यह त्यौहार भाद्रपद की एकादशी को बड़े ही धूमधाम से भारत के लगभग सम्पूर्ण जगहों पर मनाया जाता है इस त्यौहार को भाई-बहनों के प्रेम का मानक माना जाता है ,पर्व ‘करमा’ 17 सितंबर को है। इसकी पूजा के लिए सुहागिन बहनें अपने-अपने मायके भी पहुंच कर करती है। ये करमों की पूजा का पर्व है, जिसे भाई-बहन मिलकर करते हैं। ये पर्व मुख्य तौर से बिहार , झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। इस दौरान भाई-बहन करम के पौधे की पूजा करने के बाद ढोल-नगाड़ों पर नाचते और गाते भी हैं। इस पर्व में बहनों पूजा से पहले ‘निर्जला उपवास’ रखती हैं और घर के आंगन में करम के पौधे की डाली गाड़कर पूजा करने के बाद पानी पीती हैं। ये त्यौहार तीन दिनों तक चलता है, पहले दिन भाई-बहन करम के पौधे को घर के आँगन में रोपते हैं, फिर उसके दूसरे दिन बहनें निर्जला रहकर इसकी पूजा करती हैं, और शाम को पानी पीकर उपवास खोलती हैं,
और फिर अगले दिन गीतों के साथ करम के पौधे को नदी या तालाब में प्रवाहित किया जाता है। इन तीन दिनों में घर में जश्न का माहौल रहता है,घर में बहुत सी मिठाईयां और पकवान बनाये जाते हैं | पौराणिक कथाओं के मुताबिक आदिकाल में कर्मा-धर्मा नाम के दो भाई थे, जो कि अपनी छोटी बहन को बहुत ज्यादा प्यार करते थे। कर्मा-धर्मा बहुत ही मेहनती और सच्चे थे लेकिन दोनों काफी गरीब थे। उनकी बहन भगवान को बहुत मानती थी, वो करम के पौधे की पूजा किया करती थी । एक बार कुछ दुश्मनों ने उस पर हमला कर दिया तो उसके दोनों भाईयों ने अपनी जान की बाजी लगाकर अपनी बहन को बचाया था। तब बहन से करम पौधे से अपने भाईयों के लिए खुशी, सुख और धन मांगा था, जिसके बाद उसके दोनों भाई काफी धनी हो गए और वो इस खुशी में अपनी बहन संग करम पौधे के आगे खुब नाचे-गाए थे, तब से ही करम पौधे की पूजा भाई बहन करते हैं और नाचते-गाते हैं। इसे ‘करम नाच’ भी कहते हैं।