Friday, January 3, 2025
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भारत में श्रद्धा से मनाये जाते हैं कई नववर्ष दिवस

भारत में श्रद्धा से मनाये जाते हैं कई नववर्ष दिवस

● विश्व में सर्वाधिक प्रचलित है ग्रगोरियन कैलेंडर

राकेश बिहारी शर्मा—धीरे-धीरे ये साल भी बीतने वाला है। हम सभी का सामना जल्द ही नए साल से होने वाला है। आने वाला साल कैसा होगा, कैसा नहीं ये तो आगे जाकर ही पता चलेगा। लेकिन ये बीता हुआ साल कैसा रहा इससे हम सभी वाकिफ हैं। लोगों को नए साल का इंतज़ार है। पिछले साल पूरी दुनिया के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहा है। लेकिन जो वक्त बीत गया सो बीत गया। अब हमें उसकी परवाह करना छोड़ देना चाहिए। बीता हुआ वक्त कैसा भी रहा हो, चाहे वो अच्छा रहा हो अथवा बुरा रहा हो..! हर हाल में उसे छोड़ कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि बीता हुए समय की याद हमें या तो दुख देता है या फिर पछतावे का अनुभव कराता है। ऐसे में इस नए साल पर आप खुद से एक वादा कीजिये कि आप बीते हुए वक्त को भूलकर खुद के भविष्य ने आने वाले समय के बारे में निर्णय लेंगे। भविष्य के बारे में विचार करेंगे। नए साल का उत्सव सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर के देशों में मनाया जाता है।
कुछ ही दिनों में 2024 खत्म होने वाला है और 2025 की शुरुआत होने वाली है। ऐसे में हर कोई आने वाले नए साल को लेकर बहुत उत्सुक है। नव वर्ष हर व्यक्ति के लिए नए सपने और नए लक्ष्य को पूरा करने की एक राह दिखाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार पूरा वर्ष में हर साल एक जनवरी को न्यू ईयर मनाया जाता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में नया साल कई बार मनाया जाता है क्योंकि यहां विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और कैलेंडरों का पालन किया जाता है। इन त्योहारों के माध्यम से लोग नए साल का स्वागत करते हैं और हर एक का अपना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। आइए जानते हैं, भारत में नया साल कब-कब और क्यों मनाया जाता है-

हिंदू नववर्ष

हर वर्ष हर साल चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। किवदिंतियों के अनुसार इस दिन ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी और विक्रम संवत की शुरुआत हुई थी। भारत के अलग-अलग जगह में इसे अलग नामों से जाना जाता है उगादी, गुड़ी पड़वा आदि।

पंजाबी नववर्ष

पंजाबी नववर्ष, जिसे बैसाखी भी कहा जाता है, हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। यह पंजाबी कैलेंडर का नया साल होता है और विशेष रूप से पंजाब राज्य के लोग इसे बड़े धूमधाम से मनाते हैं। यह त्यौहार कृषि आधारित होता है और किसान इसे अपनी फसल की कटाई के रूप में मनाते हैं। बैसाखी के दिन, फसल की कटाई से जुड़ी खुशियां मनाने के साथ-साथ लोग धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं, खासकर सिख समुदाय के लोग। यह नानकशाही कैलेंडर पर आधारित है। बैसाखी का धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है क्योंकि इस दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई थी।

पारसी नववर्ष

पारसी नववर्ष करीब तीन हजार साल पहले हुई थी। शाह जमशेदजी ने सबसे पहले इसे मनाया था। इसमें लीप वर्ष नहीं होता है और इसे साल में दो बार मनाया जाता है। भारत के पारसी समुदाय के लोग 16 अगस्त और विदेश के पारसी समुदाय के लोग 21 मार्च को अपना नया वर्ष मनाते हैं। यह दिन पारसी समाज के लिए एक नवीनीकरण, समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक होता है।

जैन नववर्ष

जैन धर्म के लोग दीपावली के अगले दिन अपना नया वर्ष मनाते हैं। यह नववर्ष विशेष रूप से जैन समुदाय में एक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। जैन धर्म में नववर्ष का प्रमुख धार्मिक महत्व है क्योंकि गुरु महावीर का मोक्ष इस दिन हुआ था। गुरु महावीर ने ही जैन धर्म को पुनः स्थापित किया और उनकी शिक्षा आज भी जैन समुदाय के लिए मार्गदर्शन का काम करती है।

मुस्लिम नववर्ष

मुस्लिम नववर्ष के नए साल को हिजरी नववर्ष भी कहा जाता है, इस्लामी कैलेंडर के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर, जिसे हिजरी कैलेंडर कहा जाता है, चंद्र माध्यम से आधारित होता है और इसका नया साल 1 मुहर्रम को प्रारंभ होता है।

विश्व में सर्वाधिक प्रचलित ग्रगोरियन कैलेंडर :

हम नए साल की दहलीज पर खड़े हैं। हमारे लिए हर दिन नया है, हर साल नया है और हर नया साल एक नई उम्मीद, नया संकल्प और नये अवसर लेकर आता है। यह वह समय होता है जब हम अपने अतीत को पीछे छोड़कर भविष्य की ओर कदम बढ़ाते हैं। यह न केवल समय की एक और परिभाषा है, बल्कि हमारे भीतर छुपे उन अनगिनत संभावनाओं और सपनों की शुरुआत भी है, जिन्हें हम अब साकार करने का दृढ़ संकल्प लेते हैं। नए साल की दस्तक के साथ, हम हर दिन को एक नए अवसर के रूप में अपनाते हैं, जो हमें न केवल अपनी खुशियों को संजोने बल्कि अपनी जिंदगी को और बेहतर बनाने की प्रेरणा भी देता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार नए साल की पूर्व संध्या 31 दिसंबर को पड़ती है और जश्न 1 जनवरी के शुरुआती घंटों तक जारी रहता है। माना जाता है कि ऐसे खाद्य पदार्थ और नाश्ते जो सौभाग्य लाते हैं, मौज-मस्ती करने वालों द्वारा खाए जाते हैं। दुनिया भर में लोग गीत गाने और आतिशबाजी देखने जैसे रीति-रिवाजों के साथ जश्न मनाते हैं। चूंकि नया साल अच्छे बदलाव का एक बड़ा अवसर है, इसलिए कई लोग आने वाले वर्ष के लिए अपने संकल्प लिखते हैं।

विश्व में सर्वाधिक प्रचलित नव वर्ष 1 जनवरी से

विश्व में सर्वाधिक प्रचलित ग्रगोरियन कैलेंडर के इतिहास में जाए तो 1 जनवरी को पहली बार 45 ईसा पूर्व में नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया गया था। इससे पहले, रोमन कैलेंडर मार्च में शुरू होता था और 355 दिनों तक चलता था। सत्ता में आने के बाद रोमन तानाशाह जूलियस सीजर ने कैलेंडर बदल दिया। महीने के नाम के सम्मान में शुरुआत के रोमन देवता जानूस, जिनके दो चेहरे उन्हें भविष्य में आगे और साथ ही अतीत में पीछे देखने की अनुमति देते थे, ने एक जनवरी को वर्ष का पहला दिन बनाया। हालांकि, 16वीं शताब्दी के मध्य तक इसे यूरोप में व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था। ईसाई धर्म की शुरुआत के बाद, 25 दिसंबर, यीशु के जन्म का दिन, स्वीकार किया गया और 1 जनवरी नए साल की शुरुआत को विधर्मी माना गया। जब तक पोप ग्रेगोरी ने जूलियन कैलेंडर को बदलकर 1 जनवरी को वर्ष की आधिकारिक शुरुआत नहीं कर दी तब तक इसे स्वीकार नहीं किया गया। इसके अलावा ऐसा माना जाता है कि नया साल लगभग 2,000 ईसा पूर्व या 4,000 साल पहले, प्राचीन बेबीलोन में शुरू हुआ था। बसंत विषुव के बाद पहली अमावस्या पर आमतौर पर मार्च के अंत में, बेबीलोनियों ने नए साल को 11-दिवसीय उत्सव अकितु के साथ मनाया, जिसमें प्रत्येक दिन एक अलग समारोह शामिल था।

ग्रगोरी का कलेंडर अधिक सटीक ?

दरअसल, ग्रेगोरियन कैलेंडर ने वर्ष की लंबाई को सही करके पहले इस्तेमाल किए गए जूलियन कैलेंडर में अशुद्धियों को संशोधित किया गया। इसने लीप वर्षों के लिए अधिक सटीक प्रणाली शुरू की, जिससे समय की गणना में त्रुटि की संभावना कम हो गई। ग्रगोरियन कैलेंडर का उद्देश्य कैलेंडर वर्ष को सौर वर्ष के साथ अधिक निकटता से सिंक्रोनाइज करना था। जिससे यह सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा को ट्रैक करने में अधिक सटीक हो सके। इसकी शुरूआत कैथोलिक चर्च के प्राधिकार द्वारा समर्थित थी जिसका उस समय यूरोप में महत्वपूर्ण प्रभाव था।
शुरुआत में कैथोलिक देशों द्वारा और बाद में अन्य देशों द्वारा इसे अपनाने से इसकी व्यापक स्वीकृति में योगदान मिला। जैसे-जैसे यूरोपीय देशों ने अन्वेषण और उपनिवेशीकरण के माध्यम से अपने प्रभाव का विस्तार किया, ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया भर में फैलता गया, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति और संचार के लिए मानक कैलेंडर बन गया। माना जाता है कि 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान यूरोप के वैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व ने भी ग्रेगोरियन कैलेंडर की वैश्विक स्वीकृति में योगदान दिया।

भारत में श्रद्धा से मनाये जाते हैं कई नववर्ष दिवस

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में वर्ष भर में कई दिन नव वर्ष दिवस के रूप में मनाए जाते हैं। पालन इस बात से निर्धारित होता है कि चंद्र, सौर या चंद्र-सौर कैलेंडर का पालन किया जा रहा है या नहीं। वे क्षेत्र जो सौर कैलेंडर का पालन करते हैं। नया साल पंजाब में बैसाखी, असम में बोहाग बिहू, तमिलनाडु में पुथंडु, केरल में विशु, ओडिशा में पना संक्रांति या ओडिया नबाबरसा और बंगाल में पोइला बोइशाख के रूप में आता है। यानी वैशाख, आम तौर पर यह दिन अप्रैल महीने की 14 या 15 तारीख को पड़ता है। चंद्र कैलेंडर का पालन करने वाले लोग चैत्र महीने (मार्च -अप्रैल के अनुरूप) को वर्ष का पहला महीना मानते हैं। इसलिए आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगादी और गुढ़ी पड़वा की तरह इस महीने के पहले दिन नया साल मनाया जाता है। महाराष्ट्र। इसी प्रकार, भारत में कुछ क्षेत्र लगातार संक्रांतियों के बीच की अवधि को एक महीना मानते हैं और कुछ अन्य लगातार पूर्णिमाओं के बीच की अवधि को एक महीना मानते हैं। गुजरात में नया साल दिवाली के अगले दिन के रूप में मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह हिंदू महीने कार्तिक के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को पड़ता है। चंद्र चक्र पर आधारित भारतीय कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक वर्ष का पहला महीना है और गुजरात में नया साल कार्तिक (एकम) के पहले उज्ज्वल दिन पर पड़ता है। भारत के अन्य हिस्सों में, नए साल का जश्न वसंत ऋतु में शुरू होता है। नया साल यह केवल एक नई शुरुआत ही नहीं, यह हमें निरंतर आगे बढ़ने की, नित नया कुछ न कुछ सीखने की सीख भी देता है। बीते वर्ष में हमने जो भी किया, सीखा, सफल हुए या असफल उससे सीख लेकर, एक नई उम्मीद के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। एक तारीख लगते ही नववर्ष लगा जाता है यानी सभी के लिए नए-नए अवसर लेकर आता है, इस दिन हमें ईश्वर का शुक्रिया अदा करके और सच बोलने की भी प्रेरणा देता है।
जिस प्रकार हम पुराने साल के समाप्त होने पर दुखी नहीं होते बल्कि नए साल का स्वागत बड़े उत्साह और खुशी के साथ करते हैं, उसी तरह जीवन में भी बीते हुए समय को लेकर हमें दुखी नहीं होना चाहिए। जो बीत गया उसके बारे में सोचने की अपेक्षा आने वाले अवसरों का स्वागत करें और उनके जरिए जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करें। अत: इस समय हमें नववर्ष मनाने के साथ ही पहले से भी बहुत अधिक सर्तक रहने की आवश्यगकता है। अब हमें खुद से एक वादा करना है कि हम भीड़-भाड़ वाली जगहों पर न जाकर घर पर ही नया साल मनाएंगे, यह इसीलिए जरूरी है कि हम और दूसरे भी सुरक्षित रह सकें। तो आयें हम सभी मिलकर नववर्ष पर पुराने दुख, परेशानियां, चुनौतियां, संकट और बुरे अनुभवों को भूलाकर सभी के अच्छे स्वास्थ्य, अच्छा भाग्य और सुख प्राप्ति की कामना करें तथा कोरोना के इस समय में एक-दूसरे का हौसला बढ़ाएं और सभी जीवों के प्रति समान भाव रखते हुए सभी के जीवन की सुरक्षा का संकल्प लें। हमें इस त्योहार को पूरी पवित्रता के साथ मनाना चाहिए।

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