Monday, December 23, 2024
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हिंदी पुस्तकालय सोहसराय में नागार्जुन की 111 वीं जयंती मनाई गई

स्थानीय श्री हिंदी पुस्तकालय सोहसराय-करुणाबाग में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में साहित्यकारों, कवियों एवं समाजसेवियों द्वारा लोक शक्ति के उपासक जनकवि बाबा नागार्जुन की 111 वीं जयंती मनाई गई। जिसकी अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने की। मौके पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ. हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा एवं सरदार वीर सिंह ने जन कवि बाबा नागार्जुन के छायाचित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी। लोक शक्ति के उपासक बाबा नागार्जुन मूलतः विपक्ष के कवि थे। समाज सुधार की दिशा में उनकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। वे अपनी दमदार लेखनी से जीवन पर्यन्त वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को समृद्ध करते रहे। उनकी खासियत रही कि जनहित के विरुद्ध काम करने वालों को उन्होंने कभी नहीं बख्सा। उनकी सोच और विचार को दृढ़ संकल्प के साथ साकार किया जाना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ये बातें समारोह के मुख्य अतिथि नामचीन गीतकार एवं साहित्यकार डॉ. हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने गुरुवार को जनकवि बाबा नागार्जुन की 111 वीं जयंती पर हिंदी पुस्तकालय सोहसराय में आयोजित कार्यक्रम में अपना विचार रखते कही।हिंदी पुस्तकालय सोहसराय में नागार्जुन की 111 वीं जयंती मनाई गई

कार्यक्रम में साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि बाबा नागार्जुन हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम कवि और साहित्यकार थे। हमारे देश के साहित्यकारों व कवियों ने हिंदी भाषा को समर्थ बनाने और उसके प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। महापुरुषों और साहित्यकारों की जीवनी हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। बाबा नागार्जुन को वामपंथी विचारधारा का महान लेखक और कवि माना जाता है। इनके साहित्य की विषय-वस्तु प्रकृति, ग्रामीण जीवन, किसान व मज़दूर की समस्यायें, शोषण और भारतीय जनता की संघर्ष-शक्ति है। उन्हें भारतीय वर्ग-संघर्ष का कवि कहा जाता। जनकवि नागार्जुन साहित्य के कबीर माने जाते हैं। उनके व्यक्तित्व, कृतित्व बहुआयामी है। साहित्य जगत में उनकी स्मृति सदा जीवंत रहेगी। मौके पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि जनकवि बाबा नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने सबसे आधुनिक जन-सरोकार एवं जन-संघर्ष के कवि थे। नागार्जुन के काव्य में हम पूरी भारतीय काव्य-परंपरा का जीवंत स्वरुप देख सकते हैं। नागार्जुन के समय में छायावाद, प्रगतिवाद, हालावाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, अकविता, जनवादी कविता, नवगीत आदि कई आंदोलन चले, लेकिन नागार्जुन की कविता इन किसी ‘चौखटे’ में नहीं अंट सकी, बल्कि हमेशा वह इन्हें तोड़कर आगे निकलती रही और उनका काव्य-सरोकार जन-सरोकार से जुड़ता रहा। हिंदी पुस्तकालय सोहसराय में नागार्जुन की 111 वीं जयंती मनाई गई

कार्यक्रम में संचालन करते हुए राष्ट्रीय शायर नवनीत ने कहा कि बाबा नागार्जुन रूढ़िवादी विचारधारा के घोर विरोधी थे। उन्होंने अपनी सपाट काव्य रचनाओं के माध्यम से तत्कालीन भारतीय समाज का चित्र खींचा है। वह कबीर की तरह ही अपनी रचनाओं में व्यंग भरा है। उनकी रचनाओं में मिलती है कबीर से लेकर धूमिल तक की काव्य परंपरा। अभियंता आनंद प्रियदर्शी ने कहा कि बाबा नागार्जुन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह सच्चे अर्थ में जनकवि थे। वे प्रगतिशील धारा के अखंड कवि थे। उन्होंने कविता में वैसे विषयों को धार दिया जैसे प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में आमजन को। उनकी कविताएं आज के समय में सटीक बैठती है। वे मानवीय संवेदनाओं के अनूठे जन कवि थे। शिक्षाशास्त्री जाहिद हुसैन ने अपने संबोधन में उन्होंने यात्री-नागार्जुन को समतामूलक समाज निर्माण का प्रबल समर्थक बताते हुए इस बात पर निराशा जाहिर की कि उनके बाद कलम के किसी सिपाही ने इस दिशा में आवाज बुलंद करने की जहमत नहीं उठाई। नागार्जुन जनवादी कवि थे। आज के साहित्यकारों व कवियों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।हिंदी पुस्तकालय सोहसराय में नागार्जुन की 111 वीं जयंती मनाई गई

शंखनाद के वरीय सदस्य साहित्यसेवी व समाजसेवी सरदार वीर सिंह ने बताया कि बाबा नागार्जुन की गिनती आधुनिक काल के प्रगतिवादी कवियों में की जाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में शोषित वर्ग की समस्याओं का चित्रण किया है। कबीर का सम्मान पाने वाले बाबा नागार्जुन स्वाधीन भारत के प्रतिनिधि जनक जनकवि के रूप में पहचाने जाते हैं। उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। साहित्यसेवी राज हंस कुमार ने कहा कि बाबा नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिक कवि थे। उन्होंने आजादी के पहले और बाद में कई बड़े जनआंदोलन में भाग लिया। वह अनेक भाषा के ज्ञाता थे और मैथिली के लोकप्रिय कवि थे। पुस्तकालयाध्यक्ष संजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि नागार्जुन यायावर प्रवृत्ति के कवि थे, जिन्होंने जीवन को करीब से देखा और जिया। आज के साहित्यकारों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। इस अवसर पर साधना कुमारी, कुमारी सोनी, समाजसेवी राजदेव पासवान, शोधार्थी आकाश कुमार, शायर समर वारिस सहित दर्जनों लोग मौजूद थे

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