Friday, September 20, 2024
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कबीर मध्यकाल के क्रांतिपुरुष थे,कबीर मठ पावा ऐतिहासिक स्थल

कबीर मध्यकाल के क्रांतिपुरुष थे,कबीर मठ पावा ऐतिहासिक स्थल
● कबीर पंथियों का पवित्र आध्यात्मिक स्थल कबीर मठ पावा

राकेश बिहारी शर्मा…….

धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।

पंद्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में देश में उथल-पुथल का वातावरण था। क्रांतिचेता कबीर ने सामाजिक चेतना जगाने के लिए काफी संघर्ष किया और अपने उपदेशों से समाज को बदलने का पूरा प्रयास किया। सांप्रदयिक भेद-भाव को समाप्त करने और जनता के बीच खुशहाली लाने के लिए कबीर अपने समय के प्रकाश स्तंभ साबित हुए। अनेक अन्तर्विरोध के युग में कबीर जन्मे थे। कबीर के व्यक्तित्व को सभी अन्तर्विरोधों ने प्रभावित किया किंतु उन्होंने समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया। ‘परिस्थितिजन्य परिवेश की प्रतिकूलता में भी कबीर में निर्णय की अभूतपूर्व क्षमता थी। वह आत्मचिंतन से प्राप्त निष्कर्षों को कसौटी पर कसने में कुशल थे। प्रचलित धारणाओं के अनुसार, मस्तमौला कबीर संत रामानन्द जी के शिष्य थे।
कबीर मठ पावा के परम् भक्त बिहारशरीफ के अठघरा मोहल्ला निवासी शक्ति शरण माथुर के पिता संत शरण माथुर व इनके पिता स्वर्गीय गुरु प्रसाद दास जी इनके पिता मनोहर दास इनके पिता स्वर्गीय मंगलदास जी अठघरा निवासी कबीर मठ पावा के कई पीढीयों से शिष्य रहे। वर्तमान समय में अमर लोक टेक्सटाइल एजेंसी के मैनेजिंग डायरेक्टर (प्रबंध निदेशक) शक्ति शरण माथुर ने कबीर मठ पावा में अपने सहयोगियों के साथ पहुँच कर कबीर मठ पावा के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि कबीर मठ पावा संगत के पहला महंत श्री कुंजल साहेब जी– 1713 से 1790 तक महंती सम्भाले थे, 2. श्री गुरुशरण साहेब- 1790 से 1840, 3. श्री चुनी साहेब-1840 से 1900, 4. श्री सोमर साहेब – 1900 से 1916, 5. श्री सुरजू साहेब- 1916 से 1980, 6. श्री हरी साहेब- 1980 से 1985, 7. श्री पारस साहेब-1985 से 2005, 8.श्री शिवशरण साहेब – 2005 से 2014, 9. महंत श्री बह्मदेव साहेब उर्फ़ चन्देश्वर दास जी- 2014 से वर्तमान समय में पावा संगत की महंत गदी पर से कबीर के संदेशों को जन-जन में पहुँचाने का काम कर रहे हैं।
उन्होंने बतायाकि कबीर मठ पावा का ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है। यह स्थान बिहार के नालंदा जिले में स्थित है और इसे संत कबीरदास के साधना स्थल के रूप में जाना जाता है। कबीर, एक महान संत, समाज सुधारक और कवि थे, जिन्होंने 15वीं सदी में भक्ति आंदोलन को एक नई दिशा दी। उनके उपदेशों और दोहों ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक पाखंड का विरोध किया। कबीर मठ पावा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व कबीर पंथ के अनुयायियों के लिए अत्यधिक है। पावापुरी बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित एक धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है, जो जैन धर्म और कबीर पंथ दोनों से जुड़ा हुआ है। तत्कालीन समाज में व्याप्त बुराईयों को समूल नष्ट करने का शंखनाद भी है। कबीर एक समाज सुधारक के साथ-साथ श्रेष्ठ जनसंचारक भी थे। कबीर ने समाज के पाखंड से उपजे आडम्बरों पर विशेष चोट की। उन्होंने समाज की रूढ़िवादी व्यवस्थाओं, कुप्रथाओं और गलत परम्पराओं पर निर्भीकता तथा निडरता के साथ कुठाराघात किया। समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए ताउम्र संघर्ष किया। उन्होंने अपने जीवन के हर एक क्षण को समाज सुधार की साधना में लगाया। अपनी इसी साधना और संचार कुशलता के बल पर कबीर ने कभी कवि और साधक तो कभी दार्शनिक बनकर समाज को एक नई दिशा और दृष्टि दी। कबीर के इन्हीं भगीरथी प्रयासों ने तत्कालीन भारतीय समाज को समरसता का पाठ पढ़ाया।
कबीर मठ पावा का विशेष महत्व है :
कबीर मठ पावा, जो बिहार के नालंदा जिले में स्थित है, इसका इतिहास संत कबीरदास के जीवन और उनके आध्यात्मिक संदेशों से जुड़ा हुआ है। यह मठ कबीर पंथ के अनुयायियों के लिए एक प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है, जो उनकी शिक्षाओं, उनके संदेशों और उनके जीवन के अंतिम दिनों से संबंधित है। हालांकि पावा नालंदा को लेकर ऐतिहासिक दस्तावेज और प्रमाण कम हैं, फिर भी इस स्थल को कबीर के आध्यात्मिक स्थल के रूप में मान्यता दी जाती है।
कबीर मठ पावा पवित्र स्थल :
माना जाता है कि कबीरदास ने यहाँ पर अपना ज्यादातर समय पावा और राजगीर में बिताया और इसि लिये उनके अनुयायियों के लिए यह स्थान बहुत पवित्र माना जाता है। उनके अनुयायी हर साल यहाँ आते हैं और कबीर की शिक्षाओं और उनके संदेशों को आत्मसात करते हैं।
पावा समाज सुधारक की धरोहर :
कबीरदास के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेने वाले लोग मठ में उनके संदेशों को आत्मसात करते हैं। यहाँ उनकी शिक्षाओं पर आधारित प्रवचन और धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं।
कबीर मठ पावा धार्मिक समन्वय का प्रतीक :
कबीर जी जो सालों पहले कह गए हैं वह आज भी प्रासंगिक है। कबीर की शिक्षाएँ हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। उनके अनुयायी दोनों धर्मों से आते हैं, और कबीर मठ पावा धार्मिक समन्वय और एकता का प्रतीक माना जाता है। संत कबीरदास ने अपने उपदेशों में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की रूढ़िवादिता का विरोध किया और मानवता, प्रेम और एकता का संदेश दिया। पावा मठ, कबीर के इसी संदेश का प्रतीक है, जहाँ विभिन्न धर्मों के अनुयायी आकर एकता और सहिष्णुता का अनुभव करते हैं।

कबीर मठ पावा साधु-संतों का केंद्र :
यह मठ कबीर पंथी संतों और साधुओं का प्रमुख केंद्र है, जहाँ लोग ध्यान, साधना और भक्ति करते हैं। यहाँ कबीर की शिक्षाओं पर आधारित साधना पद्धतियाँ भी सिखाई जाती हैं। इस प्रकार, कबीर मठ पावा न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि कबीर के आदर्शों और शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण केंद्र भी है।
कबीर की शिक्षाओं का अनुपम केंद्र पावा :
इस मठ में कबीरदास की शिक्षाओं पर प्रवचन, सत्संग और विभिन्न धार्मिक गतिविधियाँ होती हैं। कबीरदास की सरल और व्यावहारिक भक्ति के सिद्धांतों को यहाँ पर विस्तार से सिखाया जाता है। यह स्थल कबीर के आदर्शों को जीवंत रखने के लिए प्रमुख केंद्र है। कबीर का प्रिय स्थल है पावा। यह कहा जाता है कि संत कबीर ने अपने जीवन का अंतिम समय पावा (नालंदा) में बिताया था। यहाँ पर ही उन्होंने अपने अनुयायियों को अपने उपदेश दिए और भक्ति मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। कबीर के निर्वाण के बाद, उनके अनुयायियों ने इस स्थान को पवित्र मानते हुए इसे एक मठ के रूप में विकसित किया।
जैन धर्म और कबीर पंथ के साथ उत्कृष्ट संबंध :
पावा जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे भगवान महावीर के निर्वाण स्थल के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए, यह स्थल न केवल कबीर पंथ के अनुयायियों के लिए, बल्कि जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी विशेष महत्व रखता है। यह स्थल धार्मिक सहिष्णुता और एकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
संतों और भक्तों का जीवंत संगम :
कबीर मठ पावापुरी में साल भर विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जहाँ कबीर पंथी संत, साधु और अनुयायी एकत्र होते हैं। ये कार्यक्रम संत कबीर की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने और उनके आदर्शों को जीवंत रखने का माध्यम होते हैं। कुल मिलाकर, कबीर मठ पावा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व कबीरदास के आध्यात्मिक संदेशों को आगे बढ़ाने, धार्मिक सहिष्णुता और एकता का प्रतीक होने के कारण बहुत महत्वपूर्ण है। यह स्थल कबीर के भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है, जो कबीर के जीवन और शिक्षाओं को समर्पित है।
कबीर की शिक्षाओं का केंद्र पावा :
कबीर मठ पावा संत कबीर के अद्वितीय विचारों और उपदेशों को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित किया गया। यहाँ पर कबीर के अनुयायी उनके संदेशों को आत्मसात करते हैं और उनका प्रचार-प्रसार करते हैं। मठ में कबीर की रचनाओं और विचारधाराओं को सिखाया जाता है, जिनका उद्देश्य जाति, धर्म और सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर मानवता और प्रेम का संदेश देना है।
धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक कबीर मठ पावा :
संत कबीरदास अपने जीवन में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के अंधविश्वासों और पाखंडों का विरोध करते थे। उन्होंने एक ऐसे समाज का सपना देखा था जहाँ मनुष्यों के बीच भेदभाव न हो। पावा स्थित कबीर मठ इसी धार्मिक सहिष्णुता और एकता का प्रतीक है, जहाँ हर धर्म और जाति के लोग एक साथ आकर कबीर की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं।
कबीर पंथ के अनुयायियों का पवित्र तीर्थ स्थल :
यह मठ कबीर पंथ के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहाँ हर साल दूर-दूर से भक्त और अनुयायी आते हैं, जो संत कबीर के संदेशों और उपदेशों को जानने और समझने की कोशिश करते हैं।
स्थानीय परंपराएँ और सामाजिक सुधार :
मठ की स्थापना के बाद से, यह केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि सामाजिक सुधार का केंद्र भी बन गया। कबीर की शिक्षाएँ समाज में फैली कुरीतियों और भेदभाव को खत्म करने का काम करती हैं। मठ में नियमित रूप से भक्ति प्रवचन, सत्संग और सामाजिक सुधार कार्यक्रम होते हैं। कबीर मठ पावा, नालंदा का ऐतिहासिक महत्व संत कबीरदास के जीवन और उनके आदर्शों से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह स्थल कबीर के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थान है, जो उनकी शिक्षाओं और उनके सामाजिक सुधार के संदेश को आगे बढ़ाने का काम करता है। यह धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक एकता और मानवता के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक स्थल है।

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