● बिरसा मुंडा आन्दोलनकारी आदिवासियों के महानायक थे
● बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है
● बिरसा मुंडा हमेशा जन हित के लिए अंग्रेजों से लड़ा
बिहारशरीफ-बबुरबन्ना, 9 जून 2021 : साहित्यिक मंडली शंखनाद नालंदा के तत्वावधान में कोरोनावायरस संक्रमण के चलते सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए अपने-अपने घर से वेबिनार के द्वारा जुड़ते हुए देश के लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी, महान क्रांतिकारी नेता, शहीद बिरसा मुंडा की 121 वीं पुण्यतिथि साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डा.लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में ‘आदिवासी समाज कल और आज’ विषय पर विचारगोष्ठी का आयोजन सादेपन के बीच किया गया। कार्यक्रम का संचालन साहित्यिक मंडली शंखनाद के मीडिया प्रभारी नामचीन शायर नवनीत कृष्ण ने किया। कार्यक्रम में विषय प्रवेश कराते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव साहित्यकार शिक्षाविद राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे महानायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में गरीबी तथा आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को क्रांतिकारी बिरसा मुंडा ने सामाजिक और आर्थिक स्तर पर आदिवासियों में चेतना की चिंगारी सुलगा दी। भारतीय जमींदारों और जागीरदारों तथा ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था। वैसे परिस्थितियों में बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को ब्रिटिश के शोषण एवं यातना से मुक्ति दिलाने के लिए सभी को अपने स्तर से संगठित कर एक सुत्र में बांधा। बिरसा मुंडा ने “बेगारी प्रथा” के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन किया। परिणामस्वरूप जमींदारों और जागीरदारों के घरों तथा खेतों और वन की भूमि पर कार्य रूक गया। बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य और स्वामी विवेकानंद थे। बिरसा मुंडा वास्तव में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई के महानायक थे। स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी बिरसा मुंडा का जन्म रांची जिले के अड़की प्रखंड अंतर्गत ग्राम उलीहातु में 15 नवंबर 1875 को हुआ था। इसके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी था और इनके दादा का नाम लकारी मुंडा था। सुगना मुंडा के तीन पुत्र और दो पुत्रियाँ थी। इनमें से बिरसा का स्थान चौथा था। देश के लिए मर मिटने वाले कर्मबीर योद्धा बिरसा ने अपनी अंतिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा करते हैं। बिरसा ने पुराने अंधविश्वासों का खंडन किया। लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी। उनकी बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो मुंडा ईसाई बन गये थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे।
कार्यकर्म की अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डा.लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि बिरसा मुंडा देश के वीर सपूत थे, बिरसा मुंडा हमेशा जन हित और देश के लिए अंग्रेजों से लड़ा। जिन्होंने खासकर झारखंड और देश के लिए अमूल्य योगदान दिया। उनका पराक्रम आज भी हमें दुश्मनों के खिलाफ लड़ने की ताकत देता है। भगवान बिरसा मुंडा के जीवन से प्रेरित होकर ही सरकार अपने देश व राज्य के कमजोर व बेरोजगार और पिछड़े समुदायों को सशक्तर करने के लिए कई तरह के काम किये जा रहे हैं। अब भी अधूरा है शहीद बिरसा मुंडा का सपना। बिरसा मुंडा देश के लिए अपनी बड़ी शहादत दिए और वो शहीद हो गए। हमारे देश में हमारा शासन का नारा देकर भारत वर्ष के छोटानागपुर क्षेत्र के आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की हुकुमत के सामने कभी घुटने नहीं टेके और अंग्रेज़ो से देश को स्वाधीनता दिलाने में महतवापूर्ण भूमिका निभाए। बिरसा मुंडा के योगदान को पूरे राज्य एवं देश सदियों तक याद रखेगा।
साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा की हमारे देश के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी को देश शहादत दिवस के रूप में मानता है, बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ उलगुलान का आह्वान किया। वे शोषकों, ठेकेदारों और अंग्रेजी चाटुकारों को उसने मार भगाने का आह्वान किया था। साहित्यकार डा. आनंद वर्द्धन ने कहा की हमारे देश के लिए इतनी बड़ी कुर्बानी को देश शहादत दिवस के रूप में मानता है, बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ उलगुलान का आह्वान किया। वे शोषकों, ठेकेदारों और अंग्रेजी चाटुकारों को उसने मार भगाने का आह्वान किया था।शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा बिरसा मुंडा को उनकी 121 वीं शहीद दिवस पर नमन करता हूँ। उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा देश के वीर सपूत थे, जिन्होंने खासकर झारखंड और देश के लिए अमूल्य योगदान दिया। उनका पराक्रम आज भी हमें दुश्मनों के खिलाफ लड़ने की ताकत देता है। बिरसा मुंडा के जीवन से प्रेरित होकर ही सरकार अपने देश व राज्य के कमजोर व बेरोजगार और पिछड़े समुदायों को सशक्तत करने के लिए कई तरह के काम किये जा रहे हैं। बिरसा मुंडा के योगदान को पूरे राज्य एवं देश सदियों तक याद रखेगा। बिरसा मुंडा का संघर्ष और त्याग हमें प्रेरणा देता है। उन्होंने जल, जंगल और जमीन के लिए विरोध की आवाज बुलंद की।इस दौरान समाजसेविका सविता बिहारी, समाजसेवी धीरज कुमार, कौशल कुमार, पंकज कुमार, स्वाति कुमारी, राजदेव प्रसाद, विजय कुमार पासवान सहित कई लोगों ने परिचर्चा में भाग लिया।