितों को नौकरशाही और जमीनी दौलत पर अधिकार दिलाना ही सामाजिक न्याय है।”
हमें ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हमारे पूर्वजों का संघर्ष और बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। हमें उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।