● प्रकृति के साथ संस्कृति की रक्षा का पर्व है रक्षाबंधन
● पेड़ों को रक्षासूत्र बांध कर रक्षा का संकल्प लिया
बिहारशरीफ-सोहसराय,बबुरबन्ना : 22 अगस्त 2021 दिन रविवार को स्थानीय बिहारशरीफ के बबुरबन्ना मोहल्ले में साहित्यिक मंडली शंखनाद के तत्वावधान में “बिहारी उद्यान” में साहित्यकारों व समाजसेवियों ने संकल्पित होकर प्रकृति के साथ संस्कृति की रक्षा के लिए उद्यान में पौधा रोपण किया और वृक्षों में रक्षा सूत्र बांधा। साथ ही साथ सदस्यों ने पेड़ों को रक्षासूत्र बांध कर “वृक्ष सुरक्षा दिवस” मनाया और उनकी रक्षा का संकल्प लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यिक मंडली शंखनाद के वरीय एवं सक्रिय समर्पित सदस्य सुरेश प्रसाद ने किया। मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के सचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि आज शंखनाद के द्वारा ‘वृक्ष सुरक्षा दिवस’ समारोह का आयोजन किया गया है। रक्षाबंधन महज भाई-बहन के स्नेह का पर्व न होकर संपूर्ण प्रकृति की रक्षा का पर्व है। आज जब हम रक्षाबंधन पर्व को एक नये रूप में मनाने की बात करते हैं तो हमें समाज, परिवार और देश से भी परे जिसे बचाने की जरूरत है, वह है प्रकृति के अनमोल धरोहर पर्यावरण। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति प्रकृति के रक्षण को पौधे लगाता है और उन्हें बचाता है, वह दीर्घकाल तक स्वर्ग में निवास करते हुए इंद्र के समान सुख भोगता है।
दरअसल, पेड़-पौधे बिना किसी भेदभाव के सभी प्रकार के वातावरण में स्वयं को अनुकूल रखते हुए मनुष्य जाति को जीवन दे रहे होते हैं। ऐसे में इस धरा को बचाने के लिए राखी के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना भी बेहद जरूरी हो गया है। देखा जाए तो वृक्षों को देवता मानकर उनकी पूजा करने में मानव जाति का स्वार्थ निहित रहा है। इसलिए जो प्रकृति आदिकाल से हमें निस्वार्थ भाव से केवल देती ही आ रही है, उसकी रक्षा के लिए भी हमें इस दिन कुछ तो करना ही चाहिए। उन्होंने साथ ही लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि वृक्षों से ही मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण प्राणवायु प्राप्त होती है। इसलिए वृक्षों की रक्षा हम सभी की अहम जिम्मेदारी है। पर्यावरण सुरक्षा और सजगता आदिम युग से है। आदिवासी लोग हरे–भरे पेड़ों की पूजा करते हैं और कामना की जाती है कि धरती की हरियाली बनी रहे।
अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के वरीय एवं समर्पित सदस्य सुरेश प्रसाद ने कहा कि इस कोरोना परिस्थितियों में भी त्योहार मानवीय जीवन में सुखद परिवर्तन लाते हैं तथा उसमें हर्षोंल्लास व नवीनता का संचार करते हैं। त्योहार अथवा पर्व सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं व पूर्व संस्कारों पर आधारित होते हैं। हमें यदि पर्यावरण बचना है तो धरती पर बहुतायत पेड़ लगाना होगा।
साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा कि पेड़-पौधे हमारे जीवन का आधार हैं। पेड़-पौधे न होते तो पृथ्वी पर जीवन संभव ना होता, जीने के लिए प्राणवायु हमें पौधे ही प्रदान करते हैं। आज रक्षाबंधन पर्व के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना भी बेहद जरूरी हो गया है। साहित्यिक मंडली शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने कहा कि आज से छह सौ वर्ष पहले पर्यावरण समस्या जैसी कोई बात नहीं थी, लेकिन संत कबीर ने वृक्ष, नदी, पहाड़, वन-पर्वतों के संरक्षण की बात कही है। ‘वृक्ष कबहुं नहिं फल भखैं, नदी न सिंचै नीर…’ यही नहीं, जल ही जीवन है का नारा भी उन्होंने दिया। आज विज्ञान चरम पर है, जिसे कबीर दास नश्वर कहते थे। उनकी वाणी मनोवैज्ञानिकता पर आधारित होती थी। इस लिए आज के दिन वृक्षों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। इस दौरान पर्यावरण प्रेमी धीरज कुमार, सुरेन्द्र कुमार, साहित्यसेवी सविता बिहारी, विजय कुमार, प्रमोद पंडित, निरंजन कुमार, स्वाति कुमारी, विकास कुमार, आशीष कुमार सहित सुजल कुमार उपस्थित थे।