Sunday, July 6, 2025
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राजगीर और अस्थावां विधानसभा अल्पकालिक विस्तारक की बैठक आयोजित

भारतीय जनता पार्टी नीतीश के गढ़ में सेंधमारी की तैयारी युद्ध स्तर पर शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बैठक आयोजित की जा रही है और कार्यकर्ताओं में जोश पैदा किया जा रहा है ।इसी कड़ी में राजगीर और अस्थावां विधानसभा अल्पकालिक विस्तारक की बैठक पावापुरी के होटल अभिलाषा में आयोजित की गई । जिसकी अध्यक्षता बीजेपी के जिला अध्यक्ष प्रोफ़ेसर रामसागर सिंह द्वारा किया गया। जबकि इस मौके पर लोकसभा संयोजक सुधीर कुमार, छोटेलाल राजवंशी, राजेश्वर सिंह ,शैलेंद्र आर्य, सीमा चौधरी, मंडल अध्यक्ष सुभाष कुमार ,अविनाश कुमार, धीरज कुमार, निर्मल कुमार, विकास कुमार, अस्थावां विधानसभा प्रभारी राजेश कुमार, राजगीर विधानसभा प्रभारी श्याम किशोर प्रसाद सिंह समेत सभी अल्पकालिक विस्तारक इस बैठक में शामिल हुए।

श्राद्ध कार्यक्रम में पौधा बाँट दिया हरियाली का संदेश !

हिलसा ( नालंदा ) खीरू विगहा ग्राम निवासी युवा फ़ुटबॉल खिलाड़ी नीरज कुमार ने अपनी माँ के श्राद्ध कार्यक्रम के मौक़े पर ग्रामीणों के बीच २०० पौधा वितरित कर मिशन हरियाली का संदेश दिया . इस अवसर पर सैंकड़ों अतिथियों, खिलाड़ियों , सामाजिक – राजनैतिक कार्यकर्ताओं के बीच नूरसराय स्थित मिशन हरियाली द्वारा प्रदत्त अमरूद के पौधे दिए गए तथा पर्यावरण को संरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाने का आह्वान किया गया . कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए समाजसेवी डा. आशुतोष कुमार मानव ने कहा कि इस तरह का आयोजन किया जाना माता जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी . पौधे हमारे सच्चे साथी हैं जो बिना स्वार्थ के सम्पूर्ण प्राणी जगत के लिए जीते हैं . उन्होंने कहा कि माता जी का विचार हमेशा अपने बीच ज़िंदा रहेगा . इसी क्रम में युवकों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर सामूहिक संकल्प भी लिया . कार्यक्रम में रामईश्वर प्रसाद, अनुज कुमार, शैलेंद्र कुमार, राजीव रंजन, वसुंधरा देवी, बेबी कुमारी, सुनील कुमार, सरपंच सरविंद कुमार, चंदन भारती, मुन्ना कुमार, गौरव सौरव, रौशन , राहुल, अंकित, आकृति, शुभम, शिवम्, मुस्कान, मुकेश कुमार, अंश , मृत्युंजय पाठक, दीपक कुमार, राज किशोर प्रसाद समेत सैंकड़ों ग्रामीण उपस्थित थे .

बौद्ध धम्म की रीति रिवाज से छेका रोका का कार्यक्रम हुआ संपन्न।

बिहारशरीफ के हरनौत प्रखंड के पतसिया (लोहरा) गांव में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के तत्वाधान में बौद्ध धम्म के रीति रिवाज से छेका रोका किया गया इस अवसर पर उपस्थित बौद्ध भिखू शीलभद्र(भन्ते) द्वारा सर्वप्रथम बुध्द की प्रतिमा,डॉक्टर भीमराव अंबेडकर एवं सावित्रीबाई फुले चित्र पर माल्यार्पण करते हुए पुष्प अर्पित कर कैंडल जलाकर लड़का पक्ष (विक्की कुमार)के परिवार एवं लड़की पक्ष (आरती कुमारी) के परिवार को बौद्ध धम्म की दीक्षा दिलाते हुए छेका रोका का कार्यक्रम संपन्न किए। इस अवसर पर उपस्थित सभी ने वर (लड़का) को शुुभ मंगलमय का आशीर्वाद देने का काम किए और जीवन में सुखमय के लिए महात्मा गौतम बुद्ध से कामना किए और इसी तरह आगे भी विवाह, छेका,तिलक का कार्यक्रम बौद्ध धम्म की रीति रिवाज से होते रहेगा। इसी तरह हजारों साल से चल रही रूढ़िवाद रीति रिवाज को बदलने का काम होते रहेगा। इस मौके पर भीमराव अंबेडकर संघर्ष विचार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल पासवान प्रदेश अध्यक्ष रामदेव चौधरी लड़का के पिता सूर्यदेव पासवान लड़की के पिता जोगिंदर पासवान सौरभ कुमार राजीव रंजन दीपक कुमार नीरज कुमार रोहित कुमार मुकेश कुमार नंदलाल कुमार किरण देवी जुली कुमारी तारा देवी सौरभ राज नीतू देवी एवं लड़का लड़की के परिवार के साथ गांव के लोग उपस्थित थे ।

भी एम एजुकेशन सेंटर के दूसरा वर्षगांठ धूमधाम से मनाया गया|

नालंदा जिला के बिहारशरीफ स्थित गढ़पर भी एम एजुकेशन का दूसरा वर्षगांठ समारोह के रूप में धूमधाम से मनाया  गया| इस स्कूल में छोटे-छोटे बच्चे के लिए जूनियर कंपटीशन की तैयारी करवाई जाती है | कार्यक्रम में संस्थान के छात्र एवं छात्राओं ने एक से बढ़कर एक रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर दर्शकों का मनमुग्ध कर दिया | इस कार्यक्रम का उद्घाटन विद्यालय के निर्देशक प्राचार्य एवं शिक्षक के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया | मौके पर निर्देशक मनीष कुमार और विकास कुमार ने बताया कि यहां सैनिक स्कूल. आर के मिशन. मिलिट्री. सिमुलतला. बीएचयू. नवोदय. नेतरहाट प्रवेश परीक्षा की तैयारी बड़े ही आधुनिक ढंग से करवाई जाती है|

भी एम एजुकेशन सेंटर के दूसरा वर्षगांठ धूमधाम से मनाया गया|  भी एम एजुकेशन सेंटर के दूसरा वर्षगांठ धूमधाम से मनाया गया|

उन्होंने बताया कि पिछले साल हमारे संस्थान से कई बच्चे प्रवेश परीक्षाओं में सफलता प्राप्त किया है|आपको बताते चलें कि इस मौके पर डिप्टी मेयर आइसा  शाहीन ने संस्था को उत्तरोत्तर विकास की कामना करते हुए कहा कि बहुत ही कम समय में यह संस्थान बेहतर रिजल्ट देकर शहरवासियों में एक अलग पहचान बनाया है साथ ही साथ संस्थान में बच्चों को और बेहतर शिक्षा मिले मैं यही ईश्वर से कामना करती हूं मौके पर विद्यालय के प्राचार्य भरत भोपाल पांडे रंजीत कुमार रॉकी कुमार मणिकांत कुमार कुसुम कुमारी शालू कुमारी आशुतोष कुमार ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपनी भागीदारी निभाई

अग्निशमन टीम द्वारा आग से सुरक्षा और बचाव के उपाय की जान कारी

आज प्रोजेक्ट बालिका इंटर विद्यालय गिरियक मे अग्निशमन सेवा की टीम द्वारा आग से सुरक्षा और बचाव के उपाय की जान कारी रविंद्र राम अग्निशमन पदाधिकारि , और उनके सहयोगियों के द्वारा दी गयी! इस अवसर पे विद्यालय के प्राचार्य श्री महेश पांडेय, नोडल शिक्षक विकाश राय, अंशु कुमार, सुजीत कुमार, मुकेश कुमार , उपाध्याय सर सहित विद्यालय के सभी शिक्षक गन, विद्यालय कर्मी, छात्रा उपस्थित रहे

रेल की समस्याओं को लेकर सांसद ने रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से मुलाकात की

नालंदा के सांसद कौशलेंद्र कुमार रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अनिल कुमार लाहोटी से मिलकर नालंदा में रेल की समस्याओं भाड़ा, ठहराव, गाड़ियों का अधिक परिचालन, टिकट काटने की व्यवस्था ,मलमास मेला में यात्रियों की संख्या को देखते हुए स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था एवं देवघर जाने वाली गाड़ियों के लिए विशेष ट्रेन की व्यवस्था आदि मांग रखी है रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अनिल कुमार लाहोटी ने इन सारी समस्याओं को देखते हुए इसका निराकरण करने का भरोसा दिया है

1. मेरे संसदीय क्षेत्र नालंदा में (03625/26) मेमो ट्रेन बख्तियारपुर से गया के लिए चलती है। यह ट्रेन कोरोना से पहले सभी हाॅल्टों पर रुकती थी, परन्तु अब यह नहीं रुक रही है। अतः इसे सभी हाल्टों पर रोका जाये। (13233/34) दानापुर-राजगीर इंटरसिटी को नालंदा रेलवे स्टेशन पर रोकने के साथ ही (12391/92) श्रमजीवी एक्सप्रेस को पावापुरी व सिलाव स्टेशन पर रोका जाये। 2. नालंदा में राजगीर, दनियावां, फतुहा रेल खण्ड पर चलने वाली गाड़ी रामपुर हाल्ट पर तो रूकती है, लेकिन वहाँ टिकट नहीं कटता हैं। इसलिए रामपुर हाल्ट पर टिकट काऊंटर की व्यवस्था किया जाये।
3. (63209/53210) राजगीर से दनियावां होते हुए फतुहा तक मेमो ट्रेन चालू किया गया है। स्थानीय यात्रियों एवं पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए इसे पटना/दानापुर तक बढ़ाया जाये। साथ ही अभी मात्र एक ही मेमो ट्रेन चलती है, इस लाईन पर दो जोड़ी मेमो ट्रेन चलाया जाये। 4. (53043/44) हावड़ा-राजगीर फास्ट पैसेंजर राजगीर से हावड़ा के लिए चलती थी, परन्तु कोविड के कारण बंद है। राजगीर में मलमास मेला के लिए बड़ी संख्या यात्री इस फास्ट पैसेंजर ट्रेन से आते-जाते हैं। इसके अतिरिक्त इस फास्ट पैसंेजर ट्रेन से बड़ी संख्या मंे श्रद्धालु देवघर दर्शन के लिए जाते हैं। अतः (53043/44) हावड़ा-राजगीर फास्ट पैसेंजर को चालू किया जाये। 5. दानापुर मंडल स्थित नालंदा में मेमू स्पेशल (03231/32) राजगीर से दानापुर, मेमू स्पेशल ;03271/72) इसलामपुर से पटना, मेमू स्पेशल ;03695/96) राजगीर से दानापुर, मेमू स्पेशल ;03621/22) तथा (03623/24) राजगीर से बख्तियारपुर, मेमू स्पेशल ;03625/26) बख्तियारपुर से गया, मेमू स्पेशल ;03631/32) नटेसर से फतुहा और मेमू स्पेशल ;03629/30) दानापुर से तिलैया आदि टेªनों में दोगुना किराया वसूला जा रहा है। जबकि रेलवे बोर्ड 15 नवम्बर, 2021 के आदेशानुसार देश में मेल/एक्सप्रेस/सुपरफास्ट/राजधानी आदि गाड़ियों का किराया कोरोना पूर्व की भाँति वापस पहले की तरह करने का आदेश बहाल किया गया है। किन्तु उसका अनुपालन नालंदा से संचालित सभी मेमू गाड़ियों में अभी भी नहीं हुआ है। जनहित की इस ज्वलंत माँग को मैं सदन में भी रखता आ रहा हूँ। अतः आपसे अनुरोध है, कृपया उपरोक्त क्रमानुसार अपने स्तर से पूर्व की भाँति सामान्य किराया सभी मेमू गाड़ियों में वसूले जाने के साथ ही उक्त गाड़ियों का ठहराव किए जाने के आदेश पारित किए जाने की कृपा करें।

ललई सिंह यादव की वीं 30 पूण्यतिथि पर विशेष

इतिहास वह नहीं जो हमको बताया जाता है, बल्कि इतिहास वह है जिसको हमारे समाज, हमारे महापुरुषों नें सहा है और जिसके लिए संघर्ष किया और जिसे कभी लिखा ही नहीं गया। इसलिए हमारा असल इतिहास वही है जो हमारे महापुरुषों नें लिखा है, इसलिए अपनें इतिहास और हकीकत को जानने के लिए अपने महापुरुषों द्वारा लिखे इतिहास का अध्ययन करना अपनी नैतिक जिम्मेदारी है। शिक्षित मनुष्य वही माना जा सकता है जो जागरुक है, जिसे सच और झूठ का पता है जिसे दोस्त और दुश्मन की पहचान है, जिसे शोषक और शोषित की पहचान है, जिसे जानने की जिज्ञासा है अन्यथा सच को झूँठ और झूँठ को सच मान लेना बुद्धिमत्ता नहीं, निरा मूर्खता के सिवाय और कुछ भी नहीं है, मेरी नजर में बुद्धिमान वही है जो अपना नुकसान न करे, अन्यथा अपना नुकसान खुद करने वाला सबसे बड़ा महामूर्ख होता है। सच में इंसान वही है जिसे इतिहास, महापुरुष, समाज और समाज में रह रहे दूसरे लोगों के दर्द का एहसास हो, यही इंसान की जिंदादिली है, इसीलिए कहा गया है कि जीना है तो दूसरों के लिये भी जियो, अन्यथा अपने लिए तो जानवर भी जी लिया करते हैं।
असल में जिंदा रहना है तो लोगों के दिलों में जगह बनाओ। अन्यथा खुद के लिए चलते फिरते जिंदा रहने को जिंदा नहीं कहा जा सकता,यह काम तो जानवर भी बखूबी करता है। जंगली कुत्ते को भी अगर एक बार रोटी खिला दो तो जिंदगी भर एहसान नहीं भूलता, लेकिन हमारे समाज के अधिकांश जिम्मेदार लोगों ने समाज इतिहास और महापुरुषों का सबकुछ फ्री में हजम कर लिया और डकार तक नहीं ली, खाया अपना और हलाली दुश्मनों की, जिसकी सजा समाज सदियों तक भुगतेगा, आज हमारे पास जो भी उपलब्ध है वह महापुरुषों के कठिन संघर्षों की वजह से मिला हुआ है।

ललई यादव का जन्म, शिक्षा-दीक्षा और परिवारिक जीवन

देश का सबसे बड़ा राज्य है उत्तर प्रदेश। इस प्रदेश ने कई नायकों को जन्म दिया। यही वह प्रदेश है, जहां से पिछड़े समाज को जगाने वाले नायक बड़ी संख्या में निकले। ललई सिंह यादव का नाम उसमें प्रमुखता से शामिल है। ये अंधविश्वास-सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ तर्क व मानवतावाद की बात करने वाला नेता थे। बहुजन नवजागरण में इनका बहुत बड़ा योगदान था।
दलितों और पिछड़ों का मसीहा बहुजन नायक ललई सिंह यादव का जन्म 01 सितंबर, 1911 को कानपुर के कठारा गांव के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। पिता का नाम था चौधरी गज्जू सिंह यादव जो कि आर्यसमाजी थे। और माता मूला देवी उस क्षेत्र के मकर दादुर गाँव के जनप्रिय नेता साधौ सिंह यादव बेटी थीं। उन्हें जाति-भेद की भावना उन्हें छू भी नहीं सकी थी। उनकी गिनती गाँव-जवार के प्रभावशाली व्यक्तियों में होती थी। माता मूला देवी के पिता साधौ सिंह भी खुले विचारों के थे। समाज में उनकी प्रतिष्ठा थी। पेरियार ललई सिंह के जुझारूपन के पीछे उनके माता-पिता के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव था। ललई सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी। ललई सिंह यादव ने 1928 में उर्दू के साथ हिन्दी से मिडिल पास किया। उन दिनों दलितों और पिछड़ों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी थी। हालांकि सवर्ण समाज का नजरिया अब भी नकारात्मक था। उन्हें यह डर नहीं था कि दलित और शूद्र पढ़-लिख गए तो उनके पेशों को कौन करेगा। असली डर यह था कि पढ़े-लिखे दलित-शूद्र उनके जातीय वर्चस्व को भी चुनौती देंगे। उन विशेषाधिकारों को चुनौती देंगे जिनके बल पर वे शताब्दियों से सत्ता-सुख भोगते आए हैं। इसलिए दलितों और पिछड़ों की शिक्षा से दूर रखने के लिए वह हरसंभव प्रयास करते थे। ऐसे चुनौतीपूर्ण परिवेश में ललई सिंह ने 1928 में आठवीं की परीक्षा पास की। उसी दौरान उन्होंने फारेस्ट गार्ड की भर्ती में हिस्सा लिया और चुन लिए गए। वह 1929 का समय था। 1931 में मात्र 20 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह सरदार सिंह की बेटी दुलारी देवी हुआ। दुलारी देवी पढ़ी-लिखी महिला थीं। उन्होंने टाइप और शार्टहेंड का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। ललई सिंह को फारेस्ट गार्ड की नौकरी से संतोष न था। 1929 से 1931 तक ललई यादव वन विभाग में गार्ड रहे। सो 1933 में वे सशस्त्र पुलिस कंपनी में कनिष्ठ लिपिक बनकर चले गए। वहां उनकी पहली नियुक्ति भिंड मुरैना में हुई। नौकरी के साथ-साथ उन्होंने पढ़ाई की। 1946 में पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम करके उसके अध्यक्ष चुने गए। ललई सिंह का पारिवारिक जीवन बहुत कष्टमय था। उनकी पत्नी जो उन्हें कदम-कदम पर प्रोत्साहित करती थीं, वे 1939 में ही चल बसी थीं। परिजनों ने उनपर दूसरे विवाह के लिए दबाव डाला, जिसके लिए वे कतई तैयार न थे। सात वर्ष पश्चात 1946 में उनकी एकमात्र संतान, उनकी बेटी शकुंतला का मात्र 11 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। कोई दूसरा होता तो कभी का टूट जाता। परंतु समय मानो बड़े संघर्ष के लिए उन्हें तैयार कर रहा था। निजी जीवन दुख-दर्द उन्हें समाज में व्याप्त दुख-दर्द से जोड़ रहे थे।

ललई यादव का सामाजिक और राजनीतिक मोर्चे पर संघर्ष

ललई सिंह यादव 1950 में सेना से सेवानिवृत्त होने के पश्चात उन्होंने अपने पैतृक गांव झींझक को स्थायी ठिकाना बना लिया। वैचारिक संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए वहीं उन्होंने “अशोक पुस्तकालय” नामक संस्था गठित की। साथ ही “सस्ता प्रेस” के नाम से प्रिंटिंग प्रेस भी आरंभ किया। कारावास में बिताए नौ महीने ललई सिंह के नए व्यक्तित्व के निर्माण हुआ। जेल में रहते हुए उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का अध्ययन किया। धीरे-धीरे हिंदू धर्म की कमजोरियां और ब्राह्मणवाद के षड्यंत्र सामने आने लगे। जिन दिनों उनका जन्म हुआ था, भारतीय जनता आजादी की कीमत समझने लगी थी। होश संभाला तो आजादी के आंदोलन को दो हिस्सों में बंटे पाया। पहली श्रेणी में अंग्रेजों को जल्दी से जल्दी बाहर का रास्ता दिखा देने वाले नेता थे। उन्हें लगता था वे राज करने में समर्थ हैं। उनमें से अधिकांश नेता उन वर्गों से थे जिनके पूर्वज इस देश में शताब्दियों से राज करते आए थे। लेकिन आपसी फूट, विलासिता और व्यक्तिगत ऐंठन के कारण वे पहले मुगलों और बाद में अंग्रेजों के हाथों सत्ता गंवा चुके थे। देश की आजादी से ज्यादा उनकी चाहत सत्ता में हिस्सेदारी की थी। वह चाहे अंग्रेजों के रहते मिले या उनके चले जाने के बाद। 1930 तक उनकी मांग ‘स्वराज’ की थी। ‘राज’ अपना होना चाहिए, ‘राज्य’ इंग्लेंड की महारानी का भले ही रहे। स्वयं गांधी जी ने अपनी चर्चित पुस्तक “हिंद स्वराज” का शीर्षक पहले “हिंद स्वराज्य” रखा था। बाद में उसे संशोधित कर, अंग्रेजी संस्करण में “हिंद स्वराज” कर दिया था। “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” नारे के माध्यम से तिलक की मांग भी यही थी। वर्ष 1930 में, विशेषकर भगत सिंह की शहादत के बाद जब उन्हें पता चला कि जनता ‘स्वराज’ नहीं, ‘स्वराज्य’ चाहती है, तब उन्होंने अपनी मांग में संशोधन किया था। आगे चलकर जब उन्हें लगा कि औपनिवेशिक सत्ता के बस गिने-चुने दिन बाकी हैं, तो उन्होंने खुद को सत्ता दावेदार बताकर, संघर्ष को आजादी की लड़ाई का नाम दे दिया। अब वे चाहते थे कि अंग्रेज उनके हाथों में सत्ता सौंपकर जल्दी से जल्दी इस देश से चले जाएं।

साहित्य प्रेम और अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई
साहित्य प्रकाशन के लिए उन्होंने एक के बाद एक तीन प्रेस खरीदे। शोषित पिछड़े समाज में स्वाभिमान व सम्मान को जगाने और उनमें व्याप्त अज्ञान, अंधविश्वास, जातिवाद तथा ब्राह्मणवादी परम्पराओं को ध्वस्त करने के उद्देश्य से सारा जीवन लघु साहित्य के प्रकाशन की धुन में लगा दिया।

ललई सिंह यादव द्वारा सच्ची रामायण लिखना

ललई सिंह यादव सच्चे मानवतावादी थे। आस्था से अधिक महत्त्व वे तर्क को देते थे। सच्ची रामायण के प्रकाशन के पीछे उनका उद्देश्य मनुवाद की धार्मिक भावनाओं को खारिज करना न होकर, मिथों की दुनिया से बाहर निकलकर जीवन-जगत के बारे तर्क संगत ढंग से सोचने और उसके बाद फैसला करने के लिए प्रेरित करना था। ललई सिंह यादव सच्ची रामायण के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास, कर्मकांड को दूर करके नई समाज की रचना कराई। ललई सिंह का कहना था कि बलि बकरे को दी जाती है शेर को नहीं। हमें शेर बनना होगा।

सुप्रीम कोर्ट में ‘सच्ची रामायण’ के खिलाफ अपील

हाईकोर्ट में हारने के बाद यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में अपील दायर कर दी। यहाँ भी ललई सिंह यादव की सच्ची रामायण की जीत हुई।

ललई सिहं यादव ने सामाजिक न्याय के लिए पुस्तकों की रचना की

ललई सिहं यादव ने सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया और सामाजिक न्याय के अपने लक्ष्य के लिए अनेक पुस्तकों की रचना की। श्री ललई सिंह यादव को उत्तर भारत का ‘पेरियार’ कहा जाता है। उन्होंने 5 नाटक लिखे- (1) अंगुलीमाल नाटक, (2) शम्बूक वध, (3) सन्त माया बलिदान, (4) एकलव्य, और (5) नाग यज्ञ नाटक. गद्य में भी उन्होंने 3 पुस्तके लिखीं – (1) शोषितों पर धार्मिक डकैती, (2) शोषितों पर राजनीतिक डकैती, और (3) सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो? इत्यादिक पुस्तकों की रचना की। इसके अतिरिक्त 1926 में लिखित स्वामी अछूतानन्द के अनुपलब्ध नाटक ‘सन्त माया बलिदान’ का पुनर्लेखन भी उन्होंने किया।

ललई यादव का परिनिर्वाण

ललई सिंह के साहित्य ने बहुजनों में मनुवाद के विरुद्ध विद्रोही चेतना पैदा की और उनमें श्रमण संस्कृति और वैचारिकी का नवजागरण किया। एक सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और प्रकाशक के रूप में उन्होंने अपना पूरा जीवन मनुवाद के खात्मे और बहुजनों की मुक्ति के लिए समर्पित कर दिया। 07 फरवरी 1993 को ललई यादव का परिनिर्वाण हो गया। शोषित समाज को जागृत करने में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। जाति-भेद और छूआछूत के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे थे ललई सिंह यादव। ऐसे महान क्रांतिकारी योद्धा को शत शत नमन !

क़ाज़ी बाज़ार में मेधावी छात्र छात्राओं को किया गया सम्मानित

हिलसा ( नालंदा ) शहर के क़ाज़ी बाज़ार स्थित कैरियर इंस्टीच्यूट के प्रांगण में सोमवार को मेधा सम्मान समारोह सह फ़ेयरवेल पार्टी का आयोजन कर दर्जनों प्रतिभागियों के बीच पुरस्कार का वितरण किया गया . इस दौरान बतौर मुख्य अतिथि पहुँचे समाजसेवी डा. आशुतोष कुमार मानव एवं संचालक सोनू कुमार ने सभी सफल छात्र छात्राओं की हौसला आफ़जाई करते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की . संस्थान के निदेशक श्री सोनू ने बताया कि 10 वीं की परीक्षा में बैठने वाले प्रतिभागियों के बीच जाँच परीक्षा ली गयी थी |

जिसमें अव्वल स्थान लाने वालों को मेडल, स्मृति चिन्ह एवं मोमेंटो देकर सम्मानित किया जा रहा है . इस अवसर पर समाजसेवी डा. मानव ने कहा कि आज के युवा ही कल के भविष्य हैं . अगर छात्र जीवन से ही इनके अंदर प्रतियोगिता के साथ साथ सामाजिक सोंच पैदा किया जाए तो यही विद्यार्थी आने वाले समय में देश का नाम पूरी दुनिया में रौशन करेंगे . शिक्षाविद विकास कुमार, दीपू कुमार आदि ने कहा कि संस्थान की शुरूआत से ही बच्चों के अंदर प्रतियोगिता की महत्ता के साथ सामाजिक सोंच के प्रति जो चेतना पैदा करने का कार्य किया जा रहा है वह सचमुच अनुकरणीय और काविले तारीफ़ है . उक्त समारोह में वक्ताओं ने सभी प्रतिभागियों की हौसला आफ़जाई करते हुए इस तरह के आयोजन में बढ़ चढ़ कर भाग लेने का आह्वान किया .

डॉ. एसएन सुबाराव की 95 वी जयंती पर विशेष

ज्यादातर गांधीवादी चिंतकों और पत्रकारों का कहना है कि महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बाद सुब्बाराव ही ऐसी हस्ती रहे, जिन्होंने देश के अधिकतम युवाओं को अहिंसक तरीके से राष्ट्र निर्माण के लिए प्रभावित और प्रेरित किया। वे एक संत की तरह जीवन जीते रहे। उनमें कोई दिखावा का भाव नहीं था। सादगी से रहते थे। युवाओं से घिरे रहते थे। बहुत कम उम्र में ही वे गांधी जी से प्रभावित हो गए थे और भारत छोड़ो आंदोलन ने कूद पड़े थे। उसके बाद वे वापस कभी नहीं मुड़े। वे गांधी के बताए रास्ते पर चलते ही गए। और चलते फिरते ही वे इस दुनिया से सदा के लिए चले गए। बहुत कम लोगों को इतनी लंबी जिंदगी जीने का मौका मिलता है। ऐसे महान व्यक्तित्व का पिछले दिनों 27 अक्टूबर को जयपुर के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 92 वर्ष के थे। सुब्बाराव का जन्म 7 फरबरी 1929 को कर्णाटक के बेंगलूर मे हुआ था।

सुब्बाराव जी को लोग भाई जी के नाम से जानते थे ।उन्होंने 13 वर्ष की उम्र में आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की और जेल गये। महात्मा गांधी के विचारों के प्रभाव में वे जीवन दानी बन गए। उन्होंने सारा जीवन सादगी से बिताया। एक हाफ पेंट सफेद आधी बाँहों की कमीज उनकी स्थाई भूषा थी। उन्होंने काफी लोगों को गांधी के विचारों से अवगत कराया और शिक्षित किया। जौरा में जो मुरैना जिले में है उन्होंने अपना आश्रम बनाया था ।यहां वे लगातार लंबे समय तक रहे और लोगों के बीच में काम करते रहें ।आस पास के आदिवासियों को शिक्षित संगठित और जागृत करने के लिए वे निरन्तर कार्य करते रहे।जब पहला दस्यु समर्पण हुआ था जिसमें आचार्य विनोबा भावे की भूमिका थी, उसमें भी सुब्बाराव जी ने प्रमुख भूमिका अदा की थी। बाद में जयप्रकाश जी के समक्ष जो आत्मसमर्पण उस समय के दस्युयों ने किया उसमें भी स्व सुब्बाराव जी की भूमिका थी। वे अपने समय का बेहतर प्रबंधन करते थे ,और शायद ही कभी खाली बैठते हो। अपने जीवन के आखिरी क्षण तक वह सक्रिय रहे।उनका सम्पूर्ण जीवन एक यायावर महर्षि की तरह बीता ।सुब्बाराव जिस तरह से वयोवृद्ध होते हुए भी काफी स्वस्थ जीवन जी रहे थे, उसके मद्देनजर उनके शुभचिंतकों को यह उम्मीद थी कि वे अपनी जिंदगी के एक शतक जरूर पूरे करेंगें ।लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके विदा होने से देश भर में खास कर उनके प्रशिक्षित युवा काफी आहत हैं। और गांधी जगत में सन्नाटा छा गया है। क्योंकि इनकी जगह की भरपाई कोई नहीं कर सकता। डॉक्टर एसएन सुबाराव ने पिछले 8 दशकों तक देश विदेश के युवाओं का नेतृत्व किया। उनमें गांधीवादी मूल्य भरे और उन्हें अपने अपने इलाके में व्यावहारिक धरातल पर गांधी के संदेशों को उतारने के लिए प्रेरित किया । साथ ही जरूरत पड़ी तो उन्हें यथासंभव सहयोग भी किया। आज देश का कोई ऐसा कोना नहीं है, जहां उनके द्वारा प्रशिक्षित युवा नहीं हो,जहां उनके प्रशिक्षित युवा उनके गाए गीत ना गाते हों। वे सभी के बीच भाई जी और बच्चों के बीच फुग्गाराव के रूप में जाने जाते थे,क्योंकि जब वे किसी बच्चे से मिलते तो वे अपनी झोली से बैलून निकालते और उनको फुला के पकड़ा देते। विभिन्न आयोजनों के जरिए युवाओं की तरह वे बच्चों में भी अहिंसक संस्कार भरते रहे। पोशाक के लिहाज से वे भले जीवन भर खादी के हाफ पेंट और हाफ शर्ट पहनते रहे लेकिन विचारों और बर्ताव में वे पूरे गांधीवादी थे। उन्होंने गांधी और जयप्रकाश जैसा ही बेदाग जीवन जिया। उनके पूरे जीवन काल में किसी भी मुद्दे पर उन पर कभी कोई उंगली नहीं उठी और ना ही वे किसी आरोपों के घेरे में कभी आए। उनकी कथनी और करनी एक थी। उनके जीवन का एक एक पल पारदर्शी था। उनका जन्म भले कर्नाटक के बेंगलुरु में हुआ लेकिन वे केवल वहीं तक सीमित नहीं रहे। उनका अनौपचारिक आशियाना पूरी दुनिया में था। वे देश विदेश के कोने कोने में यात्रा करते रहते थे। उनका नाम देश में सबसे अधिक यात्रा करने वाले गांधीवादी के रूप में शुमार किया जाता रहा है। देश में जहां भी कोई अशांति होती, दंगे होते या किसी तरह का भी कोई तनाव होता। वे बिना देरी किए निर्भीक होकर वहां चले जाते और देश भर के सैकड़ों युवाओं को बुलाकर शांति बहाल करने में जुट जाते।

वरिष्ठ गांधीवादी चिंतक अरविंद अंजुम कहते हैं कि गांधी और जयप्रकाश के चले जाने के बाद जो शून्य गांधी जगत में व्याप्त गया था, उसकी भरपाई सुब्बाराव कर रहे थे और अब उनके चले जाने के बाद उनकी जगह पर फिलहाल किसी के आने की दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं दिखती है क्योंकि वे बहुत मौलिक थे ,वे वक्तव्यों से नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण के मायने भरे गीतों के जरिए गांधी का संदेश फैलाते रहे। वे सच में सच्चे गांधीवादी थे और उनके रोम रोम में गांधी के संदेश समाए हुए थे। उनका रहन-सहन, खान-पान और वेशभूषा सबसे अलग था जो दूर से ही पहचाने जा सकते थे। वे पूरी मानवता को एक सूत्र में बांधने की कोशिश करते रहे। वे चंबल में 1972 मे 654 बागियों के आत्म समर्पण और उनके पुनर्वास कर शांति स्थापित करने वाले अहिंसक संत की तरह हमेशा याद किए जाएंगे। वरिष्ठ समाज कर्मी रामशरण कहते हैं कि ना सिर्फ चंबल में शान्ति स्थापित करने जैसी बड़ी उपलब्धि हासिल की, बल्कि यह भी बहुत बड़ा काम था कि उन्होंने सैकड़ों शिविर लगा कर युवाओं को अहिंसाबका पाठ पढ़ाया और राष्ट्र निर्माण के लिए उनका मार्गदर्शन भी करते रहे। 93 साल की उम्र में उन्हें दिल का दौरा पड़ा और 27 अक्टूबर को उन्होंने जयपुर के हॉस्पिटल में ही अंतिम सांस ली।वे हमेशा हमेशा के लिए हम सभी से दूर चले गए। उनका अंतिम संस्कार मध्यप्रदेश के मुरैना स्थित महात्मा गांधी सेवा आश्रम जावरा के कैंपस में ही पुरे राजकिय सम्मान के साथ हुआ। अब देश और दुनिया के जाने माने गांधीवादी डॉ. एस .एन सुब्बाराव अब हम सभी के बीच नही रहे ।मगर उनके विचार हमेशा हमेशा के लिए पूरी दुनिया में अमर रहेगा ।डॉ. सुब्बाराव संविधान में मान्यता प्राप्त सभी 22 भाषाओं के जानकार थे। डॉक्टर सुब्बाराव 3 बार से अधिक नालंदा आए थे ।मेरे खास बुलावे पर 25 जनवरी 2017 में वे मेरे विशेष आग्रह पर हरनौत में सद्भावना नगर मे आए थे ।उस दिन सुब्बा राव जी अपने मुख से नए नगर का नाम सद्भावना नगर रखे थे । और दूसरी बार 2019 मे सद्भावना मंच(भारत) के द्वारा आयोजित “वर्तमान समय में सद्भावना का महत्व “नामक राष्ट्रीय संगोष्ठी में रामचंद्रपुर के नाला रोड , गायत्री मंदिर के बगल सामुदायिक भवन में मुख्य अतिथि के रुप में पधारे थे ।और उसी दिन शाम मे नालंदा महिला कॉलेज में सर्व धर्म प्रार्थना कार्यक्रम किए थे।जहां भारत की संतान नामक अद्भुत कार्यक्रम हुआ था। जिसे आज तक नालंदा के लोग नहीं भूले ।धन्य है ऐसे महापुरुष जो अपने कीर्ति की वजह से पूरी दुनिया में अमर है।

सीवान में जन सुराज अभियान का मकसद समझाते हुए प्रशांत किशोर

https://youtu.be/l7ABbwMRawI

सीवान में जन सुराज अभियान का मकसद समझाते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि जन सुराज कोई राजनीतिक दल बनाकर चुनाव लड़ने का अभियान नहीं है। यह एक सामाजिक प्रयास है, जिसके जरिए एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाई जाए। यह कोई सामाजिक आंदोलन नहीं है, इसका विशुद्ध राजनीतिक मकसद है। इसी क्रम में प्रशांत किशोर ने कहा कि दल बनेगा, लेकिन दल कोई एक व्यक्ति या प्रशांत किशोर का नहीं बनाएंगे, इस दल को बिहार के वो सारे लोग मिलकर बनाएंगे जो चाहते हैं कि एक नया दल बने।

प्रशांत किशोर ने कहा ये जो व्यवस्था हम लोग बना रहे हैं, इसमें सब का बराबर का अधिकार होना चाहिए। दल हर उस व्यक्ति का होना चाहिए इसे मिलकर बनाएगा, ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि दल सारे लोग मिलकर बनाएं और वही लोग इसको आगे मिलकर चलाएं। वही लोग तय करें कि दल का नाम क्या होना चाहिए, दल का संविधान क्या होना चाहिए, दल की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए या दल में पदाधिकारी किसको होना चाहिए और साथ ही दल में टिकट किस आधार पर दिया जाना चाहिए।