Sunday, December 22, 2024
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भरतीय आजादी की लड़ाई का एक विस्मृत योद्धा नक्षत्र मालाकार

बिहारशरीफ,बबुरबन्ना-नालंदा 09 अक्टूबर 2022 : स्थानीय सोहसराय के साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना मोहल्ले में सविता बिहारी निवास स्थित साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में भारत के रॉबिनहुड, मानव धर्म के सच्चे उपासक नक्षत्र मालाकार की 117 वीं जयंती समारोह मनाई गई। जिसका संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया। कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा एवं साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर तथा दीप प्रज्वलित कर किया।

भारत में साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोध के जीवंत मिसाल थे नक्षत्र मालाकार

मौके पर शंखनाद के सचिव साहित्यसेवी साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने समारोह में विषय प्रवेश कराते नक्षत्र मालाकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि अमीरों से लूटकर गरीबों में बांटने वाले नक्षत्र मालाकार भारत के रॉबिनहुड थे। नक्षत्र मालाकार का जन्म तत्कालीन पूर्णिया जिले के समेली गांव में 9 अक्टूबर 1905 को एक गरीब माली परिवार में हुआ था। आज वह स्थान कटिहार जिले की सीमा में है।

नक्षत्र मालाकार के पिता लब्बू माली अत्यंत गरीब गृहस्थ थे। लब्बू माली की दो शादियां हुई थी। पहली पत्नी सरस्वती से दो पुत्र- जगदेव और द्वारिका हुए। पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी पत्नी लक्ष्मी देवी से दो पुत्र- नक्षत्र मालाकार और बौद्ध नारायण एवं तीन पुत्री- तेतरी देवी, सत्यभामा एवं विद्योतमा हुआ। पहले हुए नक्षत्र मालाकार। अपने 82 साल के जीवन का हर लम्हा उन्होंने सामंती शक्तियों के विरुद्ध लोहा लेते बिताया था। उन्होंने कहा भारत में साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोध के जीवंत मिसाल थे नक्षत्र मालाकार।

ये अंग्रेजी शासन में 9 बार जेल गए और सामंती, महाजनी, प्रतिगामी शक्तियों के विरोध के कारण आजादी के बाद कांग्रेसी शासन में भी आजीवन कारावास की सजा पाई। लेकिन यह बिडम्बनापूर्ण सच है कि उन पर न तो कोई किताब है, न ढंग के कोई शोध ही हुए। 20वीं सदी के तीसरे दशक से छठे दशक तक उतर बिहार में बस नक्षत्र थे और उनकी तलाशी में पूर्णिया के गांवों-कस्बों के चप्पे-चप्पे की तलाशी लेती पुलिस। उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कटिहार में बी.एम.पी.बटालियन-7 की स्थापना की गई थी। सरकार ने पूरे उतर बिहार के सिनेमा हॉल के पर्दे पर उन्हें गिरफ्तार करवाने के इश्तेहार छपवाए जाते थे। और 25 हजार रुपए इनाम की घोषणा की गई। बिहार के लोग मार खा लेते, पुलिस की यातना सह लेते, लेकिन नक्षत्र की सुराग नहीं बतलाते थे। उन्होंने बताया कि भारत के महान कथाकार एवं रिपोतार्ज उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु ने नक्षत्र मालाकार को चलित्तर कर्मकार बनाकर अमर कर दिया। उनके रॉबिनहुड और सुल्ताना डाकू वाले चरित्र ने कई लेखकों को सम्मोहित किया। उनके ही गाँव के अनूपलाल मंडल ने उनपर एक पूरा उपन्यास ही लिख डाला-तूफान और तिनके जो काफी लोकप्रिय उपन्यास है। भरतीय आजादी की लड़ाई का एक विस्मृत योद्धा हैं नक्षत्र मालाकार।

बिहार ही नहीं पुरे देश में नक्षत्र मालाकार का डंका बजता था

जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि 40 और 50 के दशक में बिहार ही नहीं पुरे देश में नक्षत्र मालाकार के नाम का डंका बजता था। जमींदारों को उसके नाम से रात भर नींद नहीं आती थी। पुलिस वाले दहशत के मारे थाने के अंदर सहमे हुए बैठे रहते थे। सिनेमा घरों में उनके फ़ोटो के साथ इनामी इश्तेहार दिखाए जाते थे। बिहार मिलिटरी पुलिस की एक बटालियन और बलूच सिपाहियों का एक दस्ता उन्हे पकड़ने कटिहार भेजा गया था। लोग मार खा लेते, लेकिन नछत्तर का पता नहीं बताते थे।

अमीरों से अनाज लूटने की शुरुआत मालाकार ने भारत में पड़े भयानक अकाल में की। बड़े-बड़े किसानों और व्यापारियों ने बखारों में अनाज दबा लिया था। वे न केवल गोदाम लुटवा कर अनाज गरीबों में बँटवा देते थे बल्कि सरकार के खबरी का काम करने वालों के नाक-कान काट लेते थे। कोई अगर अपना नाक-कान गमछा से ढँक कर घूमता तो लोग समझ जाते थे कि हो न हो, ये आदमी नछत्तर के हत्थे चढ़ा होगा।

उन्होंने कहा- नक्षत्र मालाकार नमक सत्याग्रह, विदेशी कपड़ों की होली और शराब दुकानों की पिकेटिंग से शुरू उनका राजनीतिक सफर कांग्रेस से होते हुए सोशलिस्ट पार्टी की तरफ मुड़ा और सीपीएम पर खत्म हुआ। वर्ष 1936 में वे सोशलिस्ट पार्टी में भर्ती हुए तो जयप्रकाश नारायण ने प्यार से नाम बदल कर नछत्तर माली से नक्षत्र मालाकार कहने लगे। आजादी के पहले नक्षत्र मालाकार पर पचासों मुकदमे चले, नौ बार गिरफ्तार हुए, पर कभी सजा नहीं हुई। गवाह नहीं मिलते थे। कौन नकटा बने! उनके रॉबिनहुड और सुल्ताना डाकू वाले चरित्र ने कई लेखकों को सम्मोहित किया।

साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह व प्रमोद कुमार ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार कांग्रेस, कांग्रेस सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट तीनों पार्टियों में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता थे, इसलिए ये कई बदनामियों से बेदाग रहे। लेकिन आज बिहार की नई पीढ़ी के लोग क्रांतिकारी योद्धा नक्षत्र मालाकार को नहीं जानती है। इनके द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किए गये काम का कोई विधिवत संरक्षण नहीं किया गया। यह सब इसलिए नहीं हुआ क्योंकि ये बिहार के पिछड़े समुदाय माली जाति के थे।

साहित्यकार अभियंता आनंद वर्द्धन एवं मिथिलेश प्रसाद चौहान ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले उच्च वर्ग के स्वतंत्रता सेनानियों, राजा-महाराजाओं के योगदान को अभिलेखों के माध्यम से आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन दलितों और पिछड़ों के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को धीरे-धीरे मिटाने की कोशिश की जा रही है।

इस अवसर पर समाजसेवी धीरज कुमार, राजदेव पासवान, कॉमरेड विजय कुमार, व्रज भूषण प्रसाद,युगेश्वर यादव, सविता बिहारी सहित कई लोगों ने नक्षत्र मालाकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।

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