राकेश बिहारी शर्मा – आज श्रीरामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती है। तुलसीदास के विषय में सुनते ही हमारे सामने सबसे पहले उस ग्रंथ का नाम आता है जो आज भारत के हर घर में पवित्रता के साथ रखा गया है। यह ग्रंथ आज भी पूज्यनीय है। इस ग्रंथ का नाम ‘रामचरितमानस’ है। तुलसीदास को अनेक प्रकार से हम याद कर सकते हैं भक्त के रूप में कवि के रूप में या फिर एक सामान्य मनुष्य जो गृहस्थ जीवन और सन्यास के अंतर्द्वंद में रह गया।
कवि के रूप में इन्हें हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के रामभक्ति शाखा के अन्तर्गत रखा गया है।गोस्वामी तुलसीदास जी मानवीय चेतना के ऐसे प्रखर हस्ताक्षर थे जिनका सम्पूर्ण काव्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को समर्पित है।
तुलसी काव्य खास तौर पर रामचरितमानस 450 वर्षों से देश के मूर्धन्य विद्वानों के साथ ही साधारण जनों को भी प्रभावित करता आ रहा है। रामचरितमानस की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हिंदी में इसके जितने संस्करण छपे हैं, उस पर जितने शोध प्रबंध छपे हैं, जितनी टीकाएं लिखी गयी हैं, उतनी किसी अन्य काव्यकृति पर नहीं। अकेले गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित होकर रामचरितमानस के सिर्फ मंझले साइज की बत्तीस लाख चालीस हजार प्रतियां अब तक बिक चुकी हैं।
तुलसीदास लोकजीवन के व्याख्याता और साहित्य शिल्पी थे। उनकी रचनाओं में सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक चेतना का सत्यतः विनियोग हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास भक्ति रस तथा हिन्दी और अवधि भाषा के अप्रतिम कवि थे। गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति के महान संत एवं काव्य-सर्जक कवि थे। सम्पूर्ण भारतवर्ष में गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में तुलसी जयंती मनाई जाती है।
गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी प्रवाहित हो रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया। वाल्मीकि जी की रचना ‘रामायण’ को आधार मानकर गोस्वामी तुलसीदास ने लोक भाषा में राम कथा की रचना की। तुलसीदास का नाम स्मरण में आते ही प्रभु राम का स्वरुप भी सामने उभर आता है।
महान कवि तुलसीदास की प्रतिभा-किरणों से न केवल हिन्दू समाज और भारत, बल्कि समस्त संसार आलोकित हो रहा है। बड़ा अफसोस है कि उसी कवि का जन्म काल विवादों के अंधकार में पड़ा हुआ है। अब तक प्राप्त शोध निष्कर्ष भी हमें निश्चितता प्रदान करने में असमर्थ दिखाई देते हैं। मूलगोसाई-चरित के तथ्यों के आधार पर डा० पीताम्बर दत्त बड़वाल और श्यामसुंदर दास तथा किसी जनश्रुति के आधार पर 1554 का ही समर्थन करते हैं। इसके पक्ष मे मूल गोसाई-चरित की निम्नांकित पंकियों का विशेष उल्लेख किया जाता है।
“पंद्रह से चौवन विषै, कालिंदी के तीर, सावन सुक्ला सत्तमी, तुलसी धरेउ शरीर”।
तुलसीदास जी का जन्म विक्रम संवत 1554 को उत्तर प्रदेश के बाँदा ज़िला के राजापुर ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास जी ने अपने बाल्यकाल में अनेक दुख सहे युवा होने पर इनका विवाह रत्नावली से हुआ, अपनी पत्नी रत्नावली से इन्हें अत्याधिक प्रेम था परंतु अपने इसी प्रेम के कारण उन्हें एक बार अपनी पत्नी रत्नावली की फटकार “लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ” ‘अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति ! नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?’ हाड़ माँस को देह मम, तापर जितनी प्रीति।
तिसु आधो जो राम प्रति, अवसि मिटिहि भवभीति।। ये सूना तो उनके जीवन की दिशा ही बदल दी और तुलसी जी राम जी की भक्ति में ऐसे डूबे कि उनके अनन्य भक्त बन गए। बाद में इन्होंने गुरु बाबा नरहरिदास से दीक्षा प्राप्त की। तुलसीदास जी का अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में व्यतीत हुआ। तुलसी दास जी अनेक स्थानों पर भ्रमण करते रहे उन्होंने अनेक कृतियों की रचना किये हैं।
तुलसीदास जी ने रामनवमी (यानि त्रेतायुग के आधार पर राम-जन्म) के दिन प्रातःकाल ‘रामचरितमानस’ की रचना प्रारम्भ की। 966 दिन में तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखा था। उन्होंने संवत् 1631 में रामचरित मानस लिखनी शुरू की थी। संवत् 1633 के अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर ये ग्रंथ पूरा हो गया। इस महान ग्रंथ को सम्पन्न होने में दो वर्ष, सात महीने और छब्बीस दिन का समय लगा था।
1680 ई० में, शनिवार को “राम-राम” का उच्चारण करते हुए, तुलसीदास जी का देहावसान हो गया था। भारत सरकार ने 1 अक्टूबर 1952 को, गोस्वामी तुलसीदास को महान कवि के रूप में सम्मानित करते हुए, एक डाक टिकट जारी की। तुलसीदास जी हिंदी और संस्कृत भाषा के प्रकांड विद्वान थे, अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की थी।
तुलसीदास जी रचित श्री रामचरितमानस को बहुत भक्तिभाव से पढ़ा जाता है, रामचरितमानस जिसमें तुलसीदास जी ने भगवान राम के चरित्र का अत्यंत मनोहर एवं भक्तिपूर्ण चित्रण किया है। दोहावली में तुलसीदास जी ने दोहा और सोरठा का उपयोग करते हुए अत्यंत भावप्रधान एवं नैतिक बातों को बताया है। कवितावली इसमें श्री राम के इतिहास का वर्णन कवित्त, चौपाई, सवैया आदि छंदों में किया गया है।
श्रीरामचरितमानस के जैसे ही कवितावली में सात काण्ड मौजूद हैं। गीतावली सात काण्डों वाली एक और रचना है जिसमें में श्री रामचन्द्र जी की कृपालुता का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त विनय पत्रिका कृष्ण गीतावली तथा बरवै रामायण, हनुमान बाहुक, रामलला नहछू, जानकी मंगल, रामज्ञा प्रश्न और संकट मोचन जैसी कृत्तियों को रचा जो तुलसीदास जी की छोटी रचनाएँ रहीं। रामचरितमानस के बाद हनुमान चालीसा तुलसीदास जी की अत्यन्त लोकप्रिय साहित्य रचना है।
जिसे सभी भक्त बहुत भक्ति भाव के साथ गाते और सुनते हैं। तुलसीदास जी ने उस समय में समाज में फैली अनेक कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने विधर्मी बातों, पंथवाद और सामाज में उत्पन्न बुराईयों की आलोचना की उन्होंने साकार उपासना, गो-ब्राह्मण रक्षा, सगुणवाद एवं प्राचीन संस्कृति के सम्मान को उपर उठाने का प्रयास किया वह रामराज्य की परिकल्पना करते थे।
आज भी भारत के कोने-कोने में रामलीलाओं का मंचन होता है तथा देश के कोने कोने में रामचरित मानस और उनके निर्मित ग्रंथों का पाठ किया जाता है। तुलसीदास जी ने अपना अंतिम समय काशी में व्यतित किया और वहीं विख्यात अस्सी घाट पर 126 वर्ष की अवस्था में संवत् 1680 श्रावण शुक्ल सप्तमी, शनिवार को अपने प्रभु श्रीराम जी के नाम का स्मरण करते हुए तुलसीदास ने अपना शहरी त्याग दिया।
नयी पीढ़ी में जब अपनी भाषा से वांछित प्रेम विकसित होगा, तभी उनकी आवाज बनेगी। नयी पीढ़ी की रामचरितमानस के प्रति उदासीनता का एक कारण यह भी हो सकता है कि जब वह अपने सवालों को लेकर मानस के पास जाती है तो उसे कुछ निराशा हाथ लगती है। लेकिन इस तथ्य पर विवाद की भी पर्याप्त गुंजाइश है।