जिस राजनीतिक गलियारों से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी।उसी राजनीतिक गलियारों में सेंधमारी करने के लिए 24 जनवरी को रहुई प्रखंड के सोनसा पंचायत में एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। गौरतलब है कि आगामी 24 जनवरी को सोनसा उच्च विद्यालय के प्रांगण में जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाई जाएगी।
जिसमें 20 हजार लोग शिरकत करेंगे। वही इस जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भारत के पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह शिरकत करेगे।इस कार्यक्रम को सफल बनाने को लेकर आयोजनकर्ता विनोद मुखिया के द्वारा रहुई प्रखंड में घूम-घूम कर लोगों को कार्यक्रम में आने के लिए निमंत्रण दिया जा रहा है। आयोजनकर्ता विनोद मुखिया ने बताया कि आगामी 24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती के बहाने 2024 लोकसभा चुनाव का शंखनाद होगा।
गौरतलब है कि कभी नितीश के करीबी रहे आरसीपी सिंह इन दिनों नीतीश कुमार के कुनबे में सेंधमारी करने में जुटे है। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कर्मभूमि से 24 जनवरी को 2024 का शंखनाद करेगे साथ ही कुछ बड़ा ऐलान करने की भी संभावना जतायी जा रही है।
राकेश बिहारी शर्मा – बिहार की सियासत और समस्तीपुर कि जब भी चर्चा होती है, तो सबसे पहले एक नाम सामने आता है। वह नाम है गुदड़ी के लाल जननायक कर्पूरी ठाकुर का। जिनका विचार और दर्शन आज भी वर्तमान दौर के सियासतदानों को आईना दिखाती है। वर्तमान दौर की सियासत की बात करें तो चाहे वह सत्ताधारी पार्टी का हो या विपक्ष। यह वही चेहरे हैं जो कर्पूरी ठाकुर के चेले रहे हैं या फिर वह कर्पूरी ठाकुर से गहरे तौर पर जुड़े रहे हैं।
बिहार की राजनीति में जननायक कर्पूरी ठाकुर विरले ऐसे नेता हैं, जिन्होंने निहायत विपरीत परिस्थितियों में भी साहसिक निर्णय लिए और अपनी सत्ता को दाव पर लगा दिया। उनकी यह विलक्षणता सादगीपूर्ण जीवन शैली और उनके रणनीतिक कौशल तक में हर कहीं दिखलाई पड़ती है।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म एवं पारिवारिक जीवन
24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर का जन्म दिन है। युगों-युगों से उंच-नीच व्यवस्था में शिक्षा से वंचित समाज में जन्मे कर्पूरी ठाकुर का यह जन्मदिन वास्तविक नही है, जैसाकि वो अपने कार्यकर्ताओं से बोला करते थे।
जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर जिला के पितौंझिया गांव में हुआ उनकी माता “राम दुलारी देवी” और उनके पिताजी का नाम “गोकुल ठाकुर” था और उनकी पत्नी का नाम ‘फुलेशरी देवी’ था ठाकुर जी के बाल्यावस्था अन्य गरीब परिवार के बच्चों की तरह खेलकूद तथा गाय, भैंस और पशुओं के चराने में बीता उन्हें दौड़ने, तैरने, गीत गाने तथा डफली बजाने का शौक था। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे।
कर्पूरी ठाकुर का शिक्षा-दीक्षा और राजनीति में प्रवेश
6 वर्ष की आयु में कर्पूरी जी को गांव की ही पाठशाला में पिताजी के द्वारा दाखिला कराया गया था। इनके अंदर बचपन से ही नेतृत्व क्षमता ने जन्म लेना शुरू कर दिया था। छात्र जीवन के दौरान युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर चुके कर्पूरी ठाकुर ने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इसके बाद उन्होंने 1940 में मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास किया और दरभंगा के चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय में आई.ए. में नामांकन करा लिया। कर्पूरी ठाकुर अपने घर से कॉलेज रोज 50-60 किलोमीटर तक यात्रा करते हुए 1942 में आइ.ए. द्वितीय श्रेणी से पास किया और पुनः उसी कॉलेज से B.A. में नामांकन करा लिया। जब भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, तब उन्होंने 1942 में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और उस आंदोलन में हिस्सा लिया और जयप्रकाश नारायण के द्वारा गठित “आजाद दस्ता” के सक्रिय सदस्य बने। तंग आर्थिक स्थिति से निजात पाने के लिए उन्होंने गांव के ही मध्य विद्यालय में 30 रूपये प्रति माह पर प्रधानाध्यापक का पद स्वीकार किया। ये दिन में स्कूल के अध्यापक और रात में आजाद दस्ता के सदस्य के रूप में जो भी जिम्मेदारी मिलती उसे बखूबी निभाते थे।
समतामूलक सोच के धनी कर्पूरी ठाकुर
समतामूलक सोच के धनी कर्पूरी ठाकुर वंचित समाज के आवाज थे। बिहार में सामंतवाद का खात्मा करने हेतु वंचित समाज को जागृत करने में उनका बहुत बड़ा योगदान था। कर्पूरी ठाकुर संक्षिप्त काल तक बिहार के मुख्यमंत्री 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तथा 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे। और क्रांतिकारी बदलाव के पुरोधा बने। कर्पूरी ठाकुर ने ही सबसे पहले बिहार में पिछड़े, अतिपिछड़े और महिलाओ के लिए नौकरियों में आरक्षण लागू किया था। उन्होंने गरीबी को देखा ही नहीं भोगा भी था। बिहार के मुख्यमंत्री रहते हुए कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी और सादगी बेमिसाल थी। मुख्यमंत्री रहते हुए कर्पूरी ठाकुर ने अपनी बेटी की शादी लालटेन की रोशनी में की थी।
सम्राट महापद्मनंद की कुशल शासन परम्परा को कर्पूरी ने आगे बढ़ाया
कर्पूरी ठाकुर देश में अति पिछड़े वर्ग के पहले ऐसे नेता थे जिन्हे बिहार जैसे प्रदेश में दो बार मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला। सम्राट महापद्मनंद की कुशल शासन करने की परम्परा को कर्पूरी ठाकुर जी ने आगे बढ़ाया और जनता से जननायक की उपाधि प्राप्त की। भारतीय इतिहास में कर्पूरी ठाकुर ही अब तक पहले और शायद आखिरी मुख्यमंत्री हुए हैं, जिन्होंने सिर्फ डिग्री के आधार पर बेरोजगारों को बुलाकर सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र बाटने का ऐतिहासिक कार्य किया। बहुत आश्चर्य होता है ये देखकर कि सिर्फ एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने पंडित गोविन्द बल्लभ पंत को भारत रत्न दे दिया गया लेकिन बिहार प्रदेश के दो बार लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे देश भक्त जननायक कर्पूरी ठाकुर को आज तक भारत रत्न के योग्य भी नहीं समझा गया।
कर्पूरी ठाकुर ने हिन्दी के उपयोग को बनाया था अनिवार्य
जननायक कर्पूरी ठाकुर देश के पहले मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की। वहीं, उन्होंने राज्य में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का भी दर्जा दिया। वहीं, राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बनाया। राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया। बिहार में सामाजिक बदलाव के प्रणेता थे कर्पूरी ठाकुर, हिन्दी के उपयोग को बनाया था अनिवार्य।
सामाजिक योद्धा थे कर्पूरी ठाकुर, चार दशक पहले ही दिया था महिलाओं, गरीब सवर्णों को आरक्षण
1952 में हुए पहली विधानसभा के चुनाव में जीतकर कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने और आजीवन विधानसभा के सदस्य रहे। वो बिहार में दो बार मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहे। 1952 में हुए पहली विधानसभा के चुनाव में जीतकर कर्पूरी ठाकुर पहली बार विधायक बने और आजीवन विधानसभा के सदस्य रहे। 1967 में जब पहली बार देश के नौ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों का गठन हुआ तो बिहार की महामाया प्रसाद सरकार में वे शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बने।
“आज जब वोटों के गणित, सामाजिक ध्रुवीकरण और सियासी नफा-नुकसान के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग संवैधानिक मर्यादाओं और संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ा रहे हों और चाहे-अनचाहे वेबजह टकराव ले रहे हों तब जननायक कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा और अधिक प्रासंगिक हो जाती है। कर्पूरी जी का मानना था कि संसदीय परंपरा और संसदीय जीवन राजनीति की पूंजी होती है जिसे हर हाल में निभाया जाना चाहिए। उनकी चिंता के केंद्र में हमेशा गरीब, पिछड़े, अति पिछड़े और समाज के शोषित-पीड़ित-प्रताड़ित लोग रहे हैं। शायद यही वजह रही है कि उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए कर्पूरी ठाकुर ने सदैव लोकतांत्रिक प्रणालियों का सहारा लिया। मसलन, उन्होंने प्रश्न काल, ध्यानाकर्षण, शून्य काल, कार्य स्थगन, निवेदन, वाद-विवाद, संकल्प आदि सभी संसदीय विधानों-प्रावधानों का इस्तेमाल जनहित में किया। उनका मानना था कि लोकतंत्र के मंदिर में ही जनता-जनार्दन से जुड़े अहम मुद्दों पर फैसले लिए जाएं। मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर जब 1977 में लोकसभा का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, तब कर्पूरी जी ने अपने संबोधन में कहा था, ‘संसद के विशेषाधिकार कायम रहें लेकिन जनता के अधिकार भी। यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो एक न एक दिन जनता संसद के विशेषाधिकारों को चुनौती देगी।’ आज की स्थितियां कमोबेश यही हैं। सरकारें जनहित को हाशिए पर धकेल चंद लोगों की भलाई और चंद लोगों की सलाह पर जनविरोधी फैसले लेने लगी हैं।
आज नेता और जनता के बीच का अपनापन विलुप्त हो गया है
आज वर्तमान समय में नेता और जनता के बीच का वह अपनापन विलुप्त हो चला है। न तो लोहिया और चौधरी चरण सिंह के चेलों की राजनीति में, न ही जयप्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुर की विरासत संभाल रहे नेताओं में और न ही दीनदयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और हेडगेवार की वैचारिक परंपरा के वाहक और अटल-आडवाणी के चेलों की राजनीतिक कार्यप्रणाली में। कहना न होगा कि सभी विचारधारा की राजनीति में आज जन मानस के लिए लोक कल्याण की राजनीति कुंद हो गई है। सभी दलों के नेता जनता को सिर्फ मतदाता समझने की भूल कर रहे हैं। अगर राजनेताओं ने ऐसी भूल नहीं सुधारी तो इसका खामियाजा संसदीय मूल्यों को लंबे समय तक भुगतना पड़ सकता है।
कर्पूरी ठाकुर का संसदीय जीवन एवं विपक्ष की राजनीति
कर्पूरी ठाकुर का संसदीय जीवन सत्ता से ओत-प्रोत कम ही रहा। उन्होंने अधिकांश समय तक विपक्ष की राजनीति की। बावजूद उनकी जड़ें जनता-जनार्दन के बीच गहरी थीं। तब संचार के इतने सशक्त माध्यम नहीं थे। फिर भी कोई घटना होने पर वह सबसे पहले उनके बीच पहुंचते थे। यह जनता के बीच उनकी गहरी पैठ और आपसी सामंजस्य का प्रतिफलन था। वो हमेशा जनता की बेहतरी के लिए प्रयत्नशील रहे। जब उन्होंने 1977 में पहली बार मुख्यमंत्री का पद संभाला था तब उन्होंने बिहार में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कई उपाय किए। वो जानते थे कि समाज को बिना शिक्षित किए उनकी कोशिश रंग नहीं ला सकेगी। नाई जाति में पैदा होकर भी कर्पूरी ठाकुर कभी एक जाति, समुदाय के नेता नहीं रहे। वो सर्वजन के नेता थे। पक्ष, विपक्ष से जुड़े सभी लोग उनकी राजनीतिक शूचिता और दूरदर्शिता के कायल थे।
देश में पहली बार ओबीसी को आरक्षण दिलाया
सामाजिक न्याय के हिमायती कर्पूरी ठाकुर ने उस वक्त सर्वसमाज को आरक्षण देने का गजट निकाला था, जब इसे लागू करने की कल्पना कठिन थी। बिहार में कर्पूरी ठाकुर ने 1973-77 के दौरान जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ जेल गए और जब 1977 में लोकसभा चुनाव हुए तो वो समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए। उन्होंने 11 नवंबर 1977 को मुंगेरी लाल समिति की सिफारिशें लागू कर दीं, जिसके चलते पिछड़े वर्ग को सरकारी सेवाओं में उन्होंने कुल 27% कोटा लागू किया था। एससी-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना। तीन दशक बाद नीतीश कुमार ने उसी बिहार में महादलित और महापिछड़ा वर्ग बनाकर और महिलाओं को नौकरियों और पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण देकर कर्पूरी जी के सपनों को साकार किया है। बिहार सरकार ने सरकारी ठेकों में भी आरक्षण का प्रावधान किया है। कहना न होगा कि एक गरीब परिवार में जन्में विचारों के धनी कर्पूरी ठाकुर ने जिस राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय आज से करीब 40 साल पहले दिया था वो देश के लिए आज और भी प्रासंगिक बन चुके हैं। उन्होंने देशी और मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए तब की शिक्षा नीति में बदलाव किया था। वो भाषा को रोजी-रोटी से जोड़कर देखते थे। देश आज भी नई शिक्षा नीति की बाट जोह रहा है। उन्होंने गरीबों और भूमिहीनों के खातिर भूमि सुधार लागू करने की बात कही थी जो आज भी लंबित है। वो जानते थे कि इससे न केवल सामाजिक विषमता दूर होगी बल्कि कृषि उत्पादन में भी आशातीत बढ़ोत्तरी होगी। देश में आज भी भूमि अधिग्रहण पर एक मुकम्मल कानून बनाने में सरकारों को पसीने छूट रहे हैं क्योंकि वे जनमानस की जगह कॉरपोरेट घरानों से प्रेरित हो रही हैं।
कर्पूरी ठाकुर का निधन
कर्पूरी ठाकुर देशी माटी में जन्में देशी मिजाज के राजनेता थे जिन्हें न पद का लोभ था, न उसकी लालसा और जब कुर्सी मिली भी तो उन्होंने कभी उसका न तो धौंस दिखाया और न ही तामझाम। मुख्यमंत्री रहते हुए सार्वजनिक जीवन में ऐसे कई उदाहरण हैं जब उन्होंने कई मौकों पर सादगी की अनूठी मिसाल पेश की। भारतीय राजनीति में ऐसे विलक्षण राजनेता कम ही मिलते हैं। शायद इसीलिए कर्पूरी ठाकुर को सिर्फ नायक नहीं अपितु जननायक कहा गया। कर्पूरी ठाकुर जी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरू थे। इन दोनों नेताओं ने जनता पार्टी के दौर में कर्पूरी ठाकुर की उंगली पकड़कर सियासत के गुर सीखें हैं। इसीलिए लालू यादव ने जब सत्ता की कमान संभाली तो कर्पूरी ठाकुर के कामों को ही आगे बढ़ाने का काम किया। दलित और पिछड़ों के हक में कई काम किए। 17 फरवरी 1988 को अचानक तबीयत बिगड़ने के चलते कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया था, लेकिन उनका सामाजिक न्याय का नारा आज भी बिहार में बुलंद है। कर्पूरी ठाकुर सर्व समाज के नेता थे। वह पिछड़ों और मजलूमों की आवाज थे, उनके सतत प्रयासों से ही समाज के दलित, शोषित, वंचित लोगों के अधिकार सुरक्षित हो सके।
कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के तीन दशक बाद भी उनकी राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए आज सभी दलों में जिस तरह की हाय-तौबा मची हुई है, यह उनकी प्रासंगिकता को प्रमाणित करती है।
रोटरी क्लब तथागत के द्वारा मेगा हेल्थ चेकअप कैंप, मध्य विद्यालय मुरौरा में सुबह के 10:00 बजे से किया गया।
देखते ही देखते मध्य विद्यालय मुरौरा के प्रांगण में स्वास्थ्य लाभ लेने वाले लोगों से खचाखच भर गया। प्रोजेक्ट चेयरमैन डॉ इद्रजीत ने कहा कि हमने 2000 लोगों के लिए इस स्वास्थ्य जांच शिविर में व्यवस्था किया, स्वास्थ्य जांच के साथ-साथ लोगों को दवा भी मुफ्त उपलब्ध कराई गई। वही अध्यक्ष रो अनिल कुमार ने कहा शहर के हर विभाग से के प्रख्यात डॉक्टरों की टीम आज इस रोटरी क्लब तथागत के द्वारा चलाए जा रहे मेगा हेल्थ चेकअप कैंप में डॉ श्याम नारायण अपना योगदान दिए हैं।
क्या युवा, क्या बच्चे, क्या जवान, वृद्ध महिलाएं सभी लोगों ने इस स्वास्थ्य जाँच शिविर में लाभार्थी बनकर आये थे। डॉ अरविंद कुमार एवं अजीत कुमार नेत्र रोग चिकित्सक के रूप में अपना योगदान दिया। डॉ अश्वनी कुमार डॉ रितेश कुमार डॉ राहुल ने (ई एन टी) से संबंधित लोगों को इलाज किया। डॉ सुनील कुमार बच्चा रोग स्पेशलिस्ट के पास इलाज के लिए 22 महीने से 12 वर्ष तक के बच्चे एवं बच्चीयों ने अपना इलाज करवाया। वही हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर चंदेश्वर बाबू ने लोगों के घुटने का दर्द का इलाज के संदर्भ में बताया, उसे जल्द से जल्द पहुंचे लाभ उसके लिए दवा दी गई और लोगों को योग करते रहने का सलाह दिया, वहीं महिलाएं युवतियों ने डॉ सुनीति सिन्हा और ममता कोसम्मी से मिलने के लिए बेचैन रही। लोगों ने महिला रोग विशेषज्ञ को देखकर काफी ज्यादा से ज्यादा समय दिखाने में आतुर रही।
डॉ दीनानाथ, डॉ सुजीत कुमार, डॉ अंशुमान ने जेनरल रोगों का इलाज किया और खान पान में सुधार लाने का परामर्श दिया। दाँत रोग के इलाज के लिए डॉ प्रियंका एवम डॉ विभास प्रियदर्शी ने अपना योगदान दिया। स्किन रोगों के लिए डॉ नीरज होमियोपैथिक इलाज किया। हेल्थ कैम्प में आये लोगो को अनिल कुमार, अशोक कुमार एवं रो दीपक रो विश्व प्रकाश ने दवा वितरण किया। कतार में खड़ी कर पर्चा भरने का कार्य रो जोसेफ टी टी, रो अमित भारती, संजीव दास, अनिल सैनी, रो विनोद कुमार गुप्ता, अमित कुमार एम डबलु टीम से अंजनी कुमार, राकेश कुमार, सुभाष, पंचम नारायण, शशिभूषण, रोटरी क्लब तथागत के सचिव रो प्रमेश्वर महतो ने बताया कि कुल 1244 लोगों ने इस मेगा हेल्थ चेकअप कैम्प से लाभ उठाया।
राजगीर में अखिल भारत वर्षीय चंद्रवंशी क्षत्रिय महासभा नालंदा जिले की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार एवं नालंदा सांसद कौशलेंद्र कुमार के अभिनंदन समारोह में शामिल हुए। सैकड़ो की संख्या में लोगो ने जनता दल यूनाइटेड की सदस्यता ग्रहण की। जदयू के सदस्यता ग्रहण करने वालो में भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष सह अतिपिछड़ा वर्ग के नेता,चंद्रवंशी महासभा के राष्ट्रीय सचिव श्याम किशोर भारती सहित सैकड़ो लोग जदयू में शामिल हुए।ग्रामीण विकास मंत्री श्रवन कुमार एवं नालंदा सांसद कौशलेंद्र कुमार द्वारा फूल माला से स्वागत कर सभी लोगो को सदस्यता ग्रहण कराया गया। जदयू में शामिल होने वालो में बड़ी संख्या में भाजपा से जुड़े लोग,जनप्रतिनिधि और विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग शामिल हुए।चंद्रवंशी समाज की ओर से आयोजित अभिनंदन समारोह में बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवन कुमार ने कहा कि जनता दल यूनाइटेड सभी वर्गो की पार्टी है। उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के शोषित वंचित समाज को आगे बढ़ाने के लिए अनेकों योजनाएं धरातल पर उतारी है।बिहार में नगर निकाय और पंचायती राज व्यवस्था में अतिपिछड़ों को आरक्षण का लाभ 2006 से लगातार देकर समाज के वंचित वर्गो को आगे बढ़ाने का काम किया है।
जातीय गणना से समाज के सभी वर्गो का आकलन होगा और उनके विकास की संभावनाएं बढ़ेगी। उन्होंने कहा की श्याम भारती जी के पार्टी में आने से दल और मजबूत होगा।नालंदा सांसद कौशलेंद्र कुमार ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चंद्रवंशी समाज के पूर्वज और मगध के इतिहास को पुर्नजीवित करने के उद्देश्य से राजगीर में जरासंध स्मारक बनवा रहे हैं।समाज के सभी वर्गो को मुख्य धारा में लाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार कार्य कर रहे हैं।वही जदयू में शामिल होने के बाद श्याम किशोर भारती ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विचारो को देश स्तर पर ले जाने के लिए जनसंपर्क अभियान चलाया जायेगा। उन्होंने कहा कि दस साल बाद वे पुनः अपने घर में वापसी किए हैं।अतिपिछड़ों को आरक्षण,जातीय गणना,राजगीर में मगध सम्राट जरासंध जी का स्मारक बनाने का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के प्रति पूरा समाज आभार प्रकट करता है। जिले की विधान पार्षद रीना यादव जी के पहल से राजगीर में अब सरकारी स्तर पर जरासंध महोत्सव मनाने की घोषणा का पूरा भारतवर्ष स्वागत करता है और आने वाले समय में आभार सम्मेलन का आयोजन राजगीर में किया जायेगा। जदयू की सदस्यता ग्रहण करनें वालो में भाजपा के गया जिला के ओबीसी मंत्री चौधरी राम,विश्वकर्मा महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता विराट विश्वकर्मा, वीरू चंद्रवंशी,भाजपा नेता वीरेंद्र कुमार, शंकर शर्मा,वार्ड सदस्य अविनाश कुमार,वार्ड सदस्य शंभू राम, राजगीर डोली यूनियन अध्यक्ष कृष्णा चंद्रवंशी, महासचिव नंदलाल कुमार,सचिव कमलेश कुमार,उपाध्यक्ष मुन्ना चंद्रवंशी,सचिदानंद,बबलू कुमार,संजय चौधरी,प्रेम कुमार,अरविंद कुमार,सुभाष प्रसाद,संजय प्रसाद, कारू, डोमन राम आदि शामिल हैं।इस अवसर पर जदयू प्रखंड अध्यक्ष जयराम सिंह, मुन्ना कुमार,मन्नू सर आदि उपस्थित थे।
दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन एवं इंप्लाइज फेडरेशन बिहारशरीफ इकाई की द्वितीय वार्षिक सम्मेलन ll स्थानीय सोहसराय बिहार शरीफ के एक सभागार में दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक बिहार शरीफ इकाई की ऑफिसर फेडरेशन एवं इंप्लाइज फेडरेशन की द्वितीय द्विवार्षिक सम्मेलन एवं रिटायरीस फेडरेशन की स्थापना की बुनियाद रखी गई l
कार्यक्रम की विधिवत उद्घाटन डॉक्टर कामरेड अरविंद कुमार सिंह, डीबीजीबी के महाप्रबंधक नीरज कुमार, डीबीजीबी के बिहार शरीफ के क्षेत्रीय अधिकारी राणा रणवीर सिंह ,नदीम अख्तर ,अरविंद अमर द्वारा दीप प्रज्वलित कर विधिवत सम्मेलन की उद्घाटन किया गया lइस सभा को कामरेड डॉ अरविंद ने कहा कि बैंक आज की तारीख में सभी बुरा हाल में है सरकार की गलत नीतियों के कारण बैंक का बुरा हाल है ,उन्होंने कहा कि कारपोरेट जगत में सरकार लोगों को 90 से 95% कर्ज माफ कर रही है लेकिन सरकार का कहना है कि छोटे-छोटे कर्ज धारक के कारण बैंक की स्थिति खराब है l
डीबीजीबी के महाप्रबंधक नीरज कुमार ने कहा कि बैंक की प्रॉफिट लॉस ,पेंशन एवं अन्य सुविधाएं बैंकर को हम लोग दे रहे हैं lबैंक में जो एनपीए है उसके लिए सम्मेलन में सभी बैंकर्स को कहा कि हम लोग सभी मिलकर एनपीए को खत्म करेंगेl डीबीजीबी को एक नंबर मिला कर रहेंगे lउन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में सभी लोग यह प्रण कर यहां से जाएं कि बैंक को एनपीए से मुक्त करें अच्छे लोन करें रिकवरी करें तभी हम सरवाइव कर सकते हैं lबैंक है तो हम हैं lदक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक बिहार शरीफ क्षेत्र के क्षेत्रीय अधिकारी राणा रणबीर सिंह ने कहा कि इस सम्मेलन से मैसेज जरूर जानी चाहिए की बैंक का विकास कैसे हो ,रिटायर्ड क्षेत्रीय अधिकारी अरविंद अमर ने संगठन को मजबूत करने पर बल दिया अंत में मचा सीन सभी अधिकारियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया सभागा
प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव पर हमला करते हुए कहा कि जब जनता किसी के झूठे आश्वासन के नाम पर अपना मत दे तो इसमें दोष जनता का का ही है। तेजस्वी यादव जैसे नेता के कहने पर यदि लोगो को रोज़गार मिल जाएगा तो गलती तेजस्वी यादव की नहीं बल्कि उसको माने वालों की है। प्रशांत ने कहा कि ये वो लोग हैं कि जिन्होंने बिहार को 15 साल में रसताल में पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव को माफी मांगनी चाहिए कि राजद के 15 साल के शासन में इन्होंने नौकरियां नहीं दी। पिछले साल नीतीश कुमार ने 15 अगस्त को गांधी मैदान से खड़े होकर कह दिया कि सभी नौकरियां हम 1 साल में दे देंगे। करीब 5 महीने बाद आज कितनी नौकरी बंटी है, सबके सामने है। नौकरियों के नाम पर बस लाठियां बरसाई जा रही है।
श्रवण कुमार बिहारशरीफ प्रखंड के चकरसलपुर निवासी मृतक सोनी कुमारी की मृत्यु पानी में डूबने से हो गई थी आश्रित उनकी मां गिरनी देवी को राज्य सरकार द्वारा प्रदत चार लाख की सहायता राशि का चेक बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार के द्वारा दिया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि आपदा पीड़ित परिवारों को हर संभव मदद बिहार की सरकार कर रही है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा कहा करते हैं राज सरकार के खजाने पर पहला हक आपदा पीड़ित परिवारों एवं गरीबों का है । बिहार में उनके नेतृत्व में जो काम हुआ देश में कोई राज उसका जोड़ा नहीं लगा सकता बिहार में हुए कार्यों का डंका आज देश में बज रहा है।
देश स्तर पर नीतीश कुमार जी की छवि विकास पुरुष से लेकर सुशासन बाबू के रूप में देखी जा रही है और यही कारण है देश के लोग उनकी ओर अपनी निगाहें फैला कर बैठे हैं कि कब मौका मिले उन्हे और देश को उनका कुशल नेतृत्व देश को मिले बिहार में उनके नेतृत्व में गरीबों पिछड़ों शोषित और दलितों महा दलितों को विकास की मुख्यधारा में हमारी सरकार ने जोड़ने का काम किया है। इस अवसर पर विधान पार्षद रीना यादव जनता दल यू के मुख्य प्रवक्ता डॉ धनंजय कुमार देव प्रखंड अध्यक्ष जदयू संजय कुशवाहा जीतन चौहान आकाश कुमार उदय मेहता मनोज कुमार सोनु कुमार सरयुग महतो सन्नी चंद्रा सुबोध पंडित अशोक कुमार ।
राकेश बिहारी शर्मा – बात अगर आजादी की लड़ाई की हो और सुभाष चंद्र बोस का जिक्र ना हो … ऐसा हो ही नहीं सकता। अंगेजों की गुलामी की बेड़ियों मे जकड़ी भारत मां के एक सच्चे और वीर सपूत के तौर पर नेताजी का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के ओजस्वी उद्घोष से समग्र राष्ट्र में देशभक्ति त्याग और बलिदान के अनियंत्रित तूफान को सृजित करने वाले भारतीय स्वाधीनता संग्राम के क्रांतिधर्मा महानायक सुभाष चंद्र बोस का देश की आजादी के इतिहास में अनुपम और अतुलनीय योगदान हैं। भारत को विश्व की एक महान शक्ति बनाने के लिए संकल्पित सुभाष चंद्र बोस की अमिट छवि भारतीय जनमानस में नेताजी के रूप में अंकित है।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म और शिक्षा-दीक्षा
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। सुभाष चंद्र बोस के 7 भाई और 6 बहनें थीं। सुभाष कटक के प्रोटेस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल से प्राइमरी शिक्षा पूर्ण कर 1909 में उन्होंने रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में दाखिला लिया। कॉलेज के प्रिन्सिपल बेनीमाधव दास के व्यक्तित्व का सुभाष के मन पर अच्छा प्रभाव पड़ा। बाद में, कुछ दिक्कतों के चलते इस कॉलेज को छोड़कर उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश ले लिया और फोर्ट विलियम सेनालय में रँगरूट के रूप में प्रवेश पा गये। 15 सितम्बर 1919 को वे इंग्लैण्ड चले गये। वहां पर उन्हें किट्स विलियम हाल में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान की ट्राइपास (ऑनर्स) की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु प्रवेश मिल गया।
राष्ट्रसेवा के चलते छोड़ दिया आईसीएस
पिताजी चाहते थे कि सुभाष इंग्लैंड जाएं और सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा आईसीएस होकर लौटे। किंतु जन्मजात विद्रोही सुभाष के मन में अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने की बगावत का बीजारोपण तो हो ही चुका था। 1920 में उन्होंने आईसीएस परीक्षा की वरीयता सूची में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए इसे पास किया। नेताजी के दिलो-दिमाग पर स्वामी विवेकानन्द और महर्षि अरविन्द घोष के आदर्शों ने गहरा प्रभाव डाला था, समाज सेवा, राष्ट्र सेवा और जन सेवा का कर्तव्य भाव उन्हें पुकार रहा था। ना चाहते हुए भी पिता की आज्ञा का पालन किया और इंग्लैंड से आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली, किन्तु उनकी सरकारी नौकरी करने की इच्छा बिल्कुल नहीं थी। उन्होंने दृढ़ता पूर्वक प्रतिकार करते हुए कहा कि वह शासन तंत्र जो मेरी मातृभूमि को दासता की जंजीरों में जकड़ा हुआ है उसकी कठपुतली या पुर्जा बनना मुझे स्वीकार नहीं है। विदेशी हुकूमत हमारे युवकों को गोलियों से भून रही है उन्हें जेलों में यातनाएं दे रही है और मैं उनकी गुलामी करूं यह असंभव है और 22 अप्रैल 1922 को उन्होंने पिता की इच्छा के विरुद्ध आईसीएस से त्यागपत्र दे दिया।
सुभाष चंद्र बोस का भारतीय राजनीति में प्रवेश
इंग्लैण्ड से भारत वापस आने के बाद रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर सुभाष चंद्र बोस सबसे पहले मुम्बई गये और महात्मा गांधी से मिले। वहाँ 20 जुलाई 1921 को गाँधी जी और सुभाष के बीच पहली मुलाकात हुई। नेताजी की पॉलिटिक्स और विचारधारा के दो खास दौर थे। 1920-30 के दौरान कांग्रेस का समाजवाद की तरफ झुकाव होने लगा जिसमें नेताजी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सुभाष एक व्यवहारिक चिंतक, अद्भुत संगठनकर्ता और करिश्माई नेतृत्व के धनी थे जिनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व में जादुई आकर्षण था। उनकी वाणी में अद्भुत ओज था।
सुभाष चंद्र बोस ने समाजसेवा और पत्रकारिता की
बंगाल के देशभक्त चितरंजन दास की प्रेरणा से सुभाष राजनीति में आए स्वयंसेवक बने फिर राष्ट्रीय विद्यापीठ के आचार्य और कॉंग्रेस स्वयंसेवक दल के प्रमुख। अपने साथियों के साथ सेवादल बनाकर मानव सेवा में जुट गए। उनकी ख्याति युवा नेता और समाजसेवी के रूप में विख्यात हो गई। उत्तर बंगाल के बाढ़ पीड़ितों की अद्भुत सेवा की। स्वराज पार्टी के प्रमुख पत्र फॉरवर्ड के संपादक बनाए गए। 1924 में जब देशबंधु कोलकाता के मेयर बने तब सुभाष को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। जहां उन्होंने प्रशासनिक दक्षता, राष्ट्रवादी भावनाओं और जन हितेषी कार्यों से अपनी प्रामाणिकता सिद्ध की।
सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया
सुभाष चंद्र बोस कुल 11 बार गिरफ्तार किए गए और लगभग 15 वर्षों तक जेल में रहे। 1928 में प्रांतीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए लगातार परिश्रम से वे बीमार हो गए। बमुश्किल 1932 में जर्मनी में चिकित्सा के लिए गए और वहां से लौटने पर 1939 में पट्टाभी सीतारमैया को चुनाव में पराजित कर पुनः कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। गांधीजी ने इसे अपनी व्यक्तिगत हार माना। गांधी के अहिंसा वादी विचारों का सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से मेल नहीं होता था। अतः उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की और कई बार जेल गए
उग्रवादी विचारधारा के अमर सेनानी सुभाष का दृढ़ विश्वास था कि ब्रिटिश शासन की नृशंसता का सशस्त्र बल से विरोध करने पर ही भारत मां को आजाद किया जा सकता है। अपना रक्त दिए बिना भारत को मुक्त नहीं किया जा सकता।
भारतीय संस्कारों से युक्त पूर्ण स्वराज का लक्ष्य लेकर उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। गांधी के व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ करने के दौरान सुभाष बाबू ने बंगाली जनता को हालवेल, ब्लैक होल स्मारक को हटा देने एवं सामूहिक आंदोलन करने का आव्हान किया। फलस्वरुप आंदोलन के लिए उमड़ते तूफान की आशंका से भयभीत हो सुभाष को पुनः जेल में डाल दिया गया। जहां उनके अनशन प्रारंभ करने पर उन्हें छोड़ दिया गया।
किंतु उनके घर में ही उन्हें फिर नजरबंद कर दिया गया। 26 जनवरी 1941 को वे वेश बदलकर गूंगे बहरे पठान जियाउद्दीन मौलवी के रूप में विषम परिस्थितियों और भयानक खतरों का सामना करते हुए काबुल होते हुए इटली से जर्मनी पहुंच गए। उनका विश्वास था कि कांग्रेस के असहयोग और सत्याग्रह आंदोलन के शस्त्र की धार इतनी पैनी नहीं है कि वे ब्रिटिश राजनीति के मोटे कवच को भेदकर उनकी ह्रदय गति को बंद कर सकें। अंततः उन्होंने देश से बाहर जाकर विदेशी सहायता से सेना को संगठित करने का निश्चय किया। उन्होंने पश्चिमी देशों में घटित क्रांतियों, सर्वहारा वर्ग के हित में बनाए गए उन देशों के संविधानों का अध्ययन किया। लेनिन, स्टालिन, डी बलेरा, कमाल अतातुर्क, हिटलर, मुसोलिनी आदि की नेतृत्व क्षमता का तुलनात्मक अध्ययन कर वे इस नतीजे पर पहुंचे कि भारत में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप निस्तेज है और उसे जागृत करने के लिए युवाओं को प्रेरित करना आवश्यक है। युवा शक्ति की भागीदारी के बिना आजादी संभव नहीं है। उन्होंने देश की हालत के संबंध में रोम्याब-रोलां से भी मुलाकात की।
जब मुसोलिनी ने कहा भारत की आजादी पक्की है
मुसोलिनी ने जब सुभाष चंद्र बोस से पूछा कि उनका विश्वास सुधारवाद में है या क्रांति में। तो सुभाष ने उत्तर दिया क्रांति में। यह सुनकर मुसोलिनी मुस्कुराए और कहा तब तो भारत की आजादी पक्की है। 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ। सुभाष बाबू को लगा कि इस समय इंग्लैंड संकट में है और देश की आजादी के लिए ये उपयुक्त अवसर है। किंतु कांग्रेस को अपने अनुकूल परिवर्तित करने में वे सफल नहीं हो सके।
सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज का गठन किया
जहां साधना होती है वह साधनों की अल्पता अर्थहीन हो जाती है। जर्मनी से भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराने में सहायता प्राप्त करना कठिन था। किंतु सुभाष के महान व्यक्तित्व, आत्मबल और उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए सर्वस्व न्योछावर करने के दृढ़ संकल्प से प्रभावित होकर हिटलर ने “प्राईज इंडिशे फुहरर” अर्थात आजाद हिंद के नेता के रूप में उनका स्वागत किया। वहां से वे जापान पहुंचे जहां इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के संस्थापक और गदर पार्टी के क्रांतिकारी रासबिहारी बोस से मिले और जापान में रहकर आजाद हिंद सेना का गठन किया। ब्रिटेन और अमेरिका के विरोध में युद्ध लड़ना आरंभ किया। 21 अक्टूबर 1943 को अंततः सिंगापुर में आजाद भारत की अस्थाई सरकार की घोषणा कर दी गई। जापान जर्मनी इटली चीन आदि देशों ने आजाद हिंद सरकार की स्वतंत्रता को एक मत से स्वीकार कर लिया।
सुभाष के “दिल्ली चलो” और “जय हिंद” के बुलंद नारों ने सिपाहियों में जादू सा प्रभाव डाला। कोहिमा मणिपुर के युद्ध में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों ने अद्भुत पराक्रम दिखाया। किंतु अचानक विश्व युद्ध का रुख बदल गया। ब्रिटेन और मित्र राष्ट्रों ने विजय प्राप्त कर ली। हिटलर की आत्महत्या और जर्मनी की हार से आजाद हिंद फौज की लड़ाई प्रभावित हुई। जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका द्वारा बम गिराने से जापान ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। सुभाष ने कहा कि यह एक सामान्य सामयिक असफलता है। हम शीघ्र ही यह युद्ध प्रारंभ करेंगे और जीतेंगे। हमारी भारत भूमि अब अधिक दिनों तक गुलाम नहीं रहेगी।
आज भी पहले है सुभाष चंद्र बोस का अवसान
देशभक्ति शब्द किसी भी व्यक्ति के लिए उसके देश के प्रति प्यार, निष्ठा और अपने नागरिकों के साथ गठबंधन और भाईचारे की भावना को दर्शाता है। ये बिना किसी शर्त के राष्ट्र का सम्मान और समर्थन करता है। अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और उसके लिए कुछ भी करने का उत्साह और बलिदान की भावना रखने वाले को देशभक्त कहा जाता हैं, देशभक्ति लोगों को देश के प्रति जीने, प्यार करने, लड़ने तथा जरूरत पड़ने पर अपने प्राणों को न्योछावर करने के लिए प्रोत्साहित करती है। ऐसे ही सच्चे देशभक्त थे सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। 23 अगस्त 1945 को अचानक जापान के टोक्यो न्यूज़ एजेंसी ने यह अविश्वसनीय खबर प्रसारित की कि 18 अगस्त को सुभाष चंद्र बोस हवाई जहाज की दुर्घटना में इस संसार से चले गए। यद्यपि आज भी उनके अवसान को लेकर रहस्य बना हुआ है।
अखंड भारत का सपना देखा था सुभाष चंद्र बोस ने
निसंदेह सुभाष चंद्र बोस के लिए भारत की आजादी अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यारी थी किंतु वे अखंड भारत की आजादी के प्रबल समर्थक थे। उनकी अर्चना और आराधना के राष्ट्र का स्वरूप बहुत विराट था। वह संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न और शक्तिशाली और विश्ववंध्य भारत था। वे अखंड भारत की आजादी के लिए कुछ वर्षों के विलंब के लिए तैयार थे किंतु यह उन्हें बिल्कुल स्वीकार नहीं था कि भारत माता का कोई अंग काटकर उसे बंधन मुक्त किया जाए क्योंकि उनकी कल्पना में खंडित भारत की आजादी का स्वप्न था ही नहीं। वे भारत के मुक्ति संग्राम के ऐसे अपराजेय योद्धा हैं जो सदियों तक हमारे प्रेरणा दीप बन कर राष्ट्र की बलिवेदी पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने की प्रेरणा देते रहेंगे। सुभाष जैसे महान क्रांतिकारी युगदृष्टा को शत-शत नमन।
श्रमदान किया सम्मान पाया गूंज डी एफ डब्ल्यू किट प्राप्त कर सम्मानित हुए लोग। पुरुषोत्तम कुमार। नूरसराय प्रखंड अंतर्गत परिऔना गांव में श्रमदान कार्य करने वाले 60लोगो को अंतरराष्ट्रीय संस्था गूंज के राज्य प्रमुख शिवजी चतुर्वेदी जी के मार्गदर्शन में गूंज पटना के अरुण उपाध्याय के निर्देश पर मानव सेवा केन्द्र लोहड़ी के सचिव पुरुषोत्तम कुमार के नेतृत्व में गूंज डी एफ डब्ल्यू किट वितरण श्रमदान प्रेमियों को किया गया।सम्मानित पाकर लोग श्रमदान के महत्व को समझते हुए जागरुक हुए। मानव सेवा केन्द्र लोहड़ी के सचिव पुरुषोत्तम कुमार ने उपस्थित लोगों को बताया कि अंतराष्ट्रीय संस्था गूंज देश के कई राज्यों के जिला एवं गांव में श्रमदान कार्य करने वाले को जरूरत पुरा करने में लगे हुए हैं और इस तरह सम्मान देकर लोगों को बीच आपसी सहमति प्रेम भाईचारा बढ़ाने में लगे हुए हैं आज आमजनों में आपसी सहयोग कम हो रहा है ईसे हर हाल में पुर्वजों का बताया रास्ते पर चलने कि ज़रुरत है पुरानी परंपरा को पुनः स्थापित करने हेतु श्रमदान एक मात्र रास्ता है ।
नालन्दा जिले में कई संस्था के साथ गूंज संस्था के सहयोग से मानव कल्याण हेतु जन कल्याण कार्य किया जा रहा है। सम्मानित कार्य के अलावा स्कूल किट वितरण आसन वितरण कम्बल वितरण सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र संचालित है आज समाजिक सरोकार रखने वाले लोग जो आपसब मिलकर पुरानी परंपरा को पुनः स्थापित किया है कई जगह जाहां जहां साफ सफाई और वृक्षों को बचाने हेतु मिट्टी भराई आने जाने वाले रास्ते के साथ नली गली साफ़ सफ़ाई कर आम लोगों को जागरूक किया है आपसी प्रेम प्रकाश में लाया है जो सराहनीय पहल है। महावत प्रसाद उर्फ धनंजय सिंह वार्ड प्रतिनिधि ने बताया कि गूंज संस्था और मानव सेवा केन्द्र लोहड़ी द्वारा महिलाओं बच्चों और श्रमिको को जरूरत पुरा करने में तत्पर रहते हैं यह अनोखा कार्य करने में लगे हुए सभी श्रमदानियों प्रेमियों को किट सामग्री में दो कम्बल,दरी सफेदा तौलिया चप्पल स्वेटर मौजा टोपी मछरदानी ठंडा गर्म कपड़े दे कर सम्मानित किया गया है जो सराहनीय कार्य है काम के बदले सम्मान से नवाजा गया है ईस लिए गूंज के राज्य प्रमुख शिवजी चतुर्वेदी जी को सहृदय से धन्यवाद देता हूं और लोगों को अवाहन करते हुए कहना है कि आप अपने स्तर से गांव विकास कार्य में लगे गूंज और मानव सेवा केन्द्र लोहड़ी से सम्पर्क कर अनोखा कार्यक्रम से जुड़े। ईस कार्यक्रम में शामिल सुर्य भणी मिश्रा विक्की कुमार राजों रविदास दिनेश रविदास के साथ सैकड़ों लोग उपस्थित थे ।।
पिछले 3 सालों से लगातार बिहारशरीफ प्रखंड के पतुआना गांव में स्वर्गीय श्री गोप की स्मृति में घुड़दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन लोभी यादव और समस्त ग्रामीणों के सहयोग से किया जा रहा है। इस वर्ष 2023 में 26 जनवरी के मौके पर पतुआना गांव के मैदान में घुड़दौड़ प्रतियोगिता का वृहत पैमाने पर आयोजन किया जा रहा है। इस घुड़दौड़ प्रतियोगिता के आयोजनकर्ता लोभी यादव ने बताया कि हमारे देश में विलुप्त हो रहे घुड़दौड़ प्रतियोगिता को जीवित करने का हमारा एक प्रयास है जो पिछले 3 सालों से लगातार जारी है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों के जमाने से ही घुड़दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था लेकिन अचानक यह प्रतियोगिता धीरे-धीरे विलुप्त हो गया। उन्होंने बताया कि इस घुड़दौड़ प्रतियोगिता में नालंदा जिले के अलावे जहानाबाद बक्सर आरा नवादा शेखपुरा समेत कई जिलों से घुड़सवार इस घुड़दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं। इस घुड़दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाने वाले को कलर टीवी दूसरे स्थान प्राप्त करने वाले को एक साइकिल और तीसरे स्थान पाने वाले को टेबल फैन इनाम के रूप में दिया जाएगा। इसके अलावा जितने भी घुड़सवार इस घुड़दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे उन्हें भी अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया जाएगा।