Friday, September 20, 2024
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महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया का जन्म लंदन, यूनाइटेड किंगडम केन्सिंग्टन पैलस में 24 मई 1819 को हुआ था। इनके पिता प्रिंस एडवर्ड, ड्यूक ऑफ केंट एवं माता प्रिंसेस विक्टोरिया ऑफ़ सैक्से-कोबर्ग-सालफेल्ड थी। जब विक्टोरिया मात्र आठ महीने की ही थीं, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। विक्टोरिया के मामा लियोपोल्ड ने उनका पालन-पोषण किया और शिक्षा-दीक्षा का कार्य बड़ी निपुणता से संभाला। वे स्वयं भी एक बड़े योग्य और अनुभवी व्यक्ति और बेल्जियम के राजा थे। विक्टोरिया को किसी भी पुरुष से एकांत यानी अकेले में मिलने नहीं दिया जाता था। यहां तक कि बड़ी उम्र के नौकर-चाकर भी उनके पास नहीं आ सकते थे। जितनी देर वे शिक्षकों से पढ़तीं, उनकी मां या दाईमां उनके पास बैठी रहतीं थी। मामा की संगत में ही विक्टोरिया ने राजकाज का कार्य सम्भालना शुरू कर दिया था।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया कैसे बनीं महारानी – 
रानी बनना वैसे ही आसान काम नहीं। विक्टोरिया के पहले उनसे बड़े भाई भी थे जिनको गद्दी मिलने का चांस था। विक्टोरिया लाइन में पांचवे नंबर पर थीं। लेकिन जिसे विधि का विधान कहते हैं, उसकी वजह से सभी बड़े भाई और चाचा गुज़र गए, और विक्टोरिया रानी बन गईं। विक्टोरिया का बचपन बहुत ही चुप्पी में, उदासी भरा बीता। मां उसे कड़े नियमों में पाला-पोसा था। कहीं जाने का मन नहीं भी होता था, तो भी जबरन ले जाती थी। ताकि लोग उनको देखें, जुडें और रानी मान लेने को तैयार हों। कड़े बुखार में पड़ी विक्टोरिया को भी उठ कर जाना पड़ता था लोगों से मिलने के लिए। 20 जून 1837 को विक्टोरिया के चाचा विलियम की मौत हो गई। उस समय वही राजा के पद पर थे। और इस तरह विक्टोरिया रानी करार दे दी गई। अपनी डायरी में विक्टोरिया ने खुद लिखा, ‘सुबह 6 बजे मुझे मां ने उठाया, और बताया कि कैंटरबरी के आर्च बिशप और लॉर्ड कनिंघम आये हैं और मुझसे मिलना चाहते हैं। मैं उठी और बैठक में अकेले गई, सिर्फ अपना ड्रेसिंग गाउन पहने हुए। उनसे मिली। लॉर्ड कनिंघम ने मुझे बताया कि मेरे बिचारे चाचा, देश के राजा, गुजर गए। सुबह दो बजकर बारह मिनट पर उनका निधन हो गया, और मैं अब रानी बन गई हूँ।

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महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया का राजतिलक यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की रानी के रूप में राज्याभिषेक 28 जून 1838 में हुई थी जो की 20 जून 1837 से 1901 में उनकी मृत्यु तक विक्टोरियन युग के रूप में जानी जाती थी। 20 जून 1837 को ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैण्ड की महारानी के रूप में सिंहासन पर बैठीं थीं। 01 जनवरी 1877 को उन्हें राज्याभिषेक कर भारत की सम्राज्ञी घोषित किया गया था। अपने उदार विचारों के कारण ही वह भारतीय जनमानस में प्रसिद्ध हुई थीं। लेकिन सम्राज्ञी के रूप में 01 मई 1876 को शासन सम्हाला जबकि जनवरी, 1877 में आयोजित किए गए दिल्ली दरबार में इन्हें ‘कैसर-ए-हिंद’ की उपाधि प्रदान की गई। अठारह वर्ष की अवस्था में महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया गद्दी पर बैठीं। महारानी विक्टोरिया दुनिया की पहली महारानी बनीं थी। जिन्होंने 40 करोड़ से ज्यादा लोगों पर राज किया। इतिहासकारों का माना जाता है की उन्होंने दुनिया के एक चौथाई हिस्से पर राज किया था। दुनिया की पहली महारानी थीं विक्टोरिया, अकेले में नहीं मिल सकते थे कोई भी पुरुष। वे अपने कामों को बहुत निष्ठा पूर्वक करती थीं। वे अपना यह काम एकछत्र अधिकार मानती थीं। उनमें वे मामा और माँ तक का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करती थी। विक्टोरिया ‘पत्नी, माँ और रानी- तीनों रूपों में उन्होंने अपना कर्तव्य अत्यंत ईमानदारी से निभाया। घर के नौकरों तक से उनका व्यवहार बड़ा सुंदर होता था। उनमें बुद्धि-बल चाहे कम रहा हो पर चरित्रबल बहुत अधिक था। पत्नी, माँ और रानी – तीनों रूपों में उन्होंने अपना कर्तव्य अत्यंत ईमानदारी से निभाया। घर के नौकरों तक से उनका व्यवहार बड़ा सुंदर होता था। भारी वैधव्य-दुःख से दबे रहने के कारण दूसरों का दुःख उन्हें जल्दी स्पर्श कर लेता था। रेल और तार जैसे उपयोगी आविष्कार उन्हीं के काल में हुए।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया का विवाह विवाह होने पर विक्टोरिया पति को भी राजकाज से दूर ही रखती थीं। परंतु धीरे-धीरे पति के प्रेम, विद्वत्ता और चातुर्य आदि गुणों ने उन पर अपना अधिकार जमा लिया और वे पतिपरायण बनकर उनके इच्छानुसार चलने लगीं। किंतु 43 वर्ष की अवस्था में ही वे विधवा हो गईं। इस दुःख को सहते हुए भी उन्होंने 39 वर्ष तक बड़ी ईमानदारी और न्याय के साथ शासन किया। जो भार उनके कंधों पर रखा गया था, अपनी शक्ति-सामर्थ्य के अनुसार वे उसे अंत तक ढोती रहीं। किसी दूसरे की सहायता स्वीकार नहीं की।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

बावरची अब्दुल करीम और महारानी विक्टोरिया की दिलचस्प कहानी अब्दुल करीम आगरा जेल में क्लर्क का काम करते थे। और वो एक कुशल बावरची भी थे। उनकी सालाना तनख़्वाह 60 रुपए थी। करीम के पिता उसी जेल में हकीम के पद पर थे। इंग्लैंड में जब महारानी का जुबिली समारोह होने को आया तो आगरा जेल के अधीक्षक ने महारानी को तोहफ़ा में दो भारतीय नौकर विक्टोरिया की सेवा करने के लिए भेजे गए थे। उनमें करीम को आगरा से विक्टोरिया की सेवा करने के लिए भेजे थे। लेकिन साल भर के अंदर वो बावरची की श्रेणी से निकल कर महारानी के पीए बन गए थे। अब्दुल करीम की कहानी बहुत दिलचस्प है। 24 वर्षीय अब्दुल करीम देखने में बहुत अच्छे थे। महारानी विक्टोरिया ने 20 अगस्त, 1887 को अपनी डायरी में खुद लिखा है कि ‘आज मैंने अपने भारतीय नौकर अब्दुल करीम के हाथों बनी बेहतरीन चिकन करी खाई। लेकिन ये पहला मौका नहीं था चिकन करी का लुत्फ़ उठाने का, लेकिन पहले की करी और करीम की बनाई करी में ज़मीन आसमान का अंतर था। करीम के आने के बाद भारतीय बावरची (ख़ानसामे) सब कुछ अपने हाथों से करने लगे थे। अब्दुल करीम के करीब आने लगीं महारानी विक्टोरिया। हफ़्ते में दो दिन रानी विक्टोरिया को करी परोसी जाती थी, रविवार को दिन के खाने में और मंगलवार को रात के खाने में।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष  करीम को देखने उनके घर जाती थीं विक्टोरिया रानी विक्टोरिया से अब्दुल करीम की नज़दीकी इस हद तक बढ़ी कि वो उनके साथ साए की तरह रहने लगे। एक बार जब वो बीमार पड़े तो रानी प्रोटोकॉल तोड़ कर उन्हें देखने उनके घर गईं। रानी के डाक्टर रहे सर जेम्स रीड अपनी डायरी में लिखते हैं, ‘जब करीम बिस्तर से उठने में असमर्थ हो गए तो रानी विक्टोरिया उनके घर उन्हें देखने दिन में दो बार जाने लगीं। अब्दुल करीम से रानी विक्टोरिया काफी स्नेह करने लगी और उसे अपना पर्सनल पीए बना लिया।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

अब्दुल करीम को आगरा में 300 एकड़ की जागीर दिया  रानी उनसे इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उन्हें आगरा में 300 एकड़ की जागीर दिलवाई और अपने तीनों राज महलों में उन्हें अलग अलग घर दिलवाए। उन्हें अपने सीने पर पदक लगा कर चलने और तलवार रखने की भी छूट दी गई। महारानी ने आगरा में हकीम का काम करने वाले करीम के पिता को पेंशन दिलवाने का आदेश भी पारित करवाया।

महारानी विक्टोरिया युग में भारत की लोकप्रियता  मात्र अठारह वर्ष की उम्र में ही विक्टोरिया राजगद्दी पर आसीन हो गई थीं।, उससे वह भारतीयों में जनप्रिय हो गईं, क्योंकि ऐसा विश्वास किया जाता था कि उदघोषणाओं में जो उदार विचार व्यक्त किए गए थे, वे उनके निजी और उदार विचारों के प्रतिबिम्ब स्वरूप थे। विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता के प्रसिद्ध और सुंदर स्मारकों में से एक है। इसका निर्माण 1906 और 1921 के बीच भारत में रानी विक्टोरिया के 25 वर्ष के शासन काल के पूरा होने के अवसर पर किया गया था। वर्ष 1857 में सिपाहियों की बगावत के बाद ब्रिटिश सरकार ने देश के नियंत्रण का कार्य प्रत्यक्ष रूप से ले लिया और 1876 में ब्रिटिश संसद ने विक्टोरिया को भारत की शासक घोषित किया। महारानी विक्टोरिया के भारत की सम्राज्ञी नियुक्त होने की खुशी में दो स्थानों हरदोई में विक्टोरिया मेमोरियल हरदोई तथा कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता भवनों का निर्माण किया गया। सुल्तानपुर में महारानी विक्टोरिया की याद में उनकी पहली जयंती पर ‘सुंदर लाल मेमोरियल हॉल’ का निर्माण करवाया गया था। वर्तमान समय में इसे विक्टोरिया मंज़िल के नाम से जाना जाता है। उनका कार्यकाल 1901 में उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। विक्टोरिया मेमोरियल भारत में ब्रिटिश राज की याद दिलाने वाला संभवतया सबसे भव्य भवन है। यह विशाल सफेद संगमरमर से बना संग्रहालय राजस्थान के मकराना से लाए गए संगमरमर से निर्मित है और इसमें भारत पर शासन करने वाली ब्रिटिश राजशाही की अवधि के अवशेषों का एक बड़ा संग्रह रखा गया है। संग्रहालय का विशाल गुम्बद, चार सहायक, अष्टभुजी गुम्बदनुमा छतरियों से घिरा हुआ है, इसके ऊंचे खम्भे, छतें और गुम्बददार कोने वास्तुकला की भव्यता की कहानी कहते हैं। यह मेमोरियल 338 फीट लंबे और 22 फीट चौड़े स्थान में निर्मित भवन के साथ 64 एकड़ भूमि पर बनाया गया है।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

विक्टोरिया मेमोरियल कोलकाता का इतिहास रानी विक्टोरिया (ब्रिटेन की महारानी) का निधन 23 जनवरी 1901 को हुआ था। तभी 6 फरवरी 1901 ई० को कोलकाता के टाउन हाल में एक बड़ी सभा बुलाई गई थी, जिसमें रानी विक्टोरिया की याद में अंग्रेज गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन ने एक स्मारक (मेमोरियल) बनाने का प्रस्ताव रखा गया था वहीं तत्कालीन राजाओं और भारत की जनता ने इस प्रस्ताव का बहुत ही उदारता से स्वागत किया, साथ ही स्मारक के निर्माण के लिए 01 करोड़ 5 लाख रूपये का चंदा इकट्ठा किया था। विक्टोरिया स्मारक की आधारशिला 4 जनवरी 1906 को सम्राट जॉर्ज पंचम (वेल्स के प्रिंस) ने रखी थी। इस स्मारक को आम जनता के लिए सन 1921 में औपचारिक रूप से खोला गया था, जिस वजह से विक्टोरिया स्मारक को बनने में करीब 15 साल लग गये थे। कोलकाता के इस स्मारक को देखने के लिए बहुत दूर-दूर से पर्यटक आते हैं, क्योंकि यह कोलकाता का ही नहीं बल्कि पूरे भारत की शान है। वहीं बात करें इस स्मारक के संग्रहालय की जिसके भीतर महारानी विक्टोरिया की पियानो और स्टडी डेस्क सहित 3000 से अधिक वस्तुएं रखी गई है।

महारानी अलेक्जेंड्रिना विक्टोरिया की 203 वीं जयंती पर विशेष

महारानी विक्टोरिया की नीति महारानी विक्टोरिया ने कभी भी भारत-भ्रमण नहीं किया और भारतीय प्रशासन का संचालन संवैधानिक शासक की हैसियत से करते हुए उन्हीं नीतियों का अनुमोदन किया, जिसकी सिफ़ारिश उनके उत्तरदायी मंत्रियों ने की। ड्यूक ऑफ़ कनाट महारानी विक्टोरिया का पुत्र और इंग्लैंण्ड के राजघराने का प्रमुख सदस्य था। फिर भी उन्होंने भारतीयों के बीच बड़ी लोकप्रियता अर्जित की। राजसिंहासन की जिम्मेदारी गंभीरता से लेकर रानी विक्टोरिया ने प्रशासन की सभी छोटी-छोटी बातो पर ध्यान दिया।1832 के बाद इंगलैंड का संसदीय सुधार मानदंड से संसद का संगठन और स्वरूप बदल रहा था। खुले व्यापार नीति की जोरदार हवा इंगलैंड में फ़ैल रही थी। उस वजह से 1833 के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार रियायत रदद् करके इंगलैंड नागरिको को व्यापार खुला कर दिया। ये बदलाव विक्टोरिया रानी के आने के बाद बहुत बढ़ गया और वो स्फुर्तिदायी रहा। राणी निश्चित रूप से कठोर राजनीतिज्ञ थी। राणी विक्टोरिया भारतीय राज्यो की ‘महारानी’ जाहिर हुई। उन्होंने इसका घोषणा पत्र अपने नाम पर प्रसारित किया। ये घोषणा पत्र आगे भारत में ब्रिटिश राज का स्तंभ बना। रानी विक्टोरिया के जीवन काल में कुल पांच बार जानलेवा हमले हुए लेकिन वो इन सब से बच निकलीं। साल 1883 में रानी विक्टोरिया विंडसर किले की सीढ़ियों से गिर गयी और इसके बाद वो इससे कभी उभर नहीं सकी। हालांकि इसके बावजूद भी उन्होंने अपनी गोल्डन जुबली और डायमंड जुबली सालगिरह मनाई। 23 जनवरी 1901 को विक्टोरिया रानी का देहांत हुवा। एक महान युग का अंत हुवा। रानी विक्टोरिया ब्रिटेन की सबसे लंबे समय तक रानी बनीं रहीं।

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