Monday, December 23, 2024
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भवनों में छत-वर्षा जल संचयन की संरचना विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया

● नालियां का निर्माण करके वर्षा जल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं
● ककड़िया में वर्षा जल संचयन की संरचना विषय पर परिचर्चा

नूरसराय-ककड़िया, 3 अगस्त 2021 : मध्य विद्यालय ककड़िया में जल-जीवन-हरियाली अभियान के अंतर्गत 3 अगस्त को कोरोना काल के चलते कोरोना प्रोटोकॉल के चलते शिक्षा विभाग के आदेशानुसार जल-जीवन-हरियाली कार्यक्रम तहत् ‘भवनों में छत-वर्षा जल संचयन की संरचना’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षक शिवेन्द्र कुमार ने किया। मौके पर ककड़िया मध्य विद्यालय के शिक्षक शिक्षाविद् राकेश बिहारी शर्मा ने विस्तार से अपने संबोधन में कहा कि वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को वर्षा जल संचयन कहा जाता है। विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। “रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून…” आज आम इंसान को पानी की कीमत का अंदाजा हो या न हो, लेकिन चार सौ साल पहले रहीम ने अपने दोहे के माध्यम से जो यह अनमोल बात कही, उसे हम सबको आज के संदर्भ में बहुत अच्छे से समझने की जरूरत है। हम सभी जानते हैं कि जल हमारी बुनियादी ज़रूरत है। भारत में स्थिति अभी भी अत्यंत खराब है। यद्यपि भारत विश्व के सबसे आर्द्र देशों में से एक है, इसमें जल का वितरण समय और स्थान के आधार पर बहुत असमान है। हमारे देश में औसतन 1150 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, जो यह संसार में किसी भी समान आकार के देश के मुकाबले में सबसे अधिक है। परन्तु इस बड़ी मात्रा की वर्षा का वितरण असमान है। उदाहरण के लिये एक वर्ष में औसतन वर्षा के दिनों की संख्या केवल 40 है। अतः वर्ष का शेष लम्बा भाग सूखा रहता है। इसके अलावा, जहाँ उत्तर-पूर्व के कुछ क्षेत्रों में वर्षा तेरह मीटर तक होती है, वहीं राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में 20 से.मी. से अधिक वर्षा नहीं होती। वर्षा के इस असमान वितरण के कारण, देश के कई भागों में पानी का भीषण अभाव है। भवनों में छत-वर्षा जल संचयन की संरचना विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया
जैसा कि हम जानते हैं, कि पानी की हमारी बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए हमारे पास बहुत अधिक पानी नहीं बचा है, इसलिए वर्षा जल संचयन के लाभों को महसूस करना बहुत महत्वपूर्ण है। हम वर्षा जल को रोककर अतिरिक्त पानी प्राप्त कर सकते हैं।
देश में ग्राउंड वाटर का स्तर दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है, क्योंकि फ्लैटों और घरों में रहने वाले लोगों की अधिक संख्या सबमर्सिबल पंपों का उपयोग भूजल का उपयोग करने के लिए कर रही है। वनों की कटाई, शहरीकरण, उच्च आबादी, और बहुत कुछ सहित भूजल की कमी के पीछे कई अन्य कारण हैं। अब सवाल उठता है कि वर्षा जल संचयन के क्या फायदे हैं? यह एक बड़ा लाभ यह है कि यह आपके जल के बर्वादी को कम करने में आपकी सहायता करेगा। दूसरी बात यह है कि पानी के संकट की स्थिति के दौरान आपको पानी की आपूर्ति का एक वैकल्पिक स्रोत मिलेगा और तीसरा यह आपके बाग को हरा-भरा बनाए रखने में आपकी सहायता करेगा। मौसम और पानी के टैंक पर अत्यधिक निर्भरता सही नहीं है और इसलिए वर्षा जल संचयन पानी के मुख्य स्रोतों पर भारी बोझ को कम करने में मदद कर सकता है।
आज हालात यह है कि एक तरफ तो नदियों में बाढ़ आ रही है और दूसरी तरफ भूमि का जलस्तर लगातार घट रहा है। ऐसे में इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले पचास-सौ सालों में धरती का भूमिगत जल खत्म हो जाए। एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी का जलस्तर औसतन तीन से चार फुट प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा है। ऐसे में इस संकट को दूर करने का सबसे कारगर व प्रभावी उपाय है वर्षा जल संचयन यानी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग। वृक्षारोपण व वर्षा जल के संचय से ही भूजल को संरक्षित व सुरक्षित रखा जा सकता है।भवनों में छत-वर्षा जल संचयन की संरचना विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया
दरअसल, वर्षा जल संग्रहण विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा जल रोकने और एकत्र करने की विधि है जिसका उपयोग भूजल भंडार को भरने के लिए भी किया जाता है। कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल इस तकनीक के द्वारा पानी की प्रत्येक बूंद संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को न सिर्फ तालाबों, नलकूपों, गड्ढों और कुंओं में एकत्र किया जाता है वरन इस तकनीक के द्वारा घर की छतों, स्थानीय कार्यालयों की छतों या फिर विशेष रूप से बनाये गये संग्रहण क्षेत्र में वर्षा का जल एकत्रित किया जाता है। प्रशासन की अनदेखी का आलम यह है कि निजी भवन तो दूर अधिकांश सरकारी भवनों में भी छत जल संचयन प्रणाली नहीं लगाया गया है। जल संरक्षण जल ‘जीवन का अमृत’ है। हमें वर्तमान व भावी पीढ़ियों के लिये जल संरचना की आवश्यकता है। जिले में बारिश जल संचयन प्रणाली के प्रति आमतौर पर लोगों में जागरूकता की कमी रही है। हालांकि अब जागरूकता लगातार बढ़ रही है। यही कारण है कि लोग स्वेच्छा से अपने भवनों में इस सिस्टम को लगवा रहे हैं। कई निजी अस्पतालों व बरातघरों में यह सिस्टम लग चुका है। जल एक ऐसी संपदा है जिसका किसी तकनीकी प्रक्रिया के माध्यम से, जब जी चाहे, तब उत्पादन या संचयन नहीं हो सकता है। जल संग्रहन वर्षाजल को घर की छत से इकट्ठा कर संग्रहित किया जा सकता है। केवल ध्यान में यह बात रखें कि संग्रहित पानी आपकी घर की नींव से कम से कम तीन फीट की दूरी पर हो। संचयित होने वाले जल की मात्रा उसके इकट्ठा किये जाने वाले क्षेत्र पर निर्भर है। जल संचयन के उपकरण आज से चार हजार वर्ष पूर्व फिलिस्तीन और ग्रीस में मौजूद थे। प्राचीन रोम में प्रत्येक घरों में पानी संग्रहित करने के लिये हौज निर्मित होते थे और शहर की पानी की नालियों को घरों के आंगनों को जोड़ने की व्यवस्था थी। बढ़ती हुई जनसंख्या, बढ़ता औद्योगीकरण और विस्तार करती कृषि ने अब पानी की मांग को और भी बढ़ा दिया है। जल-संग्रहण के प्रयास बांधों, जलाशयों और कुओं के खोदने और निर्माण आदि के द्वारा किया जा रहा है। हमलोग वर्षा जल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं जैसे : छत के पानी का जमीन पर बनी टंकियो में एकत्रित करके बिभिन्न कार्यो में प्रयोग कर। खराब एवं अनुपयोगी कुएं की सहायता से एकत्रित वर्षा जल को भूजल में मिलाने की विधि से। लम्बी पत्थर से भरी नालियों द्वारा भूजल रिचार्ज करने से। घरों की छतो के वर्षा जल कों एकत्रित करने के लिये बनाई जाने वाली विशेष नालियां का निर्माण करके वर्षा जल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं और जल-जीवन-हरियाली की अवधारणा को सफल कर सकते हैं।
इस दौरान शिक्षक अरविन्द कुमार, सुरेश कुमार, मारो देवी, विनीता देवी, गीता देवी, सर्विला देवी सहित कई ग्रामीण लोगों ने भाग लिया।

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