रविवार को देरशाम साहित्यिक मंडली शंखनाद के द्वारा स्थानीय मोहल्ला भैसासुर में शंखनाद के अध्यक्ष इतिहासकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में मगही भाषा के विकास को लेकर एक परिचर्या मगही: कल, आज और कल, विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा के मुख्य अतिथि बहुभाषाविद् एवं वैज्ञानिक नारायण प्रसाद थे। अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि बहुभाषाविद् वैज्ञानिक नारायण प्रसाद ने मगही भाषा में एक रूसी उपन्यास अनुवाद किया है, जो दो भाग में नोशन प्रेस ने प्रकाशित किया है, जिसका नाम अपराध आउ दंड है। इसके अलावा इन्होंने संस्कृत, अँग्रेज़ी, रूसी, कन्नड़ आदि भाषाओं में काम किया है। अपराध आउ दंड उपन्यास मगही भाषा में लिखी गई यह पुस्तक अपने आप में एक अनूठी कृति है। सभी भाषाएं किसी न किसी व्यक्ति के लिए मातृभाषा के समान है। सभी भाषाओं का सम्मान अपनी माता की तरह किया जाना चाहिए। मगही देश के प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। देश के जो वेदों की भाषा है, उसमें मगही सर्वप्रथम भाषा है। इस भाषा के उत्थान एवं विकास के लिए सभी को आगे बढ़कर पहल करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं बल्कि एक रास्ता दिखलाता है। परिचर्चा के मुख्य अतिथि साहित्यकार नारायण प्रसाद जी ने अपने संबोधन में कहा कि मगही भाषा कभी मगध साम्राज्य की राष्ट्रभाषा थी। लेकिन आज इस भाषा का विकास तो दूर लोग इसे बोलने से कतराते हैं। मगही भाषा का आंदोलन चलाने वाले लोग खुद ही अपने बच्चों को घर में भी मगही नहीं बोलने देते। फिर, मगही का विकास कैसे सम्भव हो सकता है। मगही भाषा का केवल राजनीतिकरण किया जा रहा है। इसका विकास ऐसे नहीं किया जा सकता है। बल्कि साहित्यिक रचनाओं के मामले में मगही काफी पीछे है। अखबारी विज्ञापन से मगही का विकास सम्भव नहीं है। शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि मगही मगधांचल की गरिमामयी भाषा है। इस भाषा की पहचान भारत में बौद्ध काल से ही है। मगध की पावन भूमि पर मगही संस्कृति व सभ्यता के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। मगही बोली को भाषा स्तर पर व्यक्तिगत प्रयास करने से यह राष्ट्र की उन्नत भाषा बन सकती है। युवाओं में मगही के प्रति लगाव पैदा करने और इसे संकोच छोड़ के घर परिवार की भाषा बनाना चाहिए। उन्होंने कहा- पिछले सैकड़ों वर्षों तक हमारे देश की भाषाएँ मागधी, हिदीं, प्राकृत फारसी, उर्दू और अंग्रेजी रही। भारत मगही कथा साहित्य का जनक है। मगही का पुनः प्रचार-प्रसार होना शुरु हुआ और फिल्म उद्योग ने उसे बढावा दिया जिस के द्वारा मगही आज लगभग सभी प्रान्तों में घर की भाषा होने लगी। मगही के बलबूते पर ही फिल्म सिर्फ मनोरंजन का साधन मात्र न रहकर हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गई है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आनेवाले कल में मगही का बोलबाल होगा। विश्वमें वही दिखाई देगी और भारत फिर अपनी अस्मिता को प्राप्त करेगा। मेरी समझ में मगही को पुनः स्थापित करने तथा उसके उत्थान के लिए प्रत्येक परिवार में माता-पिता या अभिभावक अपनी मातृभाषा या मगही में ही वार्तालाप करें और बच्चों के साथ घर में सदा-सर्वदा मगही में ही बोलें अर्थात मगही का वातावरण बनाये रखें। प्रवासी भारतीय मगधांचल वासी विदेशों में जहाँ भी रहें, जिस स्थिति में भी रहें, भारतीय संस्कृति के आदर्शों तथा मूल्यों से पूर्ण साहित्य का पठन-पाठन करें व करायें। वैज्ञानिक डॉ. आनंद वर्द्धन ने कहा कि “सा मागधी मूलभाषा” इस वाक्य से यह बोध होता है कि गौतम बुद्ध के समय मागधी ही मूल भाषा के रुप में जन सामान्य के बीच बोली जाती थी। कहते हैं कि भाषा समय पाकर अपना स्वरुप बदलती है और विभिन्न रुपों में विकसित होती है। मगही का विकास “मागधी’ शब्द से हुआ है। शिक्षा शास्त्री मो. जाहिद हुसैन ने कहा कि मगही भाषा आज के समय में भी उतनी ही उपयोगी है जितनी बौद्ध काल में थी। मगही भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये मगही उपन्यास व मगही साहित्य सशक्त माध्यम है। मगही साहित्य के विकास के बिना मगधांचल का इतिहास ही अधूरा है। मगधांचल के सभी लोग कलम को उठाएं और मगही में आलेख लिखना प्रारम्भ करें। शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा कहा कि मगध प्रदेश में मागधी प्रचलित थी। मागधी भाषा का उल्लेख महावीर और बुद्ध के काल से मिले हैं। जैन आगमों के अनुसार तीर्थकर महावीर का उपदेश अर्धमागधी प्राकृत और पालि त्रिपिटक में भगवान् बुद्ध के उपदेशों की भाषा को मागधी कहा गया है। मौके पर शंखनाद परिवार के तरफ से ख्यातिप्राप्त साहित्यकार नारायण प्रसाद जी को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। इस दौरान परिचर्चा में आशुतोष कुमार आर्य, कवयित्री व लेखिका प्रियारत्नम, समाजसेवी धीरज कुमार, अरुण बिहारी शरण, संजय कुमार शर्मा, सुरेन्द्र प्रसाद शर्मा, राजदेव पासवान सहित दर्जनों लोगों ने भाग लिया।