शंखनाद के साहित्यिक यात्रा में मगही उपन्यास “अपमानित आउ तिरस्कृत” का हुआ लोकार्पण
●साहित्यकार नारायण प्रसाद लिखित मगही उपन्यास “अपमानित आउ तिरस्कृत” का हुआ लोकार्पण
●साहित्य समाज की उन्नति और विकास की आधारशिला रखता है
● मगही साहित्य के विकास के बिना मगधांचल का इतिहास ही अधूरा
बिहारशरीफ, 28 अप्रैल 2024 : साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्त्वावधान में स्थानीय बिहारशरीफ के भैसासुर मोहल्ले में साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह के आवास स्थित सभागार में शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता तथा शायर नवनीत कृष्ण के संचालन में साहित्यकार नारायण प्रसाद द्वारा लिखित मगही उपन्यास “अपमानित आउ तिरस्कृत” का लोकार्पण श्रद्धा पूर्वक की गई।
इस आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा, उपाध्यक्ष बेनाम गिलानी ने दीप प्रज्जवलन कर किया।
पुस्तक लोकार्पण के मौके पर विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में कहा कि मगही भाषा का स्थान विभिन्न भारतीय भाषाओं के बोलने वालों की संख्या के आधार पर भारतीय जनगणना 2011 के अनुसार सतरहवाँ है। भारत में मगही बोलनेवालों की संख्या लगभग 1 करोड़ 30 लाख है। साहित्यकार नारायण प्रसाद द्वारा मगही में अनुवादित उपन्यास “अपमानित आउ तिरस्कृत” मगही साहित्य की जीवंत उपन्यास है। मगही भाषा आज के समय में भी उतनी ही उपयोगी है जितनी बौद्ध काल में थी। मगही भाषा के प्रचार-प्रसार के लिये मगही उपन्यास व मगही साहित्य सशक्त माध्यम है। मगही साहित्य के विकास के बिना मगधांचल का इतिहास ही अधूरा है। उन्होंने कहा कि मगही साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर साहित्यकार नारायण प्रसाद ने कई मगही उपन्यास लिखे हैं। कोइ भी साहित्य समाज की उन्नति और विकास की आधारशिला रखता है। इस संदर्भ में अमीर खुसरो से लेकर तुलसी, कबीर, जायसी, रहीम, प्रेमचंद, भारतेन्दु, निराला, नागार्जुन, साहित्यकार लक्ष्मीकांत सिंह की कई पुस्तकों ने समाज के नवनिर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया है।
उन्होंने कहा कि साहित्यकार लक्ष्मीकांत सिंह की उपन्यास डूकारेल की पूर्णिया में किसान-मज़दूर चित्रण उस पीड़ा व संवेदना का प्रतिनिधित्व करता है, जिनसे होकर आज भी अविकसित एवं शोषित वर्ग गुज़र रहा है। साहित्य में मूलत: तीन विशेषताएँ होती हैं जो इसके महत्त्व को रेखांकित करती हैं। उदाहरणस्वरूप साहित्य अतीत से प्रेरणा लेता है, वर्तमान को चित्रित करने का कार्य करता है और भविष्य का मार्गदर्शन करता है। साहित्य को समाज का दर्पण भी माना जाता है।
समारोह में अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि “अपमानित आउ तिरस्कृत” प्रसिद्ध रूसी उपन्यासकार फ़्योदर मिख़ाइलोविच दस्तयेव्स्की की कृति “द इन्स्लटेड एंड ह्यूम्लियटेड ” की मगही अनुवाद है। लेखक नारायण प्रसाद की पूर्व में प्रकाशित मगही कृतियों में “मोती के कंगन वाली”, कालापानी, आझकल के हीरो,अपराध आउ दंड, कप्तान के बिटिया का नाम शुमार हैं। इस कड़ी में यह उपन्यास मगही साहित्य को समृद्धशाली बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगा। फ़्योदर दस्तयेव्स्की, एक रूसी उपन्यासकार और लघु-कथा लेखक थे, जिनकी मनोवैज्ञानिक पैठ ने मानव हृदय की सबसे अंधेरी गहराइयों में, उसकी रोशनी के नायाब क्षणों के साथ, 20वीं सदी के कथा साहित्य पर अत्यधिक प्रभाव डाला है। किसी भी समाज में समाज का प्रबुद्ध वर्ग, समाज के मातृभाषा के अनुवादक, लेखक या साहित्यकार ये पथ प्रदर्शक की तरह होते हैं, समाज के जमीनी शिक्षक होते हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे देश-प्रदेश में तो लेखन का निरंतर विकास भारतीयता और राष्ट्रीयता के साथ हुआ है। हमारे यहां बड़े-बड़े अनुवादक, साहित्यकार और बड़े-बड़े संत भी अपना प्रवचन मगही भाषा में ही दिया है। उन्होंने कहा कि नारायण प्रसाद ने कई रूसी उपन्यासकारों की रचनाओं का मगही में अनुवाद किया है, जिनमें “कप्तान के बिटिया”, पुस्तक में ज्ञान को जिस तरह से समाज तक पहुंचाने का प्रयास किया, वो सचमुच अद्भुत है।
मौके पर मगही भाषा के नामचीन हस्ताक्षर साहित्यकार, अनुवादक नारायण प्रसाद ने लोकार्पित पुस्तक के बारे में बताते हुए कहा कि “अपमानित आउ तिरस्कृत” उपन्यास की रचना में एक अहंकारी पिता और पपियाही बेटी के साथ एक समानान्तर कथानक चलती है, जो आश्चर्यजनक हैं। कथानक के पात्र- भावुक (इखमेनेव) और त्रासिक (स्मिथ) हैं, उन दोनों कथानक में बेटी अपने प्रेमी के लिए घर छोड़ कर भाग जाती है। भावुक कथानक में इखमेनेव की बेटी नताशा अपने बाप को छोड़कर प्रेमी अल्योशा के पास चली जाती है, लेकिन बाद में अपने माँ-बाप के पास लौट आती है और क्षमा प्राप्त कर लेती है। इसके विपरीत त्रासिक कथानक में नेली की माँ न केवल अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है, बल्कि अपने पिता की बर्बादी में भी योगदान देती है।
मौके पर शहर के नामचीन हास्य शायर तंग अय्यूवी ने कहा कि मगही भाषा रहेगी तब ही मगध का इतिहास एवं गरिमा बचेगी। मगही भाषा को संविधान की आठवीं सूची में दर्ज करने की मांग उठाई।
नामचीन राष्ट्रीय शायर व बहुभाषाविद् बेनाम गिलानी ने कहा- आज मगध में ही मगही भाषा उपेक्षित होती जा रही है। यहां दूसरे भाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है। मगध में रोजगार के संसाधन के बावजूद मगध के लोगों का पलायन नहीं रूक रहा है। मगध की वजूद बचाने के लिए यहां के लोगों को अपना स्वाभिमान और गौरव को याद कर संघर्ष करना होगा।
मौके पर हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर (डॉ.)शकील अहमद अंसारी ने कहा कि किसी भी जिला राज्य अथवा देश की पहचान उसकी अपनी भाषा होती है। मगध की पहचान मगही भाषा से होती है। हम अपने लोक संस्कृति और रीति-रिवाजों को भूलाते जा रहे हैं। मगध का न सिर्फ अपना इतिहास है बल्कि इसकी संस्कृति और परंपरा भी पूरे देश में प्रचलित है।
इस अवसर पर साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह, मो.जाहिद हुसैन, साहित्यसेवी धीरज कुमार, लेखिका प्रिया रत्नम सहित कई गणमान्य लोग मौजूद थे।