बिहारशरीफ-मोगलकुआँ, 4 जून 2022 : शहर के मोगलकुआँ स्थित श्री गुरुनानक देव शाही संगत गुरुद्वारा में श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज का 416 वां शहीदी गुरु पर्व श्रद्धा के साथ शुक्रवार 3 जून को देरशाम संपन्न हुआ। उनकी शहादत दिवस श्रद्धा एवं सौहार्द के साथ मनाया गया। मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि सिख धर्म के इतिहास की यह पहली शहादत थी। सिखों के पांचवें गुरु के रूप में गुरु अर्जन देव जी ने देश और धर्म के नाम पर बलिदान होने की ऐसी मिसाल पेश की है जो इतिहास के सुनहरे पन्नों और लोगों के दिलों में अंकित है। मानवता की रक्षा और मानवीय मूल्यों की रक्षा के सिलसिले में दी गई पहली शहादत है। इसी कारण श्री गुरु अर्जुन देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। देश और धर्म की रक्षा के लिए जुल्मों को सहते हुए उन्होंने शहादत दी थी। गुरु अर्जन देव जी को भयंकर यातनाएं दी गई लेकिन गुरु जी ने देश और धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। इसी कारण इस पर्व को शहादत दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सलिए इस पर्व को प्रत्येक वर्ष सादगी के साथ मनाया जाता है। मौके पर भाई रवि सिंह ग्रंथी ने गुरुबाणी के शब्दों का सुंदर कीर्तन कर लोगों को भक्तिरस में डूबो कर कार्यक्रम प्रारम्भ किया। उन्होंने उपस्थित लोगों के बीच सम्बोधित करते हुए कहा कि गुरु महराज के त्याग और बलिदान को सिक्ख समाज कभी नहीं भुला सकता। उन्होंने बतायाकि श्री गुरु अर्जुन देव जी ने गुरुग्रंथ साहिब का संपादन किया, जो मानव जाति की सबसे बड़ी देन है। संपूर्ण मानवता में धार्मिक सौहार्द पैदा करने के लिए अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की वाणी को जगह-जगह से एकत्र कर उसे धार्मिक ग्रंथ में बांटकर परिष्कृत किया। गुरुजी ने स्वयं की उच्चारित 30 रागों में 2,218 शबदों को भी श्री गुरुग्रंथ साहिब में दर्ज किया है। अपने जीवन काल में गुरुजी ने धर्म के नाम पर आडंबरों और अंधविश्वास पर कड़ा प्रहार किया। श्री अर्जुन देव जी ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव स्वयं नक्शा बनवाकर रखा था। जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। कार्यक्रम में भाई रवि जी ने श्रीगुरु अर्जुन देव जी महराज के शहीदी दिवस पर इस भीषण गर्मी में लोगों को राहत देने के लिए शीतल मीठा जल (सरवत), छबील प्रसाद (चना प्रसाद), कड़ा प्रसाद( हलवा ) का भोग लगाकर वितरण किया। मौके पर शंखनाद के सक्रीय सदस्य समाजसेवी सरदार वीर सिंह ने अपने सम्बोधन में कहा कि श्री गुरु अर्जुन देव जी धर्म रक्षक और मानवता के सच्चे सेवक थे और उनके मन में सभी धर्मों के लिए सम्मान था। शहीदों के ‘सरताज’ कहे जाने वाले वीर योद्धा श्री गुरु अर्जुन देव जी का आज शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। मुगल बादशाह जहांगीर ने उनकी जघन्य तरीके से यातना देकर हत्या करवा दी थी। इसी कारण हर साल आज ही के दिन उनका शहीदी दिवस मनाया जाता है। उन्होंने अपना जीवन धर्म और लोगों की सेवा में बलिदान कर दिया। गुरु अर्जुन देव जी की अमर गाथा आज भी लोगों के घर में सुनाई जाती है। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। उनके पिता श्री गुरु राम दास जी थे, जो सिखों के चौथे गुरु थे और माता का नाम बीवी भानी था। गुरु अर्जुन देव जी बचपन से ही धर्म-कर्म में रुचि लेते थे। उन्हें अध्यात्म से भी काफी लगाव था और समाज सेवा को अपना सबसे बड़ा धर्म और कर्म मानते थे। सिर्फ 16 साल की उम्र में ही उनका विवाह माता गंगा से हो गया था। वहीं, 1582 में उन्हें सिखों के चौथे श्री गुरु रामदास जी ने अर्जुन देव जी को अपने स्थान पर पांचवें गुरु के रूप में नियुक्त किया था। साहित्यिक मंडली शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा कि गुरु जी ने जात-पात, रंगभेद, नस्ल का अंतर समाप्त करते हुए एकता का संदेश दिया। अर्जुन देव जी को साहित्य से भी अगाध स्नेह था। ये संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। इन्होंने कई गुरुवाणी की रचनाएं कीं, जो आदिग्रन्थ में संकलित हैं। इनकी रचनाओं को आज भी लोग गुनगुनाते हैं और गुरुद्वारे में कीर्तन किया जाता है। शंखनाद के सदस्य विजय कुमार ने कहा कि राष्ट्र तथा धर्म के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जन देव जी के बलिदान कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। गुरु अर्जुन देव जी का पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित रहा है। वे दया और करुणा के सागर थे। वे समाज के हर समुदाय और वर्ग को समान भाव से देखते थे। भाई रवि सिंह ग्रंथी के द्वारा कई शबद कीर्तन भी किया गया। इस अवसर पर दीप सिंह, सुमन कुमार, युवराज सिंह, शायर समर वारिस, तिलक प्रतीक, एकामनी कौर, राजदेव पासवान, अरविन्द कुमार गुप्ता, सुरेश प्रसाद सहित कई लोग मौजूद थे।