टिकारी राज और क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन-स्वत्रतता आंदोलन की ध्वजवाहक थी महारानी इंद्रजीत कुंवर,टिकारी राज की महारानी इंद्रजीत कुंवर ने संभाली थी आंदोलन की बागडोर
राकेश बिहारी शर्मा-देश की आजादी की लड़ाई में टिकारी राज की प्रत्यक्ष रूप से कोई बड़ी भूमिका तो नहीं रही थी लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से क्रांतिकारियों को मदद दी जाती थी। क्रांतिकारियों को हथियार के साथ-साथ आर्थिक मदद भी दी जा रही थी। अंग्रेजी हुकुमत के लाख प्रयास के बाद भी चुपके से राज परिवार क्रांतिकारियों को सहयोग करता रहा था। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में टिकारी राज का यह योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। 1857 की क्रांति से लेकर आजादी के आदोलन में टिकारी राज परिवार सहित दर्जनों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे।
टिकारी राज नौ आना के प्रथम राजा महाराजा हितनारायण सिंह की पत्नी महारानी इंद्रजीत कुंवर धर्मपरायण के साथ एक देशभक्त महिला थीं। उनमें राष्ट्र भावना का विचार कूट-कूटकर भरा था। उस समय स्वाधीनता की चिंगारी टिकारी राज परिवार में भी घर कर चुकी थी। 1857 के स्वत्रतता आंदोलन की ध्वजवाहक बनीं महारानी इंद्रजीत कुंवर। उस समय महारानी के पास अत्याधुनिक तोपखाना था। इसलिए अंग्रेज अफसर की नजर टिकारी राज की महारानी पर था, क्योंकि पटना के तत्कालीन आयुक्त विलियम टेलर को टिकारी राज परिवार की भूमिका पर शक हो गया था। विलियम टेलर ने अपने जासूस टिकारी राज के आस-पास लगा दिए थे। चूंकि टिकारी राज उस समय बहुत बड़ा स्टेट था, इसलिए इसके क्रियाकलाप पर अंग्रेजों के द्वारा पैनी नजर रखी जा रही थी।
टिकारी राज सात आना के राजा मोद नारायण सिंह के किले के चारों ओर करीब 200 तोपें लगा रखी थी। इसकी सच्चाई के लिए कलेक्टर एलंजो मनी ने अपने जासूस को टिकारी राज भेजा। जासूस के आने की खबर मिलते ही राजा ने सभी तोपों को वापस अपने किला परिसर में मंगा ली थी। उस समय टिकारी व गया में पकडे़ गए विद्रोहियों के अस्त्र-शस्त्र टिकारी राज के शस्त्रागार में रखे हथियारों से मेल खाता था। अंग्रेज अधिकारियों ने टिकारी राज के हथियार व किले में रखी गई सभी 200 तोपों को जब्त कर लिया। कहा जाता है कि अंग्रेजों से लोहा लेने और आदोलनकारियों को अस्त्र-शस्त्र उपलब्ध कराने के लिए उस समय टिकारी राज के अंतर्गत दाउदनगर में टिकारी राज के लिए पीतल की तोप बनाने के लिए कारखाना लगाया था। वहा उन्नत और आधुनिक रूप से पीतल की तोप ढाली जाती थी। इसके लिए टिकारी राज ने उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से कई कारीगरों को दाउदनगर बुलाया था। इस बीच भागलपुर में स्वतंत्रता आंदोलन के लिए सफल विद्रोह करने के बाद वापस लौटते हुए विद्रोहियों को महारानी इंद्रजीत कुंवर ने उनको वित्तीय सहायता प्रदान किया करती थी। गया के तत्कालीन कलेक्टर एलंजो मनी उन दिनों शेरघाटी में विद्रोहियों को कुचलने में लगे थे। उसी समय पटना प्रमंडल आयुक्त विलियम टेलर का पत्र लिखकर एलंजो मनी को टिकारी राज कूच करने को कहा था। विलयम टेलर ने उस समय कलकत्ता में ब्रिटिश राज के प्रांतीय लेफ्टिनेंट गवर्नर फेडेरेक हालीडे को टिजरी राज के क्रिया कलाप पर विस्तृत रूप से पत्र लिखा था। पत्र के अंत में टेलर ने फेडरेक हालिडे से टिकारी किला को ढाह कर नेस्तनाबूद कर देने के लिए आदेश मांगा पर लेफ्टिनेंट गवर्नर ने टेलर को इसकी इजाजत नहीं दी थी।
सिपाही विद्रोह के दौरान महारानी इंद्रजीत कुंवर पर लगा आरोप
1857-58 के सिपाही विद्रोह के दौरान टिकारी राज की महारानी इंद्रजीत कुंवर पर विद्रोहियों को शरण देने का आरोप लगा था, जिसके कारण अंग्रेजों ने किले की तलाशी ली थी। यह सच है कि आदोलनकारियों को अप्रत्यक्ष सहायता दी जा रही थी और 10 हजार रुपये प्रदान किया गया था। 1908 में बिहार काग्रेस का प्रथम प्रातीय सम्मेलन पटना और दूसरा 1909 में भागलपुर में हुआ था। दोनों सम्मेलनों में टिकारी महाराजा गोपाल नारायण सिंह ने बतौर डेलीगेट शामिल हुए थे। 1933 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक आंदोलन में लाठीचार्ज व गिरफ्तारिया भी हुई थी, जिसमें टिकारी के 8 आंदोलनकारी बंदी बनाए गए थे। इसके बाद गाव-गाव में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत शुरू हो गई थी।
1942 की अगस्त क्रांति में टिकारी का अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध
देश को आजादी दिलाने में गया के टिकारी के लोगों ने भी अंग्रेजों के जमकर छक्के छुड़ाए थे।1942 की अगस्त क्रांति के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध विरोध का स्वर और तेज हो गया। कहीं सड़कें तो कहीं पुल तोड़ दिए गए थे। 17 अगस्त 1942 को टिकारी थाने में कैद कई क्रातिकारियों को अंग्रेजी सेना के चंगुल से छुड़ा लिया गया। स्थिति को देखते हुए विशेष फौजी दस्ता टिकारी में तैनात कर दिया। टिकारी राज के स्कूल भी आदोलन में कूद पड़ा। 11 अगस्त 1942 को महात्मा गाधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो के आह्वान पर विद्यालय के छात्र सड़क पर उतर आए और इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करते हुए टिकारी थाने को घेर लिया था। इंकलाबी छात्रों को विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजेंद्र प्रसाद सिंह की सुरक्षा प्राप्त थी। जिसके कारण तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट मिस्टर वार्ल्ज ने राजेंद्र बाबू के विरुद्ध सख्त कदम उठाते हुए विद्यालय के नौ छात्रों को गिरफ्तार कर लिया था। 1939 में महज 14 वर्ष की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूदने वाले चितोखर के विष्णुदेव नारायण सिंह और महावीर सिंह के नेतृत्व में 36 क्रातिकारियों का दल टिकारी थाने में लगे अंग्रेजी हुकूमत के झंडे को जला दिया था।
अब मर-मिटने की वो भावना नहीं रही
भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन दो प्रकार का था, एक अहिंसक आंदोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रांतिकारी आंदोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रातिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई। वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है। भारत की धरती के जितनी भक्ति और मातृ-भावना उस युग में थी, उतनी कभी नहीं रही। मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर-मिटने की जो भावना उस समय थी, आज उसका नितांत अभाव हो गया है। भगतसिंह ने अपना बलिदान क्रांति के उद्देश्य के प्रचार के लिए ही किया था। जनता में जागृति लाने का कार्य महात्मा गांधी के चुम्बकीय व्यक्तित्व ने किया। बंगाल की सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी श्रीमती कमला दासगुप्त ने कहा कि क्रांतिकारी की निधि थी “कम व्यक्ति अधिकतम बलिदान”, महात्मा गांधी की निधि थी “अधिकतम व्यक्ति न्यूनतम बलिदान”। सन् 1942 के बाद उन्होंने अधिकतम व्यक्ति तथा अधिकतम बलिदान का मंत्र दिया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति में क्रांतिकारियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। भारतीय क्रांतिकारियों के कार्य सिरफिरे युवकों के अनियोजित कार्य नहीं थे। भारतामाता के परों में बंधी शृंखला तोड़ने के लिए सतत संघर्ष करने वाले देशभक्तों की एक अखण्ड परम्परा थी। देश की रक्षा के लिए कर्तव्य समझकर उन्होंने शस्त्र उठाए थे। क्रान्तिकारियों का उद्देश्य अंग्रेजों का रक्त बहाना नहीं था। वे तो अपने देश का सम्मान लौटाना चाहते थे। अनेक क्रान्तिकारियों के हृदय में क्रांति की ज्वाला थी, तो दूसरी ओर अध्यात्म का आकर्षण भी। हंसते हुए फाँसी के फंदे का चुम्बन करने वाले व मातृभूमि के लिए सरफरोशी की तमन्ना रखने वाले ये देशभक्त युवक भावुक ही नहीं, विचारवान भी थे।