स्थानीय मध्य विद्यालय ककड़िया के प्रांगण में 5 सितम्बर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 135 वीं जयंती हर्षोल्लास पूर्वक मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता विद्यालय के प्रधानाध्यापक अनुज कुमार ने किया। कार्यक्रम की शुरूआत प्रधानाध्यापक अनुज कुमार ने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर किया। इस मौके पर उन्होंने बच्चों को डॉ. राधाकृष्णन के कृतित्व एवं व्यक्तित्व के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बच्चों से उनके पदचिह्नों पर चलने का आह्वान किया। मौके पर विद्यालय के शिक्षक राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुत बड़े विद्वान और एक बेहतरीन शिक्षक थे। इनका जन्म भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित तिरुतनि में 05 सितम्बर 1888 को हुआ था। इन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा अपने गांव के ही मिसनरी स्कूल में की। बी.ए. और एम.ए. की पढ़ाई उन्होंने मद्रास के क्रिस्चियन कॉलेज से की। इसके बाद उन्होंने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में एक सहायक लेक्चरर के रूप में काम करना शुरू किया। ये पढ़ाई में इतने अच्छे थे कि 30 वर्ष की आयु में कलकत्ता के वाईस चांसलर ने इन्हें सम्मानित किया था। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के प्रथम उपराष्ट्रपति बने। इन्हीं के याद में हम 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाते हैं क्योंकि इनका शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने कहा- शिक्षक समाज और राष्ट्र को दिशा देते रहे हैं और आज भी एक अच्छा शिक्षक जहां कहीं भी हो वह अपनी अमिट छाप समाज पर छोड़ता है। भारतीय शिक्षा दर्शन एवं शिक्षकों के महत्ता को सारे विश्व ने अपनाकर शिक्षकों का मान और सम्मान कायम किया है। पर दुर्भाग्य है कि आज के परिवेश में जो सम्मान शिक्षकों को मिलना चाहिए वह समाज और अपने देश में नहीं मिल रहा है।
इस दौरान नालंदा के प्रख्यात हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. अरुण कुमार ने विद्यालय के सभी शिक्षकों को कलम देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा- आज शिक्षा की बदौलत ही देश और प्रदेश विकास के पथ पर अग्रसर है। शिक्षकों को चाहिए कि वह बच्चों को ऐसी शिक्षा दें, जिससे बच्चे आगे चलकर जिले सहित प्रदेश और देश का नाम रोशन करें। डॉ. राधाकृष्णन एक उच्च कोटि के वक्ता, महान शिक्षाविद एवं दार्शनिक थे। वे सदैव अपने छात्रों के हित के बारे में सोचा करते थे। उनका आदर्श शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि शिक्षक ही वास्तविक रूप से राष्ट्र निर्माता होते हैं। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से प्रत्येक शिक्षक को सीख लेनी चाहिए। शिक्षक सच्चिदानंद प्रसाद ने कहा कि हमें उनके बताये मार्ग पर चलने की जरूरत है। वे शिक्षक से ज्यादा दार्शनिक थे। शिक्षक अपने आप में ही सम्मानीय हैं। शिक्षक की गरिमा व प्रतिष्ठा शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। गुरु को ईश्वर से भी बड़ा स्थान दिया गया है। शिक्षक सुरेन्द्र कुमार ने कहा कि शिक्षक एक दीपक की तरह जलकर अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान की रोशनी में छात्रों को लाता है और उन्हें काबिल बनाता है। समाज में शिक्षकों के योगदान को सम्मानित करने के लिए प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।शिक्षक जितेन्द्र कुमार मेहता ने कहा- ने कहा कि डॉ सर्वपल्ली के आदर्श सर्वकालिक पूज्यनीय और वंदनीय हैं। इनके आदर्शो को आत्मसात कर ही शिक्षा का सर्वब्यापीकरण संभव है। शिक्षक का स्थान सर्वोच्च होता है। इनके मार्गदर्शन में ही सफलता सुनिश्चित होता है।
शिक्षक अरविन्द कुमार शुक्ल ने कहा कि विश्व के 100 से अधिक देशों में मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस का महत्व भारत में अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक है जिसका निर्वहन गुरु शिष्य प्राचीन काल से ही करते आ रहे हैं।
उन्होंने कहा- आज का युवा वर्ग ज्ञान केंद्रित होने के बजाय आत्म केंद्रित और स्वार्थ केंद्रित होता जा रहा है, जिस पर अभिभावकों को ध्यान देने की जरूरत है। इस अवसर पर शिक्षक रणजीत कुमार, पूजा कुमारी, सुरेश कुमार, विश्व रंजन कुमार, मुकेश कुमार, पर्यावरण प्रेमी कंचन कुमार, समाजसेवी नीतीश कुमार सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।