Sunday, January 5, 2025
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ककड़िया विद्यालय में मनाई गई सावित्री बाई फुले की जयंती

ककड़िया विद्यालय में मनाई गई सावित्री बाई फुले की जयंती

●महिला शिक्षा क्रांति की ज्योति सावित्री बाई फुले की 194 वीं जयंती मनाई गई

●भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले की मनाई गई 194 वीं जयंती

नूरसराय,ककड़िया 3 जनवरी 2025 : स्थानीय मध्य विद्यालय ककड़िया के प्रांगण विद्यालय के चेतना सत्र में महिला शिक्षा क्रांति की ज्योति सावित्री बाई फुले की 194 वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई। जयंती समारोह प्रधानाध्यापक दिलीप कुमार, वरीय शिक्षक राकेश बिहारी शर्मा ने सावित्रीबाई फुले की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित और दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
समारोह की अध्यक्षता विद्यालय के प्रधानाध्यापक शिक्षाविद् दिलीप कुमार ने जबकि संचालन विद्वान शिक्षिका पूजा कुमारी ने की।

इस अवसर पर समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए शिक्षक राकेश बिहारी शर्मा ने उपस्थित विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज समाज में महिलाओं को जो कुछ भी आजादी मिली है तो इसमें समाज सेविका, महिला शिक्षा की अग्रदूत विदुषी सावित्रीबाई फुले का अहम योगदान है। महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखने के लिए षड्यंत्र रची गई थी ताकि वे शिक्षित होकर अपने हक और अधिकार की बात ना करने लगे। उस विपरीत परिस्थिति में सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए संघर्ष की और बालिकाओं के लिए 1 जनवरी 1848 को पुणे में विद्यालय की स्थापना की थी। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले कुशल शिक्षिका के साथ मराठी की प्रखर कवयित्री थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। उन्होंने कहा कि जिस समय महिला को किसी भी समाज में शिक्षा पाने का अधिकार नहीं था। उन्होंने अपने पति से शिक्षा प्राप्त कर बालिकाओं को शिक्षा देने के लिए कई तरह की दिक्कतों को झेलते हुए, कर्तव्य पथ पर अडिग और सफल रहीं। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई फुले महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ समाज से कई कुरीतियों को मिटाने का काम किया।

इस दौरान अध्यक्षता करते हुए विद्यालय के प्रधानाध्यापक दिलीप कुमार ने सावित्री बाई फुले के जीवनी पर प्रकाश डालते हुए बच्चों को उनके विचारों से प्रेरणा लेने की बात कही। उन्होंने कहा कि देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका सावित्रीबाई ज्यो।तिराव फुले की आज 194 वीं जयंती है। सावित्रीबाई ज्योकतिराव फुले को भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन की एक अहम शख्सियत माना जाता है। उन्होंने कहा कि सावित्रीबाई ने उस दौर में लड़कियों के लिए विद्यालय खोला जब बालिकाओं को पढ़ाना-लिखाना सही नहीं माना जाता था। उन्होंने बताया कि सावित्रीबाई ने 19वीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियां के विरुद्ध खड़ी हुई थी।

मौके पर मंच संचालन करते हुए शिक्षिका पूजा कुमारी ने सम्बोधित करते हुए बालिका शिक्षा पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब एक पुरुष शिक्षित होता है तो सिर्फ एक पुरुष ही शिक्षित होता है, लेकिन जब एक बालिका महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार एवं राष्ट्र शिक्षित होता है।

शिक्षक अरविन्द कुमार शुक्ल ने कहा कि माता सावित्रीबाई फूले ने 19वीं शताब्दी में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सती प्रथा, बाल/ विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। अपने पति समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले से प्रेरित होकर उन्होंने सामाजिक चेतना फैलाई। उन्होंने सबसे पहले बालिकाओं के लिए विद्यालय शुरू किया।

समारोह में शिक्षक मनुशेखर कुमार ने कहा कि सावित्रीबाई फूले देश में महिला शिक्षा क्रांति की ज्योति थी। जिस दौर में महिलाएं घर तक सीमित थी, उस जमाने में उन्होंने महिलाओं को एकजुट करने का काम किया। एक जनवरी 1848 को नौ बालिकाओं को लेकर पुणे में कन्या पाठशाला की शुरुआत कर अभूतपूर्व कार्य किया।

शिक्षक सच्चिदानन्द प्रसाद ने कहा कि सावित्री बाई फूले समाज के गरीब और लाचार लोगों की आवाज थीं। उन्होंने सामाजिक पाबंदियों के बीच बालिका, स्त्री और दलितों की शिक्षा की अखंड ज्योति जलाई। देश के युवाओं को उनके पदचिह्नों पर चलने की आवश्यकता है।

इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक अनुज कुमार, रणजीत कुमार सिन्हा, विश्वरंजन कुमार, मो. रिज़वान अफताब, मुकेश कुमार, रामजी चौधरी, बालसंसद के प्रधानमंत्री सौरभ कुमार, सोनाली कुमारी, नंदनी कुमारी, स्नेहा कुमारी, मायावती कुमारी, चांदनी कुमारी, नीतु कुमारी, रेखा कुमारी, हीरामणि कुमार, राजवीर कुमार, धर्मपाल कुमार, मोहित कुमार, अनमोल कुमार तथा विद्यालय परिवार के सदस्य समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे।

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